Nafrat e Ishq - Part 17 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 17

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Nafrat e Ishq - Part 17

शॉपिंग के बाद जब सभी कैब में बैठे, तो माहौल पहले से ही मस्त था।

आर्यन ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "भाई, आज जो खर्चा हुआ है, उससे तो मेरी आत्मा भी किस्तों में बाहर जाएगी।"

नीलू ने ठहाका लगाया, "क्यों? अपनी 'डिस्काउंट स्किल' कहाँ गई? आज तो सेल्समैन ने तुझे ही डिस्काउंट दे दिया, वो भी बिना माँगे—'अगली बार पक्का कुछ और दिलाएंगे' वाला!"

सहदेव ने मुस्कुराते हुए बाहर की ठंडी हवा को अपने चेहरे पर महसूस किया। "कसम से, ये दिन अलग ही था। ऑफिस और घर के रूटीन से बाहर निकलकर पहली बार असली ज़िंदगी जी रही है।"

शालिनी ने सिर हिलाया, "यही तो ज़िंदगी है! दोस्त, मस्ती और बेवजह की खरीदारी।"



यहाँ एक विस्तारित, पेशेवर रूप से लिखी गई और अधिक दिलचस्प कॉमेडी शैली की कहानी दी गई है, जिसमें पात्रों की गहराई, हास्य, और एक सहज प्रवाह जोड़ा गया है।  



शॉपिंग मॉल से निकलते ही ठंडी हवा ने सहदेव का स्वागत किया। उसने हल्की मुस्कान के साथ कैब की खिड़की नीचे की और ताज़ी हवा के झोंकों को अपने बालों से खेलने दिया। जिंदगी की भागदौड़ में वो शायद भूल ही गया था कि दोस्तों के साथ बेफिक्र होकर वक्त बिताना कैसा लगता है।  

कैब उसके पीजी—"मितेश निवास"—के सामने रुकी। यह जगह वैसे तो 'पीजी' कहलाती थी, लेकिन असल में यह एक मिनी हॉस्टल से कम नहीं थी, जहाँ हर कोने में कहानी थी और हर कमरा अपने आप में एक सीरीज़ का एपिसोड।  

कैब से उतरते ही पीजी के ओनर, **राजेश जी**, हमेशा की तरह संजीदा चेहरे के साथ सामने आ गए।  

"सहदेव, कल रेंट भर देना।"

बस, इतना बोलकर वो चले गए।  

सहदेव उनकी पीठ को देखता रहा और मन में सोचने लगा—"इस आदमी ने कभी खुश होने की कसम खा रखी है क्या?" शायद भगवान ने इनका हंसी-दिवस कैंसिल कर दिया था।    

खैर, सहदेव ने अपने सिर को झटका, बैग उठाया और सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अपने कमरे में पहुँच गया।  


जैसे ही वह अंदर घुसा, सामने रितेश, प्रीतम, तुषार, मोहित, अंशुमन, और अंकित बैठे थे, और हमेशा की तरह किसी अत्यधिक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे थे—मतलब क्रश, फ्रेंड-ज़ोन और बॉस से बचने की टिप्स ।  

"अरे सहदेव! शॉपिंग करके कोई रॉयल लुक लेकर आया है क्या?" प्रीतम ने आँख मारते हुए कहा।  

"हाँ भाई, अब तो बस घोड़ी चढ़ने की देर है।" तुषार ने चुटकी ली।  

"वैसे तूने क्या खरीदा?" अंशुमन ने पूछा।  

सहदेव ने अपने बैग से नई जैकेट निकाली और सबके सामने लहराई।  

"भाई, चमक इतनी है कि अगर लाइट चली जाए, तो इसे टॉर्च की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं!" मोहित ने हँसते हुए कहा।  

सभी ठहाका मारकर हँस पड़े।  

"ज्यादा मत बोलो, कल देखना, यही जैकेट लोगों का दिल जीत लेगी!" सहदेव ने नाटकीय अंदाज में कहा।  

उसी समय संदीप कुमार और  लकी सिंह , जो पीजी के जूनियर शेफ  थे, बाहर आए और बोले—  

"भाई लोग, डिनर टाइम!" 

 

पीजी का मेस एक अनोखी जगह थी, जहाँ लोग खाने के लिए कम और हंसी-ठहाकों के लिए ज्यादा आते थे। यहाँ खाना बनाने वाले थे—  

1.  रणवीर सिंह राठौड़ उर्फ 'सोंटी'  – मुख्य रसोइया, जोधपुर से, ज़बर्दस्त खाना बनाने वाला और उससे भी ज़्यादा ज़बर्दस्त कॉमेडियन।  
2.  संदीप कुमार और लकी सिंह – जूनियर शेफ, जिनका सपना था कि कभी-कभी वो बिना डांट खाए भी खाना बना सकें।  
3.  मनोज  – हेल्पर, जिनका जीवन का मुख्य उद्देश्य था बर्तन धोने से बचना।  
4.  राम अवतार शर्मा और आलोक  – क्लीनर, जो जब भी झाड़ू लगाते, तो ऐसा लगता था जैसे रेस्लिंग का कोई नया फॉर्मेट शुरू हुआ हो।  

"ओ सोंटी भैया! आज क्या बना है?" सहदेव ने अंदर घुसते ही पूछा।  

 "राजा भोज और गंगू तेली की पसंद—'राजस्थानी स्पेशल आलू-प्याज की सब्जी और मिस्सी रोटी'!" सोंटी ने चिमटा घुमाते हुए कहा।  

"बस, भाई अब तो पेट पूजा का वक्त है!" अंकित ने थाली उठाते हुए कहा।  

सहदेव ने पहला कौर मुँह में डाला, और आँखें बंद कर लीं।  

"भाई, तुमने फिर से जादू कर दिया!" उसने कहा।  

"देखो, इंसान को तीन चीज़ों से प्यार होता है—पहला उसका पहला क्रश, दूसरा उसकी पहली सैलरी, और तीसरा सोंटी भैया का बनाया खाना!" रितेश ने कहा, और सभी हँस पड़े।  



खाने के बाद सभी वापस अपने कमरे की ओर जाने ही वाले थे कि आलोक, जो क्लीनर होने के साथ-साथ स्टैंड-अप कॉमेडियन भी थे, अचानक बोले—  

"भाई लोगो, एक शायरी पेश है!"

और फिर उन्होंने धाँसू अंदाज़ में कहा—  

"कभी किसी से दिल मत लगाना, 
अगर लगाओ तो फिर छुपाकर मत रखना,  
वरना वो तुम्हें 'भाई' बोल देगा,
और तुम फिर लड़कियों के साइड रोल में ही रह जाओगे!" 

पूरा मेस ठहाकों से गूंज उठा।  

तभी राम अवतार शर्मा  बोले—  

"अब मेरा भी एक चुटकुला सुन लो!" 

"एक आदमी डॉक्टर के पास गया और बोला—"  
"डॉक्टर साहब, मुझे भूलने की बीमारी हो गई है!"
"डॉक्टर बोले—कब से?"
"आदमी—कब से क्या?"  

फिर से ठहाके गूंज उठे।  



रात के 11 बज चुके थे। सहदेव अपने बिस्तर पर लेटा, अगले दिन सोनिया के बर्थडे पार्टी के बारे में सोच रहा था।  

"कल तो धमाल मचाएंगे!" उसने सोचा।  

लेकिन तभी, उसके कमरे के दरवाजे पर ज़ोर-ज़ोर से ठक-ठक हुई।  

"अबे कौन है?" सहदेव ने झल्लाते हुए दरवाजा खोला।  

बाहर  अंशुमन और तुषार खड़े थे, चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान लिए।  

"भाई, कल पार्टी में सिर्फ कपड़े ही नहीं, डांस भी चाहिए!" तुषार ने कहा।  

"तो?" सहदेव ने पूछा।  

"तो डांस प्रैक्टिस अभी शुरू हो रही है!"

"क्या? अभी?"

"हाँ! तेरा जैकेट चमकता है, तो तेरी मूव्स भी चमकनी चाहिए!" अंशुमन ने हँसते हुए कहा।  

और बस फिर क्या था—रात के 12 बजे पीजी के हॉल में डांस रिहर्सल शुरू हो गई।  



सुबह की पहली किरण के साथ सहदेव तैयार था