( देश के दुश्मन )
( 6)
दुपहर का वक़्त..... राहुल के सँग राणा.... सीये वास्तव जानी सेक्टरी... तीनो एक कमरे मे, बैठे और सामने थी गर्म कॉफी.... तीनो चुप.... राहुल स्टडी कर रहा था चेहरे... एक एक के। कौन कितना कमीना हैं?????.... पर वास्तव पर उसको कोई शक नहीं था,
ये साला राणा कहा से घिसड़ता आ गया.. सोच रहा था राहुल। न चाहते हुए भी वास्तव ने बोला था... "कुत्ते जैसा तो नहीं कोई बन सकता " फिर वो चुप था। " वफदारी आपसे निभाता रहुगा। "
राहुल ने कहा... " अब राणा तू बता.. बात खत्म करे। " उसने इतनी जोर से पैर उसके सीने पे मारा.. ऐसे लगा जैसे राणा को अटेक हो गया हो.. और सदा के लिए जैसे चुप कर गया। पर इतनी जल्दी... कया मार धाड़ करता होगा। घिसड़ता गया दूर तक.... ये कोई सच्ची मे एक्शन नहीं था।
अब वास्तव को उसने इशारा किया... उसके घर था... लफड़ा पड़ेगा... वो सोचने लगे, करे कया।
निशान उसके बूट का छप सा गया था.. पर धुदला सा। सीने पे ब्लड जम सा गया लग रहा था। वास्तव को तरतीब आयी... बोला -" भाई साब, इसको ऐसे ही रहने दे, शाम होते ही जिमा दोनों का ठिकाने लगाने का ¡!'---बात कट करते राहुल बोला " चल मेरे घर। " वास्तव थोड़ी देर बाद उसके घर था।
उसने पूछा ---" तुम उस वक़्त किधर थे " वास्तव किसी काम मे दिल्ली गया था, आप को बता कर ज़ब सगीना साथ जा रहे थे ऑफिस दिखाने... याद आया। " राहुल थोड़ी देर बाद बोला ---" माया तुझ पे शक करे कयो, ये जान कर दुःख लगा, पर दिल नहीं मानता.. कि तुम ऐसा कुछ कयो करोगे। " तभी वास्तव बोला, " सच मे रीना मुझे बोल रही थी, ये कया चिचड़ी पक रही हैं। " राहुल थोड़ा पक्का हो चला था, " रीना तो कनेड़ा मे हैं, बात हुई। " वास्तव ने कहा " हाँ... कोई चार दिन ही हुए हैं। " -----
तभी फोन कि वही रिंग टोन वजी.... "फोन तुम उठाओ.. वास्तव मिया "
"हेलो " तभी फोन कट गया....
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तभी उधर जो राहुल के लडके और लड़की से जो किडनेप किये हुए थे, उनका हाल दयनीये था... होंठ खुशक थे, चेहरा लटका हुआ था... चेयर पे बिठा रखा था दोनों को... भूख और प्यास से दोनों का बुरा हाल था... पीछे हाथ बाधे हुए थे... कमरे मे अंधेरा था, और लकड़ी ब्शुमार थी.. जैसे कोई पास जंगल हो। सगीना दो वार चेयर से बहुत कठिनता से उठी थी.. अंधेरा जयादा था.. दिखाई कम ही पड़ता था.. लकड़ी का दरवाजा खुला था एक वार बस, कयो पता नहीं था... बर्फ की ठंडी हवा ने बुखला दिया था, सगीना को... कश्मीर की ठंड थी.. पता नहीं किधर की
ठंड थी। कोई सबूत तो बिलकुल नहीं था। कुछ फ़ारसी अल्फाज़ सगीना के कान मे पड़े थे। जिससे उसे यकीन था कि वो भारत मे तो बिलकुल नहीं हैं... फिर कहा थे... शिमले.. या कश्मीर... डोर खुला, एक दम से।
" अबे लड़की... तेरे बोस ने कोई जवाब नहीं दिया... "
उसकी नजर एक दम से दूर कुदरत के करिश्मे कि तरफ थी, तिकोनी पहाड़ीया... बर्फ से लदी हुई... ठंडी हवा के झोंके... उस आदमी ने जो छे फूटा था, उसने हिरण की खाल का सूट पहना हुआ था, जो कानूनी तोर पे अपराध था। " उसे बात करो "
नंबर मिलाना शुरू हो चूका था।