Tamas Jyoti - 18 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 18

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तमस ज्योति - 18

प्रकरण - १८

रईश के अहमदाबाद वापस जाने के बाद घर बहुत सुना सुना लग रहा था, लेकिन वो अहमदाबाद जाने से पहले मेरे मन में फातिमा के बारे में कई सवाल खड़े कर के गया था, इसलिए मैंने भी आज फैसला किया कि मैं आज विद्यालय जाकर फातिमा के साथ इस मामले पर जरूर बात करूंगा।

मैं अब विद्यालय तो पहुंच चुका था, लेकिन फिर भी मैं अभी भी असमंजस में था कि क्या फातिमा से इस मामले पर बात करने का यह सही समय है? क्या मुझे रईशने मुझे उसके बारे में जो कुछ भी बताया था इस बारे में पूछना चाहिए? या फिर मुझे थोड़ी देर ओर इंतजार करना चाहिए? और कुछ समय बीतने देना चाहिए? मैं अभी इस बारे में सोच ही रहा था कि अचानक एक आवाज़ से मेरी सोच में खलेल पड़ गया। मैं आवाज की दिशा पहचानते हुए, जिस दिशा से आवाज आ रही थी, उस दिशा में धीरे-धीरे चला। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी।

तभी वहां मुझे फातिमा की भी आवाज सुनाई दी। वह बच्चे से कह रही थी, "अरे! कुछ नहीं हुआ है। बेटा! चिंता मत करो। अभी तुम ठीक हो जाओगे।" 

मैं भी अब फातिमा के पास पहुंचा और उससे पूछा, "क्या हो गया फातिमा? इतना शोर क्यों हो रहा है? और यह बच्चा क्यों रो रहा है? यह बच्चा कौन है?"

फातिमाने कहा, "अरे! कुछ खास नहीं। वह दरवाजे से होकर ममतादेवी के कार्यालय की ओर भाग रहा था और इसी भागादौड़ी में रास्ते में वो गिर गया तो उसके पैर में चोट लग गई। चोट तो थोड़ी सी ही आई है, लेकिन वह इस तरह अचानक गिरने से बहुत डर गया है और इसीलिए रो रहा है।"

मैंने कहा, "ओह! मैं उसे समझाता हूं। तुम मुझे उस बच्चे के पास ले चलो। 

मेरा ऐसा कहने पर फातिमा मुझे इस बच्चे के पास ले गयी।

मैं बच्चे के पास गया और मैंने पूछा, "बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?" 

बच्चेने रोते हुए कहा,"जीत..."

ये सुनकर मैंने उससे कहा, "अरे वाह! यह तो बहुत ही अच्छा नाम है। क्या आप जानते हैं कि आपके नाम का मतलब क्या है? जीत का अर्थ है विजय। जो कभी नहीं हारता उसे जीत कहा जाता है। आपके पैर में तो अभी थोड़ी सी ही चोट लगी है और आप इस तरह रो रहे हो! आप इस तरह रोने लगोगे तो कैसे चलेगा बेटा? आप तो कितने बहादुर लड़के हो! और क्या एक बहादुर लड़का कभी रोता है?" 

वो फिर रोने लगा और बोला, "लेकिन मुझे बहुत दर्द हो रहा है। उह... उह..." 

मैंने कहा, "अरे! बेटा! यह दर्द तो कुछ ही मिनटों में खत्म हो जाएगा। क्या आपको पता है कि अगर बच्चे गिरेंगे नहीं तो वो सीखेंगे कैसे? जो बच्चे गिरकर सीखते हैं, वे बहुत चतुर होते है। समझे? चलो अभी! उठ जाओ।" 

जीत अब शायद उठ गया था। फिर मैंने फातिमा से पूछा, "फातिमा! क्या यह बच्चा वही है जो आज नया आनेवाला था?"

फातिमाने कहा, "हाँ, रोशन! तुमने सही समझा, यह वही बच्चा है। तभी तो नए माहौल के कारण अपरिचित जगह पर जल्दी-जल्दी चलने से उसे चोट लग गई।" 

वो बच्चा इतना छोटा था फिर भी मेरी और फातिमा की बात सुनकर बोला, "अंकल, क्या आप भी नहीं देख सकते?" 

मैंने कहा, "हां बेटा! मैं भी इन सभी बच्चों की तरह अंध हूं और मैं यहां इन बच्चों को संगीत सिखाता हूं।"

मेरी ये बात सुनकर वो बच्चा खुश होकर बोला, "संगीत...?! हाँ! मुझे भी संगीत बहोत पसंद है। मैं भी सीखना चाहता हूँ। क्या आप मुझे सिखाएँगे?" 

मैंने कहा, "हां, हां, मैं तुम्हें जरूर सिखाऊंगा। बोलो! तुम कौन सा वाद्य यंत्र बजाना सीखना चाहते हो?" 

वो बोला, "मुझे तो तबला बहुत पसंद है। क्या आप मुझे तबला बजाना सिखाएँगे?" 

मैंने कहा, “हां, हां, बेटा! मैं तुम्हें जरूर तबला बजाना सिखाऊंगा।”

हम ये बात कर रहे थे तभी उस बच्चे की मां और ममतादेवी दोनों बच्चे के पास आए। वो जानना चाहते थे की अचानक बच्चे के साथ क्या हुआ की वो रोने लग गया था। इसलिए उनके पूछने पर फातिमाने उन्हें सब कुछ बताया और उसकी माँ को यह जानकर राहत मिली कि उनके बेटे को केवल थोड़ी सी चोट ही लगी थी। 

जीत की मम्मीने उससे कहा, अरे! मेरे बहादुर शेर! ये तो छोटी सी ही चोट लगी है। उसमे रोना क्या है? तुम तो मेरे बहादुर बेटे हो इसलिए अब रोना नहीं। 

जीत बोला, "हाँ, मम्मी। मैं अब नही रोऊंगा।"

अब जीत को अपने साथ लेकर ममतादेवी अपने कार्यालय चली गई। धीरे-धीरे बाकी सभी बच्चे भी अपनी कक्षाओं में जाने लगे। 

अब उस विद्यालय के परिसर में केवल मैं और फातिमा ही थे। 

किसी की आवाज नहीं आ रही थी इसलिए मैंने उससे पूछा, "सब चले गये क्या?" 

फातिमाने कहा "हाँ! सब लोग चले गये।"

मैंने सोचा यह मेरे लिए फातिमा के साथ बात करने एक सही मौका है। मैंने एक पल की भी देरी किए बिना फातिमा से कहा, "फातिमा! मैं तुमसे कुछ महत्वपूर्ण बात करना चाहता हूं। मेरे मन में कुछ सवाल है। मैं चाहता हूं कि तुम उनका जवाब दो। मेरा भाई रईश तो यहां से चला गया है लेकिन वह मेरे मन में तुम्हे लेकर कुछ सवाल छोड़कर चला गया है, जिनका जवाब मैं तुमसे चाहता हूं। मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे उन सभी बातो का सही जवाब दोगी।"

फातिमाने कहा, "हाँ, हाँ, ज़रूर। पूछो! तुम क्या पूछना चाहते हो? तुम्हारे मन में क्या सवाल हैं? ऐसा क्या है जो तुम मुझसे पूछने में इतना झिझक रहे हो?"

मैंने कहा, "बात ही ऐसी है। सवाल ही ऐसे है..." मैं अभी भी ऐसे बड़बड़ा रहा था, इसलिए फातिमाने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली, "रोशन! तुम्हें जो भी पूछना है, शांति से पूछो। मैं तुम्हारी हर बात का सही उत्तर दूंगी। तुम घबराओ मत।"

फातिमाने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसके स्पर्श से मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। उसके साथ को महसूस करके अब मुझे हिम्मत मिली और मैंने उससे पूछा, "क्या तुम्हारा नाम सचमुच फातिमा है या फिर तमन्ना है?"

मुझे लगा कि यह सवाल सुनकर फातिमा चौंक गई होगी, क्योंकि उसने तुरंत मेरा हाथ छोड़ दिया। इसलिए मैंने उससे दोबारा पूछा, "फातिमा! तुम कहा हो? यहीं हो या कहीं और?”

फातिमा बोली, "मैं... मैं... मैं यहीं हूं, लेकिन तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"

मैंने कहा, "जब मेरा भाई रईश विद्यालय में सभी से मिलने आया था तब वह तुमसे भी मिला था। जब से वो तुमसे मिला था तब से वह बहुत शांत रहने लगा था, इसलिए मुझे थोड़ा अजीब लगा। जब मैंने उससे उसके ऐसे व्यवहार का कारण पूछा तो उसने मुझे सारी बातें बताई। उसने मुझे अखबार में तुम्हारे बारे में जो कुछ भी आया था वह सब बताया। अब मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि सच क्या है? यही जानने के लिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम इतने बड़े बिजनेसमैन अनिरुद्ध अग्रवाल की बेटी होने के बावजूद यहां अंध विद्यालय में क्यों काम कर रही हो? तुम्हारा अतीत क्या है?"

फातिमाने कहा, "मैं तुम्हारे इस सवाल का यही जवाब दूंगी कि तुम्हारे भाईने मुझे ठीक ही पहचाना है। हा, मैं फातिमा नहीं हूं बल्कि तमन्ना ही हूं। मैं तमन्ना अग्रवाल हूं, इस शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन अनिरुद्ध अग्रवाल की बेटी। लेकिन मेरा अब उन लोगों से कोई भी संबंध नहीं है और न ही मैं अब उन लोगों से कोई भी रिश्ता रखना चाहती हूं।"

ये बात कहते हुए वो बहुत उदास हो गई। 

मैंने उससे कहा, "तुम चिंता मत करो। न तो मैंने और न ही मेरे भाईने इस बारे में किसी को कुछ बताया है और न ही कभी किसी को कुछ भी बताएंगे। ये मेरा तुमसे वादा है।

मेरा ऐसा कहने पर फातिमा को मुझ पर विश्वास हुआ और वह अब मुझे अपनी पूरी कहानी बताने लगी।

(क्रमश:)