The Author Saroj Verma Follow Current Read सन्यासी -- भाग - 29 By Saroj Verma Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books दुष्ट चक्रात अडकलेला तो - भाग 3 साधिकाने केलेला खुलासा ऐकून सर्वांनाच धक्का बसतो तर, सुरज चक... नियती - भाग 48 भाग 48त्यावर मोहितने.... पाणावलेल्या डोळ्यांनी.... वरखाली मा... क्रीपि फाईलज - खरी दृष्य भीतीची ... - सीजन 1 - भाग 16 भाग 16 भुल्या 2 ! भुल्या पायाखालचा रस्ता लाल मातीचा होता... मी आणि माझे अहसास - 102 दिलबर दिलबरच्या डोळ्यातले संकेत समजत नाहीत, तो अनाड़ी आहे. स... तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 10 श्रेया मुख्याध्यापकांच्या केबिन चा दरवाजा ठोठावते प्रिंसिपल... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Saroj Verma in Hindi Moral Stories Total Episodes : 30 Share सन्यासी -- भाग - 29 591 1.6k इधर जब शिवनन्दन सिंह जी घर लौटे तो उन्हें देवराज और प्रयागराज ने सुहासिनी के बारे में सब बता दिया, सुहासिनी के बारें में सुनकर शिवनन्दन सिंह जी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने फौरन ही देवराज और प्रयागराज को आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो सके,सुहासिनी के लिए रिश्ता ढूढ़ो उसका ब्याह करके ही अब सबको चैन मिलेगा,इस लड़की ने तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी,कहीं का नहीं छोड़ा हमें.... और फिर क्या था देवराज और प्रयागराज अपने पिता के कहने पर सुहासिनी के लिए वर और घर दोनों की तलाश करने लगे..... लेकिन ये बात अभी घरवालों को पता नहीं थी कि सुहासिनी के लिए वर की तलाश की जा रही है, इसलिए सब निश्चिन्त थे और इधर सुहासिनी घर के भीतर नजरबन्द थी,उसके घर से बाहर निकलने में एकदम मनाही थी.. और उधर डाक्टर अरुण पाण्डेय सुहासिनी से मुलाकात ना हो पाने के कारण बहुत परेशान थे, उन्हें कुछ भी पता नहीं चल रहा था कि आखिर सुहासिनी के साथ क्या हो रहा है,जो कुछ भी हो रहा था इस वक्त, उसका जरा भी अन्देशा नहीं था डाक्टर अरुण को,उन्होंने तो सोचा था कि पढ़ा लिखा परिवार है सुहासिनी का तो उन लोगों की सोच भी संकुचित नहीं होगी,जब भी उन सभी को मेरे और सुहासिनी के रिश्ते के बारें में पता चलेगा तो वे सहजता से इस सम्बन्ध को स्वीकार कर लेगें,लेकिन यहाँ तो सब उनकी सोच के विपरीत हो गया था,इसलिए उन्हें सुहासिनी की इतनी चिन्ता हो रही थी,डाक्टर अरुण को डर था कि कहीं आननफानन में सुहासिनी का परिवार उसकी शादी ना तय कर दे और जिसका डाक्टर अरुण को डर था वही हुआ,आखिरकार सुहासिनी के बड़े भाई देवराज ने सुहासिनी के लिए एक वर ढूढ़ ही लिया.... इसके बाद देवराज प्रयागराज के साथ लड़केवालों के घर पहुँचा और उसने लड़का और उसका परिवार देखा, लड़का ठीकठाक था और पढ़ा लिखा भी था,लेकिन उसकी उम्र सुहासिनी से ज्यादा थी,उम्र ज्यादा होने के बावजूद भी देवराज ने रिश्ते के लिए हाँ कर दी और लड़केवालों से कहा कि वे भी कोई अच्छा सा दिन देखकर हमारे घर आकर लड़की देख लें,अब जब देवराज ने रिश्ता तय कर दिया तो इसके बाद उसने सबको घर में बताया कि उसने सुहासिनी के लिए लड़का देख लिया है,लड़केवाले भी सुहासिनी को देख जाएँ तो रिश्ते की बात आगें बढ़ाई जाएँ.... और जब ये बात सुहासिनी ने सुनी तो उसके तो जैसे होश ही उड़ गए,लेकिन वो आखिर अपने मन की बात कहे भी तो किस से कहे क्योंकि उसकी इस घर में अब सुनने वाला ही कोई ना था,उसके पास अब रोने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह गया था,जब उसकी अपनी माँ ही उसकी तकलीफ को नहीं समझना चाहती थी तो फिर कौन समझेगा उसकी तकलीफ को,वो इस शादी के लिए कतई राजी ना थी और फिर जब ये बात जयन्त को पता चली तो तब उसने सुहासिनी को ढ़ाढ़स बँधाते हुए कहा...."तू चिन्ता मत कर सुहासिनी! मेरे रहते हुए तेरी शादी उस लड़के से कभी नहीं होगी", जयन्त की बात से सुहासिनी को तसल्ली तो मिली थी लेकिन उसे अब भी भरोसा नहीं था,वो जानती थी कि उसके घरवाले कभी भी अरुण से उसका ब्याह नहीं होने देगें और फिर एक दिन लड़के वालों का संदेशा आया कि वे लोग सुहासिनी को देखने के लिए आ रहे हैं,फिर क्या था घर में उन सभी के स्वागत सत्कार की तैयारियांँ होने लगीं,लड़के वाले आएँ तो सुहासिनी की दोनों भाभियों सुरबाला और गोपाली ने उसे गुड़िया की तरह सजा धँजा कर लड़के वालों के सामने पेश कर दिया,सुहासिनी सुन्दर तो थी ही,साथ में सर्वगुणसम्पन्न भी थी,उस पर से अमीर बाप की इकलौती बेटी ,सो लड़के वालों ने फौरन ही सुहासिनी को पसन्द कर लिया और जाते जाते सगाई का मुहूर्त निकलवाने को भी कह दिया.... इधर जब नलिनी ने लड़के की उम्र देखी तो वो देवराज से बोली...."बेटा देव ! लड़का उम्र में सुहासिनी से बड़ा दिख रहा है","माँ ! इतना भी बड़ा नहीं है,कोई दस साल का अन्तर होगा सुहासिनी और उस लड़के के बीच",देवराज बोला...."बेटा! अभी तो रिश्ते की बात इतनी आगे नहीं बढ़ी है,तू कहीं कोई और लड़का क्यों नहीं देखता", नलिनी ने जयन्त से कहा..."माँ! बहुत जगह लड़का देखने के बाद मैंने इसे पसन्द किया था,सम्पन्न परिवार है,जमीन जायदाद भी खूब है और ले देकर दो भाई हैं,तुम्हें लड़के की उम्र से क्या लेना देना,ब्याह काज में लड़के की नहीं लड़की की उम्र देखी जाती है",देवराज ने अपनी माँ नलिनी से कहा.... उन दोनों की बातें जयन्त भी सुन रहा था तो वो देवराज से बोला...."तो बड़े भइया! जब तुम्हें सुहासिनी इतनी ही खटक रही है तो इससे अच्छा है कि तुम उसे भाड़ में झोंक दो,सारा किस्सा ही एक पल में खतम हो जाऐगा,ना सुहासिनी रहेगी और ना ही उसकी शादी की चिन्ता रहेगी""तू ज्यादा बकवास मत किया कर जयन्त! चुप ही रहा कर,एक तो मैंने रात दिन मेहनत करके लड़का खोजा है और तू उसमें मीन मेक निकाल रहा है"देवराज गुस्से से बोला..."हाँ! तुम्हारी दिन रात की मेहनत दिख तो रही है,तभी तो तुमने अपनी उम्र का लड़का ढूढ़ा है सुहासिनी के लिए",जयन्त गुस्से से बोला..."तो तू ही क्यों नहीं खोज लेता लड़का सुहासिनी के लिए",देवराज गुस्से से बोला...."वो तो सुहासिनी खोज ही चुकी है और मुझे भी वो पसन्द है,लेकिन तुम लोगों की आँखों पर तो जाति पाँति का चश्मा चढ़ा है,इसलिए तो इतना अच्छा वर सामने होते हुए भी तुम लोगों को दिखाई नहीं दे रहा, जयन्त देवराज से बोला..."तू अपनी नसीहत अपने पास ही रख,तेरा वश चले तो तू सारी दुनिया के नियम कानून ही बदल दे","हाँ! वही तो नहीं कर सकता मैं,काश !मैं ऐसा कर पाता",जयन्त बोला..."मेरी ये बात कान खोलकर सुन ले तू! सुहासिनी की शादी उसी लड़के से होगी,जिसे मैंने पसन्द किया है और वो लड़का बाबूजी को भी पसन्द है",देवराज सख्ती से बोला...."मैं कहाँ कुछ कह रहा हूँ,मैंने तो अब घर के किसी भी मामले में पड़ना बंद कर दिया है,तुम लोग अब सुहासिनी को पहाड़ से भी धक्का दे दोगे तो भी मैं अब कुछ ना कहूँगा,मैं तो सोच रहा हूँ कि मैं उस समय यहाँ रहूँगा ही नहीं जब सुहासिनी की शादी होगी",जयन्त बोला...."मतलब तू अपनी इकलौती बहन की शादी में नहीं रहेगा",देवराज ने जयन्त से पूछा..."मुझसे उसका कुम्हलाया हुआ चेहरा नहीं देखा जाऐगा,इसलिए मैंने सोचा है कि मैं उस वक्त यहाँ से चला जाऊँगा",जयन्त बोला..."ये तू ठीक नहीं कर रहा है जयन्त!",देवराज बोला...."बड़े भइया! क्या तुम ये ठीक कर रहे हो,जरा कभी मेरी बात को ठण्डे दिमाग़ से सोचना कि तुम क्या करने जा रहे हो,तुम किसी की खुशियाँ छीनने जा रहे हो,किसी की जिन्दगी बर्बाद करने जा रहे हो,किसी के चेहरे की मुस्कुराहट को छीनने जा रहे हो", और ऐसा कहकर जयन्त वहाँ से चला गया.....क्रमशः....सरोज वर्मा... ‹ Previous Chapterसन्यासी -- भाग - 28 › Next Chapter सन्यासी -- भाग - 30 Download Our App