छत्रपति शिवाजी महाराज: एक वीर गाथा
साल 1659 की बात है। महाराष्ट्र की पवित्र भूमि पर एक महान योद्धा ने जन्म लिया था, जिनका नाम था छत्रपति शिवाजी महाराज। वे न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि एक कुशल रणनीतिकार और प्रजा के रक्षक भी थे। उनकी वीरता की कहानियाँ आज भी लोगों के दिलों में जोश भर देती हैं।
अफजल खान का अंत
उस समय बीजापुर का सेनापति अफजल खान शिवाजी महाराज को धोखे से मारने की योजना बना रहा था। उसने उन्हें एक मुलाकात के लिए बुलाया और वचन दिया कि कोई हथियार नहीं ले जाएगा। लेकिन शिवाजी महाराज जानते थे कि वह विश्वासघात करेगा। इसलिए उन्होंने अपने वाघनख (बाघ के पंजे जैसे हथियार) और कटार को अपने वस्त्रों के भीतर छुपा लिया।
जैसे ही अफजल खान ने शिवाजी महाराज को गले लगाया, उसने छिपे हुए खंजर से उन पर वार करने की कोशिश की। मगर शिवाजी महाराज पहले से सतर्क थे। उन्होंने तुरंत वाघनख से अफजल खान पर हमला किया और उसका अंत कर दिया। यह युद्ध इतिहास में अमर हो गया और इससे शिवाजी महाराज की वीरता की गूँज पूरे देश में फैल गई।
स्वराज की स्थापना
शिवाजी महाराज ने हमेशा स्वराज्य का सपना देखा था। उन्होंने मुगलों और आदिलशाही के खिलाफ संघर्ष किया और कई दुर्गों को जीतकर एक स्वतंत्र हिंदवी स्वराज की नींव रखी। उनके नेतृत्व में मराठा सेना ने गुरिल्ला युद्ध शैली अपनाई और कई बार दुश्मनों को पराजित किया।
सन् 1674 में रायगढ़ किले में उनका भव्य राज्याभिषेक हुआ और वे छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने एक न्यायप्रिय और शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें हर जाति और धर्म के लोगों को समान अधिकार मिले।
शिवाजी महाराज की विरासत
शिवाजी महाराज सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, वे एक महान प्रशासक भी थे। उन्होंने नौसेना का निर्माण किया, किसानों की भलाई के लिए नीतियाँ बनाईं और प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया। उनकी नीति और रणनीति आज भी प्रबंधन और युद्ध कला में एक प्रेरणा हैं।
उनकी वीरता और दूरदृष्टि ने भारत के इतिहास को एक नई दिशा दी। आज भी उनकी गाथाएँ हर भारतीय के हृदय में साहस और स्वाभिमान की भावना जगाती हैं। वे सच्चे अर्थों में हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक और भारत माता के सपूत थे।
"हर हर महादेव!"
शिवाजी महाराज: हिंदवी स्वराज्य की रक्षा
छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना तो कर ली थी, लेकिन इसे बचाए रखना भी एक चुनौती थी। मुगल बादशाह औरंगजेब उनकी बढ़ती शक्ति से भयभीत था। उसने अपने सेनापतियों को शिवाजी महाराज के खिलाफ भेजा, लेकिन वे हर बार पराजित हुए।सूरत की लूट: एक रणनीतिक विजय
सन् 1664 में शिवाजी महाराज ने मुगलों के अमीर शहर सूरत पर आक्रमण किया। यह शहर मुगल साम्राज्य के लिए आर्थिक रीढ़ था। उन्होंने इसे केवल धन लूटने के लिए नहीं, बल्कि यह दिखाने के लिए किया कि हिंदवी स्वराज्य अब किसी से कमजोर नहीं था।
शिवाजी महाराज की सेना ने सूरत में केवल उन व्यापारियों से धन लिया, जो मुगलों का समर्थन करते थे, लेकिन गरीबों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। इस अभियान ने शिवाजी महाराज की न्यायप्रियता और चतुराई को दर्शाया।
मुगल कैद से महान बचाव
1679 में औरंगजेब ने अपने सबसे चालाक सेनापति जयसिंह को भेजा। जयसिंह ने शिवाजी महाराज से समझौता किया और उन्हें आगरा बुलाया। लेकिन वहाँ उन्हें धोखे से कैद कर लिया गया।
मुगल सल्तनत को लगा कि अब शिवाजी महाराज की कहानी खत्म हो जाएगी, लेकिन वे शिवाजी महाराज की चतुराई को नहीं जानते थे।
शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी को आगरा में कैद कर दिया गया। लेकिन उन्होंने अपनी तीव्र बुद्धिमत्ता से मुगलों को चकमा दिया। वे बीमार होने का नाटक करने लगे और उनके लिए मिठाइयों और फलों की टोकरियाँ भेजी जाने लगीं। धीरे-धीरे उन्होंने इन टोकरियों में छिपकर भागने की योजना बनाई।
एक दिन, जब मुगल सैनिकों को कोई शक नहीं हुआ, तब शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी इन टोकरियों में छिपकर किले से बाहर निकल गए और स्वराज्य लौट आए। यह घटना उनकी बुद्धिमत्ता और योजना कौशल का सबसे बड़ा उदाहरण बनी
शिवाजी महाराज का स्वप्न और प्रेरणा
शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने समुद्री सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली नौसेना बनाई और कई दुर्गों को मजबूत किया। उनका जीवन भले ही 1680 में समाप्त हो गया, लेकिन उनकी गाथा कभी समाप्त नहीं हुई।
आज भी वे भारत के वीर योद्धाओं में सर्वोच्च स्थान रखते हैं। उनका आदर्श, उनकी नीति और उनकी वीरता हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
"जय भवानी! जय शिवाजी!"