Tamas Jyoti - 48 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 48

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 52

    નિતુ : ૫૨ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુ અને કરુણા બંને મળેલા છે કે નહિ એ...

  • ભીતરમન - 57

    પૂજાની વાત સાંભળીને ત્યાં ઉપસ્થિત બધા જ લોકોએ તાળીઓના ગગડાટથ...

  • વિશ્વની ઉત્તમ પ્રેતકથાઓ

    બ્રિટનના એક ગ્રાઉન્ડમાં પ્રતિવર્ષ મૃત સૈનિકો પ્રેત રૂપે પ્રક...

  • ઈર્ષા

    ईर्ष्यी   घृणि  न  संतुष्टः  क्रोधिनो  नित्यशङ्कितः  | परभाग...

  • સિટાડેલ : હની બની

    સિટાડેલ : હની બની- રાકેશ ઠક્કર         નિર્દેશક રાજ એન્ડ ડિક...

Categories
Share

तमस ज्योति - 48

प्रकरण - ४८

अमिता बोली, "नमस्कार दर्शकों! एक बार फिर से आप सभी का स्वागत है। मेरे साथ है जानेमाने संगीतकार रोशनकुमारजी! ब्रेक पर जाने से पहले हमने देखा कि किस तरह रोशनजी के पिता सुधाकरजीने समीर को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद की। अब हम ये भी जानते है की जब रोशनजी अहमदाबाद पहुंचे तो वहा उनके साथ क्या हुआ? रोशनजी! अब आप हमें बताएं कि आगे आपके साथ क्या हुआ?"

रोशनकुमार अब आगे की बात बताने लगे। उन्होंने कहा, "मैं नीरव शुक्ला और अभिजीत जोशी का आभार व्यक्त करके अब मुंबई से अहमदाबाद आ चुका था। उन दोनोंने मुझे थोड़े दु:खी मन से बिदाई दी। क्योंकि हम लंबे समय से एकदूसरे के साथ काम कर रहे थे इसलिए मुझे जाते हुए देखकर वे थोड़ा दु:खी हो उठे थे। भविष्य में आगे बढ़ने के लिए मुझे मुंबई छोड़ना पड़ा क्योंकि मैं पहले ही निषाद मेहता का प्रस्ताव स्वीकार कर चुका था और इसीलिए मैं अब अहमदाबाद आ चुका था।"

मेरे घर पर मेरी बहन, मेरी भाभी और फातिमा उन तीनोंने मेरा बहुत अच्छे से स्वागत किया। उन सभीने मेरा सच्चे दिल से स्वागत किया और यह अनुभव करके मुझे भी बहुत ख़ुशी हुई। हालाँकि मैं उन सबके चेहरे की ख़ुशी देख तो नहीं सकता था लेकिन मैं इसे महसूस तो कर ही सकता था! मेरे आने के बाद घर में ख़ुशी का माहौल छा गया था। मैं काफी समय से घर से दूर ही रह रहा था इसलिए यहां अहमदाबाद आकर मैं बहुत ही खुशी का अनुभव कर रहा था।

फातिमा भी शायद मेरे आने से खुश थी लेकिन  हमें एहसास हुआ कि उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था और वो तो हमे तब पता चला जब उसने हमारा घर छोड़कर कहीं ओर जाकर रहने की बात की।

मैं घर में बैठा ही था कि फातिमा बोली, "अब जब रोशन इस घर में आ गया है तो आप सब मुझे यहां से जाने की इजाजत दे दीजिए। अब तक हम सब महिलाएं थी इसलिए मैंने आपकी इच्छा का सम्मान किया और यहां रहती थी। लेकिन अब मैं आपके परिवार के साथ यहां नहीं रह सकती। जब रोशन भी यहीं रहनेवाला हो और घर में कोई बड़ा बुजुर्ग भी न हो तो मुझे यहां रुकना ठीक नहीं लग रहा है। अब मैं यहां किराए पे कोई जगह ढूंढ लूंगी।"

यह सुनकर नीलिमा तुरंत बोली, "फातिमा! खबरदार! अगर आज के बाद तुमने कभी भी ऐसी कोई बात कही तो! और तुम यह क्यों कहती हो कि घर में कोई बड़ा नहीं है! मैं बैठी हूं न और मैं तुमसे और रोशन से तो बड़ी ही हूं!" नीलिमाने फातिमा को डाँट दिया।

दर्शिनीने भी नीलिमा की बात को बढ़ावा देते हुए कहा, "हां फातिमा! भाभी बिल्कुल सही कह रही है। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे यहां होने से मुझे और भाभी को कितनी मदद मिल जाती है। हम तुम्हें खोना नहीं चाहते है। तुम्हें यही रहना होगा हम सबके साथ। मम्मी-पापा भी चाहते हैं कि तुम यही हमारे ही साथ रहो। तुम्हें पता है कि मेरे मम्मी-पापाने हमेशा से तुम्हे अपने परिवार का सदस्य ही माना है। फिर तुम ऐसी बात क्यों कह रही हो? और रोशनभाई! आप अब तक चुप क्यों है? आप भी फातिमा को समझाओ न की वो ऐसी जाने की बाते न करे।"

दर्शिनीने मुझे फातिमा को समझाने के लिए कहा इसलिए अब मेरे पास उनकी बात मानने अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था। मैंने कहा, "हाँ फातिमा! दर्शिनी और नीलिमाभाभी दोनों बिल्कुल ठीक कह रही है। तुम यहीं रहो और हमारे पास वैसे भी इतना बड़ा चार बेडरूम का घर है तो फिर तुम्हें और किस बात की चिंता है? क्या तुम्हें हम सब पर भरोसा नहीं है?"

फातिमा बोली, "मुझे तुम सब पर तो पूरा भरोसा है, लेकिन...यह समाज! यह समाज क्या कहेगा? वो भी तो सोचो ज़रा।" 

फातिमा की यह बात सुनकर नीलिमा तुरंत बोल पड़ी, "क्या हमें समाज के लिए जीना है? या हमें अपनी मर्जी से जीना है? क्या समाज हमारी मदद के लिए आएगा? नहीं, कभी नहीं! समाज तो चार दिनों तक बाते करेगा और फिर चुप हो जाएगा जहां तक मैं मानती हूं और समझती हूं, हमारा एक-दूसरे के साथ रिश्ता इस समाज से तो कई ज्यादा मजबूत है। अगर हम अपने इस रिश्ते को एक पलड़े में रख दें और समाज को दूसरे पलड़े में रख दे तो हमारे रिश्ते का पलड़ा हमेशा भारी ही रहेगा। मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारे बीच का यह रिश्ता अधिक महत्वपूर्ण है और इसलिए मैं कहती हूं, अगर हमें साथ रहना है तो हम अपनी मर्जी से क्यों नहीं रहे? हम समाज की चिंता क्यों करे?”

मैंने भी कहा, "हाँ, फातिमा! नीलिमाभाभी बिल्कुल ठीक कह रही है।" मैं भी नीलिमाभाभी की बात से सहमत था।

फातिमा बोली, "अच्छा बाबा! ठीक है! मैं अब यहीं रुकूंगी। मैं हार गई और आप सब जीत गए। अब तो खुश है न आप सब? वैसे भी अब मुझमें आप सभी से और ज्यादा बहस करने की ताकत नहीं बची है। मैं बहस करने में आप सबको नहीं पहुंच पाऊंगी।"

फातिमाने अब हमसे बहस करने में अपनी हार मान ली और हम सबके बहुत समझाने के बाद वो हमारे घर पर रहने के लिए तैयार हो गई।

इस तरह हमने फातिमा को अपने साथ अपने घर में रहने के लिए मना लिया। पूरा घर बहुत ही खुशियों से भर गया था। अगर किसी की कमी थी तो वो थी मेरे मम्मी, पापा और रईश की। धीरे-धीरे से हम सब एक बार फिर अपने-अपने काम में व्यस्त हो गये। दर्शिनीने अपने कॉलेज जाना शुरू कर दिया था। कभी-कभी उसे समीर का फोन आ जाता था और वह उससे बात करके बहुत खुश होती थी। नीलिमा भी फिर से काम करने लगी थी। नीलिमा को आए दिन रईश के वीडियो कॉल आते रहते थे। उन दोनों की भी तो क्या किस्मत थी! अभी तो उनकी शादी को दो-तीन साल ही हुए थे कि दोनों को अलग-अलग रहना पड़ रहा था। लेकिन मोबाइलने उन दोनों को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वे एकदूसरे से कई मीलो दूर हैं। दोनों घंटों फोन पर बातें करते थे। नीलिमा रईश से अरमानी के बारे में ही बात करती थी। रईश अपनी सारी रिसर्च के बारे में नीलिमा से चर्चा करता था। कभी-कभी वह मुझसे भी बात कर लेता था।

फातिमा भी स्कूल के काम में काफी व्यस्त हो गई थी। अरमानी की देखभाल करना भी ज़रूरी था, इसलिए हमने अरमानी की देखभाल के लिए अब मीरां नाम की एक औरत को नेनी के रूप में रख लिया था।

समय बहुत तेजी से बीत रहा था। मैं भी अब अपनी जिंदगी के दूसरे पड़ाव पर पहुंच चुका था। आज मुझे निषाद मेहता के साथ पांच साल के कॉन्ट्राक्ट पर हस्ताक्षर करना था। मैं अब निषाद मेहता के कार्यालय में पहुँच चुका था।

(क्रमश:)