Apradh hi Apradh - 42 in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 42

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अपराध ही अपराध - भाग 42

अध्याय 42

 

जल्दी से स्पीकर को कुमार ने ऑन किया “अबे दामोदरन, भगवान हमारी तरफ ही है। पावर कट के द्वारा आखिरी मिनट में हमारी लड़की को बचा लिया। तुम जो बात कर रहे थे वह दूल्हे मोहन से नहीं। धना के दोस्त कुमार से बात कर रहे थे। 

“तुम एक स्मगलर हो तो ! डॉक्टर भी? तुम पापी लोगों को खेलने के लिए एक लड़की की जिंदगी ही मिली?” आक्रोश के साथ बोला। 

“डैडी, आप तुरंत रवाना हो। पुलिस वाले यहां आ रहे हैं” कहते हुए उसने ऑक्सीजन मास्क लगाए हुए रामकृष्णन को जल्दी से मोहन उठाने लगा।

वह भी उठकर भगाने के लिए तैयार हुए। 

परंतु कुमार और धना ने उन्हें नहीं छोड़ा। दोनों भाग कर उसे वार्ड के दरवाजे को जल्दी से बंद कर दिया। 

“डॉक्टर इन सब में आप भी शामिल थे ना। आपको शर्म नहीं आई?” बहुत गुस्से से धना चिल्लाया।

डॉक्टर का चेहरा काला पड़ गया। नर्स घबराने लगी। 

सब कुछ ही ऊपर नीचे हो जाने से मोहन चिड़चिड़ाने लगा। उससे ज्यादा आवेश रामकृष्णन को भी आया। 

पंडित जी नारियल फल के थाली को हाथ में पकड़े हुए घबराते हुए खड़े थे। कार्तिका शांति के पास आकर उसे सांत्वना देती हुई उसके हाथों को पकड़ लिया। 

कुमार और धना को धक्का देकर रामकृष्णन मोहन और रंजीता दरवाजे को खोलने के लिए दौड़े। 

उनके धक्का देने से एक तरफ गिरने के कारण धना को सर पर चोट लगी। सुशीला दौड़ कर जाकर धना को उठाया।

डॉक्टर जल्दी से पास आकर “वेरी सॉरी सर। मुझे आपकी समस्या क्या है पता नहीं। श्री दामोदरन इस अस्पताल को बहुत ज्यादा डोनेशन देते है। उसके लिए ही उनकी इच्छा जैसे थी मैंने किया। आई एम रियली वेरी सॉरी,” वे बोले। 

इस समय रामकृष्णन, मोहन और रंजीता गाड़ी में चढ़कर अस्पताल के मैन रोड को पार करने का प्रयत्न करने लगे। इस समय सामने पुलिस की गाड़ी एक की जगह तीन तरफ से आकर उन्हें रोक लिया।

“हे भगवान मेरी लड़की की जिंदगी यह बिजली के जाने से बच गई…”ऐसा सुशीला कहने लगी।

कार्तिका से “मैडम मेरे भाई को छोड़ दो। आपकी दुश्मनी हमारे जिंदगी को किस तरह से बर्बाद कर रही है देखा?” ऐसा कहकर आंसू बहने लगी शांति। 

“आई एम सॉरी शांति। अब आपके भाई को काम में आने की जरूरत नहीं। हमारा कष्ट हमारे साथ ही जाने दो। पहले आप लोग यहां से रवाना हो। मैं ही आप लोगों को ले जाकर घर छोड़कर आती हूं।” ऐसा तुरंत कार्तिका बोली।

परंतु धनंजयन ने इसे नहीं माना।

“मैडम, अभी हमें इसके बारे में यहां बात करने की जरूरत नहीं है। पहले घर चलते हैं” कहकर रवाना हुए। 

डॉक्टर और नर्स बड़े ही दयनीय दृष्टि से देख रहे थे वह भी रवाना हुए। 

घर के अंदर घुसते ही सुशीला अपने पति के फोटो के पास जाकर खड़ी होकर “आपकी लड़की एक बहुत बड़े दुर्घटना होने से बच गई” बोली। 

कुमार के हाथ को बड़े कसकर धना ने पकड़ा हुआ था।

“कुमार तुम बहुत ही ‘टाइमिंग सेंस’ से काम किया। बहुत अच्छा हुआ मोहन के मोबाइल तुम्हारे हाथ में था तभी सच्चाई का पता चला। शांति की जिंदगी ऐन वक्त पर बच गई” बोला। 

कार्तिका कुमार के पास आकर “वेरी गुड कुमार। आपका टाइमिंग सेंस…” ऐसे बोलते समय ही धना का मोबाइल बज उठा। 

फोन करने वाला विवेक था। 

“हेलो मिस्टर विलन, अभी तक फोन क्यों नहीं आया मैं सोच रहा था। तुमने ही फोन कर दिया। मुझे परेशान करने के लिए तुमने कुछ-कुछ करके देख लिया। पर सब कुछ मिट्टी में मिल गया। 

“इसके बाद भी तुम नहीं सुधरे तो तुम्हें भगवान भी बचा नहीं सकता विवेक” धना बोला।

“अबे धना, बहुत मत उछल, तुम्हारी बहन के मंगलसूत्र पहने तक बात बढ़ गई फिर वह रुक गई उसके बारे में सोच। हमारे दूल्हे मोहन को लड़की मिलना कोई बड़ी बात नहीं है। 

“परंतु तेरी बहन के लिए दूल्हा अब आराम से नहीं मिलेगा। कोई भी शुभ कार्य एक बार विघ्न पड़ने पर तीन बार विघ्न पड़ेगा ऐसा कहते हैं?”

“इसे कहने के लिए फोन किया क्या?”

“सिर्फ इसीलिए नहीं तुम्हारी अक्का की शादी तुम कैसे करते हो मैं भी देख लूंगा। पहले मुझे तुम पर सिर्फ गुस्सा ही था। परंतु उसका बदला भी मुझे टीस रहा है।

“तुम्हारी अक्का से शादी करने के लिए दूल्हा कहां से आता है मैं भी देख लूंगा।” ऐसा कहकर उसने फोन को काट दिया।

उसकी बातों को स्पीकर फोन पर सभी लोगों ने सुना “यह नौकरी तुम्हें नहीं चाहिए। धनवानो की दुश्मनी मैंने मना किया। हमें कोई जरूरत नहीं है तुमने सुना क्या?” ऐसा कहते हुए अपने छाती को जोर-जोर से मारते हुए सामने आई सुशीला अम्मा। 

धनंजयन के पास सिर्फ एक मौन था; परंतु कुमार स्पष्ट था। 

“धना, इन लोगों के बात करने से तुम दुखी मत हो। हमने कोई गलती नहीं की। गलती करने वाला दोषी, फिर से ठीक से रहने की सोच रहे हैं। उसके लिए हम उनके साथ हैं। इसके लिए हमें तो गर्व करना चाहिए।

“कुछ परेशानियां इसके बीच आएगी तो सही। उसके लिए निराश होकर अपने कदम को पीछे नहीं ले जाना चाहिए। अभी कुछ बिगड़ा नहीं है हम चाहे अभी उसे विवेक के मुंह पर कालिस पोत सकते हैं।

“शांति के गले में मैं मंगलसूत्र बांधता हूं। उसका वीडियो बनाकर तुम विवेक को भेजो। शांति मान जाए तो बस है। तुम क्या कहते हो बोलो?” ऐसे कहते हुए कुमार को आंखें फाड़ कर शांति देखने लगी। 

आगे पढ़िए…