Move forward with hard work, not laziness... in Hindi Fiction Stories by Purnima Kaushik books and stories PDF | आलस्य से नहीं मेहनत के साथ आगे बढ़ो.....

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आलस्य से नहीं मेहनत के साथ आगे बढ़ो.....

जनवरी माह में कई दिनों से कड़ाके की सर्दी का सितम जारी था। तेज हवाओं, धुंध और रुक - रुक कर हो रही बारिश से सभी को परेशानी हो रही थी। लेकिन आज आसमान बिल्कुल साफ नजर आ रहा था। सुबह से ही ठंडी हवा के साथ धूप खिलने लगी थी और एक अलग ही नजारा देखने को मिल रहा था। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि आज मकर संक्रांति का पर्व है। जिसे देश के विभिन्न राज्यों में अनेक नामों से जाना जाता है। मकर संक्रांति का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। आज के दिन भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। 

दिवाकर, उठो, कब तक सोते रहोगे? भोर हो गई है..... उठ जाओ अब। दिवाकर की मां उसे बहुत देर से उठाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन वो तो आज भी कंबल में दुबका हुआ था। जब उसके पिता ने जोर से उसे आवाज लगाई तो वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया। वह उठ तो गया लेकिन अभी भी उसका मन सोना चाह रहा था। फिर जब पिता के एक नजर देख लेने से ही वह नहाकर फिर बैठ जाता था। मां ने आज उसे मंदिर जाने के लिए कहा तो वह अनचाहे मन से तैयार होने लगा। दिवाकर बहुत ही आलसी था। किसी भी काम को करने या तो इंकार कर देता है या काम करते हुए नाक सिकोड़ लेता है। 

ऐसी ही आज जब उसकी मां ने उसे मंदिर जाते हुए गरीबों को देने के लिए भोजन दिया तो वह उसमें भी परेशान होने लगा। मां के बहुत कहने पर जब वह मंदिर गया तो उसने वहां पर कुछ लोगों को कार्य में व्यस्त देखा। जिनमें से कोई आदमी पतला सा कंबल ओढ़े हुए झाड़ू लगा रहा था तो कोई वहां लोगों को प्रसाद दे रहा था। कोई मंदिर के बाहर फलों की बिक्री कर रहा था तो कोई सुंदर फूलों की माला बेच रहा था। यह सब देख कर उसने मन ही मन सोचा कि, कैसे ये सब इतनी ठंड में बाहर घूम रहें हैं? क्या इनको ठंड नहीं लगती? आखिर कोई कैसे इतनी ठंड में काम कर सकता है? इन बातों को सोचते हुए वो सफाई वाले के पास जाकर पूछता है, आप इतनी ठंड में काम कैसे कर रहे है? क्या आपका मन नहीं होता कि आप घर में आराम से बैठे?

यही प्रश्न उसने सभी से पूछा। फिर वह झाड़ू लगाने वाले के पास जाकर वही प्रश्न दोहराता है और उसे वह उसे बताता है कि चाहे जैसा मौसम हो अपना पेट भरने के लिए आखिर काम तो करना ही पड़ता है। काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या? बिना काम किए क्या होता है जीवन में? मौसम का बदलना तो रात और दिन की तरह होता है। आज अगर ठंड है तो कल धूप भी अवश्य खिलेगी। इसी आशा के साथ काम करना चाहिए। यहां सभी बिना मौसम की परवाह किए काम करते हैं। उसकी इन बातों ने दिवाकर पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला। वह अपने साथ लाए भोजन को उन सभी को देकर घर की ओर चल देता है।

घर पहुंच कर उसने मां को काम में व्यस्त देखकर उनकी मदद करने लगा। उसकी मां ने जब दिवाकर को काम करते हुए देखा तो हैरान रह गई। दिवाकर, जो हमेशा अपना काम दूसरों से कराता था। यहां तक कि अपना खाना भी उसे बिस्तर पर ही चाहिए था। वो आज काम कर रहा। उसकी मां को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने दिवाकर से इसका कारण पूछा तो उसने अपनी मां को मंदिर के बाहर की सारी बात बताई। वह कहने लगा कि जब इतनी कड़ी सर्दी और भीषण गर्मी में भी लोग बाहर काम कर सकते हैं तो मुझे भी उनसे कुछ सीख लेनी चाहिए। लोग बाहर अपने लिए कड़ी मेहनत करते हैं और मैं कितना आलसी बना रहता हूं। अपना काम भी मैं दूसरों से कराता हूं। 

आज बाहर काम कर रहे लोगों को देखकर मेरे मन में ग्लानि होने लगी। इसलिए मैंने अब यह निश्चय कर लिया है कि मैं अब अपना काम दूसरों से नहीं कराऊंगा। आपके काम में मदद भी करूंगा। इसी के साथ मैं अपने लक्ष्य (डॉक्टर बनने) के लिए जुट जाऊंगा। दिवाकर की बातें सुनकर उसकी मां बहुत खुश हुई। उन्होंने उसे गले से लगाकर आशीर्वाद देते हुए कहा कि मेरा दिवाकर एक दिन सूरज की तरह चमकेगा।