Apradh hi Apradh - 46 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 46

Featured Books
  • അപ്പുവിന്റെ സ്വപ്നവും

    അപ്പുവിന്റെ സ്വപ്നംഅപ്പു, ഒരു ചെറിയ കുട്ടി, തിരുവനന്തപുരത്തെ...

  • ദക്ഷാഗ്നി - 4

    ദക്ഷഗ്നിPart-4ദച്ചു ഇവിടെ എന്താ നടക്കുന്നത് എനിക്കൊന്നും മനസ...

  • ശിവനിധി - 1

    ശിവനിധി part -1മോളെ നിധി നീ ഇതുവരെയായും കിടന്നില്ലേഇല്ല അമ്...

  • ദക്ഷാഗ്നി - 3

    ദക്ഷഗ്നിPart-3അപ്പോ നീ പ്രൈവറ്റ് റൂമിൽ ഇരുന്നോ എനിക്ക് മീറ്റ...

  • വിലയം - 2

    ജീപ്പ് മുന്നോട്ടു നീങ്ങിക്കൊണ്ടിരിക്കെ മൂടൽ മഞ്ഞിന്റെ കട്ടി...

Categories
Share

अपराध ही अपराध - भाग 46

अध्याय 46

 

"बिल्कुल सही बात है। पर हम जो कह रहे हैं वह सत्य है। आपको उस बच्चे के बारे में कुछ पता है क्या?"

"अच्छी तरह से मालूम है..." दबाव के देकर वह बोला।

"मालूम है.... ओह गॉड। हमारा काम इतना आसानी से हो जाएगा हमने बिल्कुल सोचा नहीं। अच्छा वह बच्चा आई मीन वह 27 साल का युवक होगा। अभी वह किसी अनाथाश्रम में है?" बड़े उत्तेजित होकर धना ने पूछा। 

"वह किसी अनाथाश्रम में नहीं है। अच्छी तरह से बड़ा होकर शादी करके दो बच्चों का बाप है।"

"ऐसा है तो तुम्हारे अप्पा ने उस बच्चे को जिनके बच्चा नहीं है उन्हें गोद दे दिया... वह परिवार अभी कहां है?" कुमार ने पूछा। 

"नहीं हमारे अप्पा ने उस बच्चे को भगवान का दिया इनाम समझकर स्वयं ने रख लिया और उन्होंने ही लालन-पालन किया। वह 10 साल का हो गया तब उन्होंने सच्चाई बता दिया कि मैं उनका बच्चा नहीं हूं।"

"ऐसा है तो पेपर में न्यूज़ नहीं आ सकता। परंतु कचरे के डिब्बे में फेंका हुआ बच्चा ऐसा न्यूज़ आया था। वह कैसे?"

"बहुत ज्यादा मत कुरेदो। पहले उस बच्चे को अनाथ आश्रम में जमा करने ले गए , फिर स्वयं उसको पालने के लिए कहकर वे लेकर आ गए।"

"ठीक है फिर वह कहां है?"

"उसको जाने दो। उस दिन कचरे के डिब्बे में फेंकने वाले वह महान व्यक्ति कौन? उसे आपने बताया ही नहीं।"

"बताता हूं। अभी सचमुच में वे महान व्यक्ति हैं। इसीलिए उस गलती के लिए प्रायश्चित करने का सोच रहे हैं। आप वह कहां हैं सिर्फ यह बता दीजिएगा।"

"क्या अभी भी आपको पता नहीं चला... वह मैं ही हूं?" ऐसा संतोष के बोलते ही धना के चेहरे पर एक तरह का आश्चर्य मिश्रित खुशी दिखाई दी।

"सर, आप... सच में... रियली?"

"आपको मैंने विश्वास करने के लिए नहीं बोला। जैसे आए थे वैसे ही लौट जाइए। मैं तो अभी ज्यादा जीता हुआ हूं।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?"

"और कैसे बोलूं, थोड़ा भी दया, ममता के बिना मुझे कचरे के डिब्बे में डाल दिया। उस पर क्या मुझे प्रेम होगा वात्सल्य उमड़ेगा? जाइए, जाकर बताइए मेरे हिस्से में जो मिला है उससे मैं बहुत खुश हूं। उसे जाकर कहिए।"

"आपका गुस्सा बिल्कुल न्याय संगत है। परंतु इसके लिए उन्हें बहुत ज्यादा दंड मिल चुका है। आप उन्हें प्रत्यक्ष में देखेंगे तो आपको समझ में आएगा।"

"मुझे किसी चीज की या कोई इन सब बातों की कोई जरूरत नहीं। मुझे जिसने पाल-पोस कर बड़ा किया शंकरलिंगम वही मेरे अप्पाहै।

"मैं एक कचरे के डिब्बे में मिला बच्चा जानकर भी मुझसे शादी की मेरी पत्नी, वह ही मेरे लिए भगवान है" कहते हुए दीवार पर टंगे हुए फोटो के पास जाकर इन सब बातों को उनके पास खड़ी होकर सुन रही उनकी पत्नी सुमति को संतोष ने देखा।

"बिल्कुल सच है। आपका वात्सल्य भी मेरे समझ में आता है। आपका गुस्सा भी सही है। इन सब बातों के प्रायश्चित, करने के लिए ही आपको अपने संपत्ति का वारिस बनाने की आपके पिताजी की इच्छा है। आपके संपत्ति की वैल्यू कितना है आपको पता है?"

"नहीं। उसको मालूम करके कुछ भी होना नहीं। मैं अभी पत्नी और बच्चों के साथ शांति से रह रहा हूं। उसे खराब ना करके जिस रास्ते आप आए हो वहां रवाना हो जाइए।"

"सर, इस तरह से लापरवाही से मत बोलिए। यह मकान ही बता रहा है आप कितने गरीब हो। यह भी शायद किराए का मकान ही होगा। परंतु आपके लिए एक बंगला इंतजार कर रहा है। आपकी एक छोटी बहन भी है।आपकी कई कंपनियां हैं। उसमें सैकड़ों लोग काम करते हैं।

"हर महीने करोड़ों रुपए का 'टर्न ओवर'! मैं तुम्हें पैदा किए अप्पा का सेक्रेटरी हूं। मुझे ही लाखों में वेतन मिलता है। अपनी भावनाओं को थोड़ा कंट्रोल करके सोच कर देखिए।"

"सॉरी अभी मैं कुछ भी नहीं कह सकता। आप अपने फोन नंबर देकर जाइए मैं सोच कर बताता हूं।"

संतोष के रुखा बोलने पर उसे सुनकर धना कोई दूसरा रास्ता ना होने के कारण अपना 'विजिटिंग कार्ड' उसे देकर कुमार के साथ वहां से रवाना हुआ।

उनके जाते ही संतोष नाम के उस आदमी ने अपने मोबाइल पर कुछ अंकों को दबाया। 

"सर, जैसे आपने कहा था वैसे ही दो जने आए थे। अपने जैसे कहा वैसे ही मैंने कहा मैं ही उस कचरे के डिब्बे का बच्चा हूं बोल कर गुस्से से उन्हें वापस भेज दिया। इसी समय कुछ गलत हो जाएगा ऐसा डर लग रहा है" वह बोला।

दूसरी तरफ से विवेक।

"डरो मत संतोष। तुम्हारे अप्पा उस दिन उसे बच्चे को अनाथाश्रम में जमा कर दिया था। वहां से उस बच्चे को को कोई गोद लेकर चला गया होगा। उसे कुछ भी होने दो। मैंने तुम्हें नाटक करने को बोला वह सिर्फ हमारे लिए नहीं, तुम्हारे लिए भी है।

"हां जी। वह मेरे समझ में आ रहा है। स्वीपर का लड़का हूं इसलिए मेरी कोई औकात नहीं है। इसके अलावा मेरे ऊपर बहुत कर्ज है। ऐसी हालत में आप आकर मुझे ₹500000 दिया। उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।"

"मैं भी नहीं भूलूंगा। मैं जैसा बोल रहा हूं वैसा सुनो। फिर तुम कहां पहुंचते हो देखो।"

"आपकी बात बिल्कुल मानूंगा। आप ही मेरे देवता हो। देवता बोले तो नहीं मानेंगे क्या ?" खुशी से पागल हो रहा था संतोष।

उसकी पत्नी सुमति का मन बहुत ही परेशान हो रहा था।

आगे पढ़िएगा............