Manzile - 17 in Hindi Motivational Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | मंजिले - भाग 17

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मंजिले - भाग 17

             मंजिले पुस्तक की कुछ बेजोड़ नमूनो से मार्मिक कहानी भरी हुई मिलेगी.. नाम --------------
                     ( लफगा ) 
                       नीचे काफी आ रही सड़क की उत्तराई पे खड़ा था, पता कौन "रत्न लाल " उम्र कोई होंगी सनातनी भाई की बतिस के करीब.... जनाब  के काम कुछ ऐसे थे, घर वालो ने जिसमे बाबू जी फौजी थे जंग मे आपने देश को हमेशा आज़ाद देखने वाले फौजी जिसको वतन की खातिर लड़ते देखा... हक़ के लिए लड़ते देखा... कब रिटायर कर दिए गए उन्हें खुद उस वक़्त पता चला। ज़ब मेजर ने उनको सलूट किया... वतन का नारा लगा दिया... 56इंच सीना चौड़ा हो गया था। बाबू जी की अच्छी रिटेयर मेन्ट पार्टी मे सब तरा का गोश्त, शराब चली। हिन्दोस्तान आजाद था, रहेगा।
                          घर पर पहली सुबह, समय मे अख़बार... नाश्ता... फिर कुछ भी.... बेटे रत्न का घर लेट आना उनको चुबता था। शादी मे कोई फिलचस्पी नहीं थी... किसी काम को ढंग से नहीं कर सकता था... हर काम मे तेजी.. पढ़ा था दसवीं... बस इसके जयादा  कुछ भी समझ के बाहर था। मकसद था बस एक, दौलत कैसे लाखो मे कमाई जाए।
                               वो ये सब भूल चुका  था। उसके बाप ने भारत का नाम रोशन करने मे कितनी बार गोलिया सीने से गुजारी होंगी। सच मे बाप को वो पाकिस्तान का मिलिटेंट से जयादा कुछ नहीं लगता था। एक बड़ी बहन जिसकी शादी को दस साल से जयादा हो गए हो गे। रत्न के दिमाग़ मे हमेशा बाप का वो पैसा दीखता था, जो रिटेर मेन्ट पे मिला था।
                            " माँ वो पैसा अगर मेरे काम ही न आया, तो फायदा... बात करो पिता जी से। " 
एक रात पिता से " पिता जी एक बार दुकान तो खोल दीजिये... नई... अच्छा काम करके दिखादूगा। " पिता ने कहा " जरूर... पहले कुछ आपने लशन ठीक करो, फिर देखेंगे। हा, मिलटरी मे भरती कया चुबती थी... ज़ा आलस्य छोड़ नहीं पाए.. कितनी मुश्किल से मैंने जी हजूरी मे तुम्हे नौकरी दिलवाई.... " पिता चुप हो गए। उनकी आवाज़ मे कटाछ था।
                               " पा पा जिसमे दिलचस्पी न हो कैसे काम करू। " उसने आगे कपकपे अल्फाजो मे कहा।
                        " सुने, किसमे दिलचस्पी है हम भी --" पापा ने उड़ती हवा को पकड़ते पूछा।
   " फोटोग्राफी मे " रुक कर बोला... पहाड़ो की... सुन्दर अनाथ बच्चों की... गरीबो की... बगेरा। " पापा एक दम से हसे। " रोज रात को पी कर आते हो, हिना के कोठे पे मुजरा देखते हो, और पता नहीं कितने तुममें गरीब वर्ग बैठा, कया शर्मा रहा होगा... निठले... काम चोर... इसलिए मैंने तुझे पैदा किया... तू समझता है बाप फौज मे है, मुझे कुछ पता नहीं लगे गा... " दोनों जैसे चंगारी को को फूटने से बचा रहे हो।
                            "ठीक है बाबू जी, आपका यही फैसला सिर माथे पे...." बाबू जी चुप थे। " सुधरने का एक मौका भी नहीं आपके पास मेरे लिए। " 
" मेरे लिए तुम लफगे हो... तुम किसी काम के  नहीं." उसके बाद बाबू जी कभी नहीं उठे। रात बीत गयी... दुपहर तक पुलिस ने सब के बयान लिए। " माँ ने कहा " सास एक दम से टूट गया। " सब कुछ होने के पछचात तीन महीने बाद हिना की लाल गुड़ी मेंहदी और छन छन करती चुडिया.... माँ मेटली तोर पर अपसेट थी। माँ की कोई नहीं सुनता था, एक दिन माँ शहर के चुरसते मे भीख माँग रही थी.... लेखक का उधर जाना हुआ तो वो उसकी माँ को ताई बोलता था... उसने पीछा किया भाग कर, पर वो बिलकुल सदमे मे चुप हो गयी थी। लेखक  ने उसी वक्त कहा था... " सच मे तू रत्न बहुत कमीना और लफगा है।
            ये कहानी इलाहबाद की सच्ची घटना पर है।
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(चलदा )                     -------- नीरज शर्मा 
                                ---------- शाहकोट, जलधर