pathreele knteele raste - 30 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 30

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पथरीले कंटीले रास्ते - 30

 

30

 

गुणगीत की याद रविंद्र के दिल और दिमाग पर पूरी तरह से हावी हो गयी थी । अपने एक ख्याल से वह घबरा गया । इस खोए से मन की बेचैनी है । एक सहमा सा डर है । और यह रातों का जागरण है । रविंद्र ने वह सारी रात कुछ जागते , कुछ सोते हुए अधनींदे से होकर बिताई । दिन निकला तो उसने परमात्मा का शुक्र किया । रात तो बीती । कम से कम अब वह बाहर की खुली हवा में साँस तो ले सकेगा । अपने आप को कहीं किसी काम में व्यस्त रखेगा तो ये सब फालतू की बातों से छुटकारा पा सकेगा । मन कहीं ओर लगेगा तो उसकी सांसें हल्की हो जाएंगी । अपने एकतरफा प्यार पर वह खीझ खीझ जाता । उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आता कि वह अपने मन की बात गुणगीत से क्यों नहीं कह पाता । एक बार हिम्मत करके कह दे फिर चाहे जो होना है , वह हो जाए । ज्यादा , ज्यादा से ज्यादा क्या होगा , गुणगीत सुनते ही हँस हँस कर पागल बातें जाएगी । चुन्नी का एक छोर मुँह में डाले लगातार हँसती रहेगी , जब तक आँखों से पानी न बहने लगे । या शायद नाराज हो जाए ।  पर उसके मन की बात पता तो चलेगी । यह सच है कि वह उसकी नाराजगी बर्दाशत नहीं कर पाएगा पर एक अनिश्चितता की दीवार तो ढहेगी । अभी वाली बातें फिर उसके दिमाग में नहीं आएंगी । यह सब आलतू फालतू बातें उसे नहीं सताएंगी ।  अभी वह यह सब बैठा सोच ही रहा था कि फाटक के सामने से गुजरते योगा शिक्षक ने आवाज दी – अभी तक यहीं हो । मैदान में नहीं पहुँचे ।

जी । आता हूँ ।

आज योगा करने का इरादा हैं या नहीं  ?

आया सर – उसने पैरों में जूती फंसाई और बाहर निकल आया । दोनों तेज कदमों से मैदान की ओर चल दिये ।

कोई परेशानी है क्या ?

परेशानी तो कोई नहीं जी । बस रात को नींद नहीं आती ।

होता है कभी कभी । तुम अनुलोम विलोम किया करो । थोङा प्राणायाम भी कर लोगे तो रात में नींद  बहुत अच्छी आ जाया करेगी । रात को धार्मिक पुस्तकें पढने से भी मन शांत रहता है । कहो तो मैं कोई ग्रंथ मंगवा दूँ या फिर घर वालों को कह कर अपने कोर्स की किताबें ही मंगवा लो । पढोगे तो अच्छा लगेगा ।

तब तक वे मैदान में आ चुके थे । सबके साथ उसने भी योग किया और लौट कर नहाने चला गया । नहाकर वह मैस में नाशते के लिए पहुँचा तो मैस में दो नये चेहरे दिखाई दिये । ये लोग शायद कल आए होंगे , अपने ख्यालों में डूबे होने की वजह से उसे दिखाई न दिये होंगे ।

उसने जानकारी के लिए इधर उधर देखा । उसकी आँखों में सवाल देखकर  जतिन उसके पास सरक आया – अरे भाई यह गगन है , वही गगन जिसके बारे में आप अक्सर पूछा करते थे ।

अच्छा पर ये तो जमानत पर घर गया हुआ था न ।

एक महीने की ही छुट्टी मिली थी तो कल एक महीना पूरा हो गया ।  आज अभी यहाँ पहुँचा है । कहते कहते उसने गगन को पुकारा – गगन भाई , यहाँ आओ । गगन अपनी थाली लिए उनके पास चला आया 

हाँ भाई

भाई ये रविंद्र पाल सिंह है । चक राम सिंहवाला से । तेरे बारे में अक्सर पूछते रहते हैं ।

नमस्ते भाई

घर में सब ठीक हैं ? माँ , पापा ,  भाई ,बहन सब ?

माँ पापा ठीक है उतने ही ठीक , जितना हो सकते हैं । भाई बहन कोई है नहीं अपना ।

ओह !  तुरंत उसकी कल्पना में प्रौढ आयु के दम्पति की कल्पना साकार हुई जिनका इकलौता बेटा अपनी प्रेमिका की हत्या के केस में जेल में कैद होकर जज के फैसले का इंतजार कर रहा है । बेचारे कैसे मर मर कर जी रहे होंगे । उनके आँसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे होंगे ।

जतिन ने दोनों के उतरे हुए चेहरे देखे तो बात पलटने और माहौल को हल्का बनाने के लिए बोला – गगन भाई , ये रविंद्र भाई साहब तुम्हारी कलियों की बङी तारीफ करते हैं ।

हाँ गगन , तुम वाकयी बङा सुंदर गाते हो ।

गाना कौन सा , दिल के छाले फोङता रहता हूँ । जिसे जान से ज्यादा चाहता था । जिसके एक इशारे पर जान देने को तैयार रहता था । उसे ही मैंने अपने इन्हीं हाथों से किरच मार दी । तीन बार किरच उतार दी उसके सीने में । खून की नदियाँ बह गई थी सैकेंडों में ।

हो जाता है कभी कभी ऐसा । असल में जिसकी मौत जैसे लिखी है , वैसे ही बानक बनते जाते हैं दोस्त । असल में हम सब कठपुतलियाँ हैं , महज कठपुतलियाँ । नियति हमें अपने हिसाब से नचाती है और हम उसके इशारों पर नाचते जाते हैं । जीना मरना सब इसी नियति के हाथ में है ।  जन्म के साथ ही मृत्यु भी तय हो जाती है ।

गगन खिलखिला कर हँस पङा – अच्छी फिलासफी है दोस्त । इस बार पेशी पर जज के सामने जाएगा तो यही लैक्चर सुना कर आना । खुश हो जाएगा । सारी सजा माफ कर देगा और नियति को अरैस्ट करवा कर फांसी पर चढा देगा ।

रविंद्र झेंप गया । उसने तो गगन को बहलाने के लिए यह सब सुनी सुनाई बाते कह दी थी ।

यार तू भी न ।

सच तो यह है कि मैंने  कई दिनों की प्लैनिंग के बाद उसे मारा था । दिन रात उसकी हत्या करने के मनसूबे बांधा करता था ।

क्या बोल रहा है ।

सही कह रहा हूँ यार ।

ऐसे कैसे जिसे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं , उसे हम नुकसान पहुँचाने के बारे में सोच भी सकते है ।

तो सुनो , अपनी कहानी सुनाता हूँ ।  हम चार पाँच दोस्त एक दिन शहर के चौंक में खङे थे । अचानक सामने से दो लङकियां स्कूल की वर्दी पहने हमारे सामने से निकली । उनमें से एक लङकी के साथ मेरी आँखें मिली । मिली तो मिली ही रह गयी । बस दिल उसके साथ ही चला गया ।

एक तो सामान्य ही थी पर ये दूसरी ऊँची लंबी सरु के बूटे जैसा कद , काली कजरारी बङी बङी आँखें , गुलाब की पंखुङियों जैसे पतले नाजुक लब । दूध में सिंदूर मिला हो जैसे ऐसा कनकी रंग । हंसती तो जैसे घंटियाँ टनटना उठती । बोल बुलबुल के गीतों जैसे लगते ।

वह मेरे सामने से जा चुकी थी पर मैं ठगा सा वहीं खङा रह गया था । उस पूरे दिन एक नशा सा तारी रहा । मैं उसे नहीं जानता था । न नाम न जाति न मौहल्ला । फिर भी वह मेरे ख्वाबों में बस गई थी । अगले दिन दिन निकलते ही मैंने खुद को उसी चौक में खङे  पाया । मैंने न चाय पी थी , न नाश्ता किया था । बस बढिया से कपङे पहन कर बाल संवार वहाँ आ खङा हुआ था । इंतजार का एक एक मिनट बीतने में ही नहीं आ रहा था । आखिर सवा सात बजे वे दोनों पीठ पर बस्ते लादे आती हुई दिखाई दी  । एक पल को लगा कि मेरा दिल सङक पर ही गिरेगा । वह बुरी तरह से धङक रहा था । जब तक मैं संभल पाता , वे अगला मोङ पार कर गयी । मैं मंत्रमुग्ध सा सङक पर टकटकी लगाए खङा रहा ।  पाँचदस मिनट बाद होश आया तो घर की ओर चला । माँ मेरे इस तरह सुबह सुबह बिना कुछ खाए चले जाने से परेशान थी ।  

पहले तो उठाने से भी उठता ही नहीं था । ये आज सुबह सुबह बिना नहाए धोए तैयार होकर किधर गया था ।

वो माँ , हम चार दोस्त सुबह जोगिंग पर जाने लगे हैं ।

अगला सवाल आए , उससे पहले ही मैं बाथरूम में घुस गया था ।

 

 

बाकी फिर ...