Tilismi Kamal - 2 in Hindi Adventure Stories by Vikrant Kumar books and stories PDF | तिलिस्मी कमल - भाग 2

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तिलिस्मी कमल - भाग 2

इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से ही प्रकाशित भाग अवश्य पढ़ें 💐💐💐.... 


मूर्ति राजकुमार से बोली - " तुम्हे तिलिस्मी पत्थर क्यो चाहिए ? " 

राजकुमार धर्मवीर बोला - " उस तिलिस्मी पत्थर से एक तिलिस्मी द्वार खुलेगा जिसमे तिलिस्मी कमल रखा हुया । जिस कमल से मेरे पिता जी ठीक हो जाएंगे और वन देव भी जीवित हो जाएंगे जिन्हें मेरे पिता जी मार दिया है क्यो की वह उस वक्त शेर के रूप में थे । "

मूर्ति बोली - " वह तिलिस्मी पत्थर मेरे पास था लेकिन अब नही है उसको जादूगर शक्तिनाथ मुझसे छीन कर ले गया । "

राजकुमार बोला - " यह सब कैसे हुया क्या मुझे विस्तार से बताओगे ? "

पत्थर की मूर्ति बोली - " मेरा नाम शंकर है और मैं यहाँ अपनी पत्नी वैशाली के साथ रहता हूँ । बैशाली इतनी सुंदर थी कि जो भी देखता बस देखता ही रह जाता । उसके रूप के आगे अप्सराओ का रूप भी फीका पड़ जाता था ।

हम दोनों आराम से अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे कि एक रात गर्मी बहुत ज्यादा थी । तो हम दोनों यहाँ खुले आसमान के नीचे लेट गए । कुछ देर बाद ठंडी ठंडी पुरवाई हवा चली और हम दोनों गहरी नींद में सो गए ।

रात आधी बीत चुकी थी । सन्नाटे की चादर पूरे जंगल मे छाई हुई थी । आसमान पर अनगिनत तारे झिलमिला रहे थे । चाँद को चाँदनी पूरे जंगल मे फैली हुई थी ।ठंडी हवाएं बह रही थी । पूरे वातावरण में एक जादू से छाया था ।

तभी आकाश में एक तेज रोशनी का गोला प्रकट हुया । धीरे धीरे गोला बड़ा होने लगा । और उस में से एक पवनरथ प्रकट हुए जिसमे जादूगर शक्तिनाथ विराजमान था जो शायद अपने पवनरथ पर सैर करने निकला था ।

पवन रथ उड़ता हुया जब इस जंगल के ऊपर से गुजरा तो जादूगर शक्तिनाथ की नजर मेरे और मेरी पत्नी के ऊपर पड़ी । वैशाली को देखकर जादूगर शक्तिनाथ मंत्र मुग्ध हो गया ।

शक्तिनाथ ने अपना पवन रथ आकाश में रोका और खुद उड़ता हुआ हम दोनों के पास में आ गया । और सोई हुई वैशाली पर कोई मंत्र किया जिससे वह बेहोश हो गई । और वह जैसे ही वैशाली को उठाने लगा मेरी नींद खुल गयी ।

मैंने तुरन्त उठते ही जादूगर को एक जोरदार लात मारा । जिससे जादूगर कई फ़ीट दूर जा गिरा । अपने ऊपर हुए हमले से जादूगर गुस्सा हो गया ।  

उसने एक हाथ मे जादुई छड़ी ली हुई थी । उसने उस छड़ी से मेरे ऊपर एक शक्ति प्रहार किया लेकिन मुझे कुछ नही हुया तो वह आश्चर्य चकित हो गया । 

तभी मैंने अपने पास से तिलिस्मी पत्थर निकाला जिसके वजह से मैं जादूगर के प्रहार से बच गया था । मैंने तिलस्मी पत्थर को जादूगर की ओर कर दिया । तिलिस्मी पत्थर से एक किरण निकल कर जादूगर की ओर जाने लगी । जादूगर ने भी किरण के जवाब में अपने जादुई छड़ी से एक किरण अपने ओर बढ़ती हुई किरण पर छोड़ दी ।

जिससे दोनों किरणे आपस मे टकरा गई और एक जोर दार धमाका हुया उस धमाके में जादूगर शक्तिनाथ घायल हो गया । जादूगर अपने आप को हारते देख कर छल का सहारा लिया । और उसने अपने एक शिष्य को मेरे पीछे से मेरे हाथ पर वार करवाया दिया । जिससे मेरे हाथ से तिलिस्मी पत्थर गिर गया ।

पत्थर के गिरते ही जादूगर ने अपने छड़ी से मुझे पत्थर की मूर्ति बना दिया । पत्थर की मूर्ति बनते ही मैं कुछ नही कर सका और वह मेरे सामने से मेरी पत्नी को ले जाने लगा ।

तभी मेरा साथी कबूतर जिसे तुम मारने चाहते थे उसने जादूगर की एक आंख फोड़ दी जिससे वह गुस्से से तिलमिला कर कबूतर के ऊपर एक अग्नि किरण छोड़ दी । 

किरण लगते ही कबूतर बेहोश हो गया । और जमीन पर गिर गया । इसके बाद जादूगर वह तिलस्मी पत्थर और मेरी पत्नी को ले गया । और कबूतर के उस अग्नि किरण के कारण ऊपर के पंख जल गए जिसके कारण यह ज्यादा उड़ नही पाता है । और मेरे पास रहकर मेरा अकेलापन दूर करता है ।

और मैं तभी अपने असली रूप में आ सकूंगा जब वह तिलिस्मी पत्थर मुझे छू जाएगा । और मेरी पत्नी मुझे वापस मिल जाएगी ।

राजकुमार धर्मवीर पत्थर की मूर्ति बने शंकर से बोला - " तुम चिंता मत करो शंकर , अगर वैशाली जिंदा है और इसी दुनिया मे है तो उसे मैं हर हालत में ढूंढ कर ले आऊँगा । क्योकि मुझे भी तिलिस्मी पत्थर की जरूरत है जिसे केवल तुम ही दे सकते हो । "

इतना कहने के बाद राजकुमार धर्मवीर अपने घोड़े बादल की ओर बढ़ चला । 

" जाओ राजकुमार , भगवान तुम्हारी मदद करेगा । " - पत्थर की मूर्ति बने शंकर ने कहा ।

राजकुमार धर्मवीर अपने घोड़े पर सवार हुया और वैशाली के तलाश में निकल पड़ा । राजकुमार धर्मवीर वैशाली के तलाश में निकल तो पड़ा मगर उसे समझ मे नही आ रहा था कि वह वैशाली और जादूगर शक्तिनाथ को कहाँ तलाश करे ? 

राजकुमार कई दिनों तक भटकता रहा मगर वैशाली और जादूगर शक्तिनाथ का कुछ भी पता नही चल सका ।

घने जंगलों को पार करके एक दिन राजकुमार एक नगर में पहुंचा तो तब तक शाम हो चुकी थी । सूरज डूबने ही वाला था । पंछी चहचहाते हुए अपने अपने घोसलों में वापस लौट रहे थे । राजकुमार ने सोचा रात किसी सराय में बितानी चाहिए और सुबह उठकर आगे का सफर करना चाहिए ।

राजकुमार धर्मवीर एक सराय में पहुंचा । पहले उसने खाना खाया फिर रात भर के लिए एक कमरा किराए में ले लिया । खाना खाकर राजकुमार अपने कमरे में पहुंचा । कमरे में खिड़की के पास एक पलंग पर नर्म गद्देदार बिस्तर लगा हुआ था ।

राजकुमार बिस्तर पर लेट गया । और खिड़की से बाहर आसमान को देखने लगा ।थके होने के कारण शीघ्र ही नींद ने उसे आ घेरा और वह गहरी नींद में सो गया ।

रात के तीसरे पहर राजकुमार की नींद खुली और उसकी नजर खिड़की से बाहर आसमान पर पड़ी तो वह चौंक पड़ा ।एक तेज रोशनी की लकीर उसे आसमान में हिलती डुलती दिखाई दी ।

राजकुमार उठ कर बैठ गया और गौर से उस रोशनी को देखने लगा । रोशनी ऐसी थी जैसे आजकल सर्कस वाले रात के समय सर्च लाइट जलाते है । राजकुमार के मन में कौतूहल उठा की वह रोशनी कैसी है ?

राजकुमार अपने बिस्तर से उठा और कमरे से निकलकर सराये के मालिक के कमरे के दरवाजे के पास पहुंचा । उसने दरवाजे पर दस्तक दी । सराये के मालिक ने आंखे मलते हुए दरवाजा खोला ।

और ऊँघते हुए बोला - " कहिए , क्या आपको कोई परेशानी है या आपको कुछ चाहिए ? "

" नही , मुझे कोई परेशानी नही है और न ही मुझे कुछ चाहिए ।मैंने अभी अभी आसमान में एक तेज रोशनी की चमक देखी है । क्या आपको मालूम है वह क्या है और वह रोशनी कहा से आ रही है ? " - राजकुमार ने गर्म लहजे से पूछा ।

सराये के मालिक ने राजकुमार को ऊपर से नीचे तक गौर से देखा और कहा - " जनाब , आप परदेशी है , इसलिए आपको नही मालूम कि यह चमक एक जादूगर के जादू की है । वह हर रोज रात के तीसरे पहर अपनी जादुई शक्तियों को जगाता है ।" 

सराये के मालिक की बात सुनकर राजकुमार के कान खड़े हो गए । उसने जल्दी से पूछा - " वह जादूगर कहाँ रहता है और उसका नाम क्या है ? "

सराय का मालिक बोला - " इस नगर के आखिर में एक काला पहाड़ है। काला पहाड़ के उस पार से जादूगर के जादू नगर मयालू की सीमा शुरू हो जाती है । उस नगर में जो भी गया , कभी लौटकर नही आया । इसलिए वह नगर कैसा है और जादूगर शक्तिनाथ का महल कैसा है ? किसी को नही मालूम ? "

सराय के मालिक के मुँह से शक्तिनाथ का नाम सुनकर राजकुमार की बांछे खिल गई । उसने सराय के मालिक से और कोई सवाल नही पूछा और सीधे अपने कमरे में आकर सो गया । 

अगले दिन राजकुमार ने कुछ खाने पीने का सामान लिया और साथ ही भाला , ढाल , जंजीर , तीर कमान , मशाल आदि चीजे लेकर जादुई नगर मयालू की ओर चल पड़ा ।

राजकुमार धरमवीर काला पहाड़ को जब पार करके दूसरी ओर पहुंचा तब तक दोपहर हो चुकी थी ।

" यहाँ से घना जंगल शुरू हो गया है और यहाँ से जादुई नगर मयालू की सीमा भी शुरू हो गई है । मैं थोड़ी देर यही आराम करके थोड़ा ताजा हो लूं फिर आगे बढूंगा । आगे पता नही किन मुसीबतों का सामना करना पड़े । " 

यह सोचकर राजकुमार घोड़े से उतरा और घोड़े को एक पेड़ के छांव में बांध दिया । फिर खाने का सामान निकाल कर खुद भी पेड़ की छांव में बैठकर खाना खाने लगा ।

खाना खाने के बाद राजकुमार जैसे ही आराम करने के लेटा वैसे ही घौं घौं कि एक खौफनाक आवाज ने उसे चौंका दिया । " यह आवाज कैसी ? " राजकुमार हड़बड़ाकर उठ बैठा ।

पास के झाड़ियों में अचानक हलचल मच गई ।राजकुमार फुर्ती से उठ खड़ा हुया और अपनी तलवार निकाल ली । झाड़ियों को चीरती हुई वह आकृति सामने आई तो राजकुमार की आंखे खौफ से फटी की फटी रह गई ।

दस फ़ीट ऊंचे और बारह फ़ीट लंबे उस जीव की आठ फ़ीट लंबी जुबान और पूँछ थी । जीव की पूँछ हवा में लहराई और सड़ाक से राजकुमार के शरीर से आ टकराई । राजकुमार उछलकर दूर जा गिरा ।

राजकुमार अभी उठने की कोशिश ही कर रहा था कि जीव के जुबान ने राजकुमार को लपेट लिया और उसे निगलने के लिए अपने मुह की तरफ ले जाने लगा ।

राजकुमार ने तुरन्त ही तलवार से उस जीव की दोनों आंखे फोड़ दी । फिर तलवार का एक भरपूर वॉर जीव के जुबान पर किया । जीव की जुबान कट गई । राजकुमार जमीन पर आ गिरा और अगले ही क्षण जीव वहां से गायब हो गया ।

राजकुमार आश्चर्य चकित होते हुए बोला - " अरे ! कहाँ गया वह अजूबा । जरूर जादूगर शक्तिनाथ का मायावी जीव था । मुझे जल्द से जल्द उसके महल तक पहुंचना चाहिए । "

इतने कहने के बाद राजकुमार धरमवीर घोड़े पर सवार हुआ और आगे चल पड़ा ।

     
                      
                            क्रमशः .................💐💐💐💐💐💐



सभी पाठकों को धन्यवाद । जो अपना कीमती समय निकाल कर यह भाग पढा । आगे का क्या होता है यह सब जानने के लिए मेरे अगले भाग को पढ़े । जैसे ही मैं अगला भाग प्रकाशित करू आप तक तुरन्त पहुंच जाए । इसलिए मुझे फॉलो करें ।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


विक्रांत कुमार
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