राज जोर से चीखा, उसके चीखने की आवाज सुन मुकेश दौड़ कर उसकी खाट के पास तक पहुंच जाता है, सुरेश और विशाल भी राज की आवाज सुनकर उठ जाते हैं। मुकेश राज को देख कर घबरा जाता है, राज इस सर्दी में भी पशीने से भीगा हुआ है, उसकी साँस बहुत तेज चल रही है वो कानों को अपने दोनों हाँथो से बहुत जोर से बंद करने की कोशिश कर रहा है और आँखों में मानो खून उतर आया हो इस तरह लाल सुर्ख हो रहीं हैं। मुकेश ने उसके कंधे पकड़ कर उसे जोर से हिलाया। राज चौंक कर उठा और अपने अगल-बगल इस तरह से देखने लगा मानो किसी को ढूंढ रहा हो।
"क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा क्या?" मुकेश राज को देख कर बोला।
राज को तो मुकेश की आवाज सुनाई ही नहीं दी उसके कानों में तो अभी भी वो आवाजें ही गूंज रहीं थीं "तुम सड़ चुके हो, तुम्हारा शरीर सड़ रहा है", "तुमने मुझे जगा कर अच्छा नहीं किया"।
मुकेश ने एक बार फिर राज को कंधे से पकड़ कर हिलाया, राज ने एक नज़र मुकेश पर डाली और फिर दौड़ता हुआ सुरेश और विशाल की ओर लपका पर दो कदम चलकर ही धड़ाम से दो खाटों के बीच गिर गया, वो बार-बार खड़े होने की कोशिश कर रहा है पर जैसे उसके पैरों ने जबाब दे दिया हो।
इधर सुरेश और विशाल की हालत भी कमोवेश वैसी ही थी जैसी राज की थी, वो दोनों अपनी खाट पर बैठे हुए हैं और ऊपर की तरफ देख कर काँप रहे हैं उनके पीले पड़े चेहरे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि वो किसी भयानक चीज को देख कर डर रहें हैं। मुकेश इन तीनों की ये हालात देख कर अंदर तक हिल गया, पर फिर भी उसने हिम्मत से काम लेते हुए राज को खाट पर लिटाया फिर विशाल और सुरेश को भी लिटाया।
मुकेश नें इन तीनों को इस तरह से लिटाया था कि उन तीनों की खाट एक दूसरे से बिल्कुल पास-पास और मुकेश के एकदम सामने थीं। राज जाग रहा था पर अभी भी उसे सुरेश और विशाल के ऊपर वो काले साये मंडराते नज़र आ रहे थे, ठीक ऐसे ही सुरेश और विशाल भी जागते हुए उन स्याह सायों को अपने ऊपर लटकते हुए मंडराते देख रहे थे। मुकेश भी मंत्र-मुग्ध सा इन तीनों को सिर्फ देखे ही जा रहा था, तभी अचानक उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे जगाया हो, वो इन तीनों के सर के पास एक खाट पर आसन लगा कर बैठ जाता है और जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगता है।
कुछ समय बाद मुकेश आँखे खोलता है और माहौल को बहुत ही सुखद पता है अब उसका सर भारी नहीं हो रहा था, वहां फैली उस दुर्गन्ध की जगह खुशबूदार मंद-मंद हवा बह रही थी। मुकेश खाट पर लेट कर आसमान की ओर देखने लगा और सोचने लगा कि आज बहुत दिनों बाद खुले आसमान के नीचे लेटकर तारों को टिमटिमाते हुए देखने का मौका मिला।
बहुत देर बाद उन तीनों को बिना उठाये मुकेश अपनी खाट से उठा और उसने राज के बैग से सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसमें से एक सिगरेट निकाल ली, राज और वो दिन में एकाध बार सिगरेट पी लिया करते हैं, पहले पहल तो सिगरेट उसने मेडिकल कॉलेज में सीनियर के जोर देने पर पी थी पर फिर धीरे-धीरे ये जोर कब शौक बन गया पता ही नही चला, अब भी मुकेश केवल जब राज के साथ होता है तब ही एकाध सिगरेट पी लिया करता है।
मुकेश सिगरेट को सुलगाकर उसे होठों में दबा टहलने लगा, वो एक के बाद एक कई बड़े कश लगाकर सड़क की ओर देख रहा था, सड़क इस समय भी किसी विधवा की माँग की तरह सुनी ही थी, माहौल मालबोरो क्लोव सिगरेट की लौंग जैसी मादक खुशबू से भर गया। तभी मुकेश को किसी गाड़ी के आने की आवाज आई, वो एक मालवाहक ट्राला था जो तेजी से वहाँ से गुजर गया, कल रात से पहली बार उसने किसी गाड़ी को उस सड़क से निकलते हुए देखा था।
मुकेश ने एक नज़र अपने बाएँ हाँथ की कलाई पर पहनी घड़ी पर मारी, उसके कांटे अभी सुबह के पाँच बजने का संकेत दे रहे हैं। मुकेश ने सोचा अब तीनों को उठा देना चाहिए और जल्द-से-जल्द यहाँ से निकलने का प्रबंध करना चाहिए। यही सोच कर वो उन तीनों को जगाने उनकी खाट के पास जाता है।
राज , सुरेश और विशाल भी अब तक जाग चुके थे क्योंकि गाड़ी की आवाज ने उन्हें पहले ही उठा दिया था। पर यहाँ से निकलने में सबसे बड़ी परेशानी पेट्रोल की थी, क्योंकि कल रात उनकी दोनों गाड़ियों का पेट्रोल खत्म हो चुका था। पर यहाँ और देर रुकना चारों को ही अच्छा नहीं लग रहा था। तब चारों ने रात की तरह ही जब तक पेट्रोल पंप नहीं मिल जाता तब तक गाड़ी को धक्का लगाकर चलने का सोचा और अपने वादे के मुताबिक सब्जी की टोकनी में कुछ रुपये रख कर वो गाड़ी की ओर चल पड़े।
गाड़ी को सीधा करते समय सुरेश ने पेट्रोल की आवाज सुनी, उसने कोतुहल वश पेट्रोल टैंक को खोल कर देखा तो वो पेट्रोल से भरा हुआ था। उसने प्रश्नवाचक निगाह से मुकेश को देखा तो मुकेश का भी यही हाल था उसकी गाड़ी का टैंक भी पेट्रोल से भरा हुआ था, पर उनमें से कोई किसी से कुछ नहीं बोला, मुकेश ने इग्निशन में चाबी लगाई और हमेशा की तरह गाड़ी हाफ किक में ही डरर-डरर कि आवाज के साथ चालू हो गई। वो चारों गाड़ी उठाकर वहाँ से निकल गए।
अपने रूम पर पहुँच कर सब फ्रेश हुए और अपने-अपने काम में लग गए, मुकेश क्योंकि रात भर सो नहीं पाया था तो उसने कुछ नाश्ता करके सोने का सोचा। बाकी सब भी नाश्ता करके अपने आज के निर्धारित काम में लग गए। चारों में एक चीज समान थी अभी तक किसी नें भी रात की किसी घटना के बारे में एक दूसरे से कोई बात नहीं कि थी।
शाम के करीब चार बज रहे थे जब मुकेश उठा, उसने उठ कर देखा तो रूम पर कोई नहीं था। बाहर जाकर बालकनी में देखा तो वहाँ राज बैठ कर कुछ पढ़ रहा था, उसके एक हाँथ में उसकी फैवरेट मालबोरो सुलग रही थी। राज नें मुकेश को देख कर बिना कुछ कहे मालबोरो उसकी ओर बढ़ा दी, मुकेश ने दो-तीन कश लेकर सिगरेट वापस की और बाथरूम की तरफ चला गया।
रात के लगभग 11:00 बज रहे हैं, चारों हॉल में बैठकर पढ़ाई कर रहें हैं। तभी सुरेश बुक बंद करके सोने चला गया, उसके पीछे-पीछे विशाल भी चला गया। राज और मुकेश दिन में सो चुके थे इस बजह से नींद अभी उनसे दूर थी।
तकरीबन एक घण्टे बाद सुरेश आकर फिर से किताब खोल कर बैठ जाता है और बुदबुदाते हुए पढ़ने लगता है। धीरे-धीरे उसकी आवाज तेज होने लगती है जिसको सुनकर राज और मुकेश चौंक जाते है, वो किताब को अपने सामने रख कर जोर-जोर से कह रहा था "तुम सड़ चुके हो, तुम्हारा शरीर सड़ रहा है"।
क्रमशः अगला भाग.....