भाग 1 अभियान का अंधेरा
पृथ्वी गढ़ एक ऐतिहासिक और समृद्ध राज्य था, जहां गलियों में रौनक और महलों में शान बस्ती थी । इस राज्य का सबसे कुशल तलवार बाज और बुद्धिमान व्यक्ति था — अभिषेक । वह जितना तेज दिमाग का था, उतना ही घमंडी भी । अपने हुनर और ज्ञान पर उसे इतना अभिमान था , कि वह किसी की सलाह मानना तो दूर किसी की बात तक ठीक से नहीं सुनता ।
एक दिन राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई जो भी हमारे राज्य का सबसे कुशल योद्धा और ज्ञानी होगा । उसे महामंत्री बनाया जाएगा यह सुनते ही अभिषेक का घमंड और बढ़ गया ।,उसे यकीन था कि कोई उससे श्रेष्ठ नहीं लेकिन एक रहस्यमई साधु ने उसे चुनौती दी —
" ज्ञान और शक्ति से बड़ा होता है आत्म — संयम । यदि तुम सच में सबसे योग्य हो ,
तो हमारे द्वारा दी गई तीन परीक्षाएं पार कर दिखाओ ।"
अभिषेक को यह मजाक लगा , लेकिन उसके अहंकार ने उसे चुनौती स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया।
भाग 2 पहली परीक्षा क्रोध पर नियंत्रण
साधु ने अभिषेक को एक विरान जंगल में भेजा, जहां उसे एक सप्ताह तक रहना था । जंगल में कई शिकारी जानवर थे लेकिन असली परीक्षा थी एक जादुई पत्थर की रक्षा करना । साधु ने कहा " इस पत्थर को तुम्हें एक हफ्ते तक सुरक्षित रखना होगा, लेकिन किसी भी हालत में तुम्हें क्रोधित नहीं होना है ।"
पहले दो दिन में तो ठीक गुजरे ,लेकिन तीसरे दिन अचानक कुछ नकाबपोश लगाकर आए और पत्थर छिनने की कोशिश करने लगे । अभिषेक ने गुस्से में आकर तलवार खींच ली , लेकिन जैसे ही उसने वार किया , नकाबपोशित धुए में बदल गए । साधु वहां प्रकट हुए और बोले " तुम पहली परीक्षा में ही असफल हो गए। क्रोध तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी है ।जब तक तुम इस पर नियंत्रण नहीं करोगे, तब तक सच्चा विजेता नहीं बन सकते ।
अभिषेक को अपनी गलती का एहसास हुआ लेकिन उसने हार नहीं मानी और अगली परीक्षा के लिए तैयार हो गया ।
भाग 3 : दूसरी परीक्षा —लाभ पर विजय
साधु ने अभिषेक को एक सुनसान गुफा में भेजा, जहां उसने सुना की गुफा के अंदर एक अद्भुत खजाना छुपा है । जब वह गुफा में पहुंचा तो सोने चांदी के देर और कीमती रत्न उसकी आंखों के सामने चमकने लगे ।तभी उसे एक आवाज सुनाई दी—
"जो इस खजाने को छूएगा वह हमेशा के लिए इस गुफा में कैद हो जाएगा। "
अभिषेक के मन में लालच आया , लेकिन उसमें खुद को रोका । उसने महसूस किया की असली मूल्य सोने — चांदी में नहीं , बल्कि चरित्र और ज्ञान में है । जैसे ही उसने खजाने को छोड़ दिया और पीछे मुङा , गुफा की दीवारें गायब हो गए ,और वह बाहर निकल आया । साधु ने मुस्कुराते हुए कहा —"तुमने इस बार अपनी परीक्षा पास कर ली ।"
भाग 4 अंतिम परीक्षा — अहंकार का त्याग
अब अंतिम परीक्षा थी सबसे कठिन --अहंकार का त्याग । साधु ने अभिषेक को एक गांव में भेजा , जहां उसे 1 महीने तक आम नागरिक की तरह रहना था । वहां ना तो कोई उसे योद्धा समझता था , ना ही ज्ञानी । उसे किसानों के साथ खेतों में काम करना पड़ा ।मजदूरों की तरह पत्थर तोड़ने परे।
शुरुआत में उसे बहुत गुस्सा आया । "मैं कौन हूं ,और यह लोग मुझे क्या समझ रहे हैं ?"लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ की असली महानता लोगों के साथ घूमने —मिलने और उनकी सेवा करने में है, ना कि खुद को सबसे ऊपर करने में ।
एक महीने बाद जब वह साधु के पास लौटा , तो उसकी आंखों में एक नया तेज था — यह तेज था अहंकार के त्याग और आत्म —संयम का ।
साधु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा , " अब तुम सही मायने में सबसे योग्य हो , क्योंकि अब तुम अपने मन पर नियंत्रण पा चुके हो ।"
राजा ने अभिषेक को महामंत्री बना दिया ,लेकिन अब वह घमंड से नहीं बल्कि विनर्माता और ज्ञान से राज्य चलाने लगा ।
सिख ;
* सच्ची शक्ति बाहरी विजय में नहीं बल्कि आत्म संयम में होती है ।
* गुस्सा लालच और अहंकार हमें खुद की कैद में डाल देते हैं ।
* विनम्रता और धैर्य से ही इंसान सच्चा महान बनता है ।
SimranBhargav