Jhalkari Bai: The immortal story of bravery in Hindi Motivational Stories by Tapasya Singh books and stories PDF | झलकारी बाई: वीरता की अमर कहानी

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झलकारी बाई: वीरता की अमर कहानी

सन् 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पूरे भारत में फैल चुका था। झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लोहा ले रही थीं, और उनके साथ एक ऐसी वीरांगना थी, जिसने अपने साहस, निष्ठा और बलिदान से इतिहास में अमर स्थान प्राप्त किया। उसका नाम था झलकारी बाई।शुरुआती जीवन

झलकारी बाई का जन्म एक साधारण कोली परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे अदम्य साहस और शारीरिक बल में दूसरों से आगे थीं। उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कौशल में निपुणता हासिल की। उनकी वीरता और निर्भीकता देखकर लोग उन्हें छोटी रानी लक्ष्मीबाई भी कहने लगे।

झाँसी की सेना में शामिल होना

झलकारी बाई की शादी झाँसी की सेना के एक वीर सैनिक पूरन सिंह से हुई। विवाह के बाद, वे भी झाँसी की 'दुर्गा दल' में शामिल हो गईं। उनकी बहादुरी और रणनीतिक कौशल ने उन्हें रानी लक्ष्मीबाई के निकट ला दिया। वे न केवल महारानी की विश्वासपात्र बनीं, बल्कि उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती थीं।अंग्रेजों के खिलाफ रणभूमि में उतरना

जब 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने झाँसी पर हमला किया, तो झलकारी बाई ने महारानी लक्ष्मीबाई का साथ देने का निश्चय किया। युद्ध के दौरान जब झाँसी की सेना पर दबाव बढ़ने लगा, तब रानी को सुरक्षित निकालने की योजना बनाई गई।

योजना के अनुसार, झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई का वेश धारण किया और सीधे अंग्रेजी सेना के शिविर में पहुँच गईं। वे रानी की तरह ही घोड़े पर सवार होकर, पूरी शान और आत्मविश्वास के साथ दुश्मनों के सामने खड़ी हो गईं। अंग्रेज धोखे में आ गए और उन्होंने झलकारी बाई को ही असली रानी समझकर घेर लिया।

अंग्रेजों को चकमा देना

झलकारी बाई ने अंग्रेजों के साथ युद्ध किया और उन्हें तब तक उलझाए रखा जब तक कि रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित किले से बाहर नहीं निकल गईं। जब अंग्रेजों को सच का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। झलकारी बाई को पकड़ लिया गया, लेकिन उन्होंने वीरता के साथ अंग्रेजों का सामना किया

।बलिदान और अमरता

अंग्रेजों ने जब झलकारी बाई को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, तो उन्होंने गर्व से उत्तर दिया,"मैं झाँसी की सेना की एक साधारण सिपाही हूँ, रानी लक्ष्मीबाई को पकड़ने का सपना मत देखो!"

इस साहसी नारी ने वीरगति प्राप्त की, लेकिन उनकी यह बलिदान गाथा इतिहास के पन्नों में अमर हो गई। झलकारी बाई केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि भारतीय वीरांगनाओं का प्रतीक बन गईं।

झलकारी बाई की विरासत

आज भी झलकारी बाई की वीरता को याद किया जाता है। झाँसी में उनका एक स्मारक बना है और उनकी प्रेरणादायक कहानी हर देशभक्त के हृदय में जोश और उत्साह भरती है।

"खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी!और झलकारी बाई उसकी सच्ची सिपाही थी!"

झलकारी बाई: एक अमर बलिदान

झलकारी बाई का बलिदान केवल 1857 की क्रांति तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक ऐसा संदेश था जो आने वाली पीढ़ियों को साहस और देशभक्ति की प्रेरणा देता रहा। उनके बलिदान के बाद, झाँसी की लड़ाई ने पूरे देश में क्रांतिकारियों को और अधिक प्रेरित किया।झलकारी बाई का प्रभाव

झलकारी बाई के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने झाँसी पर अधिकार कर लिया, लेकिन उनका साहस और बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में एक नया अध्याय जोड़ दिया। उनका यह कदम अन्य महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित करने वाला साबित हुआ।

झलकारी बाई न केवल एक महान योद्धा थीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी थीं। उस समय जब महिलाओं को घर तक सीमित माना जाता था, उन्होंने यह दिखाया कि नारी भी युद्ध भूमि में उतरकर मातृभूमि की रक्षा कर सकती है। उनकी कहानी यह प्रमाणित करती है कि वीरता किसी जाति या समाज विशेष की धरोहर नहीं होती, बल्कि यह आत्मबल और संकल्प की शक्ति पर निर्भर करती है

।झलकारी बाई की विरासत

आज भी झलकारी बाई को झाँसी और पूरे भारत में सम्मान के साथ याद किया जाता है। उनके नाम पर कई स्मारक और संस्थान बनाए गए हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उनकी जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

भारतीय सेना और पुलिस में भी झलकारी बाई की वीरता को एक प्रेरणा के रूप में देखा जाता है। कई महिला बटालियन उनके नाम से स्थापित की गई हैं। उनकी शौर्य गाथा को लोकगीतों, नाटकों और फिल्मों के माध्यम से जीवंत रखा गया है

।नारी शक्ति का प्रतीक

झलकारी बाई का जीवन यह संदेश देता है कि नारी केवल शक्ति और साहस का स्रोत नहीं, बल्कि राष्ट्र की रक्षा के लिए हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहती है। उन्होंने अपने अदम्य साहस से यह साबित किया कि देशभक्ति किसी वर्ग, जाति, या लिंग का मोहताज नहीं होती—बल्कि यह एक भावना है, जो हर सच्चे भारतीय के हृदय में बसती है।

अमर वीरांगना

झलकारी बाई ने अपने बलिदान से यह सिद्ध कर दिया कि भारत की धरती वीरांगनाओं से कभी खाली नहीं रही। वे रानी लक्ष्मीबाई की परछाई नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र योद्धा थीं, जिनकी गाथा भारत के हर कोने में गर्व से सुनाई जाती है।

"भारत माँ की सच्ची बेटी, वीरांगना झलकारी बाई,जिनके बलिदान ने अंग्रेजों की जड़ें हिला दीं!"नमन उस अमर वीरांगना को!