Laga Chunari me Daag - 43 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(४३)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४३)

अब प्रत्यन्चा और धनुष के बीच का झगड़ा खतम हो चुका था,फिर से प्रत्यन्चा धनुष के खाने पीने और दवाइयों का ख्याल रखने लगी थी,ऐसे ही एक दो दिन बीते थे कि एक शाम डाक्टर सतीश के साथ उनकी माँ शीलवती जी भागीरथ जी के घर आईं और उनसे बोलीं....
"दीवान साहब! कल सतीश के पिता जी की बरसी है,तो उनकी आत्मा की शान्ति के लिए पूजा और भोज रखा है,आप लोग आऐगें तो हमें अच्छा लगेगा"
"जी! हम जरूर आऐगें",भागीरथ जी बोले....
"एक बात और कहनी थी आपसे,लेकिन कहते हुए संकोच सा हो रहा है",शीलवती जी भागीरथ जी से बोलीं...
"जी! आप बेफिक्र होकर कहिए",भागीरथ जी बोले...
"मैं चाहती थी कि अगर दोपहर तक प्रत्यन्चा काम में हाथ बँटाने घर आ जाएँ तो मुझे थोड़ी सहूलियत हो जाऐगी,क्योंकि मैंने देखा है प्रत्यन्चा घर के काम काज करने में बहुत चटक है,अगर आपको इस बात से को आपत्ति ना हो तो....",ऐसा कहते कहते शीलवती जी रुक गईं....
"भला! हमें क्या आपत्ति हो सकती है,आप बेफिक्र रहें ,हम प्रत्यन्चा को दोपहर तक मोटर से आपके घर भिजवा देगें",भागीरथ जी बोले....
"बहुत बहुत धन्यवाद",शीलवती जी बोलीं...
इसके बाद प्रत्यन्चा शीलवती जी और डाक्टर सतीश के लिए चाय नाश्ता लेकर आई,चाय पीने के बाद शीलवती जी घर जाने को हुईं तो प्रत्यन्चा ने उन्हें ये कहकर रोक लिया कि अब तो रात के खाने का वक्त हो चला है,ऊपर से आप थकी हुई भी नजर आ रहीं हैं,आपको घर जाकर खाना बनाने की कोई जरुरत नहीं है,आज रात का खाना आप यहीं खाकर जाइए,तब शीलवती जी प्रत्यन्चा से बोलीं....
"बेटी! इसकी कोई जरूरत नहीं है,मैं इतनी भी थकी हुई नहीं हूँ,घर जाकर खाना बना सकती हूँ"
"अरे! चाचीजी! आपको कल सुबह जल्दी उठकर इतनी सारी तैयारियांँ भी तो करनी हैं,इसलिए आज आप यहीं से खाना खाकर जाइए",प्रत्यन्चा ने उनसे कहा...
"माँ! प्रत्यन्चा जी! बिलकुल ठीक कह रहीं हैं,आपको कल बहुत से काम सम्भालने हैं और आज आप सबके घर जा जाकर उनको आमन्त्रित करने में भी थक चुकीं हैं,इसलिए प्रत्यन्चा जी की बात मानने में ही आपकी भलाई है",डाक्टर सतीश ने अपनी माँ शीलवती जी से कहा....
"अब तू और प्रत्यन्चा कह रहे हैं तो फिर यही सही" शीलवती जी बोलीं....
इसके बाद प्रत्यन्चा ने फुर्ती से रात का खाना बनाकर सबके सामने परोस दिया,उस समय तक तेजपाल जी भी घर आ गए थे तो उन्होंने भी सबके साथ बैठकर खाना खाया,लेकिन धनुष ने वहाँ सबके साथ बैठकर खाना नहीं खाया क्योंकि वो बाएँ हाथ से ठीक से खाना नहीं खा पाता था,खाना खाने के बाद जब डाक्टर सतीश और उनकी माँ चले गए तो प्रत्यन्चा धनुष के लिए खाना लेकर उसके कमरे में पहुँची,तो उसने देखा कि धनुष मुँह फुलाकर बैठा है और उससे बोला,
"मिल गई फुरसत"
तब प्रत्यन्चा ने उससे कहा....
"हाँ! मिल गई फुरसत,आज आपका खाना लाने में थोड़ी देर हो गई"
"हाँ! तुम मेहमानों की खातिरदारी करने में जो लगी थी तो मेरा खाना तुम्हें कहाँ याद रहता",धनुष बोला....
"अब कोई पहली बार घर आऐगा तो क्या मैं उसे ऐसे ही चले जाने देती",प्रत्यन्चा बोली...
"चाय नाश्ता तो करा दिया था,तो क्या खाना खिलाना इतना जरूरी था"धनुष बोला...
"देखिए धनुष बाबू! मैं बहुत थक चुकी हूँ और मुझे भूख भी लग रही है,भूखे पेट मुझे कुछ नहीं सुहाता, इसलिए मुझसे बहसबाजी मत कीजिए,बिना नखरे दिखाए खाना खा लीजिए",प्रत्यन्चा बौखलाकर बोली...
"क्या तुमने भी खाना नहीं खाया?",धनुष ने पूछा....
"मैं क्या आपको खिलाएँ बिना कभी खाती हूँ"?,प्रत्यन्चा ने पूछा...
"नहीं खाती...",धनुष बोला...
"तो फिर आज कैंसे खा सकती थी,विलसिया काकी ने मेरी थाली भी परोस दी थी,लेकिन मैंने उनसे कहा कि काकी तुम खा लो,मैं धनुष बाबू को खिलाने के बाद खा लूँगीं",प्रत्यन्चा बोली....
"अच्छा! तो ऐसा करो,तुम अपना खाना भी यहीं ले आओ,फिर साथ में खाते हैं",धनुष ने प्रत्यन्चा से कहा...
"नहीं! मैं बाद में खा लूँगी",प्रत्यन्चा बोली....
"ले आओ ना,तुमने अभी कहा ना कि तुम्हें भूख लगी है",धनुष बोला...
"रहने दीजिए ना! पहले आप खा लीजिए",प्रत्यन्चा बोली...
"क्यों? अपने लिए कुछ स्पेशल बनाया है क्या?",धनुष ने पूछा...
"अब आप मेरा दिमाग़ गरम करने वाला काम कर रहे हैं",प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"तो फिर ले आओ ना अपना खाना,साथ में खाते हैं",धनुष ने गुजारिश की...
इसके बाद प्रत्यन्चा भी अपना खाना ले आई और दोनों ने पहली बार साथ बैठकर खाना खाया,फिर दूसरे दिन दोपहर के वक्त प्रत्यन्चा डाक्टर सतीश के घर उनकी माँ का काम में हाथ बँटाने जा पहुँची, शीलवती जी काम में उसकी फुर्ती और सफाई देखकर हैरान थीं,उन्होंने मन में सोचा आज के जमाने की लड़कियांँ कहाँ इतना काम करतीं हैं,तब तक अनुसुइया जी भी वहाँ आ पहुँचीं थीं और तींनो मिलकर खाना तैयार करने लगीं,मेहमान इतने ज्यादा भी नहीं थे कि उनके लिए घर में खाना ना बनाया सकें,शाम के चार बजने वाले थे और पण्डित जी शान्तिपूजा करवाने के लिए घर आने वाले तभी काम करते वक्त प्रत्यन्चा के सलवार कमीज पर हल्दी पलट गई और उसके कपड़े खराब हो गए,जिससे प्रत्यन्चा परेशान हो उठी क्योंकि अब इतना वक्त नहीं रह गया था कि वो घर जाकर कपड़े बदलकर आ जाएँ,तब शीलवती जी उससे बोलीं....
"बेटी! परेशान मत हो,मेरे पास कुछ साड़ियाँ रखीं हैं,जो मैंने अमोली के लिए खरीदीं थीं,लेकिन किसी वजह से उसे दे नहीं पाई,तुम उन में से कोई पहन लो"
"ये अमोली कौन है चाची जी!",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मैं उसके बारें में तुम्हें फिर कभी बताऊँगी,तुम पहले जल्दी से कपड़े बदल लो,पूजा का वक्त होने वाला है और अब मेहमान भी इकट्ठे होने लगेगें"शीलवती जी बोलीं...
"जी! लेकिन ब्लाउज तो नहीं होगा ना उन साड़ियों का",प्रत्यन्चा बोली...
"सब है बेटी! मैंने सब तैयार करवाकर रखा था,वो भी तेरी जैसी कद काठी की थी, पहनकर देखो तुम्हें उसका ब्लाउज आ जाऐगा",शीलवती जी बोलीं....
"जब आपने उसके लिए इतना सब कुछ खरीदकर रखा था तो उसे दिया क्यों नहीं",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"वो सगाई होने से पहले ही मेरे सतीश को छोड़कर विलायत चली गई",शीलवती जी बोलीं....
"क्या वो डाक्टर बाबू की मंगेतर थी?",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"हाँ! सतीश उसे बहुत चाहता था",शीलवती जी बोलीं....
"फिर भी उन्हें छोड़कर चली गई",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"ना जाने क्यों चली गई,मेरा सतीश अब भी उसे बहुत याद करता है",शीलवती जी बोलीं....
"हो सकता है कि उसकी कोई मजबूरी रही हो",प्रत्यन्चा बोली....
"ऐसी भी क्या मजबूरी रही होगी,जो वो सतीश से ना कह सकी",शीलवती जी बोलीं....
"चाचाजी! होती हैं लोगों की कुछ ऐसी मजबूरियांँ जो वो किसी से कह नहीं सकते,बस अपने तक ही सीमित रखते हैं",प्रत्यन्चा उदास होकर बोली....
"अब तुम क्यों इतना उदास होती हो बेटी!,जाओ जल्दी से साड़ी पहनकर तैयार हो जाओ,जब साड़ी पहन लो तो मुझे बता देना,मैं तुम्हारे बाल सँवार दूँगीं",शीलवती जी बोलीं....
"ये बता दीजिए कि इनमें से मैं कौन सी साड़ी पहनूँ",प्रत्यन्चा ने पूछा....
"ये आसमानी वाली पहन लो,ये थोड़ी हल्की भी है,तुम्हें काम करने में आसानी रहेगी",शीलवती जी बोलीं...
इसके बाद प्रत्यन्चा साड़ी पहनकर बाहर आई तो शीलवती जी ने उसके लम्बे बालों का खूबसूरत सा जूड़ा बना दिया,फिर वे उससे बोलीं अभी कुछ कमी है,इसलिए उन्होंने प्रत्यन्चा को मोतियों की माला और मोतियों के टाप्स पहना दिए,हाथों में सोने के कंगन पहना दिए,जब वे उसके माथे पर छोटी सी बिन्दी लगाने लगी तो प्रत्यन्चा ने बिन्दी लगाने से इनकार कर दिया क्योंकि वो विधवा थी,लेकिन ये बात अभी कोई नहीं जानता था,कुछ देर के लिए प्रत्यन्चा अपने अतीत में चली गई और उसकी आँखें भर आईं,उसका उदास चेहरा देखकर शीलवती जी ने उससे पूछा...
"क्या हुआ बेटी! तुम अचानक उदास क्यों हो गईं",
"जी! कुछ पुराना याद आ गया था,वही सोचकर आँखें नम हो गईं",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसे उदास नहीं होते बेटी! चलो अब मुस्कुरा दो",शीलवती जी प्रत्यन्चा से बोलीं....
फिर प्रत्यन्चा थोड़ी देर के बाद सहज होकर फिर से काम में लग गई,प्रत्यन्चा काम कर रही थी और उसी वक्त डाक्टर सतीश अपनी ड्यूटी पूरी करके अस्पताल से घर लौटे तो उन्होंने जब प्रत्यन्चा को पीछे से देखा तो अपनी माँ शीलवती जी से धीरे से पूछा....
"माँ! ये कौन सा नया मेहमान बुला लिया तुमने",
"खुद पहचान कर बता कि कौन है",शीलवती जी ने मुस्कुराते हुए कहा...
"बताओ ना माँ! कि कौन है?", डाक्टर सतीश ने दोबारा पूछा...
"नहीं...बताती जा...!" और ऐसा कहकर शीलवती जी वहाँ से चलीं गई और डाक्टर सतीश सोचते रह गए कि आखिर ये है कौन ....?

क्रमशः....
सरोज वर्मा...