Tamas Jyoti - 9 in Hindi Classic Stories by Dr. Pruthvi Gohel books and stories PDF | तमस ज्योति - 9

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तमस ज्योति - 9

प्रकरण - ९

मेरे पापा, रईश और दर्शिनी तीनों अब मेरे पास अस्पताल में पहुँच चुके थे। मेरी माँ तो पहले से ही मेरे साथ अस्पताल में थीं। जिस वार्ड में मुझे भर्ती किया गया था वहा डॉक्टर तेजस भी अभी मेरी जांच करने के लिए मेरे पास आ चूके थे।

जैसे ही डॉक्टर तेजस यह आये, मेरे मम्मी पापा अब मुझे लेकर थोड़े चिंतित हो गये। उन्हें चिंता थी कि वे लोग किस तरह से मुझे मेरी आंखों की रोशनी के बारे में यह बताएंगे? लेकिन उनकी उस दुविधा को तो डॉक्टर तेजसने ही दूर कर दिया।

अब मैं थोड़ा सा हिल गया। अब मुझे एहसास हुआ कि मेरी आंखों पर पट्टी बंधी हुई है। मुझे याद आया कि रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला में मेरे साथ क्या हुआ था। मेरे साथ घटी वो सारी घटनाएँ एक बार फिर मेरी आँखों के सामने घूमने लग गईं। आखिरी चीज़ जो मुझे याद है वह थी मेरी आँखों में रसायन का जाना और जलन होना तथा मेरी आँखों के सामने पूरा कालापन आ जाना। उसके बाद मुझे कुछ भी पता नहीं था कि मेरे साथ और लैब में मौजूद सभी छात्रों के साथ क्या हुआ और अभी भी मुझे केवल इतना ही समझ आ रहा था कि मेरी आँखों पर पट्टी बंधी हुई है। कुछ ही मिनट बाद में मुझे समझ आया कि डॉक्टर तेजस मेरे कमरे में हैं। पहले उन्होंने मेरी जांच की और फिर मेरी आंखों की पट्टी खोल दी। जैसे ही उन्होंने मेरी आँखों की पट्टी खोली तो मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। मेरी आंखों के सामने सिर्फ अंधेरा था। मैं इससे पूरी तरह से स्तब्ध रह गया। मैं स्वयं इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सका। मैंने कहा, "डॉक्टर! मुझे कुछ दिखाई क्यों नहीं दे रहा? आपने मेरी आँखों की पट्टी खोल दी है फिर भी मैं क्यों नहीं देख पा रहा हूँ? आपने मेरी आँखों के साथ क्या किया है? मेरे मम्मी पापा कहाँ हैं?"

मेरा ये प्रश्न सुनकर मेरे पापा तुरंत बोले, "मैं यहीं तुम्हारे साथ हूं बेटा।'' 

मैंने फिर पूछा, "पापा! मम्मी कहाँ है?"

तभी मेरी मम्मी बोल उठी, "मैं भी यहीं हू बेटा! रईश और दर्शिनी भी यही हैं, बेटा! हम सब तुम्हारे साथ हैं। तुम...तुम... बेटा! घबराओ मत। अभी तुम्हें बहुत हिम्मत रखनी होगी बेटा!'' इतना कहते-कहते तो मेरी मम्मी की हिम्मत भी अब टूटने लगी थी।

मैंने फिर पूछा, "पापा! बताईए न मेरी आँखों को क्या हुआ है? डॉक्टर साहब! कृपया करके आप मुझे बताओ! मेरी आँखों को क्या हुआ है? मुझे अभी भी आंखों में असहनीय दर्द क्यों होता है? मुझे हर चीज़ काली क्यों दिख रही है?! मेरी आँखें फिर से कब ठीक होगी? मेरी आँखों का अँधेरा कब मिटेगा? प्लीज़ डॉक्टर साहब! मुझे बताओ! मुझे अब बहुत ही चिंता हो रही है।"

डॉक्टरने मुझे शांत किया और कहा, "सबसे पहले तो आप बिलकुल शांत हो जाईए। जो हो गया है वो तो हो ही गया है। चाहे लाख कोशिश कर ले, लेकिन होने को कोई टाल नहीं सकता। कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड के कारण आपकी आंखें, आपकी आंखों का कॉर्निया क्षतिग्रस्त हो गया है और कॉर्निया के क्षतिग्रस्त होने के कारण ही आपकी आंखों की रोशनी भी चली गई है।”

ये सुनकर तो मैं बहुत ही टूट गया। मैंने पूछा, "क्या? ये क्या बोल रहे है आप? तो क्या मैं कभी... ठीक..ठीक... नहीं हो पाऊंगा? डॉक्टर साहब! मैं तो रसायन विज्ञान में रिसर्च करना चाहता था। अब मेरा वो सपना किस तरह से पूरा होगा? मेरी क्या गलती थी की आज भगवानने मुझे ऐसी सज़ा दी है? कृपया कुछ कीजिए, डॉक्टर साहब! कुछ भी करके मुझे ठीक कीजिए।"

डॉक्टरने कहा, "अगर मेरे हाथ में होगा तो मैं जरूर कोशिश करूंगा। ऐसा नहीं है कि आपकी आंखें ठीक नहीं हो सकतीं। इसका इलाज संभव तो है लेकिन इसके लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट करना पड़ता है जो काफी महंगा होता है और यह ऑपरेशन कोई विशेषज्ञ ही कर सकता है। अभी अभी ही तो आप रिकवर हुए है इसलिए तुरंत ऑपरेशन करना तो संभव नहीं है।’ 

मैं फिर बोला, "रईश! भाई! तू कहाँ हैं? तुझे  तो पढ़ने की छुट्टियाँ मिलनेवाली थी, है ना?" 

रईशने उत्तर दिया, "मैं यहीं तुम्हारे साथ हूं रोशन। बिलकुल चिंता मत करो। तुम ठीक हो जाओगे। तुम्हारी आंखों की रोशनी वापस आ जाएगी। मैं तुम्हारी आंखों की रोशनी वापस लाऊंगा। मैं तुम्हारे जीवन में ज्योत जलाऊंगा।" रईशने मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहा।

मैंने कहा, "मैं जानता हूं रईश। मैं तुम्हें बचपन से जानता हूं। मैं ये भी जानता हूं कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो और मैं ये भी जानता हूं कि तुम मेरे लिए किस हद तक जाओगे। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरी स्थिति का असर तुम्हारी पढ़ाई पर पड़े। मैं तुम्हें सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि अभी तुम्हें केवल अपनी एम.एस.सी. के इस आखरी साल की परीक्षा पर सारा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। तुम्हे इस आखरी साल में बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना है। मेरी बीमारी का असर तुम्हारी पढ़ाई पर तो बिलकुल ही नहीं पड़ना चाहिए। और हाँ! मेरी छोटी बहन दर्शिनी कहाँ है?”

"मैं यहाँ हूँ भाई।" ऐसा कहते हुए दर्शिनी मेरे गले लग गयी और एकदम से रोने लगी। उसके आंसू रुक ही नहीं रहे थे। मेरी इस स्थिति को वो बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।

मैंने दर्शिनी को शांत किया और कहा, "अरे! पगली! तू क्यो रो रही है? मेरी आंखें चली गई तो क्या हुआ? तुम सबके पास तो आंखे है ना? आप सब अब मेरी रोशनी बनना और मेरा नाम रोशन करना। जिसके पास आठ आठ आंखों की रोशनी हो उसे फिर किस बात की चिंता होगी?”

हर किसी की कैसी हालत है वो मैं अब देख तो नहीं पा रहा था। अब तो मैं इसे केवल महसूस ही कर सकता था! भले ही मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों को हिम्मत दे रहा था, लेकिन मानसिक रूप से मैं खुद भी बहुत ही टूट चुका था। मैं मन ही मन बहुत दुखी हो रहा था। मैं केवल ठीक होने का दिखावा कर रहा था।

मुझे बहुत ही पीड़ा हो रही थी। मुझे बहुत ही दर्द का अनुभव हो रहा था। आज भी जब वह घटना याद आती है तो मेरी रूह कांप उठती है।'' इतना बोलते-बोलते तो स्टूडियो में बैठे रोशनकुमार की आंखें नम हो गई।

ये सारी बाते सुनकर अमिता बोली, "ओह! ये तो बहुत ही दु:खद घटना आपके साथ घटी। फिर आप इस घटना से बाहर कैसे निकले रोशनजी? ऐसी कौन सी बात थी जिसने आपको इस घटना से बाहर आने के लिए प्रेरित किया? अंधत्व प्राप्त करने के बाद आपका जीवन कैसा था? आपको किस प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ा?"

रोशनने कहा, "अमिताजी! मैंने आपको जैसे की पहले बताया था, मैं अपने परिवार के सामने बाहर से ठीक होने का दिखावा कर रहा था, लेकिन अंदर से मैं सचमुच बहुत ही टूट चुका था।"

अमिता बोली, "उस घटना के बाद आपका जीवन कैसा था?" हम ये जरूर जानेंगे लेकिन इससे पहले कि हम इस बात को आगे बढ़ाएं, आइए एक छोटा ब्रेक लेते हैं।

तो मेरे प्यारे दोस्तों! एक छोटे से ब्रेक के बाद जल्द ही आपसे दोबारा मुलाकात होगी।