Ravi ki Laharen - 10 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 10

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

रावी की लहरें - भाग 10

रमिया

 

इस बार हम लोगों ने राष्ट्रीय सेवा योजना का शिविर रतनपुरा गाँव में लगाने का फैसला किया था। रतनपुरा शहर से दस किलोमीटर दूर एक पिछड़ा हुआ गाँव है । गाँव में अनपढ़ लोगों की तादाद ज्यादा है। 

बस सुबह ही लड़कों को यहां छोड़ गई थी। मैं और शर्मा जी बाद में आये थे। हम लोगों को दस दिन तक लड़कों के साथ ही रहना था। आज शिविर का पहला दिन था। दिन भर लड़के काम में लगे रहे थे, इसलिए खाना खाने के बाद सब जल्दी ही सो गए थे। 

रात के ग्यारह बज रहे थे। अंधेरे की चादर चारों ओर फैली हुई थी । सारे लोग बेखबर सो रहे थे। सब तरफ खामोशी थी। नई जगह होने के कारण आदत के मुताबिक मुझे नींद नहीं आ रही थी । मैं चारपाई पर लेटा करबट बदल रहा था। 

जब काफी रात बीत गई तो मैं सोने की कोशिश करने लगा। मेरी आँखों में नींद अभी आई ही थी कि किसी स्त्री के रोने की आवाज सुनकर मैं चौंक पड़ा। मैं उठकर बैठ गया। कोई स्त्री बड़े कातर स्वर में रो रही थी। थोड़ी देर तक खामोशी रही। फिर उसी स्त्री के गाने की आवाज सुनाई पड़ी। वह बड़े दर्द भरे स्वर में गा रही थी - 'छिटकी चंदनिया, पिया नहि आए' गीत के उतार-चढ़ाव में विरह की पीड़ा कूट-कूट कर भरी हुई थी। मेरा रोम-रोम सिहर उठा । 

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्त्री को ऐसा कौन - सा दुःख जो यह इस तरह विलख रही है । यही सब सोचते-सोचते कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला। 

सुबह मैं देर से सोकर उठा । मेरे मन में अभी तक रात वाली बात गूंज रही थी । मेरे मन में उस स्त्री के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। इसलिए नहाने - धोने के बाद मैं उसके बारे में पता लगाने के लिए चल पड़ा। गाँव के प्रधान जी से परिचय हो गया था, इसलिए मैं सीधा उन्हीं के घर पहुँच गया। 

यह संयोग ही था कि प्रधान जी घर पर ही मिल गए। चाय वगैरह पीने के बाद मैंने प्रधान जी से रात की पूरी घटना बता कर उस स्त्री के बारे में पूछा । प्रधान जी ने गहरी श्वांस ली, फिर वे बोले - वह एक पगली औरत है। उसकी कहानी बड़ी दर्दनाक है। बताते हैं कि वह पड़ोस के गाँव कंचनपुर के मुखिया चन्द्रपाल की लड़की थी। चन्द्रपाल बड़े धनी आदमी थे। आस-पास के गाँवों में उनकी धाक थी। 

रमिया उनकी इकलौती सन्तान थी । जब रमिया चार-पाँच साल की थी, तभी उसकी माँ मर गई । मुखिया ने ही रमिया को पाला पोसा। मुखिया उसे बहुत चाहते थे। उन्होंने रमिया को कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी । रमिया देखने-भालने में बहुत सुन्दर थी । उसका स्वभाव भी बहुत अच्छा था। बस अगर कोई उसमें कमी थी तो यह कि वह पढ़ना-लिखना नहीं जानती थी। ज्यादा लाड़-प्यार के कारण मुखिया ने उसे स्कूल नहीं भेजा था। रमिया को कोई कमी नहीं थी। खुशियां उसके चारों ओर बिखरी पड़ी थी। 

मगर विधि के लिखे कौन टाल सकता है अभी रमिया सोलह साल की ही थी कि उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। पुरानी रंजिश के कारण किसी ने मुखिया का कत्ल कर दिया। उनकी लाश गन्ने के खेत में पड़ी मिली थी। 

अब रमिया बिल्कुल अनाथ हो गई। पिता के गम में कई दिन तक वह बेहोश रही । नाते-रिश्तेदार इकट्ठे हो गए। सबने मिलकर रमिया की शादी दूर की एक रिश्तेदारी में कर दी। 

रमिया ससुराल चली गई । ससुराल वाले धन के लोभी निकले। उनकी नजर रमिया की जायदाद पर थी। ससुराल वालों ने धीरे-धीरे रमिया को बहला-फुसलाकर रमिया की सारी जमीन जायदाद अपने नाम करा ली। अनपढ़ रमिया अनजाने में ही जमीन जायदाद के सब कागजों पर पति के कहने पर अंगूठा लगाती रही। धीरे-धीरे रमिया की सारी जायदाद पर ससुराल वालों का कब्जा हो गया। 

ससुराल वालों का मकसद पूरा हो चुका था । रमिया का सब कुछ हथियाने के बाद ससुराल वालों ने ठोकर मार कर रमिया को घर से निकाल दिया। रमिया पति के पैर पकड़कर बहुत रोई गिड़ - गिड़ाई मगर पति का दिल भी नहीं पसीजा। 

इस हादसे ने रमिया को पागल कर दिया। तब से वह इसी तरह भटकती फिरती है। आठ-दस महीने पहले घूमती-फिरती वह यहां आ गई थी। तब से यही है। कोई कुछ खाने को दे देता है तो खा लेती है, नहीं तो भूखी ही सो जाती है। 

रमिया को अपने पति से बहुत प्यार था। अभी भी उसे विश्वास है कि एक दिन वह उसे लेने जरूर आएगा। इसलिए वह उसी के इंतजार में गाती रहती है, 'छिटकी चंदनियां, पिया नहीं आए।' बस यही उसकी कहानी है साहब। यह कहकर प्रधान जी चुप हो गए थे। 

रमिया की कहानी सुनकर मेरा मन पीड़ा से भर उठा। मैं सोचने लगा कि गांवों में आज भी न जाने ऐसी कितनी रमिया हैं, जो अनपढ़ होने के कारण गलत सलत कागजों पर अंगूठा लगाकर अपनी जिंदगी चौपट कर लेती है। मैंने निश्चय कर लिया कि कम से कम इस गांव में तो पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम करके ही जाऊंगा। 

दूसरे दिन मैंने प्रधान की चौपाल पर गांव के खास-खास लोगों को इकट्ठा किया। मैंने उन्हें बताया - "जमाना तेजी से बदल रहा है । आजकल के जमाने में आदमी को कम से कम पढ़ना-लिखना तो आना ही चाहिए। सरकार इसीलिए गांव साक्षरता कार्यक्रम चला रही है। आप लोग भी अपने गांव में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खुलवाए, जिससे वहां गांव के अनपढ़ लोग पढ़ना-लिखना सीख सकें। बिना पढ़े-लिखे लोगों का ही कदम-कदम पर शोषण होता है। मैंने उन्हें रमिया का उदाहरण भी दिया। 

लोग मेरी बात से प्रभावित हुए। लोगों के जोर देने से गांव का ही एक लड़का हरपाल व प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलाने के लिए तैयार हो गया। अब महिला केंद्र की समस्या थी। गांव में एक ही महिला पढ़ी-लिखी थी । प्रधान के समझाने पर वह भी महिला केंद्र चलाने के लिए तैयार हो गई । मैंने दोनों को प्रौढ़ शिक्षा कार्यालय ले जाकर केंद्र चलाने का सामान दिला दिया । 

तीसरे दिन से प्रधान की चौपाल पर दोनों प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलने लगे । मैं अपनी सफलता पर खुश था । मैं सोच रहा था कि अब इस गांव की किसी रमिया या रामदास को किसी कागज पर अंगूठा नहीं लगाना पड़ेगा।