Shuny se Shuny tak - 65 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 65

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शून्य से शून्य तक - भाग 65

65---

रात डेढ़ बजे फ़्लाइट थी, घर से दो गाडियाँ चलीं जबकि एक गाड़ी में सब आ सकते थे| दीना और रेशमा ड्राइवर के साथ आशी का सामान लेकर निकले और मनु से उन्होंने कहा कि वह आशी को लेकर एयरपोर्ट पहुँचे| मनु को एक तरफ़ बुलाकर उन्होंने कहा;

“थोड़ा जल्दी निकल जाओ मनु, रास्ते में रुक जाना, कुछ रिफ्रेशमेंट ले लेना---न हो तो कुछ सॉफ़्ट ड्रिंक या कॉफ़ी ही ले लेना---”इसके पीछे यही तो था दोनों को किसी तरह अकेले बैठने का समय मिल सके लेकिन यह सब संभव था क्या?यदि होता तो घर में या कहीं भी उन लोगों के लिए जगह की कमी थी क्या?समय का तो सिर्फ़ एक बहाना था| 

दीना अंकल बेचारे ! मनु ने सोचा, कितना सोचते हैं!न केवल अपनी बेटी के बारे में बल्कि उससे ज़्यादा मेरे बारे में!कोई भी बात हो तो ऐसे बेचारे से हो जाते हैं जैसे उन्होंने न जाने कितना बड़ा अपराध कर डाला हो| कुछ फ़ायदा नहीं था लेकिन मनु चुपचाप उनकी बात सुन लेता| कब और किस बात पर आशी उसका अपमान कर दे, कहाँ पता चलता था !

“आशी ! थोड़ा जल्दी निकलें, कहीं बैठ लेंगे थोड़ी देर---फिर तो लंबे अरसे तक तुमसे कहाँ मिलना हो पाएगा| वैसे आशिमा और अनिकेत भी आ रहे हैं---तो---”मनु ने दबे स्वर में आशी से कह तो दिया जिसका परिणाम वही हुआ जो वह जानता ही था| 

“अरे!सब साथ चलेंगे, हम दोनों को अकेले जाकर क्या वहाँ लड्डू मिल जाएंगे?आशिमा और अनिकेत से अभी तो मिले हैं फिर---सब साथ ही चलते हैं| ” उसने अपने स्वर को कुछ कोमल बनाकर कहा | मनु को आशी से कुछ ऐसी ही अपेक्षा थी| 

यह बड़ी बात थी कि आशी उसके साथ दूसरी गाड़ी में अकेले चलने के लिए तैयार हो गई थी| अपने भाग्य के बारे में सोचते हुए वह बुझे मन से आशी की इच्छानुसार ही निकला| आशिमा और अनिकेत भी आए हुए थे| आशी सबके गले मिली, यह सबके लिए जैसे गौरव की बात हो गई थी| उसको एयरपोर्ट छोड़कर ये लोग लगभग साढ़े तीन घर पहुँचे| 

अगले दिन घर में बहुत शांति थी, किसी के भी घर से जाने के बाद एक उदासी सी तो पसर ही जाती है| यहाँ भी सब उदास थे लेकिन वातावरण में से जैसे भय निकल भागा था और सब बहुत सहज थे| मनु को यह दिन जैसे एक नए सवेरे सा लगा| एक लंबी साँस लेकर वह उठ खड़ा हुआ और उसने एक ज़ोर से अंगड़ाई ली| आज वह अपने आपको कितना मुक्त, कितना स्वतंत्र महसूस कर रहा था| आशी के सामने वह अपने आपको जैसे एक परकटे पंछी सा महसूस करता था| आज इस परकटे पंछी के शरीर में कुछ नए पर उगने की सरसराहट सी हुई थी| 

मनु को लगा मानो वह किसी पिजरे में बंद था और अचानक पिजरे का दरवाज़ा खुल गया था| अब बस उसके उड़ने की देरी थी| आज उसके चेहरे पर जैसे कोई निखार आ गया था| “गुड मॉर्निंग अंकल, कैसे हैं अंकल?”फिर माधो की ओर मुड़ा---

“ठीक से सोए अंकल ?”मनु ने माधो से पूछा| 

“जी, ठीक से सोए थे मालिक---”माधो ने उत्तर दिया| उसके चेहरे पर भी एक सुकून सा था| 

“मैं बिलकुल ठीक हूँ, बहुत अच्छी तरह से सोया—”

“अंकल!कल से आप मेरे साथ जॉगिंग के लिए चला करिए---”मनु ने कहा तो दीना बोले

“न, बेटा अब कहाँ मेरे बसका है, तुम लोगों की उम्र है, तुम जाया करो---”

“पास वाले पार्क में अंकल---पहले आप जाया तो करते थे---”उसने उन्हें बहुत पुरानी बातें याद दिलाईं| 

“वो अलग समय था, अब कहाँ?”उन्होंने एक लंबी साँस खींची| 

“क्यों, अब क्या हो गया?आप भी अपने दोस्त के ही बस में आते थे---”कहकर वह मुस्कुराने लगा| 

“उसकी और माधो की बदौलत ही तो मैं कुर्सी से उठकर खड़ा हुआ हूँ---”

“ठीक है, उनके बेटे की बदौलत आप भागने लगिए----”कहकर मनु हँसने लगा| वह दीना अंकल को बहुत सहज बना देना चाहता था| 

कोई भी घर से जाए तो सूनापन तो हो ही जाता है| आशी के बिना भी जैसे सब जगह चुप्पी सी पसर गई थी लेकिन साथ ही एक शांति भी थी जो सबको ही महसूस होती थी| वही एक सी दिनचर्या!यूँ ही दिन बीतते रहे| आशी ने वहाँ पहुँचकर भी कई दिन बाद पिता से संपर्क किया| इधर से कई बार फ़ोन लगाने की कोशिश की गई थी लेकिन न जाने क्यों लग ही नहीं रहा था फ़ोन| वैसे आशी पिता की चिंता कर रही थी लेकिन वहाँ पहुँचकर उन्हें एक फ़ोन भी कई दिन बाद किया। शायद ठीक से सैटल होने के बाद!यह भी केवल अपने पिता से बात की, उस समय मनु व रेशमा भी उनके साथ ही थे लेकिन उसने किसी के बारे में कुछ पूछने की जरूरत भी नहीं समझी| ऐसी बातों से दीनानाथ को बहुत पीड़ा होती थी लेकिन यह पीड़ा अब उनके जीवन का जैसे अंग ही बन  गई थी| 

रोज़ सुबह वे मनु को देखते और रोज़ ही अपने आपको उसका दोषी मानते| रेशमा और मनु अब दीना अंकल के पास अधिक समय गुजारने लगे थे | ऑफ़िस का काम अपनी गति से ठीक चल रहा था| अनन्या ने बहुत अच्छी प्रकार काम को संभाला था| वैसे तो वह पहले से ही मनु के करीब थी लेकिन आशी के जाने के बाद दोनों में आकर्षण बढ़ गया था| मनु को आशी के उन शब्दों से बड़ी तकलीफ़ हुई थी जो वह जाते-जाते बोल गई थी| कहते हैं न कि शब्दों का मनुष्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है| मनु को उस समय तो आशी के शब्दों से तकलीफ़ हुई थी लेकिन उसके जाने के बाद उसे सच में ही बहुत अकेलापन महसूस होने लगा था| कैसे कह गई आशी वह सब?उसने तो कभी इस प्रकार सोचा भी नहीं था| लेकिन अब मनु अपने आपको अनन्या के अधिक समीप महसूस करने लगा था| आशी उससे फ़ोन तक पर भी बात न करती| माना, वह व्यस्त होगी लेकिन यहाँ भी कौनसा उसने संबंध बनने दिए थे| जब अधिक ऊबने लगा तब स्वाभाविक था अनन्या की ओर झुकना!

मनु ने स्वयं पर बहुत कंट्रोल किया हुआ था लेकिन विवाह नामक तमगे को पहनकर वह कब तक सहज रह सकता था?अनन्या उसकी मानसिक पीड़ा बहुत अच्छी प्रकार समझ रही थी| न उसे कोई मानसिक सुख था और शरीर का सुख तो वह जानता ही नहीं था| उसने देश-विदेश में सब जगह पर लड़के-लड़कियों के बीच रिलेशनशिप देखी थी लेकिन वह खुद कभी उसमें नहीं कूदा था| देखा जाए तो आज की दुनिया के हिसाब से वह बहुत ही सरल लड़का था| विदेश में पढ़कर भी वह सहज, सरल बना रहा| पहले मामा के व्यवसाय में अपना पूरा समय दिया लेकिन जब निराशा मिली तब ही सब वाईंड-अप करना पड़ा| यहाँ पर सब अच्छे से संभाल रहा है, माता-पिता और दीना अंकल की इच्छा रखने के लिए शादी की तो उसका यह परिणाम निकला जो आशी की इच्छानुसार उसकी शर्तों पर जीने से होना ही था| 

अनन्या उसे घुटते हुए देख रही थी | जितना वह उसके बारे में न सोचने का प्रयत्न करती, उसका बुझा हुआ चेहरा मानो उससे कुछ माँग करने लगता| वह भी तो उसकी ओर खिंची चली जा रही थी| ऑफ़िस में व्यस्तताएं रहतीं लेकिन दोनों साथ-साथ चाय, कॉफ़ी पीते-पीते अपने-अपने सुख, दुख साझा कर लेते| मनु अनन्या के सामने अपनी पीड़ा खोलता तो थोड़ा सा हल्का हो जाता| 

“क्या करूँ अनु, कुछ समझ में नहीं आता---”चाय पीते-पीते एक दिन उसने अनन्या का हाथ अपने हाथ में ले लिया था| उसका स्पर्श पाते ही जैसे अनन्या का शरीर काँप उठा| बेशक वह उसकी ओर झुकी हुई थी लेकिन इस सत्य से भी तो परिचित थी कि वह एक शादीशुदा आदमी था| वह कैसे सेंध लगा सकती थी?हो सकता है आशी वापिस आकर अपने पति के साथ अच्छी गृहस्थी बसा ले| आखिर सेठ दीनानाथ की वह इकलौती संतान थी| 

“अपने जीवन के भोग सबको भोगने पड़ते हैं---”उसने धीरे से मनु के हाथों में से अपना हाथ निकाल लिया और ऐसे दिखावा करने लगी मानो उसको चाय पीनी हो| 

“मैं जानता हूँ, तुमने भी अपने जीवन में काम पापड़ नहीं बेले हैं| ऐसा लगता है कि इस संसार में कोई भी आदमी बिना तकलीफ़ झेले नहीं रह सकता| ”

मनु चाहता था अनन्या की ओर बढ़ना लेकिन उसे उसके संस्कारों ने रोका हुआ था| अनन्या भी बहुत गंभीर लड़की थी इसलिए बहुत आगे बढ़ने में वह भी झिझकती थी|