ट्रैवल टाइम
रवि हमेशा से ही समय की कमी का रोना रोता था। ऑफिस के प्रोजेक्ट्स, घर की जिम्मेदारियाँ और दोस्तों के बीच संतुलन बनाना उसके लिए पहाड़ चढ़ने जैसा लगता था। लेकिन इस बार उसने ठान लिया कि वह खुद के लिए समय निकालेगा। उसने एक छोटी सी ट्रिप प्लान की—पहाड़ों के बीच बसे एक छोटे गाँव "चिरागपुर" में।
शनिवार की सुबह, रवि ट्रेन से चिरागपुर के लिए निकल पड़ा। ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए उसने पहली बार महसूस किया कि यात्रा का भी अपना अलग आनंद होता है। हर स्टेशन पर उतरने वाले और चढ़ने वाले मुसाफिर अपनी-अपनी कहानियों के साथ आते-जाते थे। उसने सोचा, "हर व्यक्ति के पास अपने सपनों और संघर्षों की एक कहानी होती है। काश, मेरे पास भी इतना समय होता कि मैं उनकी कहानियाँ सुन पाता।"
चिरागपुर पहुँचते ही ठंडी हवा और पहाड़ियों की हरियाली ने रवि का स्वागत किया। उसने एक छोटे से गेस्टहाउस में कमरा लिया। पहली बार उसे लगा कि वह समय की दौड़ से बाहर आ गया है। यहाँ घड़ी की सुइयाँ धीमी चल रही थीं, और हर चीज़ में शांति का एहसास था।
अगली सुबह रवि ने गाँव के चारों तरफ घूमने का फैसला किया। वह एक पुराने मंदिर के पास पहुँचा, जहाँ एक बुजुर्ग बाबा बैठे थे। बाबा ने उसे देखते ही मुस्कुराते हुए कहा, "यात्रा केवल जगह की नहीं होती, बेटा। असली यात्रा तो आत्मा की होती है।"
रवि उनकी बात समझने की कोशिश कर ही रहा था कि बाबा ने उसे पास बैठने को कहा। उन्होंने अपनी कहानी सुनाई—कैसे उन्होंने जीवन भर दौलत और शोहरत के पीछे भागा लेकिन सच्ची खुशी यहाँ पहाड़ों में आकर मिली। रवि को लगा जैसे बाबा उसकी ही कहानी सुना रहे हैं।
उस शाम रवि गाँव के बच्चों के साथ खेलने लगा। उनकी मासूमियत और खुशमिजाजी ने उसे उसकी बचपन की याद दिला दी। उसने महसूस किया कि असली खुशी छोटी-छोटी चीज़ों में छिपी होती है—जैसे बच्चों की मुस्कान, ठंडी हवा का स्पर्श, और चिड़ियों की चहचहाहट।
चिरागपुर में बिताए गए तीन दिन रवि के लिए किसी जादू से कम नहीं थे। जब वह वापस शहर लौटा, तो वह पूरी तरह बदल चुका था। अब वह समय का महत्व समझने लगा था। उसने तय किया कि वह अपनी जिंदगी में काम और खुशियों के बीच संतुलन बनाएगा।
यात्रा ने रवि को यह सिखाया कि ज़िंदगी में कभी-कभी ठहराव भी ज़रूरी होता है। "ट्रैवल टाइम" सिर्फ घूमने का नहीं होता, बल्कि खुद को खोजने और जिंदगी की सच्ची खूबसूरती को समझने का वक्त होता है।
रवि हमेशा समय की कमी का रोना रोता था। ऑफिस, घर और दोस्तों के बीच संतुलन बनाना उसके लिए कठिन था। इस बार उसने चिरागपुर जाने का फैसला किया। ट्रेन से सफर करते हुए उसने पहली बार महसूस किया कि यात्रा का भी अपना आनंद होता है। चिरागपुर की शांति और हरियाली ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया।
गाँव में एक बाबा से मुलाकात ने उसकी सोच बदल दी। बाबा ने कहा, "यात्रा बाहर की नहीं, भीतर की होनी चाहिए।" रवि ने बच्चों के साथ खेलते हुए खुशी के छोटे-छोटे पलों का महत्व समझा।
वापस लौटते वक्त वह बदला हुआ था। अब वह समझ चुका था कि समय की दौड़ से ज्यादा ज़रूरी है ठहरकर जिंदगी को महसूस करना। ट्रैवल टाइम ने उसे खुद से जोड़ दिया।
दीपांजलि
दीपाबेन शिम्पी, गुजरात