Laga Chunari me Daag - 49 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(४९)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४९)

दोनों रेस्तराँ में पहुँचे तो प्रत्यन्चा इतना बड़ा रेस्तरांँ देखकर थोड़ी असहज सी हो गई क्योंकि वो पहली बार इतने बड़े रेस्तराँ में खाना खाने आई थी,उस पर वहाँ आई लड़कियांँ जो कि माँडर्न ड्रेस में थीं और प्रत्यन्चा साड़ी में इसलिए उसे वहाँ और भी असहज लग रहा था,लेकिन धनुष उसके मन में चल रहे विचारों के आवागमन को भाँप गया और उसके लिए कुर्सी खिसकाते हुए उससे बोला....
"क्या सोच रही हो प्रत्यन्चा!,बैठो ना!"
"जी!" ऐसा कहकर प्रत्यन्चा कुर्सी पर बैठ गई...
इसके बाद धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा....
"अब बताओ,पहले क्या लोगी,सूप या कुछ स्नैक्स वगैरह"
"जी! इतना सबकुछ मुझे नहीं मालूम,जो आप खाऐगें सो मैं भी वही खा लूँगी",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! ठीक है!",धनुष ने मुस्कुराते हुए कहा...
इसके बाद धनुष ने एक बैरा को पुकारा और उससे सूप के साथ कुछ स्नैक्स लाने को कहें,तब बैरा ने कहा...
"जी! यहाँ के कार्न कटलेट्स बहुत फेमस हैं,आप कहें तो ले आऊँ"
"हाँ! ले लाओ,लेकिन जरा जल्दी",धनुष ने बैरे से कहा...
उस दौरान धनुष को प्रत्यन्चा जरा परेशान सी नज़र आई,वो कभी रेस्तराँ की सजावट देख रही थी,तो कभी वहाँ के आने जाने वालों को और सबसे ज्यादा परेशानी उसे छोटी ड्रेस पहने हुई लड़कियों से हो रही थीं,फिर कुछ देर बाद बैरा सूप और काँर्न कटलेट्स लेकर आ पहुँचा और दोनों से बोला....
"लीजिए सर! आपका आर्डर"
"ठीक है! रख दो ! और थोड़ी देर में खाने का आँर्डर लेने आ जाना"धनुष बैरे से बोला...
"ठीक है सर!" बैरा ऐसा बोलकर चला गया...
बैरे के जाने के बाद धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"चलो! खाना शुरू करो"
अभी दोनों ने सूप पीना शुरू ही किया था कि इतने में धनुष के जानने वाले दो तीन लोग वहाँ आ पहुँचे, वे सब भी धनुष के साथ क्लब जाया करते थे,जैसे ही उन्होंने धनुष को देखा तो उनमे से एक बोला...
"अरे! धनुष! कहाँ है भाई आजकल तू! अब तो क्लब भी नहीं आता,क्या बात है"?
"बस! ऐसे ही मन नहीं करता अब क्लब आने का",धनुष ने उन सब से कहा...
"अच्छा! ये तो बता ,ये तेरे साथ में कौन है,हमारी भाभी है क्या?",उनमे से एक ने पूछा....
"नहीं! ये मेरी दोस्त है",धनुष ने कहा...
"ओह...तो इन मोहतरमा के चक्कर में हैं आजकल जनाब!,तभी तो क्लब नहीं आते, वैसे ये हैं बड़ी खूबसूरत और किस क्लब में नाचतीं हैं ये",उनमे से दूसरे ने पूछा...
"ये क्या बकवास कर रहे हो तुम!,कहा ना ये मेरी दोस्त है और ये एक शरीफ़ लड़की है,इसलिए इसके बारें में कुछ भी बकवास मत करो",धनुष गुस्से से बोला...
"ओहो....तेवर तो देखो जनाब के,एक लड़की के लिए अपने दोस्तों को बातें सुना रहा है",उनमें से एक और बोला...
"कहा ना मेरी दोस्त है,तो फिर क्यों बकवास किए जा रहे हो,मार खाने के बाद ही यहाँ से जाओगे क्या?", धनुष ने उन सबसे गुस्से से कहा....
"तू हमें मारेगा तो क्या हम बरदाश्त कर लेगें,हाथ तो लगा के दिखा,फिर हम तुझे तेरी औकात दिखाते हैं", उनमें से दूसरा बोला...
तभी प्रत्यन्चा ने धनुष से कहा....
"मत उलझिए इन लोगों से,किसी से इस तरह से उलझना अच्छी बात नहीं है,चलिए यहाँ से चलते हैं",
फिर प्रत्यन्चा के समझाने पर धनुष उन लोगों से कुछ नहीं बोला...
इसके बाद धनुष ने बैरे को बुलाकर बिल चुकाया और प्रत्यन्चा के साथ उस रेस्तराँ से बाहर आ गया,फिर वो प्रत्यन्चा से बोला....
"माँफ करना,मेरी वजह से तुम खाना नहीं खा पाई"
"कोई बात नहीं धनुष जी! वैसे भी मुझे वहाँ अच्छा नहीं लग रहा था,देखिए उस तरफ सड़क के उस पार कितने सारे ठेले लगे हैं खाने के चींजों के,चलिए ना वहीं चलकर कुछ खाते हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"लेकिन मैं कभी किसी ठेले से कुछ नहीं खाता,बल्कि हमेशा फुटपाथ पर बिक रहीं चींजें खाने से बचता रहता हूँ,ये सब चींजे तो बीमारी की जड़ होतीं हैं",धनुष बोला....
"कोई बात नहीं,मैं तो वहीं खाऊँगी और हम दोनों बीमार पड़ गए तो आपके दादाजी का अस्पताल किसलिए है, वहाँ पर इलाज हो जाऐगा हम दोनों का",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम भी ना! अजीब हो बिल्कुल,तुम कह रही तो चलो वहीं चलते हैं",
ऐसा कहकर धनुष प्रत्यन्चा को सड़क के उस पार ले गया,जहाँ बहुत सारी चींजे बिक रहीं थीं,चाट पकौड़ी,गोलगप्पे ,आलू टिक्की,जलेबियाँ रबड़ी,और पान,इसके अलावा भी बहुत कुछ था वहाँ, फिर वहाँ पहुँचकर धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"अब बताओ पहले क्या खाओगी"
"गोलगप्पे....वो भी तीखे वाले,इसके बाद आलू टिक्की और दही बड़े भी खाऊँगी,देखिए ना ! कितनी गजब की चींजें मिल रहीं हैं यहाँ और मुझे आप उस मनहूस रेस्तरांँ में लेकर गए थे",प्रत्यन्चा मुँह बनाते हुए बोली...
"चलो...फिर खाओ गोलगप्पे",धनुष ने कहा...
और फिर धनुष के इतना कहने पर प्रत्यन्चा झट से दोना लेकर खड़ी हो गई और गोलगप्पे खाने लगी, गोलगप्पे खाते खाते उसने धनुष से पूछा...
"आप नहीं खाऐगें"
"रहने दो,तुम खाओ",धनुष संकोचवश बोला....
"अरे! खाइए ना! कुछ नहीं होता", और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा ने अपने दोने में रखा हुआ गोलगप्पा धनुष के मुँह में घुसा दिया...
जैसे ही गोलगप्पा धनुष के मुँह में गया तो वो उसे बड़ा ही मज़ेदार लगा,इसके बाद प्रत्यन्चा से ज्यादा गोलगप्पे तो धनुष ही खा गया,फिर दोनों ने आलू टिक्की खाई,दही बड़े भी खाएँ,फिर दोनों ने जलेबी और रबड़ी खाई,सबसे बाद में दोनों ने पान खाया और चले आएँ वहाँ से,फिर वे दोनों रेस्तराँ के पार्किंग में खड़ी मोटर में आकर बैठ गए,इसके बाद प्रत्यन्चा ने रामानुज से कहा....
"रामानुज काका! अब मोटर मंदिर की ओर ले चलिए,धनुष बाबू के ठीक हो जाने की खुशी में मैं वहाँ प्रसाद चढ़ाना चाहती हूँ",
"ठीक है बिटिया!", और ऐसा कहकर रामानुज ने मोटर लक्ष्मीनारायण मंदिर की तरफ मोड़ ली...
फिर दोनों साथ में मंदिर पहुँचे ,प्रसाद खरीदा और फिर जब वे दोनों प्रसाद चढ़ाकर वापस आने लगे तो धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा....
"थोड़ी देर इन सीढ़ियों में बैठकर बात करें,अगर तुम्हें एतराज़ ना हो तो"
फिर धनुष की फरमाइश पर प्रत्यन्चा मंदिर की सीढ़ियों में बैठ गई, इसके बाद धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"मैं तुम्हारे लिए एक तोहफा और लाया था"
"तो फिर दिया क्यों नहीं",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"लो अभी दिए देता हूँ"
और ऐसा कहकर धनुष ने अपने पेंट की जेब से एक डिब्बी निकालकर प्रत्यन्चा की ओर बढ़ा दी,प्रत्यन्चा ने डिब्बी खोली तो तोहफा देखकर खुश होकर बोली....
"पायल....आप मेरे लिए पायल लाएँ हैं"
"हाँ!,अच्छा !लाओ मैं तुम्हारे पैंरों में पहना दूँ",धनुष बोला...
"नहीं! आप तकलीफ़ मत उठाइए,मैं पहन लूँगीं",प्रत्यन्चा बोली...
"पहनाने दो ना...मुझे अच्छा लगेगा",धनुष बोला....
और फिर धनुष ने प्रत्यन्चा के पैंरों में पायल पहना दी और उससे बोला...
"अब हुआ है तुम्हारा श्रृंगार पूरा,बस माथे में एक बिन्दी होती तो फिर कहने ही क्या थे",धनुष बोला...
"मैं माथे पर बिन्दी नहीं लगा सकती धनुष जी!",प्रत्यन्चा ने उदास होकर कहा...
"लेकिन क्यों प्रत्यन्चा?", धनुष ने पूछा...
"मत पूछिए ना! मैं आपको उसकी वजह बता नहीं पाऊँगीं"प्रत्यन्चा दुखी होकर बोली....
"ऐसी कौन सी वजह है जो तुम मुझे नहीं बता सकती",धनुष ने पूछा...
"नहीं बता सकती तो बस....नहीं बता सकती, आपको हर बात बतानी जरूरी नहीं है",प्रत्यन्चा चिढ़कर बोली...
"हाँ! तुम मुझे कुछ क्यों बताओगी,तुम तो अपने मनपसन्द डाक्टर साहब को ये सब बातें बताओगी",धनुष गुस्से से बोली...
"आपने फिर से बकवास शुरु कर दी",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"मैंने शुरू की या तुमने",धनुष बोला...
"आपने शुरू की,पता नहीं डाक्टर बाबू से आपको क्या दुश्मनी है",प्रत्यन्चा बोली...
"बड़ी हमदर्दी है तुम्हें डाक्टर साहब से",धनुष गुस्से से बोला...
"क्यों ना होगी हमदर्दी,वो आपसे अच्छे जो हैं",प्रत्यन्चा भी गुस्से से बोल गई...
"ठीक है अगर वो अच्छे हैं तो जाओ उन्हीं के पास ,मेरे साथ क्यों आई हो'",धनुष गुस्से से बोला...
"मैं अपनी खुशी से नहीं आई थी आपके साथ,आप लेकर आएँ थे मुझे अपने साथ",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली....
"लोगों के साथ चाहे कितना भी करो,लेकिन जब भी छुरी चलाऐगें तो गर्दन पर ही चलाऐगें",धनुष गुस्से से बोला...
"आप मुझे बाहर खाना खिलाने लाएँ तो उस बात का एहसान जता रहे हैं",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मैंने ऐसा तो नहीं कहा",धनुष बोला...
"लेकिन आपके कहने का तो यही मतलब था",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम्हें जो समझना है समझती रहो,मैं मोटर में जा रहा हूँ"
और ऐसा कहकर धनुष अकेला ही मोटर में आकर बैठ गया,तब रामानुज ने उससे पूछा...
"बिटिया कहाँ है छोटे बाबू?"
"मुझे क्या मालूम?",धनुष गुस्से से बोला...
इसके बाद रामानुज मोटर से उतरा और प्रत्यन्चा को लिवाकर लाया,फिर उसे मोटर में बैठाकर उसने मोटर स्टार्ट की और फिर सब घर की तरफ चल पड़े....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....