आज काफी समय के बाद घर में 'लक्ष्मी' आई है। 'मेरी नन्ही परी', 'मेरी गुड़िया', 'मेरी सोन चिरैया ' और न जाने कितने अलग - अलग नामों से 'ज्योति' के पिता उसे पुकार रहे थे। ज्योति के आने से उसके पिता का एक नया ही रूप देखने को मिल रहा था। काम से लौटने के बाद वो सबसे पहले अपनी बेटी ज्योति को ही देखना चाहते थे। घर आकर उसी का नाम पुकारते थे। ज्योति भी बहुत शरारती थी और अपने पिता के साथ खेलने में उसे भी बड़ा अच्छा लगता था। इसलिए वो हमेशा दरवाजे के पीछे छुपकर उन्हें डराती और खूब खिलखिलाकर हंसने लगती। अपनी बेटी की हंसी के लिए वह डरने का नाटक करते थे। दोनों पिता और बेटी का यह खेल हर दिन चलता था। ज्योति को जब मां से डांट पड़ती तो वह झट से अपने पिता के पास जाती और उन्हें सारी बात बताकर नई- नई फरमाइश करती।
ज्योति आज 5 वर्ष की हो जाएगी। उसके लिए आज घर को सजाया गया है और ज्योति भी आज बहुत खुश दिख रही है। शाम को ज्योति जब अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी तो उसे अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी। जिसके बाद उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टर ने बताया कि ज्योति को अस्थमा की बीमारी है। जिसे सुनकर उसके माता पिता को आश्चर्य हुआ। ज्योति के पिता उसे देखकर मन ही मन बहुत उदास हो रहे थे, रो रहे थे। आज उसके जन्मदिन पर उसे इतना बड़ा दर्द क्यों मिला? ज्योति के इलाज के लिए उसके पिता बहुत मेहनत कर रहे थे। इसी उसकी पढ़ाई में भी कोई रुकावट न आए इस पर भी वो ध्यान दे रहे थे।
ज्योति अपनी बीमारी की वजह से अब खेलकूद में हिस्सा नहीं ले पा रही थी। जिसके चलते वह हमेशा उदास रहती। वह घर आकर अपनी मां से पूछती कि स्कूल में कोई उसे खेलने क्यों नहीं देता है? मैं जब भागती हूं तो मेरी सांस क्यों फूलने लगती है? उसके सवालों पर उसकी बहन आकर कहती कि तू इतनी मोटी है न, इसलिए थक जाती है जल्दी। कम खाया कर थोड़ा। ज्योति नाराज होकर वहां से चली जाती है। उसकी बहन विद्या मां से कहती है कि अभी ज्योति थोड़ा गुस्सा है लेकिन बाद में मान जाएगी। अभी उसे बीमारी के बारे में नहीं बताना है।
आज ज्योति के पिता को आने में देर हो रही है। वह बहुत देर से अपने पिता का इंतजार कर रही है। तभी फोन की घंटी बजती है और पता चलता है कि एक सड़क हादसे में उसके पिता की मौत हो गई। उसके पिता के चले जाने से वह उदास रहने लगी थी। हमेशा दरवाजे की ओर ही निहारा करती थी। कुछ सालों बाद ज्योति ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली थी। अब वह कॉलेज में जाने के लिए तैयार थी। लेकिन उदासी आज भी उसे घेरे हुए थी। आज वह अपने पिता को बहुत याद कर रही थी। वह सोच रही थी कि अगर आज वो होते तो उसकी हर परिस्थिति में मदद करते।
ज्योति की मां ने जब उसे उदास देखा तो उसके लिए जलेबी लेकर आई। जलेबी,जो उसे और उसके पिता को बहुत पसंद थी। जब भी ज्योति उदास होती थी उसके पिता जलेबियां लाते थे। जिसे देखकर वह बहुत खुश होती थी। आज जब मां ने उसे जलेबी खिलाना चाही तो उसने मना कर दिया। उसकी मां ने उसके आंसू पूछते हुए कहा कि आज अगर तेरे पिता तुझे ऐसे देखते तो बहुत दुःखी होते। वो कभी नहीं चाहते थे कि तेरे आंखों में आंसू आएं। वो हमेशा से तुझे खुश देखना चाहते थे और तू ऐसे परेशान हो रही है। जब तू हुई थी तो सबसे ज्यादा खुश तेरे पिता हुए थे तेरे लिए।
मां की बातों को सुनकर ज्योति कहती है कि आज मुझे पापा की बहुत याद आ रही है। आज अगर वो होते तो मुझे बताते कि मैं आगे क्या करूं? मुझे हर जगह से असफलता मिल रही है। हर जगह से निराशा मिल रही है। ज्योति की बातें सुन उसकी मां कहती है कि तेरे पिता हमेशा से चाहते थे कि तू अपने काम से दूसरों के चेहरों पर मुस्कान ला सके। बेसहारा का सहारा बन सके और उनकी मदद कर सके। लेकिन इससे पहले वो चाहते थे कि तू खुश रहे तभी तू दूसरों को मुस्कुराना सिखा पाएगी। ऐसे उदास रहकर कभी कुछ नहीं मिल सकता। हमेशा निराशा ही हाथ आती है। इसलिए तू अपनी उदासी को भूलकर आगे बढ़ और खुलकर हंसना सीख, जीना सीख।
अपनी मां की बातों से ज्योति को हिम्मत मिली और उसने ठान लिया कि वह अब खुश रहेगी। अपने पिता के सपने को साकार करने के लिए उसने कड़ी मेहनत के साथ अफसर बनने की तैयारी शुरू की। एक दिन आया कि वह वह बड़े अफसर के पद पर आसीन हो गई। बड़ी अफसर बनने के बाद जब वह अपने घर आई तो उसने अपने पिता को नमन किया। उसने कहा कि मैं बेसहारा लोगों की मदद जरुर करूंगी पापा। आपका सपना साकार होगा। मैं अब हमेशा खुश रहूंगी और दूसरों के चेहरों पर भी मुस्कान लाने का प्रयास करूंगी। आपको मुझ पर गर्व होगा।