Manasvi - 10 in Hindi Anything by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | मनस्वी - भाग 10

Featured Books
Categories
Share

मनस्वी - भाग 10


अनुच्छेद-दस
                  हर बच्चा माँ बाप के लिए जरूरी है

रात आठ बजे का समय। पिता मनु के बिस्तर से सटे बैठे हैं। माँ मनु के कपड़े बदलवाने के बाद उसे साफ करने के लिए गई है। पापा को पैसे के लिए पुनः घर जाना है। वे मनु को निहारते हैं। पूछते हैं 'बेटे ठीक हो न, कोई तकलीफ तो नहीं है।'' नहीं पापा, ठीक हूँ। साँस भी ठीक चल रही है।' उसके पिता माथे को सहलाते हैं। उम्मीद है कि मनु ठीक हो जाएगी। 'ठीक होते ही घर चलेंगे बेटे।' 'ठीक है पापा, स्वस्थ हो जाएँगे तो चलेंगे। आज तो मेरा चेहरा ठीक लगता है पापा।' 'हाँ तेरे चेहरे से ही लग रहा है कि तू ठीक हो रही है।' 'स्वस्थ हो जाऊँगी तो घर चलूँगी। सभी बच्चों से भेंट करूँगी। कितने खुश होंगे वे मुझे देखकर। यहाँ बिस्तर पर पड़े रहने से भी मन ऊबने लगता है। बच्चों को फुदकने में ही मजा आता है।' पिता उसके चेहरे को बार-बार देखते हैं। उन्हें अनुभव होता है कि चेहरे की चमक लौट आई है। वे भी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। पिता की यह प्रसन्नता मनु को भी प्रसन्नता प्रदान करती है। वह बोल पड़ती है,' पापा अब ज्यादा दिन नहीं रहना है इस बिस्तर पर। ठीक हो जाऊँगी तो तुरन्त चल पड़ेंगे हम लोग। कोई भी स्वस्थ बच्चा अस्पताल में क्यों रहना चाहेगा?'
             इसी बीच माँ आ जाती है। पापा उसे बताते हैं कि कुछ रुपये लाने के लिए घर जाना होगा। 'बहुत देर न करो तब'। 'अभी जाता हूँ। मनु के साथ थोड़ी देर बैठूंगा। उसके बाद चला जाऊँगा। बस मिल ही जाएगी। सुबह जल्दी लौट आऊँगा। तुम दुःखी न होना बेटे। माँ रहेगी। तेरी देखभाल करेगी। डॉक्टर भी देखेंगे ही।" ठीक है पापा जाओ। मेरी चिन्ता न करो। मैं स्वस्थ हो रही हूँ। इस बिस्तर से पिण्ड छूट जायेगा। अच्छा नहीं लगता है इस बिस्तर पर हमेशा पड़े रहना। मम्मी को कुछ खाना खिला दो तभी जाओ पापा। आप चले जाएँगे तो मम्मी खाना नहीं खाएँगी। चुपचाप मेरी बगल में बैठी रहेंगी। मेरा चेहरा निहारती उनकी आँखें रोती रहेंगी। मैं बार-बार कहती हूँ मम्मी खुश रहो, खुश रहने से तेरा चेहरा सुन्दर लगता है पर मम्मी का रोना बन्द नहीं होता। बहुत दुःखी हो जाती है। मैं उसको खुश देखना चाहती हूँ। पापा, पहले माँ को कुछ खिला दो, तब जाओ।'
        पापा मनु की माँ को संकेत करते हैं कि वह कुछ खा लें। वे जल्दी तैयार नहीं होती हैं। बार-बार आग्रह करने पर कुछ खाने के लिए गईं। पापा को भी साथ जाना पड़ा। मनु ने ही कहा था, 'पापा जाकर कुछ खिला दो। तब तक मैं आराम कर रही हूँ। मैं खुश हूँ। मेरा स्वास्थ्य ठीक हो रहा है।' मम्मी-पापा के जाने के बाद मनु का दिमाग विचारों में खो गया। बहुत कष्ट दिया है मैंने माँ को। अब नहीं दूँगी उसे कोई कष्ट । हर माँ अपने बच्चे के लिए बहुत कुछ करती है। माँ को समझना बहुत मुश्किल है। मेरी माँ भी सभी की तरह है- मुझे खुश देखना चाहती है। अपनी तकलीफ का कोई ध्यान उसे नहीं होता। पापा भी खेती-पाती, वकालत सबसे छुट्टी पाकर घर आते हैं, उनको भी मेरा अस्वस्थ होना कष्ट देता है। जब मैं स्वस्थ होती हूँ, कितना खुश होते हैं वे? जब से बीमार पड़ी हूँ, दिनरात एक किए हुए हैं पापा और मम्मी दोनों। मुझे स्वस्थ हो ही जाना चाहिए। देखो, रामजी क्या करते हैं ? रामजी को भी समझना बहुत आसान नहीं है। मैंने कह रखा है बहुत जरूरी है मेरा स्वस्थ होना। रामजी क्या करेंगे यह तो वही जानें। आज मैं कुछ स्वस्थ लग रही हूँ। साँस भी सामान्य है। कहीं कोई दर्द नहीं है। बीमार होने पर ही मैं जान पाई कि स्वस्थ होना क्या होता है। पापा आएँगे तो उनसे कहूँगी कि घर जाना है तो जल्दी चले जाओ। रात में बहुत जगना ठीक नहीं है। मम्मी-पापा दोनों जल्दी आ जाते हैं। बहुत जल्दी उन्होंने कुछ मुँह में डाला होगा। वे भागकर आ गए। चैन कहाँ है उन्हें ? बच्चा बीमार है तो किसी माँ-बाप को चैन कहाँ होता है ?
         'पापा आप जाओ। जल्दी लौट आना। रात में थोड़ा सो जरूर लेना, नहीं तो तबियत खराब हो जाएगी। आप स्वस्थ रहेंगे तभी तो दौड़-धूप कर पाएंगे। आने में जल्दी करना पापा। कहीं देर न हो जाए ? अभी चले जाओ जिससे जल्दी लौट सको। जल्दी ही लौटना पापा।' पिता रुपऐ लाने के लिए घर जा रहे हैं पर मन मनु में ही लगा है। माँ मनु की बगल में बैठ जाती है, पिता बाहर आ जाते हैं।
         'मम्मी, पापा गए। तू भी थोड़ा आराम कर ले। मैं ठीक हूँ ही। कोई संकट नहीं है। मुझे जाने क्यों अब भी घर की याद आती है। गाँव वाला घर भी। वहाँ भी खेलने के लिए बहुत जगह है। बाबा-दादी सभी कितना ध्यान रखते हैं मेरा। सभी इसी आशा में होंगे कि मैं स्वस्थ होकर जल्दी लौट आऊँगी, उसी तरह जिस तरह तुम सोचती हो मम्मी। इसीलिए डॉक्टर चाचू से भी मैं कहती हूँ कि मेरा स्वस्थ होना कितना जरूरी है। पर स्वस्थ होना तो सभी का जरूरी है। मैं ही ऐसा क्यों सोचती हूँ? हर बच्चा उसके माँ-बाप के लिए जरूरी होता है। होता है न? कोई माँ-बाप अपने बच्चे को बीमार नहीं देखना चाहता। तभी तो दवा के लिए दर-दर भागता है। अपनी शक्ति भर कोई कसर नहीं छोड़ता। इसीलिए हर बच्चे का स्वस्थ होना जरूरी है। माँ, तू चिन्ता न कर। खुश रह जिससे मैं भी खुश रह सकूँ। तेरा प्रसन्न चेहरा कितना अच्छा लगता है?
          तू हँस दे माँ ।... हँसो... मुस्कराओ.... हँसो माँ।'
          माँ हँस पड़ती है।... 'बहुत अच्छा लगा माँ।
       तेरा हँसना । ... इसी तरह तू हँसती रहे।'.. इसी तरह मनु का चेहरा भी खिला खिला। माँ को हँसते ... मुस्कराते देखकर वह भी हँसती है। प्रसन्नता में ही कुछ क्षण बीत जाते हैं। सिरहाने खड़े हो कर माँ हँसते हुए मनु के खिले हुए चेहरे को सहलाती है। दोनों पंजों से मनु के गालों को हल्के से दबाते हुए उसकी आँखों में झाँक कर खुश होती है। कुछ क्षण तक यही खेल।
'क्या टाइम हुआ माँ ?'
'दस बज गए हैं बेटे।'
'अब सोना चाहिए माँ। मुझे नींद आ रही है।'
'सो जाओ।'
'तुम भी सो जाओ माँ।'
'पंखा ठीक चल रहा है न, माँ?'
'हाँ, ठीक चल रहा है।'
'तब ठीक है।'