मौन गवाह
मुंबई की बारिश में भीगी सड़कों पर स्ट्रीट लाइट की हल्की रोशनी टिमटिमा रही थी। इंस्पेक्टर अर्जुन पाटिल एक सुनसान गोदाम के बाहर खड़ा था, उसकी नज़रें खून से सने फर्श पर टिक गईं। सामने, जमीन पर पड़े हुए एक अमीर व्यापारी रमेश मल्होत्रा की लाश थी—सिर में एक गोली लगी थी।
कोई संघर्ष नहीं हुआ था। हत्या साफ-सुथरे तरीके से की गई थी।
कांस्टेबल रवि ने चारों ओर देखते हुए कहा, "ये किसी पेशेवर का काम लगता है।"
अर्जुन ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में सवाल थे। "दरवाजे पर जबरन घुसने के निशान नहीं हैं, न ही किसी सुरक्षा कैमरे में कुछ रिकॉर्ड हुआ है। कातिल जानता था कि उसे क्या करना है।"
मौके से एक ही सुराग मिला—शव के पास रखी एक सफेद गुलाब की कली।
शक के घेरे में कौन?
रमेश मल्होत्रा के दुश्मनों की कोई कमी नहीं थी। वह एक नामी बिल्डर था, जिसने कई लोगों की ज़मीन हड़प ली थी, रिश्वत देकर अधिकारियों को खरीद लिया था, और कई परिवारों को बर्बाद किया था। संदेह की सुई कई लोगों पर थी—
1. रोहित शर्मा – रमेश के बिजनेस पार्टनर, जिनका हाल ही में उससे झगड़ा हुआ था।
2. अल्का मल्होत्रा – उसकी पत्नी, जिसे उसके अफेयर के बारे में पता चल चुका था।
3. विजय वर्मा – एक गरीब किसान, जिसने हाल ही में रमेश के खिलाफ केस किया था।
गुलाब का रहस्य
अर्जुन ने महसूस किया कि गुलाब का रहस्य इस केस की कुंजी था। उसने रमेश के फोन रिकॉर्ड्स खंगाले। आखिरी कॉल "रोज़ कैफे" से आया था।
"रोज़ कैफे?" अर्जुन बुदबुदाया। "क्या ये गुलाब उससे जुड़ा हुआ है?"
कैफे पहुंचने पर उसे वहाँ काम करने वाली लड़की, सिया, के बारे में पता चला।
"रमेश मल्होत्रा यहाँ अक्सर आते थे?" अर्जुन ने पूछा।
कैफे के मालिक ने कहा, "हाँ, खासकर सिया से मिलने।"
अर्जुन ने सिया को बुलाया। वह घबराई हुई थी। थोड़ी पूछताछ के बाद उसने सच कबूल कर लिया।
"रमेश मल्होत्रा ने मेरी बहन को धोखा दिया था। वह शादी का झांसा देकर उसे छोड़ चुका था। मेरी बहन ने खुदकुशी कर ली। मैं बदला लेना चाहती थी, लेकिन मैं कातिल नहीं हूँ!"
"फिर किसने मारा उसे?" अर्जुन ने पूछा।
सिया ने कांपते हुए कहा, "मेरी बहन का मंगेतर, करण! उसने कसम खाई थी कि वह रमेश को मारेगा।"
सच सामने आता है
करण को ट्रैक कर गिरफ्तार किया गया। उसने कबूल किया, "रमेश ने मेरी मंगेतर की जिंदगी बर्बाद कर दी। मैंने उसे उसी दर्द का एहसास कराया।"
अर्जुन ने उसे हथकड़ी पहनाई और कहा, "न्याय का काम कानून का है, खुद का नहीं।"
बारिश फिर से तेज़ हो गई थी। अर्जुन ने आसमान की ओर देखा—मा
नो मुंबई की बरसात भी इस कहानी के अंत पर रो रही हो।
अंतिम मोड़
करण को गिरफ्तार करने के बाद मामला लगभग सुलझ चुका था, लेकिन इंस्पेक्टर अर्जुन को अब भी कुछ सवाल परेशान कर रहे थे।
"करण ने गोली चलाई, लेकिन सफेद गुलाब क्यों रखा? क्या ये उसकी निशानी थी, या कोई और इसमें शामिल था?"**
अर्जुन ने केस फाइल को दोबारा खंगाला। रमेश मल्होत्रा के फोन रिकॉर्ड्स में एक और नाम था—"अल्का मल्होत्रा", उसकी पत्नी।
"क्या करण अकेला था, या किसी ने उसकी मदद की?"
एक और राज खुलता है
अर्जुन ने अल्का मल्होत्रा से पूछताछ की। शुरुआत में वह घबराई हुई थी, लेकिन जब अर्जुन ने उसके बैंक अकाउंट की डिटेल्स सामने रखीं, तो सच बाहर आ गया।
"हां, मैंने करण को रमेश का लोकेशन बताया था!" अल्का ने स्वीकार किया। "रमेश ने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया था। उसके कई औरतों से संबंध थे, और मुझे तलाक देकर निकालने की योजना बना रहा था। मैं उसे मरवाना नहीं चाहती थी, लेकिन जब करण मेरे पास आया, तो मैंने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।"
अर्जुन ने ठंडी निगाहों से उसे देखा।
"मतलब तुम्हें पता था कि करण उसे मारने जा रहा है, फिर भी तुमने कुछ नहीं किया?"
अल्का चुप रही।
इंसाफ का फैसला
करण पर हत्या का आरोप लगा, लेकिन अल्का पर भी षड्यंत्र का केस दर्ज किया गया।
अदालत में करण ने कहा, "मुझे अफसोस नहीं है। मैंने वही किया जो सही लगा।"
लेकिन न्याय कानून के तहत चलता है। करण को आजीवन कारावास की सजा हुई, और अल्का को पाँच साल की जेल।
अर्जुन की सोच
केस खत्म हो चुका था, लेकिन अर्जुन की सोच में सवाल बाकी थे।
क्या इंसाफ यही था? क्या रमेश जैसे लोगों को उनके कर्मों की सजा नहीं मिलनी चाहिए?
बारिश फिर से तेज़ हो गई थी। अर्जुन खिड़की से बाहर देखते हुए सोच रहा था—कानून का काम अपराध रोकना है, लेकिन क्या वह हमेशा न्याय दिला पाता है?
सफेद गुलाब, जो मासूमियत और शांति का प्रतीक था, इस
बार एक हत्या की मूक गवाही दे गया था।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी गुजरात