Shuny se Shuny tak - 64 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | शून्य से शून्य तक - भाग 64

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शून्य से शून्य तक - भाग 64

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“पापा”आशी ने अचानक ही एक मेल अपने पिता के सामने खोलकर रख दिया| 

“क्या है?”उदासीन स्वर में उन्होंने पूछा| 

“देखिए, फ्रांस से मेल आया है, मुझे इसी हफ़्ते अपने प्रॉजेक्ट का काम पूरा करने जाना होगा| ”उसने मेल उनके सामने रख दिया था| 

“कितने दिन का काम है?”

“छह महीने से लेकर एक साल तक में हो जाएगा---”वह बड़ी खुश व उत्साहित दिख रही थी| यह उसका वही प्रॉजेक्ट था जिस पर वह लंबे समय से काम कर रही थी| 

“मनु से तो बात करो---”उनका मूड खराब हो रहा था| जो थोड़ी बहुत आशा उनके मन में थी, उस पर भी अब घटा छाने की तैयारी थी, अँधेरे मे छिपने जा रही थी| उन्हें लग रहा था कि आशी ने यह प्रॉजेक्ट जान-बूझकर ही इस समय फाइनल करवाया है| लेकिन पूछे कौन?बिल्ली के गले में घंटी बांधना आसान काम है क्या?

“ओ! श्योर आई विल टैल हिम---”वह अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोली| 

ऑफ़िस में सब मिलते ही थे| रोज़ लंच साथ ही लेते थे | दीनानाथ सोच रहे थे कि देखते हैं कि आशी कब मनु से अपने प्रॉजेक्ट की बात करती है | दो/तीन दिनों तक उन्हें ऐसे कुछ आसार दिखाई नहीं दिए तो आज उन्होंने लंच पर बात छेड़ ही दी;

“हाँ जी, मुझे पता चला है ---”मनु ने उन्हें बताया| 

“किसने बताया तुम्हें ?”आशी ने एकदम चौंककर पूछा और अपने पिता की ओर शक की नज़र से देखा| 

“किसी ने नहीं भई, मैं परसों---हाँ---परसों ही तुम्हारे केबिन में गया था न, तुम्हारा मेल खुला हुआ था| मेरी निगाह पड़ गई तो पता चल गया, और क्या?” मनु ने भी लापरवाही से कहा| 

“तुमने मुझसे बात तक नहीं की इस बारे में?”आशी उसकी ही गलती निकालने में लग गई| 

“आशी ! तुम वहीं थीं, मैंने तुमसे जब गंगाधरन के बारे में डिस्कस करने की कोशिश की तुमने कहा कि पहले फ़ाइल स्टडी कर लो। फिर डिस्कस करेंगे | फ़ाइल माँगी तो तुमने अपनी साइड की फ़ाइल्स में से निकालने के लिए कहा| शायद तुम उस समय उस मेल का ही जवाब दे रही थीं| मेरी निगाह उस पर पड़ी तो मुझे समझ में आ गया कि यह फ्रांस वाला वही मेल है जिस पर तुम काम कर रही हो, हालांकि डीटेल्स मुझे समझ में नहीं आए लेकिन---”

“तुम्हें मुझसे पूछने की ज़रूरत भी महसूस नहीं हुई ?”वह एकदम बिगड़ उठी| 

“आशी, तुमको मुझे बताना चाहिए था, मुझे क्या मालूम कि तुम मुझसे इस बात पर डिस्कस करना भी चाहती हो या नहीं?”मनु ने सरलता से कहा| 

मनु को शांति से खाना खाते देख वह और अधिक बिफर गई—

“आइ एम आस्किंग यू मि.मनु सहगल---”

मनु फिर भी शांत ही बना रहा| 

“डैम इट---”वह खाना छोड़कर बेसिन में हाथ धोने चली गई और किसी से बिना कुछ कहे बाहर निकल गई| 

आज तो दीना भी ताव में आ गए थे, उनकी आँखें क्रोध में लाल हो उठीं| अपने हाथ का कौर उन्होंने प्लेट में रख दिया और टीशू से हाथ पोंछते हुए आशी के पीछे जाने के लिए उठ खड़े हुए| 

“नहीं अंकल प्लीज़, आप शांति से अपना खाना पूरा कीजिए---”

दीना एक बच्चे की भाँति फूट-फूटकर रो पड़े, मनु ने उन्हें संभाला और पानी पिलाकर उनका सिर अपने सीने से लगा लिया| वे इस समय एक मासूम बेसहारे बच्चे की तरह लग रहे थे| 

आज पहली बार मनु ने उन्हें इस प्रकार इतने क्रोध में देखा था| वह उन्हें लेकर ऑफ़िस से निकल गया और थोड़ी देर के लिए बीच पर ले गया| आज मौसम ठीक था इसलिए दोपहर में भी अधिक गर्माहट नहीं महसूस हो रही थी| वह वहाँ बैठा उनका मन लगाने की कोशिश करता रहा, वैसे ही वे कहाँ जाते थे ? घर से ऑफ़िस और ऑफ़िस से घर---घर में भी कौन था उनका हाल पूछने वाला? आशी के व्यवहार का कुछ पता ही नहीं चलता था, नहीं वह ऐसी स्थिति में उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता था| पिछली कई रातों में वह अपने घर में भी ठीक से कहाँ सो पाया था! कभी उसे दीना अंकल का चेहरा दिखाई देता तो कभी अपने माता-पिता का !वह उन्हें थोड़ी देर घुमाकर उनके घर ले आया | ऐसी स्थिति में उसे अपने पिता की बहुत याद आती थी| 

घर आकर भी मनु उनके साथ नीचे बगीचे में ही बैठा रहा| उसने ड्राइवर को भेजकर रेशमा, रघु और उसकी माँ को वहीं कोठी पर बुला लिया| फिर से थोड़ी चहल-पहल लगने लगी| दीना आशी से बुरी तरह परेशान हो चुके थे| उनकी समझ में कुछ नहीं आता था आखिर करें क्या? मनु के बारे में सोचते तो उनका कलेजा मुँह को आता लेकिन करें क्या समझ में कुछ नहीं आता| उन्हें हर पल एक परीक्षा लगता, वैसे ज़िंदगी है ही परीक्षा और क्या? और सबके लिए इसमें अलग अलग प्रश्नपत्र हैं जिनके उत्तर सबको व्यक्तिगत रूप से ही खोजने होते हैं| 

शाम को आशी घर वापिस आई और रेशमा को देखकर खुश होकर बोली;

“ओ, यू हैव कम बैक !!गुड---”उसने अपनी खुशी ज़ाहिर की लेकिन यह पता नहीं लग रहा था कि उसकी खुशी वास्तविक थी या बनावटी?रेशमा मुस्कुरा दी थी, उसे भी महसूस होता था कि अपने माता-पिता के इतने प्यार से बनाए हुए घर को छोड़कर उन्हें दीना अंकल के घर पर रहना पड़ता है| लेकिन भैया का कहना भी सही था कि दीना अंकल अपने दोस्त की सब जिम्मेदारियों को किस प्रकार निबाह रहे हैं तो वह कैसे उन्हें इस परिस्थिति में यहाँ छोड़कर चला जाए?शादी के बाद सबको अपने साथी के साथ ज़िंदगी बिताने की ललक होती है। शायद आशी में भी कोई संवेदना जागृत हो सके लेकिन सबका सोचा हुआ व्यर्थ ही हो गया था | 

“पापा, आज जा रही हूँ---”अचानक आशी ने अपने पिता के पास आकर कहा| 

“ठीक है बेटा, अपना ख्याल रखना—”

आशी ने पिता के साथ फॉरमैलिटी की जैसे, उस दिन के बाद तो एक बार भी न तो पिता से और न ही पति से अफ़सोस का एक भी शब्द बोला था| 

“तुम्हें नहीं लगता कि उस दिन मनु के साथ तुम्हारा व्यवहार गलत था?”वे बहुत बहुत दुखी थे| अपने आपको ही सब चीज़ों का ज़िम्मेदार मानते थे और जब अधिक दुखी होते तब यही सोचते काश! सोनी होती तो कैसे न कैसे ही आशी को इतना बद्तमीज़ तो न बनने देती| 

“इस ज़िंदगी में बहुत से मोड़ आते हैं बेटा, जो समय और परिस्थितियों के साथ नहीं चलते वो बहुत कुछ खो देते हैं| ”वे पिता थे, कितने भी नाराज़ क्यों न हो जाएं अपनी बेटी को समझाना कैसे छोड़ सकते थे?जबकि उनके अंदर आशी से बात करते हुए एक घबराहट हमेशा बनी रहती थी| 

पता नहीं कैसे लेकिन शायद आशी के मन में कुछ आया होगा, बोली;

“सॉरी पापा, आई शैल अपोलोजाइज़ मनु फ़ॉर दैट डे--”आशी के लिए इतना कहना तो बहुत बड़ी बात थी| 

दीना बेचारे क्या करें इस लड़की का ?केवल चुप्पी साधकर ही बैठना था उन्हें!

कुछ देर में आशी ने मनु के कमरे के बाहर पहुँचकर उसका दरवाज़ा नॉक किया| 

“आर यू स्लीपिंग मनु?”बाहर से ही उसने पूछा| 

“नो-नो, कम इन---”

आशी अंदर आ गई;

“आई एम सॉरी मनु उस दिन के लिए------आज मैं जा रही हूँ---”

“हाँ, मुझे मालूम है न, हम लोग तुम्हें सी-ऑफ़ करने आ रहे हैं| ”

अंदर से मनु के मन में आशी के लिए प्रेम उमड़ रहा था| शायद आज वे दोनों और कुछ नहीं तो जाने से पहले एक बार आलिंगनबद्ध हो सकें और----युवा देह व मन की अपनी जरूरतें तो होती ही हैं, यह क्षण दोनों के लिए भावुक हो सकता था| उस समय आशी को देखकर उसका दिल धड़कने लगा था| जो कुछ भी था लेकिन संबंधों में ऐसी संवेदना का होना, प्राकृतिक ही था| 

लेकिन---ऐसा कुछ नहीं हुआ, जो कुछ भी हो, डरता तो था ही हर शख्स उससे| एक बार मनु का मन भी हुआ कि उसके करीब जाए लेकिन यह भय बना रहा कहीं और लेने के देने न पड़ जाएं!

“मैं जानती हूँ अनन्या तुम्हारी अच्छी दोस्त है---”आशी के इन शब्दों ने उसे आसमान से ज़मीन पर ला पटका| 

उसने आँखें उठाकर आशी की ओर देखा| आखिर कहना क्या चाहती है?उसकी आँखों में प्रश्न तैर गया| 

“नहीं, डोन्ट टेक इट अदरवाइज़ अगर तुम्हारा उसके साथ---आइ डोन्ट माइंड---”आशी के पास तक पहुँचने का मनु का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया| 

यह कहकर क्या आशी अपने आप को महान दिखाने की कोशिश कर रही थी?मनु के आगे बढ़ते कदम रुक गए| 

“एक बात और---प्लीज़ टेक केयर ऑफ़ माई फ़ादर, ओके चलती हूँ, आई हैव टू चैक माई फ़ाइल्स फाइनली  वन्स अगेन-” उसने कुछ ऐसे कहा मानो वह अपने पिता की कितनी परवाह करती थी| मनु कुछ बोलता इससे पहले ही वह दरवाज़े से बाहर निकल गई | 

मनु आशी के यह सब बोलने से भी आहत हुआ| क्या जरूरत थी आशी को ये सब इंस्ट्रक्शन्स देने की?किसी न किसी बात पर मनु के मन में ये सब नकारात्मक बातें आ ही जातीं| उसके ही क्या दीना अंकल के मन में, जो कोई भी वहाँ उपस्थित होता उसके मन में भी आती हीं लेकिन मनु को अपनी मम्मी की बातें याद आ जातीं| वे हमेशा कहा करती थीं कि आशी का कुछ दोष ही नहीं है, उसके मस्तिष्क में लगे उस घाव का दोष है जो उसके दिमाग में ऐसी उम्र में लगा था जो नाज़ुक थी, जिस समय उसे सहारे की ज़रूरत थी| परिस्थितियाँ इंसान को क्या से क्या बना देती हैं!यह सब प्रत्यक्ष ही तो था| मनु को उसके प्रति सहानुभूति होने लगती और वह चुपचाप सब कुछ सह लेता|