Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

उजाले की ओर----संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों

आशा है आप सब कुशल हैं, त्योहारों का आनंद ले रहे हैं |

कल वाट्स एप पर एक संदेश मिला, सोचा कि आप सबके साथ साझा करने से स्वयं को नहीं रोक पाई जैसे हर बार मैं किसी ऐसी बात को मित्रों से साझा करना चाहती हूँ जो मुझे जीवनोपयोगी लगती है | यह बात भी सही व उपयोगी लगी लगी इसलिए इसे साझा करने का लोभ संवरण नहीं कर पाई कि 'यात्रा बहुत छोटी है|'

एक बुजुर्ग महिला बस में यात्रा कर रही थीं । अगले पड़ाव पर, एक मजबूत कद काठी की क्रोधी युवती बस में चढ़ गई और बूढ़ी औरत के बगल में बैठ गई। उस क्रोधी युवती ने अपने बैग से कई बार उन बुज़ुर्ग महिला को चोट पहुंचाई। वे कुछ नहीं बोलीं, न ही उन्होंने प्रत्युत्तर में कुछ ऐसा काम किया जो अशोभनीय हो |

जब युवती ने देखा कि बुजुर्ग महिला चुप हैं, तो उस ने उन से पूछा कि जब उसने उसे अपने बैग से उन्हें चोट पहुंचाई तो उन्होंने इस बात की शिकायत क्यों नहीं की?

बुज़ुर्ग महिला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया: "इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आपके बगल में मेरी यात्रा बहुत छोटी है, मैं अगले पड़ाव पर उतरने जा रही हूं।"

यह उत्तर सोने के अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है: "इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी यात्रा एक-साथ बहुत छोटी है।"

आलोक बाबू ने पूरे परिश्रम से अपनी गृहस्थी को सजाया, संवारा | बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी और जैसा होता है समय आने पर सबने अपने-अपने घरौंदे बसा लिए | आलोक बाबू और उनकी पत्नी सुमेधा जी को अपने जीवन की आखिरी उम्र पर पहुँचने में कोई असुविधा नहीं थी केवल इसके कि वे एकाकी महसूस करने लगे थे |

न जाने हम सब किस नगरी से आए हैं, न जाने किधर वापिस जाना है ? कभी लगता सब कुछ अपना, कभी लगता सब बेगाना है !

इस प्रकार की भावना हम सभी के दिलों में करवटें लेती रहती है फिर भी मन इतना चंचल है कि समझने के लिए तैयार ही नहीं होता कि भई, ये जो हमारा जीवन है यह इतना छोटा सा है कि इसमें किसी झगड़े, किसी विवाद का कोई स्थान ही नहीं है |

मित्रों! क्या कभी-कभी आप सबको भी ऐसा महसूस नहीं होता कि अभी तो सुबह हुई थी, सूर्य देवता ने अपने दर्शन देकर हमें रोशनी, उज्ज्वलता, ऊर्जा से भर दिया था | साँझ कहाँ हुई कुछ पता ही नहीं चला, पूरी दिनचर्या में हम अपनी दुविधाओं में ही भटकते रहे, अपने लिए रोटी, कपड़ा और मकान के झंझट में ही फंसे रहे और कब रात्रि आ गई, चंद्रमा ने हमें अपनी शीतलता से भर दिया और हम अपनी थकी देह को लेकर अगले दिन के लिए यूँ ही युद्ध करने के लिए अपने बिस्तर पर जा पड़े, कब रात गुज़र गई पता ही नहीं चला और फिर से वही सब पुनरावर्तन ----और सोचने के लिए बाध्य हो गए ;

सुबह होती है ,शाम होती है,उम्र यूँ ही तमाम होती है |

वास्तविकता तो यह है कि हम अपनी युवावस्था में न तो अपने शरीर पर और न ही मन पर काम कर पाते हैं इसलिए होता यह है कि उम्र जब दौड़ लगाती हुई भागने लगती है तब हमें ख्याल आता है अरे ! हमारे जीवन के इतने वर्ष व्यतीत हो गए और हमें पता ही नहीं चला | हम बहुत सी बातों में चूक जाते हैं, जो काम हम करना चाहते थे वे रह जाते हैं |

हम सब इस बात से वाकिफ़ हैं कि उम्र का नाज़ुक दौर सबके जीवन में आता है | जहाँ युवावस्था जीवन को जीने के लिए युद्ध करने का समय है,वहीं यह भी सोचने का समय है कि उम्र के उस दौर पर आकर हम अपना जीवन कैसे व्यतीत करेंगे जब हम अपने काम से निवृत्त हो जाएंगे ?हम शनै:शनै:शारीरिक रूप से अशक्त होने लगेंगे और जीवन हमारे सामने खड़ा होकर पूछेगा कि हमने अपने इस समय के लिए क्या कोई अपनी रुचि का काम सोचकर रखा है ? क्या कोई कला या साहित्य अथवा कोई भी और ऐसी वृत्ति के बारे में सोचकर अपना दायरा बनाया है? यदि हम सोचें कि यह क्या पागलपन है ? क्या हमारे पास अभी से भविष्य के बारे में सोचने का समय है?अभी हमें अपनी युवावस्था के सारे काम व जिम्मेदारियों को पूरा करना है न कि उस समय के बारे में सोचने बैठ जाना है जब हम अशक्त और अकेले पड़ने लगेंगे !

बिलकुल ठीक है आपका सोचना, युवावस्था के उत्तरदायित्व इतने अधिक व थकाने वाले होते हैं कि मनुष्य उस बारे व उस उम्र के बारे में न सोचना चाहता और न ही उसके पास समय होता है |पहले गृहस्थी बनाना फिर उसके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में ही हम चिड़चिड़ाने लगते हैं | उम्र के उस दौर तक आते-आते जिसकी बात मैं कर रही हूँ हम इतने थक जाते हैं कि मेरी ऊपर की बातें मात्र उपदेश लगने लगती हैं | मैं बात कर रही हूँ उस समय की जब हम अपने जीवन के,गृहस्थी के अधिकांश सभी कर्तव्यों को पूरा कर चुके होते हैं | अपने जीवन-साथी के साथ खूबसूरत दिनों को जीते हुए, बच्चों के बालपन में उनके साथ किलकारी भरते हुए, उन्हें बड़ा होते हुए देखते हुए, उनके बड़े हो जाने पर अपनी सारी जिम्मेदारियों को सुंदर ढंग से पूरा करते अपने जीवन -सफ़र में आनंदित हो चलते रहें | जब ये सब कार्यक्रम पूर्ण हो जाएं तबही अपने उन दिनों के बारे में भी सोचने की शुरुआत करें । कुछ ऐसी प्रवृत्ति जो अंत तक हमारे साथ बनी रहे |

जब जीवन का वह समय आ जाता है जब हम स्वयं को एकाकी महसूस करते हैं | तब तक हमारे बाल-गोपाल अपना दाना चुगकर फुर्र से उड़ जाते हैं जैसे हम उड़ आए थे | कभी कभी तो ऐसी स्थिति भी आ सकती है जब हम जहाँ से उड़कर आए थे वहाँ झाँककर वह भी देखने नहीं जा पाते कि अब उन बचे हुए लोगों के पास दाना भी है या नहीं जिन्हें हम छोड़कर अपनी जिम्मेदारियों के बहाने कहीं बाहर निकल आए थे | न जाने वे कैसे रहते होंगे? उनके पास समय बिताने के लिए क्या कोई ज़रिया होगा? तो क्या हमारा कभी ऐसा समय नहीं आएगा? इसके लिए यदि हम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करके प्रौढ़ावस्था में चैतन्य हो जाएं तो कार्य की निवृत्ति के बाद हम अकेले महसूस नहीं करेंगे | जैसे आलोक बाबू व उनकी पत्नी अकेलापन महसूस कर रहे हैं |

इंसान के पास बहुत सारे झरोखे होते हैं, किसी में से मित्रों के ठहाके आते हैं तो किसी में से परिवार की मुस्कान की सौंधी सुगंध ! इसके साथ ही यदि हम अपनी पसंद के किसी काम को विकसित कर लें तो जीवन को अंतिम पड़ाव में भी पूरे आनंद से जी सकते हैं | हर समय एक सी परिस्थिति नहीं रहतीं । जीवन हर पल बदलाव है और उसके साथ चलना हमारा दायित्व !

हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, दूसरों को क्षमा न करना, असंतोष रखना और बुरा व्यवहार दर्शाना आदि में खर्च करना, ऊर्जा की हास्यास्पद बर्बादी है।

क्या किसी ने हमारा दिल तोड़ा? शांत रहें।

यात्रा बहुत छोटी है।

क्या किसी ने हमें धोखा दिया, धमकाया, या अपमानित किया? आराम करें - तनावग्रस्त न हों

यात्रा बहुत छोटी है।

क्या किसी ने बिना वजह हमारा अपमान किया? शांत रहें। कोशिश करें,नज़रअंदाज़ करने की !।

यात्रा बहुत छोटी है।

क्या किसी पड़ोसी ने ऐसी टिप्पणी की जो हमें नागवार गुजरी पसंद नहीं आई? शांत रहें। उसकी ओर ध्यान मत दें । उसे माफ कर दें,वह इतना ही सोच सकता है ।

यात्रा बहुत छोटी है।

किसी ने हमें जो भी समस्या दी है, याद रखें कि हमारी यात्रा उसके साथ बहुत छोटी है।

हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता कोई नहीं जानता कि वह अपने पड़ाव पर कब पहुंचेगा?

हमारी एक-साथ यात्रा बहुत छोटी है।

आइए हम दोस्तों और परिवार की सराहना करें।

आइए हम आदरणीय, दयालु और क्षमाशील बनें।

 

ऐसा व्यवहार रखने से हम कृतज्ञता और आनंद से भर जाएंगे क्योंकि हम समझ गए हैं कि एक-दूसरे के साथ हमारी यात्रा बहुत छोटी है |

आइए अपनी मुस्कान सबके साथ बाँटें ....और मुस्काते हुए चेहरों के साथ हम भी कोशिश करें हर पल मु हम जानते हैं कि हमारी यात्रा बहुत छोटी है!

चलिए, मित्रों! अपने इस छोटे से जीवन को सरलता, सहजता, प्रेम से भर लें, हमारी यात्रा बहुत छोटी है, हमें अंतिम दिनों तक उसका आनंद लेना है, अपने लिए कोई न कोई हॉबी रखनी है जिसमें हम आराम से आनंदित होकर रह सकें |

दीपावली का उजास सदा बनाए रखने के लिए सकारात्मकता के दीप जलाए रखें, नकारात्मकता के अंधकार को न ओढ़ें, बिछाएं ---जैसे हमने उन बुज़ुर्ग महिला की बात जानी क्योंकि यात्रा बहुत छोटी है |

सभी मित्रों को जगमगाते, खिलखिलाते त्योहारों की अशेष बधाई व शुभकामनाएं |

ऊपर की बात पर गौर करेंगे तो महसूस करेंगे कि उन बस मेंबैठी हुई बुज़ुर्ग महिला की बात किनी सटीक है !!

चलिए, मिलते हैं फिर अगले रविवार को और अपने अनुभव साझा करते हैं, हम सब समझ गए हैं कि यात्रा बहुत छोटी है |

 

सस्नेह

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती