वसंत: एक नई शुरुआत
गाँव में वसंत ऋतु का आगमन हो चुका था। ठंडी सर्दियों के बाद अब सूरज की किरणें हल्की गुनगुनी तपिश के साथ धरती को आलोकित कर रही थीं। खेतों में पीली सरसों लहराने लगी थी, आम के पेड़ों पर बौर आ गए थे, और कोयल की मीठी कुहू-कुहू सुनाई देने लगी थी। इसी गाँव में रहने वाला एक किसान, रघु, इस बदलाव को देखकर खुश था, लेकिन उसके दिल में चिंता की एक लकीर अब भी बनी हुई थी।
संघर्ष और आशा
रघु का इकलौता बेटा, मोहन, पिछले साल शहर काम की तलाश में गया था, लेकिन कई महीनों से कोई ख़बर नहीं थी। रघु हर रोज़ गाँव के डाकघर जाता, लेकिन कोई चिट्ठी नहीं आती। उसकी बूढ़ी आँखें बेटे की राह तकते-तकते थक चुकी थीं। पत्नी भी चिंता में दुबली हो गई थी, लेकिन रघु उसे हमेशा दिलासा देता, "वसंत का मौसम है, देखना, हमारा बेटा भी इसी के साथ लौटेगा।"
वसंत पंचमी का दिन
गाँव में वसंत पंचमी का त्योहार पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा था। बच्चे पतंग उड़ा रहे थे, महिलाएँ माँ सरस्वती की पूजा कर रही थीं, और चारों ओर उल्लास का वातावरण था। लेकिन रघु का मन शांत नहीं था। वह चुपचाप अपने खेत की मेड़ पर बैठा, नदी के किनारे बहते पानी को देख रहा था।
तभी गाँव के रास्ते पर हलचल मची। कोई शहर से आया था! लोगों ने देखा कि एक युवा लड़का अपनी झोली लिए भागता हुआ गाँव की ओर बढ़ रहा था। जब वह पास आया, तो रघु की आँखों से आँसू बह निकले—वह मोहन था!
नई उम्मीद का सूरज
मोहन ने दौड़कर पिता के चरण छुए और माँ को गले लगा लिया। उसकी आँखों में खुशी थी। उसने बताया कि उसे शहर में नौकरी मिल गई थी और वह अब हमेशा के लिए गाँव लौट आया था। उसने जो पैसे कमाए थे, वे पिता के हाथों में रख दिए और कहा, "अब हमें कोई चिंता करने की ज़रूरत नहीं, बाबा! हमारा वसंत लौट आया है।"
रघु की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसने आसमान की ओर देखा, जहाँ रंग-बिरंगी पतंगें उड़ रही थीं। उसे महसूस हुआ कि वसंत केवल फूलों का खिलना या मौसम का बदलना नहीं है—यह उम्मीद, प्रेम और जीवन में नई शुरुआत का प्रतीक है।
उस दिन पहली बार रघु ने गाँव के बच्चों के साथ पतंग उड़ाई। उसकी पतंग सबसे ऊँची जा रही थी, जैसे उसके सपने फिर से आसमान छूने को तैयार थे।
वसंत: एक नई शुरुआत (भाग 2)
रघु के घर में अब खुशियों की रौनक लौट आई थी। मोहन के लौटने के बाद घर में उत्सव का माहौल था। पड़ोसी बधाइयाँ देने आ रहे थे, और रघु की पत्नी, गंगा, अपने बेटे को देखकर मानो वर्षों बाद फिर से खिल उठी थी। गाँव के बुजुर्गों ने कहा, "देखा! वसंत सिर्फ फूलों का नहीं, बल्कि अपनों की वापसी और नई उम्मीदों का मौसम भी है।"
गाँव का बदलाव
मोहन ने अपने पिता के साथ खेतों की ओर रुख किया। कई महीने बीतने के बाद उसने पहली बार अपने खेत को हरे-भरे रूप में देखा। सरसों के पीले फूलों की महक उसके बचपन की यादें ताजा कर रही थी। लेकिन वह यह भी समझ चुका था कि गाँव के किसान अभी भी संघर्ष कर रहे थे—कभी सूखा, कभी अधिक बारिश, कभी अनाज के कम दाम।
एक शाम, उसने अपने पिता से कहा, "बाबा, हमें खेती के पुराने तरीकों से आगे बढ़ना होगा। मैंने शहर में देखा कि नए तरीके अपनाने वाले किसान अधिक सफल हो रहे हैं। हमें भी बदलाव लाना होगा!"
रघु को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। उसने हमेशा परंपरागत तरीकों से खेती की थी, लेकिन बेटे की आँखों में विश्वास देख वह सहमति में सिर हिला दिया।
नई उम्मीद की फसल
मोहन ने गाँव के अन्य किसानों को भी समझाने की कोशिश की। कुछ ने उसकी बात मानी, तो कुछ हँसते हुए बोले, "शहर में कुछ दिन क्या रह लिया, अब हमें खेती सिखाओगे?" लेकिन मोहन ने हार नहीं मानी। उसने अपने ही खेत में नई तकनीकों का इस्तेमाल करके दिखाने का फैसला किया।
उसने वैज्ञानिक तरीकों से बीज बोए, ड्रिप इरिगेशन लगवाया और जैविक खाद का उपयोग किया। धीरे-धीरे उसकी फसल बाकी खेतों से अधिक हरी-भरी दिखने लगी। गाँव के लोग यह देखकर चौंक गए। अब वे मोहन के पास आने लगे और उससे सीखने लगे।
होली का उत्सव और सफलता की मिठास
कुछ ही महीनों में फसल कटाई का समय आ गया। मोहन और रघु की मेहनत रंग लाई, और इस बार पैदावार दोगुनी हुई। यह देखकर गाँव के बाकी किसानों ने भी उसकी विधि अपनाने की ठान ली।
होली के दिन पूरा गाँव खुशी से झूम उठा। गाँव के चौपाल पर रंगों की बौछार हो रही थी, ढोल की थाप गूँज रही थी, और चारों ओर गुलाल उड़ रहा था। मोहन ने अपने पिता के चेहरे पर सुकून की चमक देखी और मुस्कुराते हुए कहा, "बाबा, देखा! इस बार हमारा वसंत सिर्फ खुशी ही नहीं, बल्कि समृद्धि भी लेकर आया है!"
रघु ने अपने बेटे को गले लगाते हुए कहा, "हाँ बेटा, तुमने सही कहा था—वसंत केवल मौसम नहीं, यह जीवन में नई शुरुआत का अवसर होता है!"
और इस तरह वसंत की यह ऋतु गाँव वालों के लिए न सिर्फ खेतों में, बल्कि उनके जीवन में भी
खुशहाली का संदेश लेकर आई।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी