Ishq da Mara - 41 in Hindi Love Stories by shama parveen books and stories PDF | इश्क दा मारा - 41

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इश्क दा मारा - 41

तब गीतिका बोलती है, "तुम्हारे यहां क्या लड़कों की दुकान है"।

तब मीरा बोलती है, "हा....

तब गीतिका बोलती है, "मगर मुझे तो अभी दूल्हा नहीं चाहिए"।

तब मीरा बोलती है, "मगर मैं तो तुम्हे दूल्हा दिलवा कर रहूंगी"।

तब गीतिका बोलती है, "मेरे पास अभी टाइम नहीं है, किसी भी फालतू काम के लिए "।

तब मीरा बोलती है, "चलो अब बंद करो ये ड्रामा और जल्दी से मेरे साथ चलो, वरना कोई जाने भी नहीं देगा बाजार, मुझे कुछ जरूरी सामान लाना है "।

तब गीतिका बोलती है, "अच्छा ठीक है चलो, मगर कार मैं चलाऊंगी "।

तब मीरा बोलती है, "बहन कही मेरी सगाई वाले दिन मुझे हॉस्पिटल मत भेज देना "।

तब गीतिका बोलती है, "नहीं भेजूंगी, मुझे ड्राइविंग आती है "।

उसके बाद वो दोनों वहां से चले जाते हैं।

उधर यूवी की मां यूवी के पापा से बोलती है, "वो आज सगाई में मैं जाऊ या नहीं"।

तब यूवी के पापा बोलते हैं, "क्यों नहीं जाओगी, जाओ अपनी दोनों बेटियों को ले कर"।

ये सुनते ही रानी खुश हो जाती हैं और बोलती है, "क्या... मैं सगाई में जाऊंगी आज "।

तब यूवी की मां बोलती है, "हा.....

तब रानी बोलती है, "अरे वाह कितना मजा आएगा आज, मैं सजूंगी सवरूंगी, आपको मेरे को पहले बताना चाहिए था न "।

उसके बाद रानी वहां से उठ कर जल्दी से चली जाती है।

उधर गीतिका गाड़ी चला रही होती है। तभी अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ जाता है और वो गाड़ी एक पेड़ से मार देती हैं।

तभी मीरा उस पर चिल्लाती है, "गीतिका....... तुमने क्या किया"।

तब गीतिका बोलती है, "चिल्ला क्यों रही हो मैने जान बुझ कर थोड़े ही कुछ किया है"।

तभी वहां पर यूवी आ जाता है और बोलता है, "मीरा क्या हुआ, तुम ठीक तो हो "।

तब मीरा बोलती है, "भाई इस पागल लड़की ने देखो क्या कर दिया"।

तब यूवी बोलता है, "जब तुम्हे पता है कि ये पागल है तो फिर तुमने इसे कार चलाने को दी ही क्यों "।

तब गीतिका बोलती है, "वैसे तुम यहां पर क्या कर रहे हो, तुम्हारे पास कोई काम धाम नहीं है,जो मेरा पीछा करते रहते हो "।

तब यूवी बोलता है, "तुम्हारा दिमाग तो ठीक है तुम ये क्या बोल रही हो, मैं तुम्हारा पीछा करूंगा, इतने बुरे दिन भी नहीं आए हैं अभी मेरे "।

तभी मीरा गाड़ी से निकलती है और गीतिका को बोलती है, "बहन अब तुम कार में क्या कर रही हों निकलो जल्दी से "।

तब गीतिका बोलती है,"बहन मेरा पैर मूड गया है और मेरा पैर उठ नहीं रहा है "।

ये सुनते ही मीरा घबरा जाती है और बोलती है, "क्या हुआ कही चोट तो नहीं लग गई है।

तब गीतिका बोलती है, "पता नहीं, मगर मेरा पैर मूड गया है और सीधा भी नहीं हो रहा है"।

तब मीरा गीतिका को निकालने की कोशिश करने लगती है, मगर वो उसे नहीं निकाल पाती है। तब मीरा यूवी को बोलती है, "भाई गीतिका को निकालने में हेल्प करो न मेरी"।

तब यूवी बोलता है, "जबान तो बहुत चलती है इसकी, तो बोलो कि बाहर भी आ जाए "।

तब मीरा बोलती है, "भाई मजाक मत करो न अभी, निकालो न इसे "।

तब यूवी बोलता है, "हटो यहां से "।

उसके बाद यूवी गीतिका से बोलता है, "बाहर आओ "।

तब गीतिका बोलती है, "तुम अंधे और बहरे दोनों ही हो क्या, दिखाई नहीं दे रहा है कि मेरा पैर सीधा नहीं हो रहा है"।

तब यूवी बोलता है, "जब तुम इतनी टेढ़ी हो तो पैर भी टेढ़ा हो होगा न, चलो हाथ दिखाओ अपना "।

उसके बाद यूवी गीतिका का हाथ पकड़ कर बोलता है चलो बाहर आओ "।

तब गीतिका बोलती है, "मैं सच बोल रही हूं, मेरा पैर नहीं उठ रहा है "।

तब मीरा बोलती है, "भाई तुम ऐसा करो कि इसे गोद में उठा कर निकाल लो "।

ये सुनते ही गीतिका को गुस्सा आता है और वो बोलती है, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, तुम ये क्या बोल रही हो, मैं कोई छोटी बच्ची हु क्या, जो मुझे ये गोद में उठाएगा "।

तब मीरा बोलती है, "चुप एकदम चुप, मुंह से एक आवाज भी नहीं निकालोगी, एक तो जिद करके कार चलाई, और ऊपर से ठोक भी दिया, और अब ड्रामे कर रही हो, भाई निकालो आप इसे "।

उसके बाद यूवी गीतिका की आंखों में देखने लगता है और गीतिका भी उसकी आंखों में देखने लगती है.....