महाभारत की कहानी - भाग-४५
भागीरथ द्वारा गंगा को धरति पर लाने का कहानी
प्रस्तावना
कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने महाकाव्य महाभारत रचना किया। इस पुस्तक में उन्होंने कुरु वंश के प्रसार, गांधारी की धर्मपरायणता, विदुर की बुद्धि, कुंती के धैर्य, वासुदेव की महानता, पांडवों की सच्चाई और धृतराष्ट्र के पुत्रों की दुष्टता का वर्णन किया है। विभिन्न कथाओं से युक्त इस महाभारत में कुल साठ लाख श्लोक हैं। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने इस ग्रंथ को सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को पढ़ाया और फिर अन्य शिष्यों को पढ़ाया। उन्होंने साठ लाख श्लोकों की एक और महाभारतसंहिता की रचना की, जिनमें से तीस लाख श्लोक देवलोक में, पंद्रह लाख श्लोक पितृलोक में, चौदह लाख श्लोक ग़न्धर्बलोक में और एक लाख श्लोक मनुष्यलोक में विद्यमान हैं। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास के शिष्य वैशम्पायन ने उस एक लाख श्लोकों का पाठ किया। अर्जुन के प्रपौत्र राजा जनमेजय और ब्राह्मणों के कई अनुरोधों के बाद, कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने अपने शिष्य वैशम्पायन को महाभारत सुनाने का अनुमति दिया था।
संपूर्ण महाभारत पढ़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। अधिकांश लोगों ने महाभारत की कुछ कहानी पढ़ी, सुनी या देखी है या दूरदर्शन पर विस्तारित प्रसारण देखा है, जो महाभारत का केवल एक टुकड़ा है और मुख्य रूप से कौरवों और पांडवों और भगवान कृष्ण की भूमिका पर केंद्रित है।
महाकाव्य महाभारत कई कहानियों का संग्रह है, जिनमें से अधिकांश विशेष रूप से कौरवों और पांडवों की कहानी से संबंधित हैं।
मुझे आशा है कि उनमें से कुछ कहानियों को सरल भाषा में दयालु पाठकों के सामने प्रस्तुत करने का यह छोटा सा प्रयास आपको पसंद आएगा।
अशोक घोष
भागीरथ द्वारा गंगा को धरति पर लाने का कहानी
युधिष्ठिर के अनुरोध पर महर्षि अगस्त्य के विभिन्न कार्यों का वर्णन करने के बाद, देवृषी लोमशने भागीरथ द्वारा गंगा को धरति पर लाने की कहानी बताई। - इखबाकुवंश में सगर नाम का एक राजा था, वह अपनी दो पत्नियों के साथ कैलास पर्वत में गया और पुत्र प्राप्त करने के लिये एक कठोर तपस्या की। महादेव का वरदान में, एक पत्नी के गर्भ में साठ हजार बेटा और दूसरी पत्नी के गर्भ में एक और बेटा हुया, जिसका नाम अंशुमान था।
सगर के साठ हजार बेटे बहुत शातिर थे। वे सभी एक दिन इंद्र के घोड़े को चुरा लेते हैं और समुद्र के किनारे पर कपिल मुनि के आश्रम के पीछे बांधके राख कर पास में छिप गया था। चोरी हुया घोड़े को खोजने के लिए, देवराज इंद्र कपिल मुनि के आश्रम में आए और घोड़े को देखा तो कपिल मुनिको चोर बोलके गालि दिया और घोड़े को के साथ लेकर चले गए। कपिल मुनि ने इंद्र की निंदा सुनकर, गुस्से में शाप दिया और कहा, "जिनके कारण इंद्रने कपिल मुनि को चोर बदनाम किया, वोह भस्म हो जाय।" कपिल मुनि के अभिशाप के परिणामस्वरूप, सगर के साठ हजार बेटों तुरंत भस्म हो गिया।
सगरराजा ने अपने बेटों के कपिल मुनि के अभिशाप की खबर प्राप्त की तो उन्होने कपिल कपिल मुनि के आश्रम में गए और अपने बेटों की आत्माओं के स्वर्गप्राप्ति के लिए प्रार्थना की, कपिल मुनि प्रसन्न हुए और कहा, "आपके वंश का कोई व्यक्ति स्वर्ग से गंगा को धरति पर लाके आपका बेटों के भस्म के उपर से बाहायेंगे तो अपका बेटों के आत्माओं के स्वर्गप्राप्ति हो जायेगा।"
कपिल का सलाह सुनने के बाद, राजा सगर पहले गंगा को धरति पर लाने की कोशिश करके विफल रहे। राजा सगर का मौत के बाद, अंशुमान राजा बन गए। अंशुमान राजा बनने के बाद, वह गंगा को धरति पर लाने की कोशिश करके असफल रहे। अंशुमान की मृत्यु के बाद, उनके बेटे असमंज राजा बन कर गंगा को धरति पर लाने की कोशिश करके भि सफल हो नहि हो सके।
असमंज की मृत्यु के बाद, उनके बेटे दिलीप राजा बन गए, लेकिन वह गंगा को धरति पर लाने की कोशिश करके सफल न हो सके और अपुत्रक रहे कर दो पत्नि को छोड़कर मर गए। जैसे -जैसे दिलीप की मृत्यु हुई थी, उनकी पत्नियाँ बंशज और गंगा को मौत धरति पर लाने के लिए बहुत चिंतित होकर कुलगुरु वशिष्ट के शरण मे जाने से, वशिष्ट ने दिलीप की दो पत्नियों से कहा कि वे एक पति और पत्नी की तरह व्यवहार करेंगे तो उनमें से एक गर्भवती होकर एक बेटाको जन्म देगा। वशिष्ट की सलाह को मानकर, दिलीप की एक पत्नी भगीरथ नाम के एक बेटे को जन्म दिया। जन्म के समय, बच्चे भगीरथ का शरीर विकृत था। उनके विकृत शरीर को देखकर, दिलीप की पत्नियां फिर से वशिष्ट की शरण लेने से, वशिष्ट मुनि द्वारा दी गई सलाह के बाद अष्टबक्र मुनि के आशीर्वादसे भगीरथ का शरीर बहुत सुन्दर बन गया।
जब भागीरथ अपनी युवावस्था के दौरान राजा बन गए, तो कपिल के अभिशाप में भस्म हुया उनके पूर्वज साठ हजार सगरपुत्र के आत्मा का स्वर्गप्राप्त के लिए गंगा को धरति पर लाने की तपस्या करने से देवराज इंद्र ने दिखाई दिया और भगीरथको बोला, गंगा ने ब्रह्मा की कमण्डलु में रहति हैं। । इसलिए आप ब्रह्मलोक जाइए और गंगा को धरति पर लाने के लिए ब्रह्मा से प्रार्थना किजिये। इंद्र के बात शुनकर, भागीरथ ब्रह्मलोक गए और ब्रह्मा को तुष्ट करने से ब्रह्मा ने गंगा को धरति पर जाने की अनुमति दिया। जब गंगा को धरति पर लाया जा रहा था तो गंगा की भयंकर गति महादेव की जटा में बंध हो जाने से, भगीरथ महादेव को प्रसन्न किया और महादेव अपने जटा का एक पास खोला ओर गंगा बाहर आकर भागीरथ के पीछे वापस चलने लगा। चूंकि गंगा की प्रबल गति महादेव के जटा में बंधी थी, महादेव के एक और नाम हुया गंगाधर।
कुछ दिन चलने के बाद, अचानक भगीरथ को गंगा की चलने का आवाज़ सुनाइ नहीं दिया तो उन्होंने पीछे गंगा को नहि देखा। तब उन्होंने एक मुनि को देखा और गंगा के बारे में पूछा, उन्होंने कहा, "मेरा नाम जह्नु मुनी, गंगा तैरते हुए मेरे आश्रम को तोड़्ने जा रहा था तो मैंने उसे पी लिया।" यह सुनकर, जब भागीरथ ने जह्नू मुनि से अनुरोध किया, तो जह्नू मुनि ने गंगा को अपना जांग चीर कर गंगा को निकल दिया। जह्नू मुनि गंगा को अपना जांग चीर कर निकल दिया था इसलिए गंगा का एक नाम जांहबी हुया। गंगा फिर से भागीरथ के पीछे लंबे समय तक पार कर गया और अंत में कपिल के अभिशाप में साठ हजार सगरपुत्र के भस्म को अपना पानि से बाहाकर समुद्र में में गिर गया। इस तरह, गंगा के पवित्र पानी से साठ हजार सगरपुत्र का आत्माको स्वर्गप्राप्त हुया और समुद्र फिर जल से भर गिया। भगीरथ ने गंगा को धरति पर लाया, इसलिये गंगा का दूसरा नाम भागीरथी है।
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(धीरे-धीरे)