Manasvi - 3 in Hindi Anything by Dr. Suryapal Singh books and stories PDF | मनस्वी - भाग 3

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मनस्वी - भाग 3

अनुच्छेद- तीन 
                      दुनिया को ठीक से चलाओ

        तीसरा दिन । प्रातः का समय। वार्ड की सफाई में सफाई कर्मी लगे हैं। मनु के पापा घर गए हुए हैं। मम्मी नित्यकार्य से निवृत्त हो मनु के पास आकर स्टूल पर बैठ जाती है। मनु अभी सो रही है। सफाई कर्मियों की खटपट से धीरे-धीरे उसकी आँख खुलती है फिर बन्द हो जाती है। अभी जैसे नींद पूरी नहीं हुई है। पर अब बहुत से लोग जग चुके हैं। आना-जाना बढ़ गया है। मनु भी आँख खोल देती है। उसकी आँख खुलते ही उसकी माँ का चेहरा भी प्रसन्नता से दीप्त हो उठता है। मनु की बड़ी-बड़ी सुन्दर आँखें हर किसी को मुग्ध कर देती हैं, वह तो माँ है। माँ एक छोटी सी तौलिया भिगोकर उसका चेहरा साफ करती है, बालों को सँवारती है। पूछती है, 'बेटे, कहीं दर्द तो नहीं हो रहा है?' 'नहीं मम्मी, मैं ठीक हूँ।' माँ पूछती है, 'भूख तो नहीं लगी है।' 'नहीं माँ अभी ग्लूकोज तो चढ़ ही रहा है। यहाँ से चलेंगे तब दूध पियेंगे। रामफेर बाबा से कहेंगे कि बढ़िया दूध दें। आज अच्छी नींद आई है मम्मी। मन प्रसन्न है। कुछ-कुछ अच्छा लगता है। पापा नहीं हैं मम्मी ! क्या कहीं गए हैं?' 'हाँ बेटे, घर गए हैं, कुछ रुपये लाना ज़रूरी था। आते ही होंगे।' 'उनसे कह दो मम्मी बहुत परेशान न हों। जल्दी न करें, ठीक से आएँ, मैं ठीक हूँ। क्या पैसा बहुत लग रहा है मम्मी?' 'तुम्हें पैसे के बारे में नहीं सोचना चाहिए बेटे। पैसे की जितनी ज़रूरत है, आ रहा है। उसके लिए तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर साहब जो कहेंगे, जो दवाइयां लिखेंगे वह आ जाएँगी। पैसे की दिक्कत नहीं है। पैसा तो लगता ही है।' 'पर मम्मी, सबके पास पैसा नहीं होता। उनकी दवाई कैसे होती है?'
          'वे भी दौड़धूप कर किसी तरह पैसे का इन्तजाम करते हैं। नहीं कर पाते तो भगवान जी पर छोड़ देते हैं और क्या कर सकते हैं?' माँ बताती है। 
 तभी तो बहुत से लोग बच नहीं पाते। क्यों मम्मी? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सबकी दवाई हो जाए।'
          'तुम अपनी बात सोचो बेटे। दूसरों के बारे में कहाँ तक सोचोगी?' 
          एक कहानी है न माँ। एक अकेला आदमी जंगल में घूमता है। जिधर भी देखता है वह, उसे लगता है कि वही उसका राजा है। कविता की पंक्ति है- जिधर भी मैं देखता हूँ उसका राजा हूँ। लेकिन मम्मी वह परेशान होता है क्योंकि दूसरा कोई आदमी उसके साथ के लिए नहीं है। हम अकेले कैसे रहेंगे? तुम तो देखती थी। दूसरे बच्चों का साथ पाने के लिए मैं कितनी व्याकुल रहती थी? दूसरे बच्चों को बुलाकर उनके साथ खेलती थी। अकेले कैसे कोई आदमी रहेगा मम्मी? एक आदमी ठीक हो, बाकी सब बीमार हो जाएँ तो क्या अच्छा लगेगा। एक आदमी रोटी खाए और बाकी सब भूखों मरें यह भी तो ठीक नही लगेगा मम्मी ।'
'यह तुम क्या सोच रही हो बेटे। अभी तुम्हीं बीमार हो। ठीक हो जाना तब सोचना ।'
'ऐसा कैसे हो सकता है मम्मी। दिमाग तो सोचता ही रहता है। कोई लोगों की भलाई की बात सोचे क्या यह अच्छी बात नहीं है?'
'मैं कहाँ कहती हूँ कि अच्छी बात नहीं है। पर बेटे तुम्हीं सोचो, तुम खुद बीमार हो। दुनिया भर की चिन्ता करने से तुम्हारी बीमारी बढ़ सकती है।'
'नहीं मम्मी, मैं तो भलाई की बात सोचती हूँ। कोई भलाई की बात सोचने से कहीं बीमार होता है?'
'हाँ बेटे, कभी-कभी भलाई करते भी हाथ जलते हैं। अभी तुम छोटे हो। बड़े होगे तो समझ पाओगे।'
तुम सब लोग यही कहते रहते हो कि बड़े होगे तब समझ पाओगे। क्या मुझमें समझ नहीं है मम्मी ?
'नहीं बेटे, तुम समझदार हो। पर ज्यों-ज्यों आदमी बड़ा होता है उसका अनुभव बढ़ता है। उस अनुभव से बहुत चीजों को आसानी से समझ लेता है जबकि छोटे बच्चे उन चीजों को नहीं समझ पाते। आज तुम्हें पहली पोथी दे दी जाए तो शायद दो घण्टे में ही पढ़ डालो। पर जब पहली में थी तो वही पोथी बहुत दिनों में पढ़ पाई। यह अनुभव ही है बेटे। तुम बड़ी होगी तो तुम्हारा भी अनुभव बढ़ेगा और तब चीजों को आसानी से समझ पाओगी।'
'ठीक कहती हो मम्मी। पहले जिन चीजों को नहीं समझ पाती थी अब उनमें से बहुतों की समझ पैदा हो गई है।'
'हाँ, यही होता है। जिन अनुभवों से तुम गुजर चुकी हो वह आसान लगता है पर नया बहुत सा जानना बाकी रहता है, ज़िन्दगी इसी तरह चलती है। बच्चा बड़ा होता है, घर बसाता है और जब उम्र ढलती है, भगवान को प्यारा हो जाता है।'
'क्या भगवान प्यार में मौत देते हैं मम्मी। भगवान जी के प्यार का क्या यह तरीका ठीक है?'
       मनु के इस प्रश्न से मम्मी हड़बड़ा जाती है। उसे क्या पता था कि मनु ऐसे मुश्किल सवाल करेगी जिनका उत्तर शायद हममें से बहुतों के पास नहीं है। मम्मी की आँखों से आँसू निकल आते हैं।
      'मत रोओ मम्मी। मैं अब कोई सवाल नहीं करूँगी। ठीक हूँ। सोचूँगी भी नहीं। चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहूँगी। दुख न दूँगी मम्मी। कोशिश करूँगी कि खुश रहूँ। मेरी तरफ देखो मम्मी। मैं कितनी खुश हूँ? तुम भी खुश रहो मम्मी। भगवान जी से कहूँगी कि हम सबको खुश रखें। भगवान जी सुनेंगे। वे कोई बहरे थोड़े हैं। सबकी सुनते हैं। हमारी भी सुनेंगे।'
        मनु छत की ओर देखती हुई कुछ सोचती रहती है। माँ पुनः टोकती है- 'बेटे आराम करो। अधिक चिन्ता न करो। बड़े हो जाना तो देश और समाज के बारे में सोचना। अभी तो तुम बच्चे हो।'
         'मम्मी जब मैं बच्चों के साथ खेलती हूँ तब तुम कहती हो बड़ी हो गई हो। अब बड़ों की तरह सोचती हूँ तब तुम कहती हो अभी बच्ची हो। मैं क्या हूँ मम्मी? न मैं बच्ची रह गई, न सयानी हो सकी। क्या मैं दोनों के बीच में हूँ?
          मैं कब सयानी हो पाऊँगी मम्मी ? क्या सयानी हो जाने पर बच्चों से खेलना बन्द हो जाएगा ? ऐसा न करना मम्मी। मुझे बच्चों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता है। छोटे बच्चे कैसी-कैसी बातें करते हैं? जरा सी बात पर खुश हो जाते हैं। उनकी छोटी-छोटी बातों पर मुझे भी हँसी आ जाती है। यहाँ से ठीक होकर घर चलेंगे। वहाँ बाबा से पूछेंगे कि मैं बच्ची हूँ या सयानी। बाबा जरूर कोई उत्तर देंगे। मम्मी, पापा अभी नहीं आए। क्या गाड़ी देर से आती है?'
          'आते ही होंगे। सीधे यहीं आएँगे बेटे। बिना तुम्हें देखे उन्हें भी चैन कहाँ मिलता है?'
           'मम्मी, मुझे भी वे आज बहुत याद आते हैं। यदि यहाँ होते तो हाथ अपने हाथ में लेकर बैठे रहते। मेरे चेहरे को देखते रहते। उनसे कहना मम्मी बहुत दुखी न हों। दुःख-सुख तो आते जाते रहते हैं। कभी मैं ही बहुत खुश हो जाती हूँ और कभी रोने लगती हूँ। ऐसा क्यों होता है मम्मी? तूने तो पढ़ा होगा। जरूर कोई न कोई कारण होगा। विज्ञान में हमें बताया जाता है कि हर चीज का कोई न कोई कारण होता है। इसका भी कोई कारण होगा ही। अभी डॉक्टर चाचू नहीं आए। क्या वे भी कहीं चले गए हैं? उनके आने का समय तो हो गया है न। जरूर किसी काम में फँस गए होंगे। हो सकता है कोई नया बच्चा ही आ गया हो। मेरी ही तरह उसको भी कुछ तकलीफ हो गई हो। यह आपात कक्ष है न। बहुत जरूरी बच्चों को यहाँ रखा जाता है। क्या मुझे भी कुछ ज्यादा दिन रहना पड़ेगा? डॉक्टर चाचू से पूछँगी मैं। जितनी जल्दी छुट्टी मिल जाए, उतना ही अच्छा। बच्चों को भगवान जी बीमार ही क्यों बनाते हैं? जब उनके खेलने खाने के दिन होते हैं तब वे बीमार होकर बिस्तर पर पड़े रहते हैं और डॉक्टर चाचू कहते हैं हिलो-डुलो नहीं। यह भी कोई ज़िन्दगी है।
             भगवान जी से पूछना है। उन्हें जवाब देना ही पड़ेगा। कब तक मैं पड़ी रहूँगी यहाँ? लोग कहते हैं सवाल न करो। तुम लोग सवाल का उत्तर नहीं देते। आखिर बच्चे कैसे जानेंगे?
             मम्मी, वह देखो किनारे जो बच्ची लेटी है कितनी दुबली हो गई है। उसके माँ-बाप भी बहुत दुःखी है। मैं ठीक होती तो उनको समझाती। बच्ची को चाकलेट खिलाती। कोशिश करती कि वह मुस्कराये। पर मैं खुद बिस्तर पर पड़ी हूँ।
            डॉक्टर चाचू अब भी नहीं आए। कहाँ चले गए वे? इतने बच्चे उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। जरूर कोई न कोई संकट आ गया होगा। हम लोगों को अच्छे होने में बहुत संकट क्यों आता है मम्मी? आज मैंने सपना देखा कि मैं जंगल में हूँ। वहाँ मैंने एक शेर देखा। डरकर मैं पेड़ पर चढ़ गई। क्या शेर पेड़ पर चढ़ पाता है मम्मी? अगर वह चढ़ जाता तब तो मेरा काम तमाम हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शेर ने मुझे देखा, मुस्कराया, मेरी आँखों से आँखें मिलाया और चला गया। उसे लगा होगा कि मैं एक मासूम बच्ची हूँ। शेर तो चला गया पर मेरी उतरने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। इसी बीच एक हिरन दौडता हुआ आया। उसकी घमा चौकड़ी से मुझमें हिम्मत पैदा हुई। मैं धीरे-धीरे उतर आई। यह तो कहो उसके बाद शेर से भेंट नहीं हुई। आँख खुलती है तो न जंगल है न शेर और न हिरन। क्या सपने सच नहीं होते मम्मी?'
           मम्मी जब तक कुछ सोचे, डाक्टर साहब आ जाते हैं। एक बच्चा गम्भीर हालत में है। पहले उसे देखते हैं। दवा लाने के लिए पर्चा लिखते हैं। मनु के पास जैसे ही आते हैं वह खुश हो उनका स्वागत करती है। वे उसे देखते हैं। फाइल में दवा लिखते हैं। मनु जैसे उन्हें बता रही है। 'डॉक्टर चाचू, दादी, चाचू के पास इलाहाबाद गई हैं। बहुत रोती होंगी वे। पापा से पूछ रही थीं, 'कहाँ आऊँ?' उनको दौड़ाना मत डाक्टर चाचू। बहुत पेरशान हो जाएँगी वे। मुझे ठीक कर दो तो वे बहुत खुश हो जाएँगी। मैं भी मम्मी-पापा के साथ इलाहाबाद जाना चाहती थी। बीमार पड़ जाने से न जा सकी। चाची के बच्ची पैदा हुई है। मैं उसे देखना चाहती थी। कितनी छोटी छुई मुई सी होगी। बीमार होते ही सब कुछ क्यों बदल जाता है चाचू ? हमारे चाचू इन्जीनियर हैं। मैं जाती तो गाड़ी में बिठाकर संगम दिखाते। संगम देखा है आपने डॉक्टर चाचू? जल्दी से ठीक हो जाऊँ तो मम्मी पापा के साथ इलाहाबाद चली जाऊँ। बाबा हो आए हैं। हम लोगों को ही जाना है। छोटी को गोद में लेकर खिलाऊँगी। वह धीरे से मुस्कराएगी। मैं कहूँगी, 'तेरी दीदी हूँ तेरे साथ खेलने, तुझे खिलाने आ गई हूँ।' वह हँस पड़ेगी। अभी उसका नाम नहीं रखा गया है। बढ़िया सा नाम रखा जाएगा। चम्मच से उसको दाल का पानी पिलाऊँगी। एक एक बूँद वह चाटकर गले में उतारेगी। देखकर कितना अच्छा लगेगा। मुझे देखकर दादी, चाची और चाचू खुश होंगे। उनके साथ घूमने का मजा ही और है।
          हमारी तीन दादी तो घर में ही हैं। घर के बाहर भी दादियों की भरमार- इन्दिरा, निरुपमा, जावित्री, कमला, किरन, किस किस का नाम गिनाऊँ। बुआ लोग भी क्या कोई एक दो हैं। पुष्पा बुआ गुजरात में हैं। सीमा बुआ शुक्लागंज में। शिवानी, शिप्रा, मीनाक्षी बुआ तो पास ही हैं। मेरी पढ़ाई में मदद भी करती हैं। पेन्टिंग मैं शिप्रा बुआ से ही सीखती हूँ। हिमानी तो मेरी दोस्त है। साथ-साथ खेलते हैं हम। सुशील चाचू और चाची इस समय दिल्ली में हैं। विशाल चाचू तो दौड़ते रहते हैं। घर का कोई काम हो विशाल चाचू को बता दो, कर ही लाएँगे। कोई काम पड़ता है तो संजय, अमित चाचू भी आकर मदद कर देते हैं। इतना भरा पुरा परिवार कहाँ मिलेगा डॉक्टर चाचू ? पुलिस बाबा और बाबा टहलने जाते हैं रोज सुबह। हमें प्यार करते हैं। लौट कर चलेंगे तो बेटू को खिलाने जाएँगे। दादी से कहेंगे हम बेटू को खिलाने आए हैं। पंकज चाचू हमको कभी-कभी डरा देते थे। बेटू जब से हुई है तब से नहीं डराते ।
            बबलू मामा अक्सर टाफी जेब में रखे रहते। मुझे देखते ही हाथ में पकड़ा देते। पापा ने अच्छा किया, किसी को दौड़ाया नहीं। दवा तो हो ही रही है। बेकार दौड़ाना....... परेशान करना क्या ठीक है?' मनु को लगता है कि डाक्टर चाचू एक बार पुनः आले से उसके हृदय और नाड़ी की गति देखते हैं। वह पूछती है- डाक्टर चाचू मेरी नाड़ी ठीक है न। साँस ठीक से ले लेती हूँ। क्या जल्दी ठीक हो जाऊँगी?
               साँस कल क्यों बढ़ गयी थी डॉक्टर चाचू ? क्या इसे कम नहीं किया जा सकता? क्या होगा डॉक्टर चाचू ? मैं बच पाऊँगी न? कोशिश करना डॉक्टर चाचू......... पूरी कोशिश करना। मैं जीना चाहती हूँ। कैसी अजीब बात है? जो जीना चाहता है उसको मौत घेरने लगती है। क्या भगवान जी से भी कहना पड़ेगा डॉक्टर चाचू ? भगवान जी तो बस हँसते रहते हैं, कुछ कहते ही नहीं। डॉक्टर चाचू जो भी दवा लगे, मँगा लेना। पैसा मिल जाएगा। कोई गलती न होने पाए। सुनती हूँ कि कभी-कभी किसी गलती से किसी की मौत हो जाती है। ऐसा कुछ न हो डॉक्टर चाचू।'
            डॉक्टर निरीक्षण करते हैं। नर्स को निर्देश देते हैं और चलने को होते हैं कि मनु उन्हें रोक लेती है-'एक मिनट रुको डॉक्टर चाचू। आपको विश्वास है न, कि मैं बच जाऊँगी। मुझे बचा लेना डॉक्टर चाचू। बीमार होते हुए भी मैं मन से स्वस्थ हूँ। पूरी तरह जीना चाहती हूँ, ध्यान रखना चाचू।'
           डॉक्टर स्वयं कुछ विचलित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि यह बालिका एक ऐसी मरीज है जिसमें जिजीविषा है पर देखो क्या होता है? कुछ चिन्तित से वे कक्ष से बाहर निकलते हैं। मनु की आँखें दरवाजे तक उनका पीछा करती हैं।
            दिन के ग्यारह बजे मनु के पापा घर से रुपये लेकर आ जाते हैं। उन्हें देखते ही मनु का चेहरा प्रसन्नता से भर जाता है। 'पापा आ गए ? मैं आपका इन्तजार ही कर रही थी। पापा, अपना भी ध्यान रखो। दौड़-धूप में आपका चेहरा कैसा हो गया है? घर में बाबा ठीक हैं न? चाचू का कोई फोन आया था न? कह देना मनु ठीक है। उनको बेकार तंग करना अच्छा नहीं है। दादी को भी समझा देना। हम अच्छे हो जाएँगे। डॉक्टर चाचू से पूछ लेना। जो दवाई बताएं उसे खरीद लेना। मैं खा लूँगी, कोई भी दवाई, चाहे वह कितनी ही कड़वी क्यों न हो? बीमार होकर बिस्तर पर पड़े रहना कौन चाहता है? पर लोग बीमार पड़ ही जाते हैं। आखिर भगवान जी को यह क्या सूझा कि लोगों को बीमार बनाने लगे। उनको तो लोगों को ठीक करना चाहिए। अब जब मिलेंगे वे, मैं जरूर पूछेंगी। पापा, मम्मी ने कुछ जलपान नहीं किया होगा। इन्हें जलपान करा दो। अगर मम्मी बिना कुछ खाए पिए मेरे पास बैठी रहेंगी तो क्या मैं ठीक हो जाऊँगी? मम्मी को अपना भी ध्यान रखना है और मेरा भी। अपना ध्यान नहीं रखेंगी तो मेरा ध्यान कैसे रख पाएँगी? मैं ठीक हो जाऊँगी पापा। आप चिन्ता न करें। हमने पढ़ा है कि चिन्ता करने से भी लोग बीमार हो जाते हैं। डॉक्टर चाचू से मैंने कहा है कि वे मेरे लिए जो भी दवाई मंगाना चाहें मँगा लें। वे जरूर मंगाएँगे। मैं एक छोटी बच्ची हूँ न। इस अस्पताल में कितने ही बच्चे आते हैं। पापा..... यहाँ जो बच्चे आते हैं क्या सब ठीक हो जाते हैं? डॉक्टर चाचू से पूछना। अगर सब बच्चे ठीक जो जाते होंगे तो मैं भी ठीक हो जाऊँगी। अगर सब नहीं ठीक होते तब जाने क्या हो? तब भी डरने की जरूरत नहीं है पापा। मैं ठीक ही हो जाऊँगी। आप लोग इतनी मेहनत कर रहे हैं। डॉक्टर चाचू बहुत ध्यान रखते हैं। जब भी आते हैं, बहुत ध्यान से देखते हैं। वे जरूर चाहते हैं कि मैं ठीक हो जाऊँ। ठीक ही हो जाऊँगी मैं। वह किनारे वाला बच्चा तो ठीक होकर चला गया पापा। अब घर पर खेलता होगा। अपने साथियों से मिलकर खुशी मनाता होगा। मैं यहाँ इस बिस्तर पर पड़ी हूँ। मेरे साथी, सहेलियाँ सब दुखी होंगे। वे जरूर प्रार्थना करते होंगे भगवान जी से कि मनु को ठीक कर दो। पुलिस बाबा तो पूजा करते समय जरूर कहते होंगे प्रभु जी मनु को ठीक कर देना। मैंने कई बार उनको दूसरों के लिए प्रार्थना करते सुना है। क्या वह प्रार्थना भगवान जी सुनते हैं? जरूर सुनते होंगे। तभी तो लोग प्रार्थना करते हैं। हम लोग भी तो स्कूल में प्रार्थना करते थे-
                          वह शक्ति हमें दो दयानिधे
                          कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ।

स्वस्थ रहेंगे तभी तो डटेंगे। दादी एक कथा कहा करती थीं एक स्त्री का पति मर गया। उसने भगवान से प्रार्थना की। भगवान खुश हुए। भगवान ने कहा कि पति की ज़िन्दगी के अलावा कुछ भी माँग लो। वह स्त्री होशियार थी। उसने कहा कि मेरा पुत्र आपका भक्त हो। भगवान जी ने कहा- 'एवमस्तु'। पर ऐसा कहते ही वे तो फँस गए। उस स्त्री का पति जीवित होगा तभी तो बच्चा होगा। भगवान मजबूर हुए। उन्हें उस स्त्री के पति को जीवित करना पड़ा। मैंने दादी से कहा था कि अब तो बिना पति के भी बच्चे हो जाते हैं। क्लोन जो बन गया है। दादी हँस पड़ी थीं। मनु जिस समय की कथा मैं कह रही हूँ उस समय तो तुम्हारा यह क्लोन नहीं होता था। दादी बहुत दूर बैठी हैं। उनसे आज मैं कहूँगी, 'दादी, मेरे लिए भी भगवान जी को किसी तरह फँसा लो। तुम तो कहानियाँ सुनाती थी, अब कर के दिखाओ।' भगवान जी फँस जाएँगे तो मौत को भगा ही देंगे। बड़ा मजा आएगा तब। भगवान जी के माथे पर पसीना चुहचुहा आएगा। सोचेंगे कि अब तो इसे जीवित रखना ही पड़ेगा। दादी ! कुछ ऐसा जरूर करना। तुम तो तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती हो। मैं भी सोचूँगी। अगर दिमाग में कुछ आएगा तो तुम्हें बताऊँगी। कोई ऐसी लँगड़ी अगर लग जाए तो कितना मजा आएगा? भगवान जी को भी पता चलेगा कि किसी लड़की से पाला पड़ा है। अभी तो एक प्रार्थना कर लेना ही ठीक है। प्रार्थना से काम चल जाए तो लँगड़ी की जरूरत नहीं है। लेकिन भगवान जी प्रार्थना न सुनें तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा और तब ? भगवान जी की यह बात तो मैं मानने के लिए तैयार नहीं हूँ कि तुमको मैं अपने पास बुला लेता हूँ। अरे भाई पूरी ज़िन्दगी जीने दो तब बुलाओ। किसी को उसके बचपन में ही बुलाओ यह अच्छी बात तो नहीं है। भगवान जी, मैं नहीं जान पाती कि आपके यहाँ कौन सा नियम चलता है।
           अपने आस-पास बहुत कुछ अच्छा नहीं देखती हूँ भगवान जी। मम्मी कहती हैं कि तुमने ही यह दुनिया बनाई है। क्या मैं मान लूँ कि यह सच है? यदि यह सच है तो आपको जवाब देना होगा भगवान जी। बहुत से बच्चे भूख-प्यास से परेशान क्यों होते हैं? उनके पिचके हुए गाल, दुबला-पतला शरीर क्या आपको अच्छा लगता है? ऐसा क्यों करते हैं भगवान जी? कोई भूखों मरता है, एक-एक रोटी के लिए तरसता है और किसी के घर में रोटियाँ सड़ती हैं। तुम्हारा यह नियम हमें समझ में नहीं आता। या तो यह कह दो कि इस दुनिया को मैंने नहीं बनाया है। तुम लोगों ने खुद ही इस तरह की दुनिया बना ली है। पर सभी तो कहते हैं कि यह दुनिया भगवान जी की बनाई हुई है। कितना बड़ा कारखाना होगा जिसमें तरह-तरह के साँचे आप ढालते हैं। किसी का चेहरा दूसरे से नहीं मिलता। ऐसा कौन सा साँचा है भगवान जी ! जो अलग-अलग चेहरा निकालता है? यह सब तो ठीक है पर बहुत से लोगों को जन्मते ही रोगी, विकलांग क्यों बना देते हो भगवान जी। क्या तुम्हारी मशीन गड़बड़ हो जाती है? अगर मशीन की गड़बड़ी से यह सब होता है तो उसे ठीक कर लिया करो भगवान जी। मैं जान नहीं पाती कि आपकी इच्छा क्या है? क्यों ऐसा सब कुछ होता है? मम्मी कहती है कि भगवान जी लीला करते हैं। लोगों का चेहरा खराब कर देना, बीमार बना देना, क्या यह भी आपकी लीला है? अगर यह आपकी लीला है तो इसे बन्द कर देना चाहिए भगवान जी। आप अच्छे लोगों को क्यों नहीं बनाते? हमारे यहाँ एक बाबा जी आते हैं। वे कहते है कि भगवान जी कुछ नहीं करते। क्या आप कुछ नहीं करते? यदि आप कुछ नहीं करते तो यह सब कैसे हो जाता है? मम्मी कहती है कि भगवान जी बिना कान के सुनते हैं, बिना पैर के चलते हैं तो आदमी को ऐसा क्यों नहीं बना देते? क्या इसमें आपको मजा आता है? किसी को बीमार बनाने में आपको मजा आता हो तो मैं क्या कहूँ? मैं इस बिस्तर पर पड़ी हूँ। मेरे मम्मी-पापा परेशान हैं। मैं भी साँस से तंग हो जाती हूँ और आपको मजा आता है! तब तो आप खलनायक हो गए भगवान जी। मैं बहुत कुछ जानती नहीं। मन में जो आ रहा है, कहती जा रही हूँ। मम्मी कहेगी कि भगवान जी ही तुमसे कहला रहे हैं। मेरी समझ में कुछ आ नहीं रहा है। पण्डित जी कहते हैं स्वर्ग में अप्सराएँ मिलेंगी। भगवान जी यह तो बताओ अप्सराओं को लेकर कोई क्या करेगा? तुम्हारे स्वर्ग में कहीं बच्चे भी तो दिखाई नहीं पड़ेंगे। बच्चे नहीं होंगे तो खेल-कूद, हँसी, किलकारी यह भी नहीं होगी। इस तरह का स्वर्ग क्या अच्छा है भगवान जी ? मुझे उस स्वर्ग में मत ले जाना जहाँ में खेल-कूद न पाऊँ। तुम्हारे देवता डरते क्यों हैं भगवान जी? तभी तो वे दौड़कर हाय-हाय करते हैं। आपको बुलाते हैं, भगवान जी आ जाओ, मेरी मदद करो और आप मदद करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। हमेशा देवताओं का साथ देते हैं। देवता कौन हैं भगवान जी? आप कहते हैं अग्नि देवता, पवन देवता। इनको तो हम अपने आस-पास ही देखते हैं। आग जलाकर खाना बनाते हैं, हवा से साँस लेते हैं। तुम्हारा इन्द्र बहुत शरारती क्यों है भगवान जी? उसी को आपने राजा बना दिया। क्या जो भी राजा होता है, सब शरारती हो जाते हैं? भगवान जी आपसे और इन्द्र से भी तो झगड़ा हुआ था। आपने पहाड़ उठा लिया था। भगवान जी शरारती लोगों को राजा न बनाया करो। ये शरारती राजा लोगों को बहुत तंग करते हैं। आप यह कहेंगे कि अब हम राजा कहाँ बनाते हैं। राजा तो तुम्हीं लोग बनाते हो। लेकिन भगवान जी ईश्वर और अल्लाह का नाम लेकर भी तो लोग चुनाव लड़ते हैं। मेरे बाबा ने एक नाटक कराया था। मैं भी देखने गई थी। उसमें यह दिखाया गया था कि आप बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं। उससे ही यह भी जाना कि आपको वोट देने के लिए कोई तैयार ही नहीं हुआ। वह एक कहानी है। पढ़ लेना भगवान जी। आपको पता चल जाएगा कि यह दुनिया किधर जा रही है। नाटक में मुझे मजा तो ज़रूर आया था पर मैं सोचने लगी कि अगर भगवान जी को वोट नहीं मिला तो क्या किसी अच्छे आदमी को वोट मिलेगा? इस पर सोचना भगवान जी। मैं अखबार पढ़ लेती हूँ रोज देखती हूँ, हमारे नेता किसी न किसी धाँधली में फँसे रहते हैं। तुम भी पढ़ते होगे भगवान जी। यह धाँधली क्या अच्छी चीज है ? जरा सोचकर बताना भगवान जी।
               मैं तो बच्ची हूँ, बहुत कुछ नहीं जानती। आप सब कुछ जानते हैं। अगर सब कुछ जानते हैं तो इसको ठीक भी करो भगवान जी। बच्चों के लिए जो पुष्टाहार बनता है, वह कोई दूसरा खा जाए क्या यह अच्छी बात है? बच्चे तो उसी तरह बिल्कुल बेजान हैं। जब भी मैं किसी बच्चे को बहुत दुबला-पतला, कमजोर देखती हूँ तो बड़ा दुख होता है भगवान जी। तुम्हें भी होता होगा। आप कुछ करते क्यों नहीं भगवान जी? मम्मी कहती हैं कि आपके हाथ बहुत बड़े हैं। आप सब कुछ देखते हैं। फिर देखकर अनदेखी क्यों करते हैं? क्या तुम्हें दुःख नहीं होता भगवान जी? चाहती थी कि सभी बच्चे खुश रहें, खूब खेलें-कूदें। किसी को कोई तकलीफ न हो। बच्चों की ऐसी दुनिया क्या नहीं बन सकती भगवान जी? किसी को आप दिमागी तौर पर कमजोर बना देते हो। वह अपना कपड़ा भी नहीं पहन पाता। कैसे जिएगा वह, यह तो बताओ? उसके माँ-बाप परेशान होते हैं। अपनी शक्तिभर दौड़ते हैं। पर कहाँ कुछ हो पाता है? अगर आप शान्त हो चुपचाप इसका भी मजा लेते हैं तो मैं क्या समझें भगवान जी? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता। तुम्हारे कारखाने का काम काज, तुम्हारी दुनिया का रीति-रिवाज कुछ भी तो नहीं समझ पाती मैं। छोटी बच्ची हूँ। एक बिस्तर पर पड़ी हूँ। केवल दिमाग चल रहा है भगवान जी। जिसका दिमाग छीन लेते होंगे उसका तो सब कुछ लुट जाता होगा भगवान जी। ऐसे बच्चों को कैसे पालेंगे लोग? कुछ तो सोचो। इस दुनिया को जैसे-तैसे न चलने दो भगवान जी। इसको ठीक से चलाओ। बच्चों को हँसने खेलने का मौका दो। उन्हें बीमार मत बनाओ और मारो तो बिल्कुल नहीं।