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अगले दिन अस्पताल की फॉर्र्मेलिटीज़ पूरी करते-करते और घर पहुँचते लगभग बारह बज गए थे| आशिमा बहन के साथ जाकर बच्चे की ज़रूरत का कुछ सामान, झूला आदि ले आई थी और दोनों बहनों ने मिलकर बुझे हुए मन से अनन्या के कमरे को कुछ सजाने की कोशिश की थी| यह सब करने के लिए उसकी सास यानि अनिकेत की मम्मी ने समझाया था| परिवार के सर्वस्व का इस प्रकार जाना बहुत ही पीड़ादायक था लेकिन परिवार में एक नए जीव का आगमन भी तो उल्लसित होने का एक बड़ा कारण था|
मन के कोनों में जब अँधेरा भरा हो तब उजाले की ओर जाना ही श्रेयस्कर होता है लेकिन अनन्या को कहाँ पता था कि उसको अभी कुछ और तमाशा देखना था, उसकी कुछ और परीक्षा बाकी थी|
दो दिनों से लगातार कोई न कोई आशी के कमरे में जाने की, उसे बाहर लाने की कोशिश कर रहा था| वह कुछ खा-पी भी नहीं रही थी| एक बार महाराज को फ़ोन करके उसने अपने कमरे में ही कॉफ़ी ज़रूर मँगवाई थी| महाराज कॉफ़ी के साथ कुछ स्नैक्स भी ले गए थे|
“बीबी! खा लेना, नहीं तो सेठ जी की आत्मा कष्ट पाएगी---”कमरे में ट्रे पकड़ाकर महाराज ने कहा था|
और कोई समय होता तो वह महाराज पर चिल्लाकर उन्हें भगा देती| महाराज को तो आज भी यही उम्मीद थी लेकिन न जाने कैसे आशी चुप बनी रही| इससे महाराज को कुछ साहस मिला और वह खुद को कहने से रोक नहीं सके;
“आ जाइए न, सब आपसे बात करना चाहते हैं---”आशी ने ट्रे ले ली तो महाराज के मन में एक आशा की किरण सी फूटी होगी--शायद---इसीलिए---
“नहीं महाराज, मैं अकेली रहना चाहती हूँ---“उसने दरवाज़े से ही उन्हें भेज दिया था|
महाराज ने बाहर आकर जब सबको बताया कि आशी बीबी ने बिना किसी नाराजगी के ट्रे रख ली थी | वह अभी अकेले रहना चाहती हैं| सबके मन में जैसे एक आस का दीप सा प्रज्वलित हो उठा| अब आशी बीबी एक नॉर्मल बेटी की तरह इस घर-परिवार को संभालें तो ? लेकिन इस छोटे से ‘तो’के पीछे कितने अगर-मगर छिपे थे जो किसी भी प्रकार से तब तक भूले नहीं जा सकते थे जब तक हर समस्या का समाधान नहीं निकलता|
उससे सब परिचित थे, उससे कोई काम करवाना या किसी काम के लिए बाध्य करने का तो सवाल ही नहीं उठता था| अब तो जो भी परिस्थिति होगी, मनु को ही संभालनी होगी| सबके मन में एक अजीब सी हलचल थी| बेशक आशी अपने पिता के सामने भी किसी बात को स्वीकार नहीं करती थी या यह सोचें कि अहं में ही भरी रहती थी लेकिन परिवार के बड़े की उपस्थिति महत्वपूर्ण थी| वह पद अब रिक्त हो चुका था|
घर पहुंचते ही मनु ने अनन्या व बेटी को सबके साथ मिलकर उसके कमरे में उसे व्यवस्थित करवाना चाहा लेकिन अनन्या ने नीचे मंदिर में नमन करके, ईश्वर को धन्यवाद देकर ही अपने कमरे में जाने की इच्छा पहले ही प्रगट कर दी थी| वैसे सबको पता ही था, उसकी दिनचर्या से सब वाकिफ़ थे| वह अभी अस्पताल से आई थी इसलिए उसने बच्ची के साथ मंदिर के बाहर से ही ईश्वर को नमन करके हर उस बात के लिए धन्यवाद प्रगट किया जो उसे मिला था|
अब अपने कमरे में जाने से पहले उसे अपने ‘गॉड फ़ादर’ के दर्शन करने व उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना था| वह अपनी मम्मी के साथ दीना जी के कमरे की ओर बढ़ी| बच्ची को अनन्या की मम्मी ने संभाल रखा था| पूरे वातावरण का सूनापन जैसे मन में उतर रहा था| अनन्या व उसकी मम्मी जिसका अर्थ यह समझ रहे थे कि वह सूनापन आशी के अचानक पहुँचने का परिणाम ही हो सकता है|
दीना जी का कमरा खुला था, अनन्या बड़े उत्साह से उस लंबे-चौड़े हॉल से कमरे में प्रवेश कर गई| उसके पीछे जैसे परिवार का एक काफ़िला था| उसने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया| आशी का कमरा लॉबी में पहले आता था जो सदा की तरह बंद था| किसी का भी ध्यान उस कमरे की ओर नहीं था| सब अनन्या को देख रहे थे| उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी लेकिन वह प्रसूता थी अभी मन और तन से कमज़ोर! सब जानते थे कि उसे जबरदस्त मानसिक आघात लगने वाला था| इसीलिए परिवार में रहने वालों का उसके पीछे एक काफिला सा बन गया था| |
कमरे में प्रवेश करते ही आशी के पैर थरथराने लगे| वह लड़खड़ाकर गिरने को हुई लेकिन मनु की सशक्त बाहों ने उसे संभाल लिया| अनन्या की मम्मी की गोदी में नवजात बच्ची थी जिसे आशिमा की सास ने उनसे ले लिया था| यह परिस्थिति स्वाभाविक थी| सब जानते थे कि वह आने ही वाली थी|
कमरे में एक लेस लगे सामान्य से मेज़पोश से ढकी मेज़ पर सेठ दीनानाथ की बड़ी सी मुस्कुराती हुई तस्वीर थी जिस पर ताज़े श्वेत फूलों की माला थी| उसी मेज़ से सटी वैसी ही दूसरी मेज़ थी जिस पर श्वेत मोगरों का भरा हुआ टोकरा रखा था| तस्वीर पर भी कुछ फूल चढ़ाए गए थे| वहीं नीचे बिछी श्वेत चादर पर कुछ जाने-अनजाने गमगीन चेहरे चुपचाप बैठे थे| कमरे में चारों ओर मोगरे की प्राकृतिक पावन सुगंध पसरी हुई थी|
यह सब क्या था? वह तस्वीर के पास जा पहुंची| उसे लगा मानो दीना जी का मुस्कुराता चेहरा उससे कुछ कह रहा है|
“बोलिए डैडी ---”वह तस्वीर के पास जा पहुंची|
“क्या है अनु, कहाँ हैं तुम्हारे डैडी—”मनु उसके पास आकर बोल उठा|
“वो क्या हैं, कैसे हँसकर बुला रहे हैं मुझे---”उसे तस्वीर की जगह दीना जी का मुस्कान भर चेहरा दिखाई दे रहा था|
“ध्यान से देखो, कहाँ हैं डैडी? उनकी तस्वीर नहीं देख रही क्या? ” मनु और दूसरे उपस्थित सब लोग जो वहाँ उपस्थित थे, उसे देखकर घबरा उठे थे| ये क्या हो रहा था इस लड़की को?
“नहीं, वो डैडी नहीं, उनकी तस्वीर है---”मनु की रुलाई फूट पड़ी| न जाने बेचारा कब से खुद को सबके सामने जब्त किए बैठ था| अनु की यह स्थिति देखकर वह अचानक बेबस सा हो गया|
अनन्या जैसे कुछ होश में आई और तस्वीर को आँखें फाड़कर देखती हुई चक्कर खाकर वहीं लुढ़क गई| उसे बहुत बड़ा सदमा लगा था, इस घर में और कौन था जो उसकी कठिन परिस्थिति के भँवर से उसे निकालता? हॉस्पिटल में भी वह उनके फ़ोन का इंतज़ार करती रही थी | उसके दिमाग में आया था कि शायद अपनी बेटी आशी को समझाने में उन्हें परेशानी होगी इसीलिए वे उसे फ़ोन नहीं कर पाए होंगे| वह मनु की, दीना अंकल की और सबकी स्थिति समझती तो थी ही| उसकी मम्मी की भी कमोबेश ऐसी ही हालत थी लेकिन वे संभल गईं थीं और उन्होंने लड़खड़ाते हुए दीवार का सहारा ले लिया था| अब वे उस दीवार से टिककर खड़ी थीं और फटी हुई आँखों से जीवन के इस मज़ाक को देख रही थीं। उनका मस्तिष्क शून्य था और दृष्टि उन लोगों पर फिसल रही थी जो अनन्या के चेहरे पर पानी के छींटे डालकर उसे होश में लाने का प्रयत्न करने के प्रयास में लगे हुए थे|