इडियट बॉक्स
“हैलो!”
जी कहिए, क्या काम है?”
“काम तो कुछ नहीं बस, यूँ ही आपकी प्रोफ़ाइल अच्छी लगी तो सोचा आपसे बात कर लूँ?”
“जी बताइए, क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी?”
“अभी क्या कर रहे हैं आप?”
“जी, उपन्यास लिख रहा था?”
“वैसे क्या करते हैं?”
“शिक्षक हूँ।“
“मज़ाक मत करिए, सच बताइये न।“
“जी, कूड़ा बीनने का काम करता हूँ।“
“आप तो नाराज हो गए, अब यकीन हो गया, आप शिक्षक ही हैं।“
“आपको तो यकीन हो गया लेकिन मुझे कैसे यकीन हो कि जो नाम स्क्रीन पर डिस्प्ले हो रहा है, तुम वही हो, अपना फोन नंबर दो तो आवाज से पहचान हो।“
“कोई भी लड़की अपना फोन नंबर यूँ ही किसी को नहीं देती।“
“तो क्यूँ देती है नंबर, और यूँ मेरे इडियट बॉक्स में रात-बिरात आने-जाने की वजह?”
“अच्छा, सच सच बताइए आप वाकई शिक्षक ही हैं न?”
“आंय...?”
रंगमंच
थियेटर की लगभग सारी सीट्स भरी हुई हैं...पर्दा उठता है ... । मैं बारी-बारी से दो दृश्य देखता हूँ.. ।
एक बच्चा हांफते हुए बेहताशा दौड रहा है.. कुछ छरहरे बदन के सत्रह- अठारह बरस के लड़के हाथों में लाठी लिए उसने पीछे दौड़ रहे हैं..। उनके पास तेज फर वाले चाकू भी हैं.. ।
"मारो साले को काफ़िर है.... । गौभक्तों के गिरोह में शामिल था'-पहला स्वर उभरा ... ।
"उस दिन सबसे आगे बढ़-बढ़ कर इसी ने असलम पर चाकू से वार किये थे ... ।"-दूसरा स्वर उभरा.. ।
दृश्य बदला... ।
एक बच्चा बेहताश दौड़ते हुए हांफ रहा है…। कुछ तिलकधारी बच्चे उम्र यही कोई सोलह सत्रह साल उसके पीछे त्रिशूल लिए दौड़ रहे हैं.... ।
"अबे गोस्वामी यही है वो पिल्ला, जिसने मंदिर में गौमांस डाला था... । देख साला आज कैसे मिमया रहा है"---पहला स्वर उभरा.. ।
"हाँ अजीत ठाकुर को भी इसने ही चाकुओं से गोद डाला था.."-- दूसरा स्वर उभरा ... ।
खचाक...खचाक..की आवाज के साथ एक कराह मेरे कानों में पड़ती है..।
मैं रंगमंच के परदे के गिरने का इंतज़ार करने लगता हूँ...।
सूझ
"हाँ तो टिंकू बताओ तुमने पारस की साइकिल क्यों चुराई?"-शिवेन बाबू ने सख्त होकर पूछा।
"नही सर मैनें नहीं चुराई।"-कहते हुए टिंकू ने तीन बच्चो के नाम भी गवाह के तौर पर लिए थे। जिनके साथ घर जाने की बात उसने कही थी।
कल जब स्कूल की छुट्टी हुई और सारे बच्चे स्कूल से जा चुके थे लेकिन सभी अध्यापक अभी सरकारी फरमान के चलते स्कूल में ही रुके थे तभी पारस रोते रोते आया और बोला-"सर मेरी साइकिल कोई ले गया।
बच्चे की रुलाई बंद नहीं हुई। बिना बच्चो के पूछताछ भी नहीं की जा सकती थी। शिवेन बाबू यानि बच्चे के क्लास टीचर ने कल पूछताछ करने की बात कहकर बच्चे को रिक्शा के पैसे दिए और घर भेज दिया था।आज सुबह से ही पूछताछ चल रही थी। बिना ठोस सबूत के किसी को चोर भी तो साबित नही किया जा सकता था।
शिवेन बाबू ने गहन पड़ताल के बाद निर्णय कर लिया कि टिंकू ने ही साइकिल चुराई है। उन्होंने टिंकू से कहा-" देखो टिंकू, आज हम पुलिस को बुलाकर कैमरे की रिकॉर्डिंग निकालेंगे, फिर जिसने भी चोरी की है वह जेल जाएगा।"
टिंकू के चेहरे पर शिकन तक न थी। फिर भी शिवेन बाबू का विश्वास अडिग था।
प्राचार्य महोदय ने कहा भी था कि शिवेन बाबु पार्किंग और मेन गेट पर कैमरे नहीं हैं। तब शिवेन बाबू ने संतुष्टिपूर्वक कहा था कि ये बात बच्चे नही जानते।
अगल दिन जब स्कूल खुला तो गार्ड ने आकर साइकिल पार्किंग में खड़े होने की सूचना दी थी।
प्राचार्य शिवेन बाबू की सूझ से प्रसन्न थे। चोर का नाम सार्वजनिक नही हुआ। साइकिल पाकर पारस खुश था।