सिनेमा: एक अधूरी फिल्म
रोहन एक महत्वाकांक्षी फिल्म निर्देशक था, जो अपनी पहली फिल्म बनाना चाहता था। उसके पास विचारों की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संसाधनों की भारी कमी थी। मुंबई के एक छोटे से कमरे में रहकर वह दिन-रात अपने सपने को साकार करने के लिए संघर्ष कर रहा था।
एक दिन, उसे एक दिलचस्प कहानी सूझी—एक असफल अभिनेता की कहानी, जिसे अपनी आखिरी फिल्म कभी पूरी करने का मौका नहीं मिला। यह विचार उसे इतना पसंद आया कि उसने पूरी रात जागकर पटकथा लिखनी शुरू कर दी। उसकी फिल्म का नाम था "अधूरी फिल्म"।
रोहन ने अपने दोस्तों को अपनी योजना में शामिल किया। उसके दोस्त—रवि, जो एक संघर्षशील अभिनेता था, और नंदिनी, जो सिनेमैटोग्राफी सीख रही थी—ने बिना पैसे लिए उसका साथ देने का वादा किया। तीनों ने मिलकर छोटे कैमरों और मोबाइल फोन से ही फिल्म की शूटिंग शुरू कर दी।
लेकिन फिल्म बनाना आसान नहीं था। रोहन को बार-बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। उसे फिल्म के लिए लोकेशन चाहिए थी, लेकिन महंगे स्टूडियो किराए पर लेना असंभव था। इसलिए उसने मुंबई की सड़कों, पुराने थिएटर और दोस्तों के घरों को ही सेट बना लिया।
कुछ हफ्तों में शूटिंग आधी से ज्यादा पूरी हो गई, लेकिन तभी एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई—फिल्म के मुख्य अभिनेता रवि को एक टीवी सीरियल में काम मिल गया। यह मौका उसके करियर के लिए बेहद अहम था। वह रोहन को छोड़कर नहीं जाना चाहता था, लेकिन मजबूरी में उसे जाना पड़ा।
अब रोहन के पास दो ही विकल्प थे—या तो फिल्म को अधूरा छोड़ दे या फिर नया रास्ता खोजे। उसने दूसरा रास्ता चुना। उसने कहानी में बदलाव किया और असली जिंदगी की इस समस्या को ही फिल्म का हिस्सा बना लिया।
आखिरकार, छह महीनों की मेहनत के बाद फिल्म पूरी हुई। लेकिन नई चुनौती थी इसे रिलीज़ करना। किसी भी बड़े प्रोडक्शन हाउस ने इस छोटे बजट की फिल्म को खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। रोहन निराश हो गया, लेकिन हार मानने वालों में से नहीं था। उसने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फिल्म रिलीज़ करने का फैसला किया।
फिल्म रिलीज़ हुई और धीरे-धीरे लोगों के बीच चर्चा में आ गई। सोशल मीडिया पर इसे भरपूर सराहना मिली। फिल्म की सच्चाई, संघर्ष और आत्म-अन्वेषण के पहलू ने कई लोगों को छू लिया। बड़े फिल्म समीक्षकों ने भी इसे सराहा और जल्द ही यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों तक पहुंच गई।
रोहन, जिसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी "अधूरी फिल्म" इतनी बड़ी पहचान बनाएगी, अब एक सफल निर्देशक बन चुका था। उसकी फिल्म ने यह साबित कर दिया कि सिनेमा केवल बड़े बजट और स्टार्स का मोहताज नहीं होता—बल्कि जुनून, संघर्ष और सच्ची कहानियों का माध्यम भी होता है।
सिनेमा: एक अधूरी फिल्म
फिल्म की सफलता ने रोहन को अचानक चर्चा में ला दिया। बड़े फिल्म निर्माता, जो कभी उसे नकार चुके थे, अब उससे मिलने को तैयार थे। लेकिन रोहन को समझ नहीं आ रहा था कि यह अचानक मिला सम्मान उसके काम के लिए है या केवल उसकी लोकप्रियता के कारण।
एक दिन, उसे एक बड़े प्रोडक्शन हाउस से कॉल आया। उन्होंने उसकी अगली फिल्म को प्रोड्यूस करने का प्रस्ताव दिया। यह वही स्टूडियो था, जिसने पहले उसकी फिल्म को खरीदने से इनकार कर दिया था। रोहन को अपने संघर्ष के दिन याद आए—कैसे उसने दोस्तों की मदद से अपनी फिल्म बनाई थी। लेकिन अब उसकी आँखों के सामने एक और चुनौती थी—क्या वह बड़े बजट की चकाचौंध में अपनी मौलिकता खो देगा?
नए सफर की शुरुआत
रोहन ने कुछ दिनों तक सोचा और फिर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन एक शर्त पर—वह अपनी फिल्म की कहानी और निर्देशन पर पूरा नियंत्रण रखेगा। स्टूडियो ने यह शर्त मान ली।
अब रोहन अपनी दूसरी फिल्म बनाने में जुट गया। इस बार उसके पास संसाधन थे, लेकिन वह उस जुनून को बनाए रखना चाहता था जो उसकी पहली फिल्म में था। उसने फिर से अपने पुराने दोस्तों को बुलाया—रवि, जो अब एक मशहूर टीवी अभिनेता बन चुका था, और नंदिनी, जो अब एक प्रोफेशनल सिनेमैटोग्राफर थी। तीनों ने एक बार फिर मिलकर एक नई कहानी पर काम शुरू किया।
लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था। स्टूडियो ने शुरुआत में वादे किए थे कि वे उसके विज़न में दखल नहीं देंगे, लेकिन शूटिंग के दौरान प्रोड्यूसर्स बार-बार स्क्रिप्ट में बदलाव की मांग करने लगे। वे चाहते थे कि फिल्म में बड़े सितारे हों, ज्यादा ड्रामा और रोमांस जोड़ा जाए, और कहानी को "मार्केट-फ्रेंडली" बनाया जाए।
समाप्त।
दीपांजलि दीपाबेन शिम्पी