Towards the Light – Reminiscence in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

Featured Books
  • DIARY - 6

    In the language of the heart, words sometimes spill over wit...

  • Fruit of Hard Work

    This story, Fruit of Hard Work, is written by Ali Waris Alam...

  • Split Personality - 62

    Split Personality A romantic, paranormal and psychological t...

  • Unfathomable Heart - 29

    - 29 - Next morning, Rani was free from her morning routine...

  • Gyashran

                    Gyashran                                Pank...

Categories
Share

उजाले की ओर –संस्मरण

==================

मित्रो !

स्नेहिल नमस्कार

आयशा बचपन में बड़ी चुलबुली लड़की होती थी, जब देखो खुद खिलखिलाती रहती और सबमें भी मुस्कान बाँटती | चलती थी तो केवल चलती नहीं थी,नाचती-कूदती चलती थी | उसे देखकर सबके चेहरों पर मुस्कान थिरक जाती | सच तो यह था कि जब तक वह आ न जाती, सब उसकी प्रतीक्षा करते रहते |

अब वह बड़ी हो रही है, कॉलेज में आ गई है, वहाँ भी उसकी धमाल, मस्ती रहती| सब उससे बात करना, दोस्ती करना पसंद करते लेकिन ग्रेजुएट होने के बाद अचानक उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा | उसने बहुत बड़े-बड़े सपने देखने शुरू कर दिए |

फ्रायड के मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य के लिए सपने देखने जरूरी हैं | उनका कहना है कि हमारे सपने हमारी परस्पर विरोधी और अक्सर अस्वीकार्य इच्छाओं को अभिव्यक्त करने के लिए होते हैं | हर उम्र के सपने अलग प्रकार के होते हैं |

सपने तो वह पहले भी देखती थी जब बच्ची थी जैसे सब देखते हैं यानि बच्चे गुड्डे-गुड़ियों, बॉल -बैट, मोटरगाड़ी, हवाईजहाज़ जैसे अनेक खिलौनों के सपने ! फिर दोस्तों से लड़ाई-झगड़े के सपने, मम्मी-पापा से कुछ मांगने पर और न मिलने पे रूठने-मनाने के सपने लेकिन बड़े होने पर जो उसने सपने देखने शुरू किए वे उसकी यौवनावस्था में राजकुमार मिलने के सपने नहीं थे, वे थे कुछ बड़े सपने !कैरियर बनाने के सपने !

सपने कई बार बुने गए तो कई बार टूटने भी लगे और तब से ही उसकी खिलखिलाहट उदासी में बदल गई | सपने कई लोगों के जीवन का आधार बन जाते हैं। वो अपने सपनों से खुद को इतना जोड़ लेते हैं कि जब वो सपना हासिल नहीं होता है, तो उन्हें अपनी जिन्दगी आधारहीन लगने लगती है। वो इस बात को स्वीकार नहीं पाते कि जिस सपने का वो इतने सालों से पीछा कर रहे थे, जिसके लिए इतना प्रयासरत थे, वह पूरा नहीं हो रहा। उनका न केवल खुद से यकीन समाप्त हो जाता है बल्कि वो निराशा में खुश होना ही भूल जाते हैं। आयशा के साथ भी यही हो रहा था |

उसके सपने न जाने उसे क्यों परेशान करने लगे और वह ऊर्जा विहीन सी होने लगी, यह उसके मन व तन के लिए ठीक नहीं था | जीवन में सभी सपने एकदम पूरे नहीं होते, उनके पूरा होने में समय लगता है लेकिन उसके लिए टूट जाना हितकर तो बिलकुल भी नहीं है |

किसी की भी ज़िंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आ ही सकती है और आ भी क्या सकती है, आती ही रहती है लेकिन उस असफलता में निराशा के काले बादलों में खुद को ढक लेना, ठीक तो नहीं है | निराश होने से आगे का काम भी रुक जाएगा, और मजबूती से परिस्थिति को पकड़कर चलने से भविष्य में सपने सच होने में कोई संशय नहीं होगा |

ये हमें सदैव याद रखना चाहिए कि सपनों को जीवन का आधार बनाना खुद को एक भ्रम की स्थिति में डालने जैसा है। सपने हमारे मोटिवेशन का जरिया हो सकते हैं पर हमारे जीने की वजह नहीं। खुद को इस भ्रम की स्थिति से बाहर निकालना आवश्यक है, तभी हम जीवन में आगे बढ़ पायेंगे। सपने पूरा नहीं होना हमें दुखी कर सकता है, लेकिन इसे अपने खुश न होने की वजह बनाना ठीक नहीं है । हम खुद में स्वीकृति का भाव विकसित करें जिससे हम आपको असफलताओं को स्वीकारने में सहज हो सकें । जब हम सफलता और असफलता को समभाव से ले सकेंगे तबही आगे और बड़े सपने देखने में और उन्हें सफ़ल देखने में आनंदित हो सकेंगे |

चलिए, सब मिलकर ऐसे सपने देखें जो हमें असफ़ल होने पर भी दुख न दें बल्कि यदि असफ़ल भी हो जाएं तब भी दूसरे सपने देखकर अपने जीवन को रोशन कर सकें |

 

आपका दिन सपरिवार सुखद हो।

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती