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अनन्या की सौतेली माँ इतनी बुरी भी नहीं थीं लेकिन उनका अपनी बेटी पर कोई कंट्रोल नहीं था, इसका सारा क्रोध अनन्या की सौतेली माँ उस पर उतार देती थीं| सौतेली बहन अलग से उस पर हावी रहती| जब तक पिता थे तब तक वह छिप-छिपाकर उनके सामने तो अपने सुख-दुख साझा कर लेती लेकिन उनके जाने के बाद बहन उसके विरुद्ध माँ को खूब चढ़ा देती और माँ को कुछ भी समझ में नहीं आता केवल उस पर अपनी खीज निकालने के! उसके पिता भी अपनी दूसरी पत्नी और बेटी के व्यवहार से परेशान थे, इसीलिए उन्हें हृदयाघात हुआ था| पिता के बाद उसके व्यवहार से परेशान होकर अनन्या अपनी नानी के पास पूना चली गई थी| यहाँ से उसने ग्रेजुएशन कर लिया था, नानी के पास रहकर एम.बी.ए किया और एक फर्म में नौकरी भी कर ली|
नानी के यहाँ कई लोग थे, मामा-मामी और उनके तीन बच्चे ! उम्र होने पर नानी बीमार रहने लगीं और अंत में उनका स्वर्गवास हो गया| यहाँ भी नानी के रहते तक तो उसको फिर भी कोई पूछने वाला था| नानी का खूब बड़ा घर था, उनका काफ़ी पैसा बैंक में भी था| अनन्या भी घर में अपनी नौकरी का पैसा देती थी लेकिन मामी को हमेशा यह डर लगता रहा कि कहीं वह नानी को लिखा-पढ़ाकर उनसे पैसे या घर में अपना हिस्सा न करवा ले| पता नहीं, क्या हुआ, पहले तो मामी का रुख उसके साथ ठीक ही रहता था लेकिन नानी के बीमार होते ही उनके मन में न जाने क्या-क्या विचार आने लगे और वे उससे चिढ़ने लगीं|
देखा जाए तो दुनिया में सब जगह पैसे की ही महिमा है| धन के बँटने के डर से संबंधों में दरार पड़ने लगती है| यही उसके साथ भी हो रहा था| अभी नौकरी में इतना भी नहीं मिलता था कि वह कुछ अधिक दे सकती फिर भी वह अपनी आय का लगभग साठ प्रतिशत तो मामी को दे ही देती थी| अपने लिए उसे कुछ पैसा रखना ही होता | उसके दफ़्तर जाने-आने का खर्चा, बाहर जाती थी तो कपड़े भी ठीक-ठाक चाहिएँ थे| कभी किसी समय में ज़रूरत पड़ने पर भी पैसा ही काम आता है इसलिए आड़े समय के लिए भी उसे कुछ पैसा रखना जरूरी था|
नानी के बाद वह अपने आपको बेगाना सा समझने लगी| मामा के तीन बच्चे थे जो खासे बड़े थे लेकिन उन्हें काम के लिए कुछ न कहा जाता | नानी की एक हैल्पर थी जो बहुत सालों से उनके साथ थी बल्कि नाना जी के समय से ही थी| मामी को यह भी संशय था कि नानी उस महिला को कुछ न कुछ देती रहती हैं जिससे वह नानी व उस महिला से भी उखड़ी रहतीं| अधेड़ उम्र की महाराष्ट्रियन महिला सबका काम करती थी| न जाने क्यों नानी के बाद उस महिला को काम से हटा दिया गया| मामी खुद अपने मित्रों में व्यस्त रहतीं, मामा जी अपने बड़े से व्यवसाय में!कमी कुछ नहीं थी केवल अपनेपन के सिवा जो नानी के बिना कहीं खो गया था|
घर में और भी हैल्पर थे लेकिन बच्चों यानि छोटे बहन-भाइयों को उसके हाथ का बना खाना अच्छा लगने लगा था| मामी ने कहा कि जब बच्चे उसके हाथ का खाना पसंद करते हैं तो बिना बात ही कुक पर क्यों पैसे बिगाड़ने? और कुक को बाय कर दी गई| अब छोटे भाई बहनों को क्या पसंद था उसका ध्यान रखना, पूरे घर भर के लिए खाना बनाना जैसे वह एक ‘केयरटेकर’ बनकर रह गई थी| ऑफ़िस तो जाना ही होता था| अनन्या रो गई, इतना काम संभालना उसके बस में नहीं था|
समय का चक्र ही कहा जाएगा कि बंबई से उसकी सौतेली माँ का फ़ोन आया, वे परेशान थीं| पूछने पर पता चला कि उनकी अपनी बेटी किसी ईसाई लड़के से शादी करके विदेश चली गई थी और वे अब अकेली थीं| अनन्या को लगा कि उसे अपने पिता के घर लौट जाना चाहिए| उसकी माँ सौतेली थीं लेकिन उन्होंने उसके साथ कभी अपने आप दुर्व्यवहार नहीं किया था, जो किया था वह अपनी बेटी के कहने में आकर किया था, वह जानती थी| इसलिए वह लौटकर अपनी सौतेली माँ के पास आ गई| मामी ने और छोटे बहन-भाइयों ने उसे बहुत रोकने की कोशिश की, मामा तो बीच में बोलते ही नहीं थे| उसके पास माँ के अकेले रह जाने का बहाना था और वह पूना से मुंबई अपने पिता के घर वापिस आ गई|
यहाँ आकर अनन्या को अच्छा ही लगा। काम के साथ पुराना मित्र भी मिल गया| वह खूब मन लगाकर काम कर रही थी| कुछ ही दिनों में उसने अपनी तीव्र बुद्धि, नम्र स्वभाव व मेहनत से सबका मन जीत लिया| मनु से तो पहले से ही उसकी पहचान थी, अब तो वह उसकी पी.ए बन गई थी और डिवीज़न का काफ़ी काम संभाल रही थी अत:और भी नजदीकियाँ बढ़ गईं थीं| उसके चेहरे पर से अब धीरे-धीरे फीकापन गायब हो रहा था और एक सहजता आती जा रही थी|
हर उम्र में सबको एक साथी की ज़रूरत होती है| मनु को आशी से हमेशा प्रताड़ना ही मिलती रही थी और अब शर्तों पर शादी? उसके सामने बड़ा सवाल था जिसे वह किसी के साथ साझा भी नहीं कर सकता था| अनन्या के आने से वह उसके सामने हँसने-बोलने लगा था| दीना जी भी उसमें आए बदलाव को महसूस कर रहे थे| उसके बदलाव से वे खुश भी थे लेकिन उनके मन को चिंता भी खा रही थी|
“कैसी लड़की है अनन्या ? ”दीना अंकल के पूछने से अचानक मनु चौंक गया|
“बहुत अच्छी है अंकल, मैंने आपको बताया था न, हम एक ही कॉलेज में थे---”उसने कहा|
“हाँ, याद आया, काम के बारे में तो कोई शिकायत ही नहीं है| स्वभाव भी बहुत अच्छा है उसका और बहुत अनुशासित भी है| ”दीना अंकल ने मनु से कहा, मन में उन्हें कुछ घबराहट भी हो रही थी| आखिर उनकी सिरफिरी बेटी का होने वाला पति था मनु!
“दस दिन ही रह गए हैं शादी को---”उनके मुँह से धीरे से निकला|
“जी---”मनु ने भी धीरे से उत्तर दिया|
मनु का दिल अचानक बैठने लगा जैसे !उसके सामने आशी का चेहरा, उसका फीका व्यवहार, उसकी अकड़ अचानक आ गई| ’दीना अंकल को अनन्या को देखकर अचानक शादी की याद क्यों आ गई? ’मनु ने सोचा और सारी बात तुरंत समझ भी गया| बड़ा स्वाभाविक था आखिर वे बेटी के पिता थे, वो भी आशी जैसी बेटी के!
“आप परेशान हैं अंकल? ” उसने दीना अंकल को सांत्वना देने के लिए पूछा|
“नहीं, परेशान क्या बेटा, समझ ही नहीं आ रहा है शादी की क्या तैयारी करूँ? ”वे सच में उदास थे|
क्या तैयारियाँ करें अपनी इकलौती की शादी बेटी की? वह तो कोर्ट में शादी करने की ज़िद पर अड़ी हुई थी| शादी के बाद भी उसे कहीं जाना नहीं था| मनु भी कुछ ऐसे ही सोचने लगता था कभी भी लेकिन आशी को कहाँ कुछ सोचने की ज़रूरत थी!शादी के लिए ‘हाँ’करके वह तो सब पर एहसान कर रही थी|
मनु ने आशी को अनन्या से मिलवाया था, यह भी बताया कि वे दोनों कॉलेज के अच्छे दोस्त हैं लेकिन उसके लिए तो सब एकसे ही थे, एंपलोई---| मनु की दोस्त अब उसकी पी.ए थी, उसकी सेहत पर इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था|
दीनानाथ जी ने आशिमा को बुलवा लिया था, किससे, क्या सलाह करें? लेकिन अब भी समझ नहीं पा रहे थे कि कहाँ से और क्या तैयारी की जाए? आशिमा ने आशी से कुछ शॉपिंग करने के लिए कई बार कहा लेकिन उसने साफ़ कह दिया कि उसे किसी चीज़ की कोई ज़रूरत नहीं है| अब इतनी बड़ी लड़की से ज़बरदस्ती तो की नहीं जा सकती| आशी ने तो कोठी पर रोशनी करने के लिए भी मना कर दिया था| यह शादी थी क्या? सबके चेहरे बुझे हुए से, गुमसुम से !किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| पिता दीना को आजकल डॉ.सहगल की बहुत याद आ रही थी, इतनी तो आशिमा की शादी में भी नहीं आई थी| सब मिल-जुलकर प्लान बनाते, खूब शॉपिंग की जाती थी| घर में जैसे बहार सी आ गई थी लेकिन इस बार कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था| वे तो कुछ भी करने को तैयार थे लेकिन उनकी बेटी उनकी लाई हुई चीज़ों का सम्मान कर सकेगी? सम्मान न सही, उपयोग ही सही, प्रयोग ही सही!
आशिमा, रेशमा और दीना अंकल ने कुछ शॉपिंग तो कर ही ली| मनु को भी पकड़कर ले गए और उसके लिए व बेटियों के लिए, घर के पूरे स्टाफ़ के लिए कपड़े खरीदकर ले आए| आशिमा, रेशमा ने ज़बरदस्ती दीना अंकल को भी काफ़ी कपड़े खरीदवा दिए| आशी के लिए भी अपनी पसंद से ही कपड़े व जेवर ले आए थे| बेचारा मनु तो कुछ बोलने की स्थिति में था ही नहीं, क्या और किसको बोलता ? बिलकुल ऐसा लग ही नहीं रहा था कि उसकी शादी आशी से हो रही है!आशी का वही सपाट चेहरा और वैसा ही व्यवहार!कैसे कोई उससे बात कर सकेगा?
बड़ी ज़िद करके रेशमा ने शादी वाले दिन आशी को एक सुंदर सी साड़ी पहनने के लिए मना ही लिया| न जाने उससे कैसे थोड़ी बहुत मान जाती थी वह! किसी से भी माने, माने तो सही!नियत समय पर कोर्ट में विवाह सम्पन्न हो गया| पिता की बेचारगी ने एक लंबी साँस ली लेकिन उसे चैन की साँस नहीं कहा जा सकता था| उसी दिन रात को कंपनी के सभी एंपलोईज़ ने दीनानाथ जी को मनाकर फाइव-स्टार में डिनर रखवाया था और सब लोगों को उनकी तरफ़ से आमंत्रित कर दिया था| आशिमा की ससुराल से सब लोग थे ही, मनु के कॉलेज फ्रैंडस, दीनानाथ जी के जानने वाले, व्यवसायिक मित्र और पूरा स्टाफ़ था| दीना जी ने छोटे से छोटे कर्मचारी तक को बुलवाने के लिए कह दिया था|
अनन्या ने इस शादी में बहुत सहायता की, वह आशिमा और रेशमा की दोस्त बन गई थी| तीनों लड़कियों ने सभी मेहमानों का बड़े मन से स्वागत किया| आशी वहाँ केवल दस मिनट के लिए ही रही| वह वहाँ से हर बार की तरह चली आई थी| उसके मुख पर शादी का कोई उत्साह नहीं था| मनु बेचारे को दोनों का भार संभालना पड़ रहा था| वह आमंत्रित लोगों से गिफ्ट्स लेता, उन्हें थैंक्स कहता और आशिमा, रेशमा या अनन्या को गिफ्ट्स पकड़ा देता | आशी की अनुपस्थिति के लिए वह सबसे माफ़ी माँगता| कहना पड़ा कि आशी का ब्लड-प्रैशर लो हो गया था इसलिए उसे घर जाना पड़ा| वह बहुत शर्मिंदा हो रहा था और उसकी आँखों में बार-बार आँसु भर आते जिन्हें वह मुस्कान में बदल देता| अनन्या अपने दोस्त व बॉस की बेचारगी समझ रही थी| कुछ भी न कहने के लिए वह विवश थी, चुपचाप मनु को देखते हुए आँसु के घूँट पीती रही|
“आशी! तुम्हारी सब बात मानी गई हैं, पर यहाँ सबके सामने तो कम से कम---”मनु ने रोकना चाहा लेकिन आशी ने तो जैसे कसम खा रखी थी कुछ भी न मानने की|
“शादी से पहले ही तुम्हें सब कुछ बता दिया था, आखिर इस पार्टी की भी क्या ज़रूरत थी? और तुम जानते ही हो भीड़-भाड़ में मुझे कितनी उलझन होती है!”और बस इसके बाद वह वहाँ से चली आई| मनु बेचारा उसका मुँह देखता रहा| अनन्या ने सब कुछ देखा, सुना और बहुत दुखी हो गई| आशिमा, रेशमा भी कैसे भाई की शादी में खुश रह पातीं जबकि मनु के चेहरे पर भी उदासी भरी मुस्कान थी| आखिर कौन ऐसे खुश रह सकता है अपने पार्टनर के बिना? यह कैसी शादी थी? बिना दुल्हन के अकेले दूल्हे की बेचारगी का मज़ाक उड़ाती सी !