श्री हनुमंत दोहावलीरचयिता-श्री गजराज सिंह खरे 'निर्भीक'प्रकाशक-दतिया हिन्दी साहित्य समिति दतिया (म०प्र०)मुद्रक-भानु प्रिन्टर्स मुड़ियन का कुआ, दतिया [म०प्र०] ३२०६परिचयश्री गजराज सिंह खरे 'निर्भीक' बुन्देली के जाने-माने हास्य कवि एवं प्रवचन कर्ता हैं। इनका जन्म श्रावण कृष्ण ४ सम्वत् १६६२ में ग्राम खरैला, तहमील मोंठ, जिला झाँसी (उ० प्र०) में एक कायस्थ परिवारमें हुआ। इनके पिता का नाम श्री प्रताप सिह खरे है। आजकलआप ग्राम दरयापुर, जिला दतिया (म०प्र०) में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। आप कवि सम्मेलनों एवं मानस सम्मेलनों में समान रुप से भाग लेते हैं। श्रोताओं को हँसाते-हँसाते लोट पोट कर देना आपकी विशेषता है। उम्र के चढ़ाव के साथ आपकी रुचि एवं रचनाओं में भी मोड़ आया। आप बुन्देली में नवीन हास्य शैली में प्रवचन करते हैं। श्री हनुमान जी आपके इष्ट देव हैं, और प्रवचन में विशेष रुप से श्री हनुमंत लाल के ही गुणगान करते हैं। प्रकाशन :- (१) बुन्देली बोल (हास्य रस प्रधान कविता-संग्रह) (२) लोक लहरी (सभी प्रकार के मस्ती भरे बुन्देली लोक गीत एवं मुक्तक) (३) लोक गीत चालीसा (साज बाज के साथ गाये जाने वाले चालीस से अधिक ठेठ बुन्देली के मस्ती भरे लोक-गीत) (४) चित्रांश कल्याण (कायस्थों के लिऐ चित्रगुप्त महाराज से सम्बन्धित पाठ करने की पुस्तक) (१) हँसे तो फंसे (हास्य रस से परिपूर्ण पैरोडियां) (६) जय हनुमंत लाल (छोटी. किन्तु हनुमत मंत्रों से अभिमंत्रित पुस्तक। (७) श्री हनुमंत दोहावली (थी हनुमान जी के चरित्र एवं कायों का ठेठ बुन्देली दोहों में गुण गान ।- ऋषि मोहन श्रीवास्तवभूमिकाबजरंग बली श्री हनुमान जी इस कलिकाल में सभौ संकटों का निवारण करने वाले देवता हैं। वे भगवान श्रीराम के प्रिय भक्त हैं, और प्रभु के भक्त उन्हें अत्यन्त प्यारे हैं। पवन-पुत्र संकट मोचन श्री हनुमान जी की आराधना से हम उनके स्वामी भगवान श्री राम की सहज कृपा का आवाहन करते हैं। वे संकट हरन हमारी सहायता के लिये तुरन्त दौड़े आते हैं- उन्हें चाहिये शुद्ध हृदय में उपजा भक्ति-भाव और उसकी करुण पुकार ।'श्री हनुमान आल्हा' और 'जय हनुमंत लाल' के रचयिता श्री गजराज सिंह खरे 'निर्भीक' बुन्देली भाषा के सुप्रसिद्ध हास्य कवि ही नहीं मानस के माने हुए प्रवचनकार हैं। मुझे विश्वास है, बुन्देली-प्रेमी हनुमद् भक्त उनकी 'श्री हनुमंत दोहावली' का भी भरपूर स्वागत करेंगे ।श्री 'निर्भीक' जी के दोहों में बुन्देली की मीठी बोला बानी है। मैं भी श्री हनुमान जी की स्तुति में खड़ी बोली के अपने कुछ दोहे प्रस्तुत करता हूं। वायु पुत्र महाबली से अपनी और पराई आपदाएँ काटने के लिये मैं विनयावनत हूँ।पिंग-नयन, वज्रांग प्रभु, राम भक्त हनुमान । पवन-तनय, सँकट-हरन, अंजनि-सुत बलवान ।।जय कपीश, शंकर-सुवन, जय केशरी-कुमार । मंगल मूर्ति दयानिधे, जयति रुद्र-अवतार ।।※सेवा दुष्कर कर्म है, सेवा-धर्म महानसच्ची सेवा का सदा, सेवा ही सम्मान। सेवा के आदर्श हैं तेज-पुंज हनुमान। प्रिय सेवक श्री राम के, करते जग-कल्याण ।।हनुमत-चरणों का अहो, जग-जाहिर प्रताप । क्षण भर में वे मेटते, पाप, ताप, सन्ताप ।। पाप-कर्म में लिप्त हो, भूला कर्तव्य-ज्ञान । पछताता मैं आप ही, दया करो हनुमान ॥ चालें हैं छल से भरी, नहीं भक्ति-पहिचान । शरण आपको आ गया, रामदूत हनुमान ॥ संकट है प्रभु अति कठिन, नहीं मार्ग आसान । शीघ्र काट दो आपदा, हे मेरे हनुमान ।।दतिया (म०प्र०) । दीपावली, १६६३ ।(डॉ०) हरिमोहन लाल श्रीवास्तव साहित्य-वारिधि, साहित्य महोपाध्यायश्री हनुमंत दोहावली(१)जय हनुमान हरी-हम पै कैसी कृपा करी ॥नमामी, नमामी, नमामी, नमामी, पवन के लला को नमामी, नमामी ।नमामी, नमामी, नमामी, नमामी, लला कौशिला को नमामी, नमामी ॥जननि-गर्भ आया तो उल्टा पड़ा हूँ; कसा हूँ , फँसा हूँ शरण में खड़ा हूँ ।निकालो यहाँ से हमें शीघ्र स्वामी; नमामी, नमामी, नमामी, नमामी ॥वहां से ढ़केला, यहाँ से सकेला, ढ़केला सकेला का ये कैसा मेला ?कठिन रेल पेला से, काढ़ो हे स्वामी; नमामी, नमामी, नमामी, नमामी ।।ये संसार सागर कठिन काफिला है; वहाँ से चला वो यहाँ से चला है ।नमन कोटि 'निर्भीक' करता है स्वामी; नमामी, नमामी, नमामी, नमामी ॥२।। बजरंग बली, मोरी नाव चली ॥बजरंग बली, मोरी नाव चली । पकरा दो हम खौं सही गली ।।तुम पै प्रसन्न हैं जनक लली । हम भटक रए हैं गली-गली ॥हैरान करें जे लला-लली । औ सरग धरे हैं भमर कली ।।धीरें-धीरें जा उमर ढली । हम चूक न कौनउँ जाँय कली ॥हे राम लला, बजरंग बली । 'निर्भीक' सबइ की करौ भली ।।३।। जय बजरंग बली ।।सबसें नौने लगत हमें तो जे बजरंग बली-मोरी भमर कली । चायें इनलो चना चढ़ा दो चायें दार-दली-मोरी भमर कली ॥मोटे-मोटे रोट बना के गुर की धरौ डली-मोरी-चना चवा के रोट पचाकें सब की करें भली-मोरी इन जैसौ कोउ जन्मों नैर्यां जग में बीर बली-मोरी भमर कली। राम लला इन पै प्रसन्न हैं रीझी जनक लली-मोरी-हनुमत मंदिर गाँवन-गाँवन बन गए गली गली-हिन्दू इनमें राम देख रह मुस्लिम अली बली-इनके कारन अवधपुरी की बड़ी विपत्ति टली-मेरी भमर कली।इनके कारण सम्मेलन की भारीचाल चली मोरी.. नाव सुनत खन भूत भगत हैं सूदी धरत गली-मोरी--कलजुग के जेई राजा हैं जय बजरंग बली! मोरी भमर कलीबारम्बार प्रणाममों में सूरज दाब कें, कर दव चक्का जाम । बीर बली बजरंग खों, बारम्बार प्रणाम ॥ १ ॥दिल की कुर्सी पै डटे, धनुष बाण धर राम। ऐसे हनुमत संत खौं, बारम्बार प्रणाम ॥ २ ॥रोम रोम में रम रये, जिनके सीताराम । ऐसे महा महंत खौं, बारम्बार प्रणाम ।। ३ ।।भड़ भड़ाय भू खे भटक, करौ राम को काम । भूखे-प्यासे संत खों, बारम्बार प्रणाम ।॥ ४ ॥लंका में लूधर लगा, मचा दऔ कुहराम । बीर वली बजरंग खों, बारम्वार प्रणाम ॥ ५ ।।जी भर के सुनलो कथा, न्योंत रए हम चूल । मौड़ी-मौड़ा फेंक हैं, गंगा जी में फूल ॥ ६ ॥आज अखाड़े कर रऐ, बने फिरत हो साँड़ । धूर उड़ आकाश में, गंगा गिर हैं हाड़ ।॥ ७ ॥चोला में चिड़िया उरी, फड़ फड़ात दिन-रैन । पंख फुलाकें जब उड़े, तब हूहौ बेचैन ।। ८ ॥कै रये कवि 'निर्भीक' जी, सबसे साँसी बात । ना कछु लैकें आए ते, ना कछु लैकें जात ॥ ६ ॥जस लैकें आए हते, अपजस न ले जाव । लरी भिरौ ना गिर परी, जस करकें तर जाव ।। १० ।।साधु संत को देखकें, जो जन जावें फूल । जान जाव हनुमान जी, उनपै है अनुकूल ॥ ११ ॥साधु-संत खौं देखतन, जो जन उठवें कूल । जान लेव हनुमान जी, उनके हैं प्रतिकूल ॥ १२ ॥जी भरकर सुन लो कथा, काए रए हो काँख । आंधी में उड़ है लला, जा शरीर की राख ॥ १३ ॥भौतउ मीठे हैं लला, बुन्देली के बोल । बुन्देली में है कथा, सुनो खूब दिल खोल ॥ १४ ॥कितउँ करेजे में घुसी, नेक कथा की नोंक । खुटिया सी 'निर्भीक जी' निश्चय दै हैं ठोंक ॥ १५ ॥पैले तो 'निर्भीक' हम, हते उजारू ढोर । पवन-पूत की कृपा नें, दऔ कथा में बोर ॥ १६ ॥बड़ी कठिनता सें घुसत, हिय में हनुमत हूँक । जीवन भर 'निर्भीक' जी, हड़ गए चूलो फूक ॥ १७ ॥बचपन बीतौ कष्ट में, कड़ी जवानी झींक।हनुमान हूँ के रये, कड़े बुढ़ापौ ठीक ॥ १८ ॥अव तो मानस मंच की. पकर लई है गैल । पवन-पुत्र हनुमान जी, पास करें चयं फैल ॥ १६ ॥दुख-दरिद्र चम्पत भए, भगे लगा कें कीक । पवन-पुत्र की गोद में, खेल रए 'निर्भीक' ॥ २० ॥हुड़ गए ते 'निर्भीक जी' लगा लगा कें झीक । पवन-पुत्र की कृपा से, परौ ठिकानों ठीक ॥ २१ ॥सिर शारद को कर कमल, हिय हनुमत की हूँ क । युगल प्रिय 'निर्भीक' कों, कौन सके अब ढूंक ॥ २२ ॥कवि-उर घर कर घुस गई, हनुमत की हुंकार।अब की में ताकत लला, करबै टेढ़ो बार ॥ २३ ॥ वीर बली बजरंग की, महिमा सकै को आंक। चश्मा टूटा चोट सें, बचा लई है आंख।।24पवन-पुत्र हनुमान की, महिमा सके को आंक। एकई पूरा बार कें, बचा लई सब लांक ।॥ २५ ॥कृपा भई हनुमंत की, ईश्वर जाने राज । हम आ ब्राजे मंच पर, सज्जन सहित समाज ।। २६ ।।पवन-पुत्र संकट हरन, हम पर भए निहाल । उठा बिठाया मंच पर, गद्दा तकिया डाल ॥ २७ ॥बिना सफल संयोग के, बने न कोनउ काम । हनुमान की कृपा सें, तुलसी पाये राम ॥ २८ ॥साँस-साँस में सुमिर नर, पावन पवन कुमार । पकर पवन की पूछ खौं. मिले राम-दरबार ।। २९ ।।महावीर को नाम जप, निशिदिन में सौ बार । शत्रु निवारण शीघ्र हो, संकट मिटें अपार ॥ ३० ॥जी भर के सुनियो कथा, तुमें राम को कौल । जोई है संसार से, तर जावे को डौल ॥ ३१ ॥हँस-हँस के चर लो लला हरी-कथा की घास । मौत मताई को धरो बनौ बनाओ पास । ३२ ।।हनुमान के हाँत में, है हम सब की लाज। भारत के आतंक पे, जेई गिराहैं गाज ।। ३३ ।।उरे फिरत हैं देश में, मुलक उचक्का चोर । हनुमान हन दो इनें, मारौ मुड़ी मरोर ॥ ३४ ॥पकरा दो हनुमान जी, इनखों सूदी गैल । कड़ जायें तैसील से, सबरे लोग लचैल ।। ३५ ।।नर सहस्र निन्दा करें, लाख लगाऐं झीक । पवन पुत्र की कृपा से, निर्भय हैं 'निर्भीक' ।। ३६ ।।हनुमान है हमाए, हम हनुमत के पूत । हनुमान की हूँक सें, भड़भड़ात हैं भूत ॥ ३७ ॥ जिन जिन ने मानों इनें, खूब रये फर-फूल । जिन्ने ना मानों इनें, चाट रये हैं धूल ॥ ३८ ॥जा शरीर को चामरो, कछु न आहे काम । सेवा सें संसार में, जुग जुग चलहै नाम ॥ ३९ ॥के रए कवि 'निर्भीक' जी, गारंटी के साथ । कलजुग को सब चार्ज है, हनुमान के हाथ ॥ ४० ॥ पवन पुत्र की गोद में, डटकें कवि 'निर्भीक' । दूद-करूला कर रए, खटका करें खटीक ॥ ४१ ॥बजरंग बड़ाई( कानौ बड़ाई करों वीर हनुमान की )वीर बली बजरंग की, सुन लो तुम तारीफ । रावण दल के शत्रु हैं , रामादल के चीफ ।। ४२ ।।वीरन बिच बलवंत है, संतन बीच महंत । पवन-पुत्र हनुमंत को, को कवि पावै अंत ।। ४३ ॥मूड़ मुकुट, माथे तिलक, गरें बिदायें माल । जांघन ऊपर जांघिया, कसें अंजनी-लाल ।॥ ४४ ॥एक हाथ में मुष्टिका, दूजे धरें पहाड़ । लाल धजा खों देखतन, चुरमुरात है हाड़ ।। ४५ ॥प्रभु-पाँवन पै शीश घर, उठा मुष्टिका हाथ । लाल-लाल झंडा लयें, चले पवन के साथ ।। ४६ ॥हम सें का पूछत लला, हनुमान की आप । 'हनू' शब्द के सुनत खन, मरत पाप को बाप ।। ४७॥सूदे ना समझौ इनें, हैं लरवे खों साँड़ । कठिन मुष्टिका-मार सें, भुस कर देतई हाड़ ।। ४८ ।।जग में नई जन्मों लला, हनुमान सौ लाल । रोम-रोम में रम रए, राम चन्द्र भूपाल ।। ४१ ।।हनुमान खों आज तक, लगो न कौनउँ ऐल । राम-सिंया के पास हैं, को कर सकतइ फैल ।। ५० ।।हनुमान हैं राम के, ओली लये सपूत।इतनी सेवा करत हैं, परत राम खों कूत ।। ५१ ।।महावीर महिमादुके हते सुग्रीव जब, भइया को भय मान । राम-लखन खों पीठ पै, लाद ल्याये हनुमान ।। ५२ ।।सुखी भगे सुग्रीव जी, राम लखन खों पाय । मिटो बाल को खूकटों, लऔ राज हथियाय ।। ५३ ।।सीता जी को खोज खों, धाम गये बलवीर। नदियाँ औ घट घाट सब, पर्वत डारे चीर ।। ५४ ।।अपनौ मौड़ा मान कें, मुंदरी दई उतार। हाथ फेर के मूड़ पै, राम रये पुचकार ।। ५५ ।।बोले बेटा सिया खों, दिऔ मुदरिया जाय । जल्दी खबर लियाइयो, मन मेरो घबराय ॥ ५६ ॥बन्दर भालू छू भये, छोड़-छाड़ के प्रान ।मौ में मुंदरी दाब कें, दौड़ चले हनुमान ॥ ५७ ॥भूखे प्यासे फिर रये, भरकम में भटकाय।भट भेरे मारत फिरें, मिलवें सीता माय ।। ५८ ।।अंगद बाली को लला, भओ भौत बेचैन । कक्का खों तो राज दव, हमें सता रये ऐन ।। ५६ ।।मरे बाप की याद कर, बिलखें बालि कुमार । मिली न सीता तो मरे, फिरे तो कक्का मार ॥ ६० ॥भडभड़ात बन में फिरें. काँ हो सीता माय । बिना मौत हम मर रये, जल बिन जी घबराय ।। ६१ ॥उचक चढ़ ऊँचे पहड़, हनुमान जी धाय। मुलक चिरैयाँ गुफा सें, उड़ कड़ें मंड़राय ॥ ६२ ॥जल्दी उतरे पहड़ सें, उरे गुफा में जाय। मंदिर मे बैठी भई, तपसिन दई में दिखाय ॥ ६३ ॥वा तपसिन से पूछ कें, पानी पिऔ अघाय। मीठे मीठे फल मिले, खाये भूख बुझाय ।: ६४ ।।ऐसौ जादू सौ भऔं, खड़े समुन्दर तीर । करें बड़ाई राम की, सब बन्दर बलवीर ।। ६५ ।।आंखन से अँसुआ बयें, अंगद भए बलवीर। बाप हमाओ मार कें, मोय मारत अधीर ॥ ६६ ॥सबरे बंदरा रो रये, दै दै कें डिड़कार ।जाम्बन्त समझा रये, हाथ फेर पुचकार ॥ ६७ ॥बोले बेटा, राम हैं, नारायण औतार।जिनके कारन तन धरी, बेई लगा हैं पार ।। ६८ ।।अँधरा गीधा रत हतौ, उतई पहड़ की खोय । बोलो तुम सबखों भखों, भूख सता रई मोय ॥ ६६।उर में उरदा से चुरे, सुन गीधा की बात । जाम्बन्त पछता रए, धरें करम पे हाँत ॥ ७० ।।गीध जटायू की करी, अंगद ने तारीफ । मरो राम के काम में, सब चीलन को चीफ ॥ ७१ ॥संपाती नें सिर धुनौ, सुन अंगद की बात । भैया हतौ हमाव वो, हाय हाय चिल्लात ॥ ७२ ॥दई तिलांजलि भाई खों, राम चरन सिर नाय । पंख जमे आँखें खुली, दर्शन सब के पाय ॥ ७३ ॥बूढ़े हम हो गए लला, वौ बल तन में नाँय । तो भी हम कर हैं कछू, आज तुमाइ सहाय ।। ७४ ॥गिर त्रिकूट के ऊपरें, लंका पुरी बसाय। राक्षस राजा रहत हैं, रावण नांव धराय ।। ७५ ।।लंका भीतर है लला, इक अशोक को बाग । •बगिया में बिरछान सें, सिया मांग रई आग ।। ७६ ॥हम गीधा हैं दूर कौ, हम खों खूब दिखात। वा अशोक बिरछा तरें, बैठीं सीता मात ॥ ७७ ।।सौ जो जन सागर भरौ, मगर मच्छ की मार । जीमें दम होवै लला, कैरै कूद के पार ।। ७८ ।।इतनी कै गीधा उड़ौ, अपने पंख फुलाय । जाम्बन्त हनुमान से, बोल उठे पुटयाय ॥ ७६ ॥पवन-पूत हो तुम लला, बल है हवा समान । बल विवेक विज्ञान की, तुमरे भीतर खान ॥ ८० ॥जा दुनिया में आप खौं, कठिन न कौनउँ काज । रोम रोम में तुमाये, राम रये हैं ब्राज ॥ ८१ ॥इननी सुन हनुमान जी, बड़कें भये पहाड़ । सिंह गर्जना कर रये, चिपटे दैन दहाड़ ॥ ८२ ॥खेल खेल में समुन्दर, कूद कड़ी वा पार । रावण जी खों मारकें, ल्यांव त्रिकूट उखार ॥ १३ ॥जाम्बन्त दादा हमें; सच्ची देव सलाय ।सीता माँ की याद में, राम रये घबराय ॥ ८४॥जाम्बन्त बोले लला, सुनो हमाई बात ।सीता की लैके खबर, देव राम खों तात ।। ८५ ॥सजा सजा के राम जी, तब बंदरन फौज। राक्षसन खों मार हैं, जो कर्रये हैं मौज ॥ ८६ ॥लंकापति के काट कें, बीस हाथ दस मूड़।धरती पै दै हैं पटक, बरिया जैसौ डूंड़ ।। ८७ ॥हनुमान बोले तबै, हाथ जोर सिर नाँय । बाट हमाई हेरियो, कन्द मूल फल खाय ॥ ८८ ॥सीता माता की खबर, जल्दी ल्याहों भाय । उचक पहड़ पे चढ़ गये, समद किनारे जाय ।॥ ८६ ॥हनुमान ने हूँक दई बा पहाड़ में लात । चली गयी पाताल मैं, सवा सात सौ हाँत ॥ ६० ॥हनुमान सर्रा गये, जैसें प्रभु के तीर।बाट देखतई रै गये, सब बानर बलवीर ॥ ११ ॥महावीर की परीक्षा, लगे देवता लैन।सुरसा नामक नागिनी, बोली कररे बैन ॥ ६२।।मौ फैलाकें रोक रई, हनुमान की गैल । रामदूत खों जे रहो, करन चाउती फैल ॥ ९३ ॥जैसी जैसौ सांपनी, अपनो फन फैलाव । बासे दूनी रूप धर, महावीर बढ़ जाय ।। ९४ ।।सौ जन फन फन फुलाक़े बैठ गई मौ बाय।हनु मौ में डरे बाहर कड़े सुभाय।९५। एक राक्षस रत हतो होई समन्दर बीच। कर माया आकाश के, पक्षी पकरे नीच।।९६।।पकर पकर के छाँयरी, खाय चिरैया तान।ताकी माया जान के, मार दऔ हनुमान।९७.कूद-फांद ठाड़े भये, वीर समुन्दर पार । लका की शोभा लखी, मन में करो विचार ।। ९८ ।।मछरा जैसो रुप घर, लै नरहरि को नाँव। नैक अगाऊ खौं धरे, धीरें धीरें पांव ॥ ९९ ॥लंका में कैसें उरे, उठी लंकिनी रोक । हनी मुष्टिका हूँक कें, मरी खून खौं ओक ।। १०० ।।घर-घर घुस ढूंढ़त फिरें, मिली न सीता माय । उरे दशानन के भवन, राम चरन सिर नाय ॥ १०१ ॥रावण तो घुरकत हतौ, अपने पाँव पसार । भये न दर्शन सिया के, चल दिये पवन कुमार ॥ १०२ ॥लखौ विभीषण को भवन, लिक्खो सीताराम । तुलसी के बिरछा लगे, चारऊ ओर ललाम ।। १०३ ॥लऔ करौंटा भगत नें, सुमिर राम को नाम । हनुमान सोसन लगे, अब बन जानें काम ।। १०४ ।।ओड़ पिछौरा धर तिलक, दई एक आवाज । कड़े विभीषण बाहरे, ठाड़े ते महाराज ॥ १०५ ।।बैठारे हनुमान खों, शीश नाँय सन्मान । मन में सोचें विभीषण, भवन आये भगवान ।। १०६राम कथा सबरी सुना, बता दऔ निज नाम । मगन विभीषण हो गये, अब मिल हैं श्रीराम ।। १०७ ॥जैसें बत्तिस दाँत बिच, जीभ रहै बेचैन । तैसेंई हैं हनुमान जी, हम काटत दिन-रैन ।॥ १०८ ॥कहैं विभीषण सुनो हनु, हम सब भाँत अनाथ । कभउँ हमाए ऊपरें, कृपा करें रघुनाथ ।॥ १०६ ॥हनुमान समझा रये, धरौ विभीषण धीर । सीता की सुध मिलत खन, कृपा करें रघुवीर ॥ ११० ॥मगन भये दोऊ भगत, सुमिर राम को नाम । माता की मिलहै खबर, दर्शन दैहै राम ।। १११ ।।जैसें जे दुख के दिना, सीता रई बिताय । सबइ कथा हनुमान सें, कही विभीषण गाय ।। ११२ ।।फिर मछरा को रुप धर, हनुमत भरी उड़त । बन अशोक में पौंच गये, सिय सुमिरें भगवंत ॥ ११३ ॥सीता को दुख देखकें, दिल में होत दरार । कर प्रणाम हनुमान जी, छिप गये बिरछ डंगार ॥ ११३ ॥तड़फत भई माता लखीं, जैसे जल बिन मीन । सीता को दुख देखकें, हनुमत भये मलीन ।॥ ११५ ॥बइ बेरा वा बाग में, बढ़िया भेस बनाय । लएँ लुगाई संग में, रावण पौंचो आय ॥ ११६ ।।रावण बोलौ तड़क कें, बीस भुजा फटकार । एक बेर देखो सिया, मेरी ओर निहार ॥ ११७ ॥सेवा करहै तुमाई, मंदोदरी सी नार । जो ना मानी बात ती, हनों काढ़ तरवार ॥ ११८।।भौत दुखी सीता भई, सुन रावण की बात । मन्दोदरि निज नाथ खौ, समझाओ सब भाँत ॥ ११९॥मुलक राक्षसिनि खों बुला. रावण कय खिसयाय । होता खों डरयाव तुम नाना भेस बनाय ॥ १२० ॥रामचरन की प्रमिका, त्रिजटा जाको नाव । सब खों समझाकें करे, सीतै ना डरबाव ॥ १२१ ॥इन से राखौ प्रेम सब सपनो सुनौ हमाव । बन्दर ने उत्पात कर, लंका नगर जलाव ॥ १२२ ॥नंगे ब्राजे गधा पै, कटे मूड़ सब हाँत।रावण राजा दिखाने, दक्खिन तर खौं जात ।। १२३ ।।मिलौ विभीषण दाऊ खौं. लंका पुर को राज । जौ सच्ची संपनो सखी, आँखन देखौ आज ।। १२४ ॥त्रिजटा की सपनौ सुनत, सब सटकी भय खाय । सीता के छूकें चरन, छू हो गईं सुभाय ॥ १२५ ॥त्रिजटा से सीता कही, हाथ जोर सिर नाय । राम विरह को दुसह दुख. माता सहो न जाय ।।१२६।।रावण के तीखे बचन, हम न सै सकें माय । बीन लकरियां रच चिता, हम खो देव जलाय ।।१२७।।प्रभु प्रताप औ तेज बल, पाँव पकर समझाय । मिले न आगी रात में, त्रिजटा गई सिधाय ।। १२८ ।।भौत दुखी सीता भई, मिले न जब तक आग । जा देही को हे प्रभो कैसे लग है दाग ॥ १२६ ॥बिरछा पै सें मुदरिया, हनुमत नें दई डार । सीता ने झट उठाई, जान आग-अंगार ।। १३० ।।चीन्ही मुंदरी देखतन लिखो राम को नाम । चक्कर में पर गई सिया, है जो की को काम ॥ १३१॥बई बेराँ मीठे वचन, बोल उठे हनुमान । राम लखन की दुख कथा, सबरी दई बखान ॥१३२॥फिर पेड़े सें उतर कें, पोंचे माँ के पास । रुप देख के डरानी, औ हो गई उदास ।। १३३ ।।रामदूत मैं मताई, हनुमान है नाम । खबर लेंन भेजे हमें, मुंदरी दै के राम ।॥ १३४॥कैसे कें हो गव लला. नर-बानर को संग । सबरी कथा बखान कै, हनुमत कहौ प्रसंग ॥ १३५ ॥हनुमान के वचन सुन, मन में भव विश्वास । जान गई सब जानकी, जो है प्रभु को दास ।। १३६ ।।आँखन से अँसुआ बयें, कएँ जानकी मात । बिन देखें प्रभु के चरन, हमें न कछू सुहात ॥ १३७ ॥निठुअई तौं रघुवीर ने, हमखों दओ भुलाय ।बिन देखे उनके चरन, जी की जरन न जाय ॥१३८ ।।बिरह बिकल माँ खौं निरख, दुखी भये हनुमान । राम विरह की दुख-कथा, सबरी कई बखान ॥१३६॥धीरज धरौ मताई अब, चिन्ता करौ न नेक । रावण-दल खौं फार के, रघुवर दैहैं फेंक ।। १४० ।।ले जातो तुमखौं अभई, माता प्रभु के पास । वै प्रभु की आज्ञा नई, हनुमत लई उसांस ।॥ १४१ ॥सीता जी पूछें लला, हमें होत संदेह । तुम हल्के से बानरा, निश्चर भारी देह ॥ १४२ ॥प्रगट करी हनुमान ने, अपनी असली रुप । बड़ के भये पहाड़ से, लरवे के अनुरुप ॥ १४३ ॥महावीर को रूप लख, सीतै भव विश्वास । अजर अमर होओ लला, रऔ राम के पास ॥ १४४ ॥करें हमेशा राम जी, तुम पै भारी प्यार । हाथ फेरके मूड़ वै, माता रई पुचकार ॥ १४५ ॥बो छवि सिय-हनुमान की, हिय घुस गई 'निर्भीक' । जिनकी भारी कृपा सें, कविता बन रई ठीक ॥ १४६ ॥दो दिन के भूखे हते, दओ न मों में बेर । कठिन काम है राम कौ, हो ना जाय अबेर ॥१४७॥मीठे-मीठे फल फरे, इन बिरछन में माय। आज्ञा पाओं माय तौ, खाओं खूब अघाय ।। १४८ ॥माता को रूख देख के दौरे मौं मिठयाय ।फल खाये पेड़े पटक, मीड़े निश्चिर जाय ॥ १४९ ॥रावण के मौडै मसक, दऔ सरग में भेज। ऐसे पवन सपूत पै, सदा सिया को हेज ।। १५० ।।अछय कुँवर मारे गये, रावण भी हैरान । मेघनाद जेठौ लला, बुलवाओ बलवान ॥ १५१ ॥बाँध लियाओ बाँदरै, नजर गुजारो आन । ताखों मैं मारौं तुरत, पकर पूँछ औ कान ।। १५२ ।।बड़े लला पकरन चले. हनूमान हैरान । उनके संगै लगे ते, बड़े-बड़े बलवान ॥ १५३ ।।मोड़ मसक मारे, सबै, पेड़ौ बड़ी उखार । मेघनाद में हूक दव, उतरौ चढ़ौ बुखार ।। १५४ ।।ब्रह्मबान बानें दऔं, महाबीर पै घाल । नाग फाँस में फाँस के, चल दव तब तत्काल ।। १५५ ।।बंदरा खों देखौ बँधौ, लग गई भारी भीर । रावण भी भारी हँसों, पुन पूछत धर धीर ।। १५६ ॥काँ को है रे बानरा, की कौ है बल तोय । कैसें मारे राक्षस, झट्ट बता दै मोय ॥ १५७॥ मरबे को डर नई लगौ सुनत हमओ नाम।मेरो मौड़ा मार के, मोय करत बदनाम ॥ १५८ ॥जाके बल पै देवता, ब्रह्मा विष्णु महेश । बइ को तो बल है हमें, बई को है आदेश ॥ १५९ ॥शंकर को टोरौ धनुष, खर दूषण दये मार । सूपनखा नकटी करी, जिनकी हर लई नार ॥ १६०हम उन प्रभु के दूत हैं, जिन पं जग को भार । जिनखों देखत उतर है, जल्दी चढ़ौ खुमार ।। १६१।।फल खातन छेड़ें हमें, पेड़े हने उखार । लातन घूसन की करी, तिनें दये हम मार ॥ ॥ १६२ ॥बाँध ल्याए हैं हमें, ह्याँ तुमाए सपूत । बाँधे मारे को अभई, पर जैहैंगो कूत ।। १६३ ।।राजा जू विनती सुनौ, छोड़ौ अब अभिमान । भजन करौ भगवान को, जो चाओ कल्यान ।। १६४ ।।मानौ मोरी सीख तो, सीता खों लौटाव । शरण जाय श्रीराम की, तो तुरतइ तर जाब ।। १६५ ।।बेर-बेर महावीर नें, रावण खों समझाव । एक न मानी दुष्ट ने, भारी ताव दिलाव ॥१६६॥मौत मूंड़ मड़रा रई, हमें सिखाउत ज्ञान । कुचर-कुचरकें काढ़लो, जा बँदरा के प्रान ॥ १६७ ॥मार उठे सब राक्षस, भओ भयंकर शोर । तभई विभीषण आ गये, ठाँढ़े हैं कर जोर ।। १६८ ॥रामदूत खों मार रये, भारी है अन्याय।और सजा दे दो कछू, सोच समझ के जाय ।। १६६ ॥हंसकें रावण कै रऔ, सुनो निशाचर भाय । जा बंदरा की पूछ में, आगी देव लगाय ॥ १७० ॥.बोर-बोरकें तेल में, पटका देव लपेड़ । आग छुवा दो पूछ में, उचकत फिर हैं ढेड़ ॥ १७१ ॥बंड़ा होके वानरा, मालिक ल्याय लुवाय । जिनकी करत बड़ाई जौ, मैं देखोगो ताय ॥ १७२ ॥हनुमत मन मुस्का रये, शारद भई सहाय । लगे लपेड़न राक्षस, पटका तेल बुड़ाय ॥ १७३ ॥बचौ न बिल्कुल नगर में, पटका धी औ तेल । पूछ बढ़ा रये पवन सुत, अब कर हैं कछु खेल ।।१७४।।ढोल पीट ताली बजा, लातें मारें लोग । आग छुअन खन बढ़ गओ, हँसी-हँसी में रोग ।।१७५॥सटक भगे हनुमान जी, लगी पूंछ में बाग । बढ़कें भये पहाड़ से, उठें निशाचर भाग ॥ १७६ ।।कोट कंगूरन पै चढ़े, दई आग खिसयाय । बर्रए मर्रए राक्षस, हाय हाय चिल्लाय ॥ १७७ ॥बूढ़े-बार रो रये, दे-दै के डिड़कार । पल भर मैं महावीर ने, पूरौ पुर दउ जार ।। १७८ ॥उलट पुलट पुर जार के कूदे समद मंझार । पूछ बुझाकें प्रेम से, हल्की तन लब धार ॥ १७६ ॥ठाँढ़ भये सिय सामने, हाथ जोर सिर नाय । प्रभु के लानें निशानी, देउ मोय कछु माय ॥ १८० ॥चूड़ामनी उतार के, दई सिया ने हाल । माता खौं समझायकें, चले हनू तत्काल ॥ १८१चलत समय हनुमान ने. मारी सिह दहाड़ । जनियन के टपके गरभ, बहरे भये पहाड़ ॥ १८२ ॥कूद फाँद हनुमान पुनि, भये समुन्दर पार । शब्द किलकिला सुनत खने, सुख भउ सबै अपार ॥ १८३ ।हनुमान खुश हो रये, भश्री राम को काम । बन्दर भालू गले मिल, चलत भये जाँ राम ।। १८४ ॥सीता जी की खोज कौ, कहत सुनत सब हाल । मधुबन भीतर घुस गये, फल खाये तत्काल । १८५ ॥रखवारे रोकन लगे; बिनै दये घुड़काय। भगे गये सुग्रीव पै, खबर जनाई जाय ॥ १८६ ॥समझ गये सुग्रीव कपि, कर आये प्रभु काज । बई समय हनुमानजी, पहुँचे सहित समाज ॥ १०७ ॥सिर नवाय सुग्रीव खों, सबरी हाल बताय । काज करौ हनुमान नै, ल्याय प्रान बचाय ।। १८८ ॥हनुमत खों सुग्रीव नैं, छाती लओ लगाय । सबखों संगै लै बले, रघुपति पै हरयाय ।, १८९ ।।फटिक शिला ब्राजे हते, राम-लखन दोउ भाय । चरनन में सबरे रये, अपनों शीश नवाय ॥ १९० ॥सुनी कुशलता राम नें, सबकी मन मुस्काय । जामवन्त ठाड़े भये, हाथ जोर-सिर नाय ॥ १९१ ॥कृपा आपको से प्रभो, सब के बच गए प्रान । सीता माता की खबर, लै आये हनुमान ॥ १९२ ॥प्रभु ने छाती से लओ, हनुमत खों चिपकाय। वा छवि कवि 'निर्भीक', के हिय में गई समाय ॥ १९३॥सीता माँ की दुख-कथा, हनुमत कही बखान । नाम आपके सें प्रभु, अटके माँ के प्रान ।। १९४ ॥चूड़ामनि दई है हमें, चलत जानकी माय । ताखों लई श्री राम नें, छाती से चिपकाय ।। १९५ ।।सुन सीता की दुख-कथा, राम भरे जल नैन । हनुमान गद्गद भये, बोले ऐसे बैन ॥ १९६ ॥कृपा आपकी से प्रभो, पल में सब हो जाय । राक्षसन खों मार के, ल्याऊँ सिये जुड़ाय ।। १९७ ॥कैसे कें तुमनें लला, लंका दई जलाय । बड़े-बड़े जोधा हनें, बाग दऔ बिनसाय ॥ १९८ ॥एक डार से कद के दूजी पै टँग जात ।जी है बंदरन की कला, सब देखतरै जात ॥ १९९ ॥प्रभु कृपा से कूद के, करो समुन्दर पार।रावण राजा को द औ,सबरो बाग उजार ॥ २०० ॥ मार भगाये राक्षस, लंकापुर खो जार।माता की ल्याये खबर, प्रभु की कृपा अपार ।। २०१ ॥ कृपा आपकी से प्रभो पूरे भये सब काम । गदगद हो चरनन परे हाथ फेर रये राम ॥ २०२ ॥हनुमान खों गरे सें, लगा लओ भगवान । साथ-साथ में, दे दओ, भक्ती को बरदान ॥ २०३ ॥समय बड़ौ बलवान है, समय समय को फेर । बंदरन नें इकदिन लओ, लंकापुर खों घेर ।। २०४ ॥मेघनाद से बढ़ गई. हनुमान की रार । पेड़ो बड़ौ उखार कैं, हूँको हनु ललकार ॥ २०५ ॥मरो कुचर के सारथी, रथ टूटौ चर्राय । मेघनाद जी दै भगे, घर की सुरत लगाय ।। २०६ ।।सुमिरन कर श्री राम कौ, अंगद औ हनुमान । लंकागढ़ पै चढ़ गये, लागे भवन ढहान ।। २०७ ।।कलश-कंगूरा पटक दये, रावण गव भय खाय । जनिएँ छाती पीट रई, हाय-हाय चिल्लाय ।। २०८ ।।दुश्मन दल में पिल परे, तड़तड़ाय दोउ बीर । हातन लातन से हनें, पकर पाँव दें चीर ॥ २०६ ॥मौड़ें मसक मरोरें, लेवें मूड़ उखार । हला झुलाके चलायें, रावण के दरवार ॥ २१० ॥महा-महा मुखिया पकर, प्रभु के पास चलाय । नाँव बताबें विभीषण, प्रभु निज धाम पठाय॥ २११ ॥दुश्मन दल की दार सी, दर-दरके दोउ वीर । दिन डूबे पै आ गये, जाँ ब्राजे रघुवीर॥ ११२ ॥मेघनाद नें जुद्ध में, मारी शक्ति घुमाय । लखन लाल मूछित भये, वानर दल घबराय ।॥ ११३ ॥मेघनाद से करोरन, जोधा रये उठाय । उठा न पाये लखन खों, चले गये खिसियाय ॥ २१४॥मुछित देखे लखन खों, धर धाये हनुमान । लादे अपनी पीठ पै, आये जाँ भगवान ॥ २१५ ।।लछमन की लखकें दशा, राम रये घबराय । जामबन्त नें बैद कौ, पतौ दऔ बतलाय ।। २१६ ।।लंका में रत है सुनत, नामीबैद सुखैन । दौड़ो जल्दी से लला, जाऔ कोऊ लैन ॥ २१७ ॥हल्को रुप बनाय कें, दौड़ गये हनुमान । भवन उखारौ बैद कौ. ल्याये जाँ भगवान ॥ २१८ ॥रामचरन सिर नायकें, बोले बैद सुबैन । दोनागिरि पे है दवा, जाव पवन सुत लैन ॥ २१६ ॥राम चरन हिय में धरे, चले अंजनी लाल । रावण खों इक दूत ने, खबर करी तत्काल ॥ २२० ।।कालनेम के घर गऔ, रावण बोलौ बैन । हनुमान खों छेड़ लो, जात दवाई लैन ॥ २२१ ।।कालनेम न हर तरह, रावण खों समझाव । एक न मानें दुष्ट कऐ, रोकौ रास्ता जाब ॥ २२२ ॥रामदूत के हाँत सें, मरबौ मन में ठान । बैठ गव बना गली में, मंदिर आलीशान ॥ २२३ ।।लगी बाग चारउ तरफ, तामें सुन्दर ताल । बई के जल में मगरिया, पैरा दई तत्काल ।॥ २२४ ॥हनुमान हारे हुते, सुन्दर मंदिर देख ।उतर परे देखे डटे, कालनेम मुनि वेश ॥ २२५ ।।पवन-पूत ठाड़े भये, मुनि खों शीश नवाय ।दे अशीष बोले मुनि, सुनो भगत चित्त लाय ॥ २२६ ॥रावण औ श्रीराम कौ, होत घोर संग्राम । संशय जामें है नई, निश्वय जीतें राम । २२७ ॥ज्ञान दृष्टि सें हैई' भयें, सब दिखात है मोय । बैठ जाव सुन लो कथा, होनी होय सो होय ॥ २२८ ॥हनुमान बोले हमें, प्यास लगी है नाथ । उठा कमंडल मुनी ने, पकरा दव है हाथ ।। २२६ ॥थोरौ जल जामें भरी. हमें प्यास है भौत । जादा जल हमखों मिले, थोरे से का होत ।। २३० ।।मंदिर के पीछे भरौ, ठंडे जल को ताल । सपर आव तुम ताल में, देव दीक्षा हाल ।। २३१ ॥घुसे हनु जब ताल में, गहो मगरिया पाँव । मारी ताखों घुमाके, बाने भेद बताव ॥ २३२ ॥मुनि नइयाँ जौ राक्षस, मानों कही हमार।ऐसी कै के अपसरा, गई दिव्य तन धार ॥ २३३ ॥ कुएँ निशाचर सें हनु, सुनो बात गुरुदेव पैल लेलो दच्छना, फिर गुर मंतुर देव ॥ २३४ ॥सिर में पूछ लपेड़ कें, मारो धरनि पछार। रामनाम मों से कड़ों, ताके मरती बार ।। २३५ ।।हरष चले हनुमान जी, पाँचे गिरि पे जाय। सबरें ढूँढ़ी दवाई, नई समझ में आय ।। २३६ ।।चीन न पाई दवाई, लओ पहार उखार । अवधपुरी के ऊपरें, पोंचे धरें पहार ॥ २३७ ॥हनुमत खों श्री भरत ने, बड़ौ निशाचर जान । बान हूँक दय उठाके, चाप कान तक तान ॥ २३८ ॥मूर्छित हो हनुमान जी, गिरे धरनि पर आन । राम-राम मों सें कड़ौ, लागे भरत उठान ॥ २३९ ॥दुखी देख हनुमान खौं, भरत रये घबराय । जगा रये कर-कर जतन, मौं से वचन न आय ॥ २४०॥व्याकुल हैं भारी भरत, अँसुआ रये बहाय । महावीर खों रै गये, छाती से चिपकाय ॥ २४१ ॥जौन विधाता नें हमें, राम विमुख कर दीन । बई विधाता नें हमें, जो भारी दुख दीन ॥ २४२ ॥मनसा वाचा कर्म से, जो मो वै श्रीराम । खुश हो वें तो जई समय, बान होय निष्काम ॥२४३॥वचन सुनत हनुमान जी, कह जय कृपा निधान। उठे. लगाकें गरे से, भरत लगे सहलान ।। २४४ ।।राम लखन औ जानकी, सबकी कुशल बताव । थोरे में हनुमान ने, सब प्रभु चरित सुनाव ॥ २४५ ॥दुखी भये भारी भरत, बोले मन पछताय । जग में वो जन्मों वृथा, जो प्रभु काम न आय ॥२४६॥जान कुअवसर धीर घर, बोले सुनु हनुमान । रामा दल तक जात तोय, हो ना जाय विहान ॥२४७॥बैठौ मेरे बान पै, जल्द पहार समेत । तुमखौं प्रभु के पास में, अभई पठायें देत ॥ २४८ ॥मनई मन सोसन लगे, पवन पूत हनुमान। मोरो भारी भार धर, चल है कैसे बान ॥ २४९ ॥ राम प्रभाव विचार के बोले फिर कर जोर।कृपा आपकी से प्रभो, होन न देहों भोर ॥ २५० ॥सब प्रताप हिय धार कें, जै हों नाथ तुरंत । करत बड़ाई भरत की, हनुमत भरी उड़त ॥ २५१।। लछमन खों धर गोद में, राम रये ते रोय । कछू उजेरौ सौ दिखो सर्राटौ सो होय ।। २५२ ॥ ॥धरें हथेली पै पहड़, आय गये हनुमान । छाती से हनुमान खौ, लगा लये भगवान ॥ २५३ ॥करी दवाई वैद ने, उठे लखन हरषाय । हनुमान घर वैद खों, तुरत आये पौंचाय ॥ २४४ ॥कुंभकरण से जा भिरे, समर बीच हनुमान । हनी मुष्टिका हूँक कें, गिरौ भूमि भहरान ॥ २५५ ॥लछमन ने मारो जबै, मेघनाद बलवान । लंका के द्वारें उठा, टिका आये हनुमान ॥ २५६ ॥रावण जब मारौ गऔ, पाव विभीषण राज । सुखी भये सुरमुनि सबई, सज्जन सहित समाज ॥२५७॥हनुमान खौं राम नें, अपने पास बुलाय। कही जानकी की खबर, जल्दी ल्यायो जाय । २३८ ।।सुनत राम जी के वचन, दौर गये हरषाय। समाचार इतके उतै, सबरें दय सुनाय ॥ २५६ ।।हनुमान पोंचे जभई, आये निश्विर धाम ।पूजा कर चरनन परे, सीता दई दिखाय ।। २६० ।।सीता जी खों दूर से, शीश नाव हनुमान । देखत खन श्री जानकी, उने गई पहचान ॥ २६१ ॥बानर सेना सह लखन, कुशल कौशलाधीश । निश्चर दल खौं मारकें, मार दऔ दशशीश ॥२६२॥राज विभीषण खों दओ, हरष राम रघुराय । समाचार सुन-सुन सिया, सुखी भई अधिकाय ।। २६३ ।।पुलक शरीर नयन बहैं, कहैं जानकी माय ।तीन लोक तोसो हितू, हमें न कोउ दिखाय ॥ २६४ ॥का दै दऊँ तोखों लला, जाके बदलें आज ।सुनू माता में पागओ. सबरे जग को राज ॥ २६५ ।।समर जीत श्री राम के, दरश करे भर नैन।जासें बड़ौ न दूसरों जग में नै कौनऊँ चैन ॥ २६६ ॥सब सद्गुन तोरे हिये, सदा बसें हनुमंत । अति प्रसन्न हरदम रऐं, लखन और भगवंत ॥ २६७ ॥प्रभु के दर्शन के बिना, जो मनवाँ बेचैन । जतन करौ जल्दी लला, मिलवे राजिव नैन ॥ २६८ ॥जल्द जानकी की कुशल, कही राम सें जाय अंगद और विभीषणें, राम लओ बुलवाय ।। २६९ ॥हनुमान के साथ तुम, दोउ सिया पै जाव । जितनी जल्दी हो सके, सीता खों लै आव ॥ २७० ॥सबरे मिल जल्दी गये, सीता जू के पास। करें राक्षसीं सिया की सेवा भरी हुलास ॥ २७१ मसीख विभीषण ने दई, सीता खों सपराव । जल्दी जुर मिलकें इनें, नए वस्त्र पहराव ॥ २७२ ॥मंगवाई तब पालकी, तापै सिये चढ़ाय। रखवारे संगै लगे, चले न समय लगाव २७३।देख पालकी दूर से, दौरे बन्दर-भालु । पैदल ल्याओ सिया खौं, बोले राम कृपालु ॥ २७४॥सीता माता के दरश, करे खुलासा एंन। खुश भये बन्दर भालु सव, हँस रये राजिव नैन ।। २७५ ।।जाम्बन्त, सुग्रीव, नल, अंगद औं हनुमान । राम-लखन-सीता सहित, सब चढ़ चले विमान ।। २७६ ॥चले अयोध्या ओर तब, पुष्पक यान उड़ाय । सीता खो सब आश्रम, प्रभु नें दये दिखाय ॥ २७७ ।।राम लखन ओ जानकी, सब वानर समुदाय । अवधपुरी के दरश कर, रै गये शीश नवाय ।। २७८ ।।हनुमान से कै उठे. तब रघुपति समझाय । अवधपुरी खौं जाव तुम, ब्राह्मण वेश बनाय ।। २७९ ।।भरतलाल खौं हमाई, सबरी कुशल सुनाय । जल्दी सें आओ लला, खबर उतै की लाय ॥ २८० ॥ओड़ पिछोरा धर तिलक, हनुमत भरी उड़ान। भरत लाल के पास में, जल्दी पोंचे आन ॥ २८१ ॥हनुमत खों पैचान कें, भरत उठे पुलकाय । मीठे अमृत से बचन, बोले हनु हरषाय ।। २८२ ॥जिनके दुसह वियोग में, सोचत हौ दिन-रात । वेई प्रभु रन जीतकें, लखन सिया सँग आत ॥ २८३ ॥हरष भरत भेंटें तुरत, हनुमत हिये लगाय । वा छवि कवि 'निर्भीक' के हिये में गई समाय ॥ २८४ ।।हनुमत तोरे दरश नें, सबरे दुख दये मेट। बेर-बेर पूछत कुशल, बेर-बेर रये भेंट ॥ २८५ ॥दओ संदेशौ जो हमें, जासो जग नई और। तुम से उरिन न हो सकत, देखौ मन कर गौर ॥ २८६ ॥धर धीरज बोले भरत, अब प्रभु चरित सुनाव।हनुमान नें प्रेम सें, सबरो हाल बताव ।। २८७ ।।सुनत भरत गद्गद भये, हनू नवाओ माथ । बानन से प्यार लगत, तुम प्रभु खों हे नाथ ॥ २८८ ॥किर चरनन सिर नवाकें, हनुमत भरी उड़ान । पाँच मिनट के भीतरें, प्रभु पै पोंचे आन ॥ २८९ ॥सुनी कुशलता भरत की, राम रये हरषाय । अवधपुरी की ओर फिर, चले विमान उड़ाय ॥ २६० ॥000