Bevajah ki Pyas - 2 in Hindi Love Stories by Agent Romeo books and stories PDF | बेवजह की प्यास - भाग 2

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बेवजह की प्यास - भाग 2

रात जो कभी खत्म नहीं होती – भाग 2

सिर्फ एक खेल? या उससे भी ज्यादा?

सान्या के कदमों की आहट जैसे ही कॉरिडोर में गूंजने लगी, आयुष ने दरवाजे पर घूंसा मार दिया। उसकी साँसें तेज थीं, जैसे उसकी गिरफ्त से कुछ फिसल गया हो। कमरे में अब भी सिगरेट का धुआँ फैला हुआ था, पर्दों के पीछे से आती सुबह की हल्की रोशनी माहौल को और भी धुंधला कर रही थी।

सान्या की चाल धीमी थी, मगर उसके चेहरे पर वही सुकूनभरी मुस्कान थी, जो हर रात के बाद रहती थी। वो जानती थी कि आयुष इस रिश्ते को क्या नाम देना चाहता है, मगर वो इसे नाम नहीं देना चाहती थी। उसके लिए यह सिर्फ एक खेल था—एक जुनूनी, उन्माद से भरा खेल।

लेकिन क्या यह सच था?

वही रात, वही आग

रात फिर से दस्तक दे रही थी। सान्या बालकनी में खड़ी थी, हाथ में एक गिलास रेड वाइन था, और आँखें शहर की रोशनी को घूर रही थीं। फोन बजा—आयुष का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था।

उसने कॉल उठाई, लेकिन कुछ नहीं कहा। दूसरी तरफ आयुष की धीमी, मगर गहरी आवाज़ आई—

"कहाँ है?"

सान्या ने होंठों पर हल्की मुस्कान ला कर जवाब दिया, "जहाँ मुझे होना चाहिए।"

"और वो कहाँ है?"

"तेरी पहुँच से बस थोड़ी ही दूर..."

आयुष ने गहरी सांस ली।

"बकवास मत कर, सान्या। मेरे पास आ। अभी।"

सान्या ने गिलास को होंठों तक ले जाते हुए कहा, "और अगर मैं न आऊं?"

आयुष हंसा, मगर उसकी हंसी में वो बेचैनी थी जिसे सान्या पहचानती थी।

"तुझे पता है, मैं तुझे तलाश ही लूंगा। और जब मिल जाएगी... तो फिर कोई भागने का रास्ता नहीं बचेगा।"

फोन कट गया।

सान्या ने एक लंबी सांस ली। वो जानती थी कि आयुष क्या कर सकता है। और शायद यही वजह थी कि वो हर बार उसकी तरफ खिंचती चली जाती थी।

फिर आमना-सामना

रात के दो बजे।

कमरे का दरवाजा खुला।

आयुष अंदर आया, आँखों में वही वहशी चमक, जैसे किसी शिकारी ने अपने शिकार को देख लिया हो।

सान्या ने लाइट ऑन नहीं की। हल्की चांदनी कमरे में बिखरी हुई थी।

"तुझे लगा, मैं तुझे ढूंढ नहीं पाऊंगा?" आयुष ने धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन उसमें आदेश साफ झलक रहा था।

सान्या ने वाइन का गिलास टेबल पर रखते हुए कहा, "मैं इंतजार कर रही थी, आयुष।"

आयुष के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, मगर उसकी आँखें अभी भी सख्त थीं। वो आगे बढ़ा, और उसके एकदम करीब आ गया।

"तो फिर भाग क्यों रही थी?"

सान्या ने उसकी आँखों में देखा।

"मैं कहीं नहीं जा रही थी। तू ही इतना पागल है कि तुझे लगने लगा कि मैं भाग रही हूँ।"

आयुष ने उसकी कलाई पकड़ ली और उसे दीवार से सटा दिया।

"तू मुझे अपना पागलपन साबित करने का हर मौका देती है, सान्या। और मुझे तुझे सज़ा देने में मजा आता है।"

"तो देर किस बात की?" उसने धीमी आवाज़ में कहा, आँखों में वही नशा लिए।

खेल का बदला हुआ रुख

लेकिन इस बार कुछ अलग था।

हर बार आयुष हावी हो जाता था। मगर इस बार, जैसे ही उसने सान्या के चेहरे को छूने की कोशिश की, सान्या ने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया।

"नहीं, इस बार मैं तय करूंगी कि ये खेल कैसे चलेगा।"

आयुष के चेहरे पर हल्की हैरानी थी।

"ओह, तो अब तुझे भी हुकूमत पसंद आने लगी?" उसने फुसफुसाते हुए कहा।

सान्या मुस्कुराई।

"हुकूमत नहीं, आयुष। बस यह एहसास कि मैं भी तुझे उतना ही काबू कर सकती हूँ, जितना तू मुझे।"

उसने आयुष को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके ऊपर आ गई।

कमरे में सन्नाटा छा गया, बस उनकी साँसों की आवाज़ गूंज रही थी।

आयुष ने उसकी आँखों में देखा, और इस बार पहली बार उसे लगा कि शायद वह भी अब उसके काबू में था।

सुबह की बेचैनी

रात बीत गई।

आयुष बिस्तर पर लेटा था, और सान्या खिड़की के पास खड़ी थी। उसकी पीठ आयुष की तरफ थी, लेकिन वो जानती थी कि वो उसे देख रहा है।

"अब क्या?" आयुष ने धीमी आवाज़ में पूछा।

सान्या ने बिना पीछे देखे जवाब दिया, "अब कुछ नहीं। बस सुबह हो गई है।"

"क्या हम फिर से वही खेल खेलेंगे?"

सान्या ने हल्की हंसी के साथ कहा, "शायद... लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि तू ये सोचना शुरू कर दे कि तुझे ये खेल कब खत्म करना है।"

आयुष चुप हो गया। ये पहली बार था जब सान्या ने इस खेल को खत्म करने की बात की थी।

"तू कहना क्या चाहती है?"

सान्या उसके पास आई, बिस्तर पर झुकी, और धीरे से उसके कान में कहा—

"आयुष... अगर तू मुझे कंट्रोल कर सकता है, तो शायद मैं भी तुझे कर सकती हूँ। लेकिन कब तक? कहीं ऐसा न हो कि हम दोनों ही इस खेल में फंस जाएं... और फिर ये खेल हमारी जिंदगी बन जाए।"

आयुष को पहली बार डर महसूस हुआ।

क्या सच में ये खेल अब सिर्फ एक खेल नहीं रहा?

अभी खत्म नहीं हुआ...

सान्या उठी, अपने कपड़े ठीक किए और दरवाजे की ओर बढ़ी।

आयुष ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।

बस इतना कहा—

"आज रात फिर आना।"

सान्या रुकी, मुस्कुराई, मगर कुछ नहीं कहा।

फिर उसने दरवाजा खोला और बाहर निकल गई।

आयुष बिस्तर पर लेटा रहा, और उसकी आँखों में वही सवाल तैरने लगा—

"क्या ये खेल अब भी सिर्फ एक खेल है?"

(जारी रहेगा...)