Ravi ki Laharen - 9 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | रावी की लहरें - भाग 9

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रावी की लहरें - भाग 9

चौधरी काका का सपना

 

चौधरी काका की पूरे गाँव में तूती बोलती थी । जो बात उन्होंने कह दी वह पत्थर की लकीर हो गई। किसी में हिम्मत नहीं थी उनकी बात काटने की । वह खानदानी रईस थे। कई सौ बीघे खेती थी उनके पास । गाँव में ही उन्होंने सड़क किनारे चीनी मिल लगा रखी थी। गाँव के ज्यादातर पुरुष उनके खेतों या मिल में काम करते थे। कई एकड़ में बनी उनकी हवेली आस - पास के गाँव में बड़ी हवेली के नाम से जानी जाती थी । 

चौधरी काका का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावी था। लम्बी चौड़ी कद काठी, गोरा रंग और बड़ी-बड़ी मूंछे, ऊपर से कड़क दिखाने वाले काका अन्दर से बड़े रहम दिल थे। हर एक के सुख-दुःख में शामिल होना और मदद करना उनकी आदत थी। गाँव में किसी की लड़की शादी हो और चौधरी काका वहां मौजूद न हों यह नहीं हो सकता था । इसलिए गाँव का हर आदमी उनकी दिल से इज्जत करता था। चौधरी काका के व्यक्तित्व में अगर कोई कमी थी तो वह थी उनका अनपढ़ होना । लाड़ प्यार में माँ - बाप ने उन्हें स्कूल नहीं भेजा और बाद में चौधरी काका को भी कभी पढ़ाई की जरूरत महसूस नहीं हुई । 

चौधरी काका भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे मगर स्मरण शक्ति बड़ी अच्छी थी। रामायण की दर्जनों चौपाइयां और गीता के कई श्लोक उन्होंने सुनकर याद कर लिए थे और वे बड़ा लय और स्वर के साथ उन्हें गाते थे। अंग्रेजी के कई शब्दों का भी वह धड़ल्ले से प्रयोग करते थे। इसलिए उनके सम्पर्क में आने वाले को यह अहसास नहीं होता था कि चौधरी काका अनपढ़ हैं। 

गाँव में प्राइमरी स्कूल था मगर चौधरी काका उसमें कोई दिलचस्पी नहीं लेते थे जिससे स्कूल की हालत बड़ी खस्ता थी । विद्यालय का भवन जर्जर हालात में था इसलिए बच्चे बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे। विद्यालय में तैनात अध्यापकों ने चौधरी काका से मदद की गुहार लगाई थी मगर चौधरी काका पढ़ाई पर किए जाने वाले खर्च को फिजूल खर्ची मानते थे इसलिए उन्होंने अध्यापकों के निवेदन पर कोई गौर नहीं किया था। 

गाँव में महिलाओं और पुरुषों के पढ़ाने के लिए दो प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खुले थे मगर चौधरी काका की उपेक्षा के कारण वे केन्द्र चल नहीं पाये थे । 

जाड़े का समय था। शाम का धुंधलका चारों ओर छा गया था। चौधरी काका की चौपाल पर अलाव जल रहा था। अलाव के चारों ओर बैठे गाँव के लोग आग ताप रहे थे। चौधरी काका तख्त पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। बीच-बीच में कहानी किस्सों का दौर भी चल रहा था। 

रात धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। एक-एक करके लोग अपने-अपने घरों को चले गये थे। अलाव की आग भी अब ठण्डी पड़ चुकी थी । चौधरी काका ने हुक्के को आखिरी बार गुड़गुड़ाया और इसके बाद वे बिस्तर पर जाकर लेट गए। 

चौधरी काका बिस्तर पर लेटे हुए थे। उन्होंने रजाई को चारों ओर से अच्छी तरह से ढक लिया वे सोने ही वाले थे कि उन्हें कुछ आहट सुनाई दी। चौधरी काका ने आँखें खोलकर देखा। उनके बिस्तर के चारों ओर चार लम्बे चौड़े आदमी खड़े हुए थे । उनका पूरा शरीर काले लवादे में ढका हुआ था। चौधरी काका बड़ी हिम्मत वाले थे । उनको देखकर उन्हें हैरत तो हुई मगर वे घबराए बिल्कुल नहीं। उन्होंने उन लोगों से कड़क कर पूछा, “तुम लोग कौन हो और यहां मेरे पलंग के पास क्यों खड़े हो?" 

उनमें से एक काले लवादे वाला व्यक्ति बोला, “हम लोग यमदूत हैं ओर तुम्हें यमलोक ले जाने आए हैं।" 

"क्या?" चौधरी काका का मुँह आश्चर्य से खुले का खुला रह गया। वे हक्का-बक्का थे कि मौत उनके इतने नजदीक है और उन्हें इसकी भनक भी नहीं लगी थी। 

तभी यमदूत का गम्भीर स्वर फिर गूँजा, “ यमलोक चलने को तैयार हो जाओ। अब तुम्हारा इस संसार से विदा होने का वक्त आ गया है।" 

चौधरी काका ने यमदूतों से बहुत अनुनय-विनय की कि अभी हमें यमलोक मत ले जाओ, हमें यहां अपनी कई जिम्मेदारियां पूरी करनी है। मगर यमदूतों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा और वे चौधरी काका को कंधों पर उठाकर चल दिए। 

चौधरी काका का आश्चर्य उस समय चरम सीमा पर पहुँच गया जब उन्होंने देखा कि हवेली से बाहर निकलते ही यमदूत उन्हें उठाकर हवा में उड़ने लगे। कई घण्टे की यात्रा के बाद यमदूतों ने उन्हें एक स्थान पर ले जाकर पटक दिया। उनमें से एक यमदूत जो शायद उनका सरदार प्रतीत होता था, रूआबदार आवाज में बोला- “उठकर खड़े हो जाओ प्राणी । यहाँ से तुम्हें ठीक पूर्व दिशा की ओर तीन किलोमीटर तक चलना है। वहाँ पहुँचकर तुम्हें दो बड़े द्वार दिखाई देंगें। उसमें एक स्वर्ग का द्वार है और दूसरा नर्क का । स्वर्ग के द्वार पर मोटे-मोटे अक्षरों में स्वर्ग और नर्क के द्वार पर नर्क लिखा हुआ है । तुम्हें किस द्वार में प्रवेश करना है इसका निर्णय तुम्हें स्वयं करना होगा। फिर यमदूत ने चेतावनी दी, ध्यान रहे एक बार किसी द्वार में प्रवेश करने के बाद तुम उसे बदल नहीं सकोगे, यदि तुमने ऐसा करने का प्रयास किया तो तुम प्रेत बन जाओगे और तुम्हारी अतृप्त आत्मा पृथ्वीलोक पर भटकती रहेगी। इसके बाद यमदूत वहां से अदृश्य हो गये । 

चौधरी काका काफी देर तक बुत बने खड़े रहे फिर वे पूर्व दिशा की ओर चल दिए। दो घन्टे की कष्टप्रद यात्रा के बाद चौधरी काका उस स्थान पर पहुँच गये जहां दो विशाल द्वार बने हुए थे । वे ही शायद स्वर्ग और नर्क के द्वार थे, उन पर कुछ लिखा हुआ था मगर चौधरी काका उसे पढ़ने में असमर्थ थे क्योंकि वे अनपढ़ थे। जिन्दगी में पहली बार उन्हें शिक्षा का महत्व समझ में आया। उन्होंने सोचा कि अगर वे पढ़े-लिखे होते तो आसानी से स्वर्ग के द्वार को पहचान कर स्वर्ग में प्रवेश कर सकते थे, मगर अब पछताने से क्या हो सकता था । 

कुछ देर तक वह वहां ठिठके से खड़े रहे फिर वे एक द्वार में प्रवेश कर गए और आगे बढ़ने लगे । लगभग आधा किलोमीटर तक मार्ग समतल था मगर उसके आगे मार्ग बड़ा उबड़-खाबड़ था। जहां-तहां नुकीले पत्थर और कांटे बिखरे हुए थे। कुछ दूर आगे चलने में ही नुकीले पत्थर और कांटों ने चौधरी काका के पैरों को घायल कर दिया। वह पीडा से कराह उठे । अब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ था। अनपढ़ होने के कारण वे शायद नर्क के द्वार में घुस आए थे। उन्होंने वापस जाना चाहा मगर तभी उनके मस्तिष्क में यमदूत की चेतावनी गूंज गई - "किसी द्वार में एक बार घुस जाने के बाद तुम वापस नहीं लौट सकते। अगर तुमने ऐसा किया तो तुम प्रेत आत्मा बन जाओगे ।" वह भय से सिहर उठे। वह हिम्मत करके फिर आगे बढ़ने लगे । 

आगे का नजारा और भी हैरतअंगेज कर देने वाला था। रास्ते के दोनों ओर बबूल के कांटेदार पेड़ खड़े थे। उनकी डालों पर आदमी उल्टे लटके हुए थे। नर्क के सिपाही उन पर कोड़े बरसा रहे थे। वे रो रहे थे, चीख रहे थे, दया की भीख मांग रहे थे मगर उनकी गुहार सुनने वाला वहां कोई नहीं था । 

चौधरी काका की की हिम्मत जवाब देने लगी। उन्होंने सोचा कि वह थोड़ी देर रुक जाएं मगर तभी यमदूत की चेतावनी फिर उनके कानों में गूंज गई। रास्ते में कहीं ठहरना नहीं। अगर तुम रुके तो तुम तुरन्त जलकर भस्म हो जाओगे। भय की एक सिहरन सी उनके पूरे शरीर में दौड़ गई और उनके पैर खुद व खुद आगे बढ़ने लगे। 

आगे रास्ते के दोनों ओर दूर-दूर तक तालाब फैला हुआ था । उसमें गंदा पानी भरा हुआ था। उसमें जगह-जगह काई और घास तैर रही थी और कीड़े भी बजबजा रहे थे। चौधरी काका यह देखकर हैरान रह गए कि हजारों स्त्री - पुरुष उसमें नहा रहे थे। बच्चे उसी पानी को एक-दूसरे पर उछाल रहे थे उन्हें भी अब यहां का पानी पीना पड़ेगा यह सोचकर चौधरी काका की रुह कांप गई।  

वे और आगे बढ़े। आगे एक ऊँची ढलावदार पहाड़ी थी। हजारों स्त्री - पुरुष सिर पर तसले में कंकड़ रखे हुए पहाड़ी पर चढ़ रहे थे । उनके शरीर सूखकर हड्डियों के ढांचे बन गए थे। मगर फिर भी वह काम में जुटे हुए थे। अगर एक क्षण के लिए भी कोई रुक जाता तो वहां तैनात नर्क के सिपाही उस पर कोड़े बरसाने लगते। उनके पूरे शरीर से पसीना टपक रहा था । पहाड़ी के दूसरी ओर गहरी खाई थी जिसमें यह लोग कंकड़-पत्थर डालकर उसे समतल करने के काम में लगे हुए थे। आगे आने वाली विपत्ति की कल्पना मात्र से ही चौधरी काका की रुह कांप उठी । 

इससे पहले कि चौधरी काका आगे बढ़ते चार सिपाही आए और उन्होंने चौधरी काका को पकड़कर ऊपर उठा लिया। वे चौधरी काका को लेकर उस ढलवां पहाड़ी पर चढ़ने लगे। ऊपर पहुँचकर उन्होंने चौधरी काका को पहाड़ी से नीचे गहरी खाई में फेंक दिया। चौधरी काका की चीख निकल गई। 

चौधरी काका जब जागे तो वह अपने बिस्तर से नीचे जमीन पर पड़े थे । उनकी चीख सुनकर काकी उनके लड़के और और बहुएं आ गए थे और काका के चारों ओर खड़े थे। 

काकी बोली. “ नींद में क्या सपना देख लिया जो इतनी जो से चीखे कि पूरा घर जाग गया। 

तब तक सुबह हो चुकी थी। काफी देर तक चौधरी काका यूं ही सहमे से पड़े रहे फिर कुछ निश्चय कर वे उठकर बैठ गए। उन्होंने अपने सपने के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। उन्होंने अपने बड़े बेटे से कहा “नौकरों को भेज कर पूरे गाँव में डुगडुगी पिटवा दो कि गाँव का कोई आदमी या औरत काम पर नहीं जाए। सारे लोग यहीं अहाते में दस बजे जमा हो जाएं। मैं उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ।" बेटे ने सहमति में सिर हिला दिया। परिवार के सारे लोग हैरान थे मगर चौधरी काका से कुछ पूछने की हिम्मत किसी में नहीं थी। 

चौधरी काका के अहाते को पूरा गाँव बड़े अहाते के नाम से जानता था । वह इतना बड़ा था कि उसमें एक हजार लोग आसानी से बैठ सकते थे। नौ बजे से ही लोग अहाते में जमा होना शुरु हो गये । दस बजते-बजते अहाता गाँव के स्त्री-पुरुष और बच्चों से पूरी तरह भर गया । 

ठीक दस बजे चौधरी काका आकर तख्त पर बैठ गये । तख्त के दायीं ओर पड़ी चारपाई पर उन्होंने गाँव के स्कूल के अध्यापकों को बैठाया । बायीं ओर पड़ी चारपाई पर गाँव के बुजुर्ग बैठे हुए थे। सब लोग उत्सुकता से काका की ओर देख रहे थे। 

काका ने खंखार कर गला साफ किया और सब लोगों को रात में देखे सपने के बारे में विस्तार से बताया। सब लोग बड़े अचरज से काका की बातों को सुन रहे थे। फिर काका बोले - "अब मैं शिक्षा के महत्व को समझा गया हूँ । इसलिए अब मैं गाँव में किसी को भी अनपढ़ नहीं रहने दूँगा । कल से गाँव का हर बच्चा स्कूल में पढ़ने जायेगा। स्कूल अब पुरानी जर्जर इमारत में नहीं चलेगा। मन्दिर के पास मेरा जो खेत है उसमें स्कूल की नई इमारत बनेगी। जब तक इमारत नहीं बन जाती, तब तक स्कूल मेरी हवेली के पीछे वाले हिस्से में चलेगा। गाँव की महिलाएं दोपहर में और पुरुष रात्रि में दो घंटे पढ़ाई करेंगे। जो लोग नियमित रूप से पढ़ने जायेंगे उन्हें साल के अन्त में एक-एक बोरी अनाज मैं मुफ्त में दूंगा। जो बच्चा अपनी कक्षा में पहले स्थान पर आयेगा उसकी आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा मैं उठाऊँगा । किसी की पढ़ाई में पैसे की कमी आड़े नहीं आयेगी इसका मैं वायदा करता हूँ। फिर वे अध्यापकों को सम्बोधित करते हुए बोले गाँव के सारे बच्चे पढ़ाई में रुचि लेने लगे, यह माहौल आप लोगों को बनाना होगा। अध्यापकों ने खुशी-खुशी सहमति में सिर हिला दिया। सभी लोग बहुत खुश थे। चौधरी काका ने सभी को चार-चार लड्डू बटवाए। लोग बड़े उत्साह के साथ अपने-अपने घरों को चले गये । 

चौधरी काका के सपने को आज पूरे दो साल हो गए। चौधरी काका की देखरेख अध्यापकों की लगन और गाँव वालों के उत्साह ने इस गाँव की तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया था। उनका गाँव जनपद का पहला शत प्रतिशत साक्षरता वाला गाँव बन गया था। आज का दिन करमपुरा गाँव वालों के लिए एक यादगार दिन था। जिले के जिला अधिकारी खुद गाँव पहुँचकर चौधरी काका को गाँव के शत प्रतिशत साक्षरता का प्रमाण- पत्र सौंपने वाले थे। गाँव के सारे लोग विद्यालय के नये भवन में जमा थे। काका मालाएं लिये जिला अधिकारी की अगवानी के लिए तैयार खड़े थे। 

तभी जिला अधिकारी की गाड़ी आकर रुकी। काका ने आगे बढ़कर मालाएं जिला अधिकारी के गले में डाल दी। मगर यह क्या जिला अधिकारी ने मालाएं गले से निकाल कर चौधरी काका के गले में डाल दीं। सब लोग तालियाँ बजाने लगे। फिर जिलाधिकारी चौधरी काका के साथ मंच पर आए। उन्होंने चौधरी काका को मंच पर बड़े आदर से अपने पास पड़ी कुर्सी पर बैठाया। 

जब जिलाधिकारी ने चौधरी काका को गाँव के शत प्रतिशत साक्षरता का प्रमाण-पत्र सौंपा तो चौधरी काका का चौड़ा सीना फूलकर और चौड़ा हो गया था। 

काकी यह देखकर फूली नहीं समा रही थी, उन्हें अपने पति पर बड़ा गर्व हो रहा था। 

मंच से जिलाधिकारी महोदय ने एक और घोषणा की कि आपके गाँव के विद्यालय को प्रदेश का सबसे स्वच्छ विद्यालय चुना गया है और इसके लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी काका को राजधानी बुलाकर खुद सम्मानित करेंगे। भीड़ में सबने तालियां बजाकर इस घोषणा का स्वागत किया और इसी के साथ जलपान शुरु हो गया ।