How to have healthy, beautiful, virtuous, long-lived and divine children? - 5 in Hindi Women Focused by Praveen kumrawat books and stories PDF | स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 5

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स्वस्थ, सुंदर, गुणवान, दीर्घायु-दिव्य संतान कैसे प्राप्त करे? - भाग 5

गर्भस्थ शिशु से बात करने का तरीका

शिशु को कहानी सुनाना :
★ "मेरे प्यारे शिशु! मैं तुम्हारी माँ हूँ, तुम अपने गर्भकाल का आनंद लो, गर्भवास के बाद तुम्हारे सुन्दर प्यारे मुखडे को मैं देख पाऊँगी, लो मैं तुम्हें बचपन का एक किस्सा सुनाती हूँ। आज मैं आपको अपने बचपन की एक कहानी सुनाती हूं। होली का दिन था हम सब बच्चे पूरे जोश में थे, पापा कहीं बाहर गए हुए थे. लेकिन ठीक होली के दिन उनका वापस आना हुआ, तो हमारा जोश चौगुना हो गया। ढेर सारी मिठाइयां और रंग लेकर आए। मेरी रंग में कोई रुचि नहीं होती, फिर भी छुटकी (तुम्हारी मौसी) ने मेरे चेहरे पर गुलाल लगा दिया। एक बार शुरुआत हो जाने के बाद हम सब ने खूब होली खेली। हमारे पड़ोस में एक गरीब परिवार था, हमने पहले उन्हें मिठाइयाँ दी और गुलाल लगाया, वो बहुत खुश हुए तुम्हारे नाना नानी को जब यह पता चला तो वो बहुत खुश हुए, फिर और मिठाइयां ले आए, हमने और भी मिठाइयां खाई. और होली को खूब एंजॉय किया।

★ आपको समझने के लिए यह एक उदाहरण के रूप में एक प्रसंग का वर्णन किया। ऐसे ही बचपन में सच में घटे हुए सनी सुखद प्रसंग आप अपने शिशु के साथ बाँट सकती हो और सुहाने बचपन का संदेश शिशु का दे सकती हो। ऊपर के उदाहरण में शिशु को अपनी खुशियाँ लोगों के साथ बांटने की सीख भी मिली और मजा भी आया।

★ ऐसे ही अपनी पाठशाला के. सीखने के. कुछ जीतने के घूमने के, परिवार के, कुछ पाने के, खुशियों के त्योहारों के जन्मदिन-विवाह आदि खुशनुमा समारोह के कई प्रसंगो में से एक-दो प्रसंग आप अपने शिशु को सुना सकते हो। इस प्रक्रिया में सुसंस्कारो के साथ-साथ आप एवं शिशु दोनो भी आनंदमय एवं सकारात्मक भावों से युक्त हो जाते हो।

पढनाः पढ़ना भी शिशु से बाते करने का एक अच्छा तरीका है। हम किसी को कहानी सुनाते है तो वह हमे बोलनी पड़ती है। उसी तरह हम कोई कहानी पढ़ रहे है तो गर्भस्थ शिशु वह सुन रहा होता है। यहाँ कहानी या अन्य सामग्री पढ़ते समय शिशु पर उस सामग्री में उपलब्ध सकारात्मक भावों का संस्कार हो जाता है। साथ ही यहाँ एकाग्रता का संस्कार, भाषा का संस्कार भी हो जाता है। इन्टरनेट पर और बाजार में ऐसा बहुत सा साहित्य उपलब्ध है यह सामग्री आप नौ माह तक थोडा-थोड़ा करके पढ़ सकती है. बस इतना ख्याल रखें कि पढ़ने के विषय धार्मिक (Religious), अध्यात्मिक (Spiritual). शैक्षिणिक (Educational) शौर्यता (Bravery). मातृ पितृ भक्ति (Mother Father Worship). ईश्वर भक्ति (God Worship), व्यक्तित्व विकास (Personality Development) आदि प्रेरणादायक, ज्ञानयुक्त व आनंदपूर्ण हो।

सुनना (Listening): शिशु से बात करने का एक और उत्तम तरीका है, सुनना। कोई हमें कुछ कह रहा है तो हम वह सुनते हैं। गर्भवती स्त्री कुछ सुन रही है तो उसके माध्यम से गर्भस्थ शिशु भी सुन रहा है। इस तरह यहाँ भी अप्रत्यक्ष रूप से माँ शिशु से बात ही कर रही है। वैसे तो दिनभर किसी न किसी माध्यम से गर्भवती कुछ न कुछ सुनती ही रहती है, पर जानबूझकर शांत चित्त में बैठकर शिशु के लिए सुनना यहीं महत्वपूर्ण है। इसके लिए कुछ अध्यात्मिक गीत संगीत का चुनाव हम कर सकते हैं। कुछ मन प्रसन्न करने वाले ज्ञानयुक्त प्रवचन या अन्य व्याख्यान हम चुन सकते है। गीत संगीत सुनते समय केवल संगीत का महत्य न येते हुए गीतों में उपयुक्त भावार्थ के पास प्यान दे। विशेष संगीत तथा वीणावादन, मुरली की ध्वनि, संतुर, सितार, बाँसुरी संगीत आप प्रतिदिन श्रवण कर सकती हैं। इस प्रकार के बहुत सारे ऑडियो ट्रैक डीवीडी में दिए हुए हैं।

विडियो/टीवी देखनाः टीवी या इन्टरनेट (You Tube) भी ज्ञान प्राप्ति का एक सुगम साधन है। अगर टीवी / इन्टरनेट पर केवल ज्ञान वर्धक कार्यक्रम देखें जाएँ तो यह भी शिशु के मन पर संस्कार डालने का अच्छा साधन हो सकता है, आध्यात्मिक (Spiritual), शैक्षिणिक (Educational), बच्चों के कार्यक्रम, सामान्य कॉमेडी धारावाहिक, उवअपमे इत्यादि कार्यक्रम देखे जा सकते है। पर यहाँ चेतावनी देने के जरुरत है कि किसी भी तरह से नकारात्मक, हिंसक, डरावने, उत्तेजक ईर्षया द्वेष को बढ़ाने वाले प्रोग्राम न देखें जाएँ।