Teri Meri Yaari - 10 in Hindi Children Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | तेरी मेरी यारी - 10

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तेरी मेरी यारी - 10


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मीडिया में करन के किडनैपिंग की खबर फैल जाने से किडनैपर्स के बीच तनाव का माहौल था। नवीन और संजय दिनेश पर यह इल्ज़ाम लगा रहे थे कि उसके लालच के कारण ही मामला खिंच रहा है। दिनेश उन्हें तसल्ली रखने को कह रहा था। उसकी बात काटते हुए नवीन बोला,


"मुझे तो संजय की बात सही लगती है। मीडिया में खबर फैल जाने के कारण हमारे ऊपर खतरा बढ़ गया है। दस लाख तो हमें मिल ही चुके थे। दो चार लाख और मांग लेते तो कब का सब खत्म हो गया होता। पर तुमने तो सीधा पंद्रह लाख और मांग लिए। "


दिनेश गुस्से से बोला।


"तो क्या अकेले अपने लिए मांगा है। पैसा मिलेगा तो सब अपना हिस्सा लोगे। पर ज़रा सी मुसीबत आई तो रंग दिखाने लगे। फिर सोचने की बात है कि मीडिया को यह खबर मिली कैसे ? कहीं तुम लोगों में से तो कोई नहीं है ?


उसकी बात सुनकर संजय को भी गुस्सा आ गया। वह गुस्से से बोला,


"हमारा दिमाग खराब है कि हम मीडिया को खबर देकर अपने लिए गड्ढा खोदेंगे।"


"तुम लोग नहीं हो तो क्या मीडिया को सपना आया था। या फिर पुलिस ने अपनी किरकिरी कराने के लिए उन्हें बताया। वो लाल तो ऐसा कर अपने बेटे को मुसीबत में नहीं डालेगा।" 


इस बार नवीन भड़क गया। वह बोला,


"तो हम ही क्यों खुद को मुसीबत में डालेंगे।"


तनाव बढ़ता देख कर रॉकी बीच बचाव करते हुए बोला,


"अब आपस में लड़ो नहीं। जब साथ चले हैं तो अंत तक साथ रहेंगे। फिर चाहें जो हो।"


कोई कुछ नहीं बोला। सभी चुपचाप अपनी जगह बैठे रहे। चारों साथियों के मन में हलचल मची हुई थी। खासकर संजय सबसे अधिक परेशान था। अपनी ड्रग्स की आदत के कारण वह सट्टा खेलने लगा। सट्टे में हुई हार के कारण वह किडनैपिंग जैसे अपराध में शामिल हो गया। अब वह पछता रहा था। यदि वह पुलिस के हाथ लग गया तो उसकी पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी। माता पिता पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ेगा। 


दिनेश के मन में भी बहुत उथल पुथल मची हुई थी। अपने साथियों का रवैया उसे ठीक नहीं लग रहा था। पहले तो सब अपनी मर्ज़ी से साथ आए थे। किंतु अब सब इस तरह से बात कर रहे थे कि जैसे इस सब से अकेले उसे ही लाभ मिलने वाला हो। उसने तय किया कि यदि शुरुआत उसने की है तो खत्म भी वही करेगा। उसने अपने साथियों से कहा,


"उस लाल को अभी फोन करते हैं। उससे कहेंगे कि या तो कल शाम तक पैसे दे या हम उसके बेटे की लाश उसे भिजवा देंगे।"


सबने उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि अब इस मामले को जल्दी निपटाना ही अच्छा है। दिनेश फोन करने के लिए हमेशा की तरह उस जगह से दूर चला गया जहाँ करन कैद था। वहाँ पहुँच कर उसने मोबाइल में वो सिम डाला जिससे वह मि.लाल से संपर्क करता था। 


इंस्पेक्टर आकाश और सब इंस्पेक्टर राशिद ने किडनैपर और मि. लाल के बीच हुई बातचीत को सुना। किडनैपर की धमकी से मि.लाल बुरी तरह घबरा गए थे। उन्होंने कहा कि कल शाम तक वह जैसे भी करके रकम का इंतज़ाम कर लेंगे। किडनैपर ने अपनी धमकी दोहराते हुए कहा कि कल शाम वह फिर से फोन करके पैसे लाने की जगह बताएगा। 


मीडिया में करन की किडनैपिंग की खबर देख कर लाल परिवार भी परेशान हो गया था। उन्हें करन की बहुत अधिक फिक्र होने लगी थी। वह लोग भी समझ नहीं पा रहे थे कि मीडिया में यह बात आई कैसे। मि. लाल ने पहले ही अपनी कोशिशें तेज़ कर दी थीं। फोन आने के बाद वह और तेज़ी से जुट गए।


इंस्पेक्टर आकाश को लग रहा था कि उनके पास यही एक मौका है कि मि.लाल पैसे देने जाएं उससे पहले ही करन का पता कर उसे रिहा करा लिया जाए। यही अपनी बिगड़ी छवि को सुधारने का अच्छा तरीका होगा। क्योंकी यदि पैसों के लेनदेन के समय किडनैपर्स को गिरफ्तार करने की कोशिश की और वह पहले की तरह भाग निकले या करन को कोई नुकसान पहुँचा तो बड़ी बदनामी होगी।


वह सब इंस्पेक्टर राशिद के साथ मिल कर योजना बनाने लगे। उन्हें इस बात का पूरा यकीन था कि करन को कुश नगर में ही कहीं रखा गया है। उन लोगों ने कुश नगर का नक्शा अपने सामने फैला कर बहुत ध्यान से उसका निरीक्षण करना शुरू किया। उन्होंने कुश नगर को तीन हिस्सों में बांट कर उस स्थान का पता लगाने का निश्चय किया जहाँ मंदिर और मस्जिद आस पास हों। 


उन दोनों ने तय कि कल सुबह ही वो अपने मिशन पर निकलेंगे। तभी कबीर उनसे मिलकर उनके अगले कदम के बारे में जानने के लिए आया। जब उसे पता चला कि वो लोग कल कुश नगर करन की खोज में जा रहे हैं तो उसने भी साथ ले चलने की गुज़ारिश की। लेकिन इंस्पेक्टर आकाश ने साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि इस काम में खतरा है। यह काम पुलिस का है। वह उसे साथ नहीं ले जा सकते। उन्होंने कबीर को समझाया कि तुम्हारे मम्मी पापा भी इस बात के लिए राज़ी नहीं होंगे। कबीर भी साथ चलने के लिए अपनी दलीलें देता रहा। पर इंस्पेक्टर आकाश टस से मस नहीं हुए। अतः निराश होकर कबीर अपने घर लौट गया।



सेल्समैन के भेष में इंस्पेक्टर आकाश घर घर साबुन बेचने के लिए जा रहे थे। अब तक वह जिन घरों में गए थे वहाँ लोग परिवार के साथ रह रहे थे। ऐसी जगह पर किसी को किडनैप करके रखना आसान नहीं था। इंस्पेक्टर आकाश सोचने लगे इस तरह एक एक घर देखने में तो बहुत समय निकल जाएगा। उन्हें मंदिर का पता करना चाहिए। अगली बार उन्होंने जिस घर का दरवाज़ा खटखटाया वहाँ एक अधेड़ महिला मिली। वह साबुन नहीं चाहिए कह कर अंदर जा रही थी तभी इंस्पेक्टर आकाश ने पूछा,


"बहनजी यहाँ कोई मंदिर है।"


महिला ने गली के अंत में बने छोटे से मंदिर की तरफ इशारा कर दिया। वह मंदिर बहुत छोटा था। ऐसा नहीं लगता था कि वहाँ कोई पुजारी होगा जो सुबह शाम आरती करता होगा। उन्होंने महिला को रोकते हुए कहा,


"दरअसल बहनजी आज इस काम का मेरा पहला दिन है। मैं छोटी सी पूजा कराना चाहता था। कोई मंदिर हो जहाँ पुजारी मिल सके।"


उस महिला ने तुरंत कहा,


"तो बड़े मंदिर चले जाइए। बस आगे कुछ दूर जाकर ही है।"


कहते हुए उसने रास्ते की तरफ इशारा कर दिया। इंस्पेक्टर आकाश उसी दिशा में आगे बढ़ गए। करीब दो सौ मीटर जाने के बाद उन्हें मंदिर दिख गया। मंदिर से पूजा की थाली लिए हुए लोग निकल रहे थे। इंस्पेक्टर आकाश ने इधर उधर देखा। मंदिर के सामने कुछ दूर पर मकानों के ऊपर से एक मस्जिद की मीनारें दिख रही थीं। बीच में बेतरतीबी से बने करीब बीस पच्चीस मकान थे।


इंस्पेक्टर आकाश समझ गए कि वह सही जगह पहुँच गए हैं।