Sanyasi - 12 in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 12

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सन्यासी -- भाग - 12

लखन लाल के साथ अन्याय होता देख जयन्त चुप ना रह सका और उसने कुछ दिन ठहरकर आखिरकार काँलेज के बाबू सुमेरसिंह की शिकायत प्रिन्सिपल से कर ही दी,जयन्त के शिकायत करने से सुमेर सिंह के ऊपर कार्यवाही शुरू हो गई,जिससे सुमेर सिंह बौखला गया और वो एक दिन लखनलाल की झोपड़ी जा पहुँचा और उसे हड़काते हुए बोला....
"लखनलाल....ओ...लखनलाल बाहर निकल आया"
लखनलाल जैसे ही बाहर निकला तो उसने सुमेर सिंह से पूछा...
"क्या हुआ बाबूजी!"
"बाबू जी के बच्चे,मेरी वहाँ शिकायत लगाता है और यहाँ बाबूजी...बाबूजी...कर रहा है",सुमेर सिंह ने लखन लाल से कहा...
" नहीं बाबूजी! मैंने तो आपकी वहाँ कोई शिकायत नहीं लगाई",लखन लाल ने सुमेर सिंह से कहा...
"अगर तूने किसी से कुछ नहीं कहा तो फिर वो जयन्तराज ने प्रिन्सिपल से मेरी शिकायत क्यों लगाई",सुमेर सिंह गुस्से से बोला...
"आप मेरा विश्वास कीजिए,मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया",लखनलाल रिरियाते हुए बोला.....
"तो फिर उसे कैंसे पता चला कि तू यहाँ झोपड़ी में रहता है",सुमेर सिंह ने लखनलाल से पूछा...
"वो एक दिन यहाँ आएँ थे और खुद देखकर गए",लखनलाल ने कहा....
"ठीक है,अभी तो मैं यहाँ से जा रहा हूँ लेकिन याद रखना,मैं माँफ करने वालों में से नहीं हूँ"
और इतना कहकर सुमेर सिंह वहाँ से चला गया,इसके बाद जब काँलेज में लखनलाल को जयन्त दिखा तो उसने उससे पूछा.....
"बाबूजी! आपने शिकायत करी है क्या उस सुमेर सिंह की",
"हाँ! तुम्हें कैंसे पता चला"?,जयन्त ने लखनलाल से पूछा...
"जी! वो मुझे धमकाने के लिए मेरे घर आया था",लखनलाल ने सिर नीचे करते हुए कहा....
"उस कमीने की इतनी हिम्मत,अब तो मैं उसे जेल भिजवाकर ही रहूँगा",जयन्त गुस्से से बोला...
"ना! बाबूजी! ऐसा कुछ मत करना,नहीं तो वो मुझे कच्चा चबा जाऐगा",लखनलाल परेशान होकर बोला...
लखनलाल को परेशान देखकर जयन्त ने उससे आराम से कहा...
"लखनलाल! तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है,उसने गलती की है तो उसे उसकी सजा मिलनी चाहिए,मालूम होता है कि जैसे वो नहीं तुम अपराधी हो,इतना मत डरो,तुम ऐसा करोगे तो उसकी हिम्मत और बढ़ेगी,आज उसने तुम्हारे साथ किया है और कल को वो यही काम किसी और के साथ भी करेगा,तब तो ये सिलसिला खतम होने वाला नहीं है,वो यूँ ही गरीबो का हक़ नहीं खा सकता,मैं उसे ऐसा हरगिज़ नहीं करने दूँगा",
"अब आप कहते हैं तो ठीक है,मैं आपके साथ हूँ",लखनलाल मायूस होकर बोला...
"ये हुई ना बहादुरों वाली बात,मेरी बात हमेशा याद रखना गलत के आगें कभी अपना सिर मत झुकाओ", जयन्त बोला....
"जी! ठीक है,मैं राजी हूँ",लखनलाल बोला....
"तो अब मैं चलता हूँ और सुमेर सिंह के खिलाफ अब तो मैं और भी सख्त कार्यवाही करूँगा",जयन्त बोला...
"जी! बाबूजी! नमस्ते!",लखनलाल ने जयन्त से कहा...
और फिर जयन्त वहाँ से चला आया,इसके बाद उसने एक वकील के माध्यम से सुमेर सिंह पर केस कर दिया,लेकिन सुमेर सिंह भी कहाँ चुप रहने वाला था,वो जयन्त की शिकायत करने उसके पिता शिवनन्दन जी के पास जा पहुँचा,सुमेर सिंह वैसे भी शिवनन्दन सिंह जी के दूर का रिश्तेदार था,वो दूर के रिश्ते में उनका फूफेरा भाई लगता था,फिर क्या था सुमेर सिंह ने नमक मिर्च लगाकर जयन्त की उनके सामने खूब बुराई की,जिससे शिवनन्दन जी जयन्त की इस हरकत से भड़क उठे,वो तो वैसे भी जयन्त की हर एक बात के विरुद्ध रहते थे,फिर चाहे भले ही जयन्त ही क्यों ना सही हो और फिर शाम को जब शिवनन्दन जी घर पहुँचे तो उन्होंने जयन्त को अपने कमरे में बुलाया,जयन्त सहमा हुआ सा उनके पास पहुँचा और उनसे बोला....
"आपने मुझे बुलाया बाबूजी?"
"हाँ!"शिवनन्दन सिंह जी बोले...
"क्या मैं जान सकता हूँ कि क्या बात है?",जयन्त ने पूछा...
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,साहबजादे! आपके चर्चों से तो पूरे शहर में हंगामा बरपा हुआ है,मेरी इज्जत उछालने में तो आपने पहले ही कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी और अब तो आप हमारे रिश्तेदारों के पीछे भी हाथ धोकर पीछे पड़ चुके हैं",शिवनन्दन जी गुस्से से बोले...
"आप कहना क्या चाहते हैं,मैं कुछ समझा नहीं",जयन्त ने पूछा...
"अब इतने भी अन्जान मत बनो,मैं क्या कहना चाहता हूँ ये तुम बखूबी जानते हो",शिवनन्दन जी बोले....
"जी! सच! मैं आपकी बात नहीं समझा",जयन्त बोला...
"अच्छा! तो बखुर्दार आप मेरी बात नहीं समझे,नहीं समझे तो मैं समझाएँ देता हूँ,तो ये बताओ उस लखनलाल से तुम्हारा क्या वास्ता है"?, शिवन्दन जी ने पूछा....
"ओह...तो मैं अब समझा,शायद आप तक सुमेर सिंह ने ये बात पहुँचा दी है",जयन्त मुस्कुराते हुए बोला...
"गलती करके बेशर्मों की तरह मुस्कुरा रहे हो,बाप की इज्ज़त सरेआम उछालते लज्जा नहीं आती", ये बात कहते हुए शिवनन्दन सिंह जी का लहजा जरा सख्त था....
"किसी गरीब को न्याय दिलवाना मेरे हिसाब से बेशर्मी तो बिल्कुल भी नहीं है",जयन्त ने कहा...
"तू बड़ा गरीबों का मसीहा बना फिरता है,पहले खुद तो किसी काबिल बन जा",शिवनन्दन जी गुस्से से बोले...
"बाबूजी! आपने मुझे इतना काबिल तो बना ही दिया है कि अपनी आँखों के सामने होते हुए अन्याय को रोक सकूँ"जयन्त बोला...
"तुझे क्या लगता है कि तू उस लखनलाल का हक़ दिलवाने के लिए प्रशासन से लड़ सकता है",शिवनन्दन जी बोले...
"जी! क्यों नहीं! मैं लड़ूँगा प्रशासन से और मेरे रास्ते में आने वाली हर उस बाँधा से भी लडूँगा तो मुझे सही कार्य करने के लिए रोकेगी",जयन्त बोला...
"भला! इतना दम है तुझमें",शिवनन्दन जी ने पूछा...
"अब दम की बात मत पूछिए बाबूजी! आपका ही बेटा हूँ तो कुछ ना कुछ तो खासियत होगी ही मुझ में", जयन्त मुस्कुराते हुए बोला...
"ओहो...तो अब तू मुझे चुनौती दे रहा है",शिवनन्दन जी गुस्से से बोले...
"ये चुनौती नहीं मेरा स्वाभिमान है,मेरी ईमानदारी है,मेरी मानवता है,मैं कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं होने दूँगा",जयन्त गर्व के साथ बोला....
"तुझे पता है ना कि वो सुमेर सिंह हमारा रिश्तेदार है",शिवनन्दन सिंह जी बोले....
"तो क्या हुआ,सबके रिश्तेदार होते हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि मैं अपनी आँखों पर काली पट्टी बाँधकर धृतराष्ट्र की भाँति अन्याय होता देखता रहूंँ",जयन्त बोला...
"तो तू नहीं मानेगा,अपने मन की करके ही रहेगा",शिवनन्दन सिंह जी बोले...
"कोशिश बेकार है बाबूजी! मैंने कहा ना कि मैं अन्याय कभी भी बरदाश्त नहीं करूँगा",जयन्त बोला...
"वो सुमेर सिंह एक नंबर का गुण्डा इन्सान है,उसने कितने ही लठैत पाल रखे हैं,उससे दुश्मनी मोल मत ले,तुझे कहीं कुछ हो गया तो तेरी माँ जीते जी मर जाऐगी",शिवनन्दन सिंह जी बोले....
"जिस दिन मुझे कुछ होने पर आपको फर्क पड़ने लगेगा तो उस दिन शायद अपने मकसद में पीछे हटने की सोच भी लूँ,लेकिन अभी तो नहीं और रही माँ की बात तो वो आपसे ज्यादा मजबूत दिल की है", जयन्त मुस्कुराते हुए बोला...
"मतलब! तू पीछे नहीं हटने वाला",शिवनन्दन जी बोले...
"जी! नहीं! बिलकुल नहीं! और अगर आपकी बात पूरी हो गई हो तो क्या मैं यहाँ से जा सकता हूँ,क्योंकि पढ़ाई करनी है , इम्तिहान आने वाले हैं",जयन्त मुस्कुराते हुए बोला....
"हाँ! जाओ!",शिवनन्दन जी गुस्से से बोले...
"जी! ठीक है! शुभरात्रि!"
और इतना कहकर जयन्त शिवनन्दन जी के कमरे से चला आया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...