Aek Anjani Dosti - 1 in Hindi Motivational Stories by krick books and stories PDF | एक अंजानी दोस्ती - पार्ट 1

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एक अंजानी दोस्ती - पार्ट 1

ये दोस्ती की कहानी " ऋषिका " और मेरी यानी " युग " की है। मे कभी ऋषिका से मिला ही नही हमारी दोस्ती बिना मिले ही बहुत गेहरि हो गई मे उसे मिल ही नही पाया बात कुछ ऐसी थी की बहुत ही लंबी छुटियो के बाद हमारा कॉलेज शुरू हुआ था । शुरुवाती कुछ दिनो मे कॉलेज की और से इतना प्रेसर था हमारे उपर जैसे की हर रोज कॉलेज आना है अगर हाजरी पूरी नही हुवी तो परीक्षा मे बेठने ही नही दिया जायेगा प्रोग्राम, सेमिनार वगेरे मे सबको हिस्सा लेना ही होगा ऐसे बहुत सारे रूल्स हमे पहले दिन हमारे अध्यापक ने बताये। हमे कॉलेज मे आये और स्कूल वाली फीलिंग हमारे अध्यापक ने करवाई जिस की वजसे बहुत सारे विधार्थी ओ ने रेगुलर की जगह पर एक्स्ट्रेनल करवा लिया उसमे से एक ऋषिका भी थी और मुझे कॉलेज रेगुलर मे ही करना था ऋषिका बहुत दूर की रहने वाली थी और पारिवारिक कारणों की वजसे उसने अपने कंधो पर बहुत सारी जिम्मीदारीया ली थी उसने जॉब शुरू की थी इस लिये वो रेगुलर कॉलेज नही आ सकती थी। अभी तक मे ऋषिका को जानता भी नही था। हमारी दोस्ती भी नही हुवी थी। एक दिन कॉलेज मे फ्रेशर्स पार्टी रखी थी उसमे ऋषिका आई थी सब ने बहुत मजे किये डांस किया, खाना खाया पुरा क्लासरूम सजाया , फोटो, वीडियो सब यादे सभी दोस्तो ने अपने फोन मे संभाल के रख ली। हम पार्टी मे साथ मे ही थे लेकिन हमारे बीच कोई बात नही हुवी। बस ऐसे ही हमारी अंजान और अनोखी दोस्ती की शरूआत हुई। जब मिले तो जान पहचान ही नही थी एक दूसरे से अंजान ना उसे पता था ना ही मुझे पता था की भविस्य मे हम इतने अच्छे दोस्त बनेंगे। मेने पार्टी का एक वीडियो बनाया था और ऋषिका को दिया था तो उसने अपने स्टोरी पर लगाया और पता है पूरे क्लास वाले दोस्त और खुद सर भी उसकी तारीफ कर रहे थे वो भी मेरे ही सामने सर ने मुझे बताया की ऋषिका को बहुत अच्छा वीडियो बनाना आता है बहुत सुंदर बनाया मे भी मन मे मुस्कुराया और कहा की हा उसे बहुत ही अच्छा आता है। मेरा सारा क्रेडिट उसे मिल गया लेकिन फिर भी पता नही मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था क्रेडिट उसे मिले या मुझे बराबर ही है ऐसा मुझे लगा तो मैने कुछ नही बोला ना जानते हुवे भी उसे बहुत समय से जानता हु ऐसा मुझे लगा। फिर उसने मुझसे पहली बार मेसेज पर बात की और ये सारी बाते बताई की पूरे क्लास मे तुम्हारी इतनी तारीफ हो रही थी की मे भी तुम्हारा फेन हो गया। फिर वो भी हसने लगी बस ऐसे ही हमारी दोस्ती शरू हुई।

"कोई भी रिश्ता अपनी मर्जी से नही बनता , कब कहा किस के साथ रिश्ता बनाना है ये मिलना और मिलाना तो उपर वाले का खेल है । "

हमने बहुत बाते की मैने तो पहले से ही सोचा था उसे जो बनना है वो बने अच्छी दोस्त बने या प्यारी बहेन लेकिन फिर हमारी दोस्ती ही हुई। हमारे बीच बहुत सारी चीजे एक समान मिलने लगी हमारे गोल, हमारे विचार, हमारी सादगी सब कुछ एक दूसरे से मिलने लगा हर बात मे हमारा "सेम टू यू " ही हो जाता था। 

" वो कहते है ना की जैसा हमारा चरित्र, जैसे हमारे विचार बिल्कुल वैसे ही लोग हमे मिलते रहते है। "

पुरे सोशल मीडिया की रील हम एक दूसरे को ऐसे सेंड करते की जैसे फ़ोन मे रीलस् की बाड़ आ जाये और हमे डूब की मर जाये।

" सोशल मीडिया के समन्दर से रील उठा उठा कर इंस्टाग्राम मे एक दूसरे को भेज कर भावनाओ मे डूबना और डूबाना ही सच्ची दोस्ती है। "

क्या करे जमाने के हिसाब से रिश्ते भी अपडेट हो चुके आज पिता जी बोलने वाली बेटी डेड कहती है मम्मी बोलने वाला बेटा मोम बोलता है, पत्र की जगह पर वीडियो कोल होता है लेकिन हमारे रिश्ते वही के वही है हमारा प्रेम से भरपूर परिवार कभी नही बदल सकता। 

" एक लड़की है प्यारी सी अंजानी सी खूबसूरत सी दिखने मे मासूम सी जो मेरी सखी है। "

ऋषिका बहुत ही सुंदर और संस्कारी थी क्लास मे बहुत सी लड़किया है फिर भी मुझे उनसे बात करना इतना भी अच्छा नही लगता था । इस लिये मे ऋषिका से ही बाते किया करता था काश हमे साथ मे कॉलेज मे पढ़ने मिलता तो कितना अच्छा होता। 

"वो कहते है ना की रिश्ते सचे हो तो दूरियाँ मायने नही रखती अगर रिश्ते पक्के ना हो तो पास वाले लोग भी पराये लगते थे। "

ऋषिका के विचार मुझे बहुत पसंद आये सबसे अच्छी उसकी सादगी मुझे बहुत अच्छी लगी बहुत सारी बाते तो मुझे बोलनी ही नही पड़ती थी सब कुछ समज जाते। बिना बोले ही बिना मिले ही हम बहुत कुछ समज जाते थे। मुझे भी लिखने का बहुत शोख़ है आज मे ऋषिका की मदद से ही उसके बारे मे लिख रहा हु। मे लिखता तो अच्छा हु लेकिन मुझे कहने वाला चाहिए । मतलब शुरू शुरू मे लिखने का मन ही नि करता इस लिये वो मुझे लिखने के लिये धक्का देती रहती है और मे लिखता रहता हूँ। उसे भी कहानिया लिखने का बहुत शोख़ है। उसकी कहानिया पढ पढ के मेने उसे बहुत हद तक समज लिया है ।
"वो कहते है ना की इंसान की लिखावट ही उसके चरित्र और विचारों के बारे मे बता देती है। "
लेकिन इतना काफी नही होता हमारी सोच के हिसाब से भी लोग हमे लगने लगते हमे अच्छा सोचे तो सामने वाले मे भी अच्छाई ही दिखाई देती अगर बुरा सोचे तो बुराई दिखाई देती है । 

वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन गई है अभी कुछ ही महीनों का समय हुआ और ऐसा लग रहा है की बचपन से ही हम अच्छे दोस्त है। 

दुनिया की किसी ना किसी कोने मे हमारे कई रिश्ते अंजान पड़े है बस मिलते ही हमे कई साल पुराने लगते है।

मे अभी तक उसे मिला भी नही पता नही वो वैसे तो बहुत ज्यादा फोन मे बोलती है मुझसे लेकिन देखते है की" ये गरजने वाले बादल बरसते भी है या शर्म की हवाके झोके से कही छुप जाते है। " वो तो हम पहली बार मिलेंगे तभी पता चलेगा उसे ऐसा लगता होगा की वो ओनलाईन जैसे खुल के मुझसे बात करती है वैसे ही आमने सामने बात कर पायेगी या फिर नजरे चुरायेगी । लेकिन ऐसा कुछ नही होगा मे ओनलाइन हो या आमने सामने एक जैसा ही हु इसलिए ऋषिका भी ऐसे ही खुल के बाते करेगी। 

" लोग कहते है की लड़का और लड़की कभी भी दोस्त नही बन सकते उनमे प्यार हो ही जाता है कही ना कही दिल की किसी कोने मे एक दूसरे के लिये प्रेम का पौधा छुट ही जाता है जो बाद मे प्रेमी और प्रेमिका का पेड बनके दिल से निकल आता है। लेकिन मे कहता हूँ की अगर हमारे जिवन मे एक गोल हो लक्ष और पवित्रता हो तो रिश्ते कितने भी पास हो जाये वो अपना स्वरूप नही बदल सकते मतलब दोस्ती प्यार मे नहीं बदल सकती हैं। सचे दोस्त वही होते है जो एक दूसरे का जिवन सवारने मे मदद करे एक दूसरे की स्टडी मे मदद करे। "

ये मेरे एक तरफे विचार है जो मेने अपनी दोस्त की लिये लिखे। अभी तो उसे आमने सामने मिलना भी बाकी है। वैसे ऋषिका दिखती तो बहुत क्यूट है लगती तो मुझे म्युट है देखते है ये मासूम सी लडकी कैसी है। ये दोस्ती की कहानी लिखने के बाद तो मुझे भी आपकी तरह प्रेम कहाँनी ही लग रही है लेकिन क्या करे ऐसी ही दोस्ती है । एक दम फ्री, स्वतन्त्र कुछ भी बोलने से पहले सोचना नही पड़ता ना ही कोई बात का बुरा लगत है। 

दो लोगो के बीच जमाने भरमे मैने तीसरे के आने से रिश्ते टूट ते देखे है ना टूटे फिर भी फर्क तो पड़ता ही है लेकिन मे कोई भी रिश्त बनाता हु तो साथ पूरे जिवन भर निभाता हूँ। मैने कभी किसी का हाथ नही छोडा ये लोग ही है जिन्होंने मेरे हाथ को काट कर खुद को अलग कही चले जाते है। लेकिन ऋषिका पर मुझे बहुत भरोशा है। वो मेरी सच्ची दोस्त है। 

अभी तक की हमारी दोस्ती की कहानी बस इतनी सी ही है अभी तो मुझे ये कहानी लिखनी भी नही थी ये कहानी लेकिन ऋषिका की साथ बातो बातो मे हाँ कर दिया फिर लिखना पडा फिर मैने भी मन मे प्रोमिस कर दिया की

" बात कोई शानी लिख दु रे तेरे पे कहाँनी लिख दु रे मे खुद ने युग लिख दु रे तने मेरी प्यारी दोस्त ऋषिका लिख दु रे। "

इस लिये बस इतनी ही अभी तक की कहानी लिखी आगे कि कहानी वो मुझे मिलेगी उसके बाद ही पूरी हो पायेगी।

"चलो दोस्तो बस अब हम चलते बाकी की कहानी के साथ अगले पार्ट मे मिलते है। "