Laga Chunari me Daag - 40 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(४०)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(४०)

इसके बाद प्रत्यन्चा ने सबसे पहले धनुष को दाल चावल खिलाया फिर उसने भागीरथ जी के लिए खाना परोसा,उनको खिलाने के बाद प्रत्यन्चा ने खुद खाना खाया और खाना खाने के बाद वो शरतचन्द्र चटोपाध्याय का चरित्रहीन लेकर पढ़ने बैठ गई......
उसे पढ़ने में उसका बहुत मन लग रहा था और ये बात धनुष को अच्छी नहीं लग रही थी,भागीरथ जी अब आराम कर रहे थे,इसलिए धनुष से बातें करने वाला कोई नहीं था,धनुष सोच रहा था कि प्रत्यन्चा किताब ना पढ़कर उससे बातें करे,इसलिए उसने प्रत्यन्चा से पूछा...
"किताब क्या इतनी दिलचस्प है,जो तुम पढ़े जा रही हो"
"पढ़ने दीजिए ना धनुष बाबू! बीच में मत टोकिए",वो पढ़ते पढ़ते बोली....
"वैसे कहाँ तक पढ़ चुकीं तुम!",धनुष ने पूछा...
"जी! क्या आपने पढ़ा है ये उपन्यास,जो ऐसा सवाल पूछ रहे हैं",प्रत्यन्चा ने किताब से नजरे हटाते हुए कहा....
"हाँ! बहुत पहले पढ़ा था",धनुष बोला....
"जी!,बस वहाँ तक पढ़ चुकी हूँ जब सतीश शराब पीकर वापस लौटता है और सावित्री उसे सहारा देकर उस के कमरे तक ले जाती है"प्रत्यन्चा बोली....
"कहीं तुम मुझे ये याद दिलाने की कोशिश तो नहीं कर रही हो कि मैं भी इसी तरह घर लौटता हूँ",धनुष गुस्से से बोला...
"आप कहाँ की बात कहाँ ले गए,मैं तो उपन्यास की बात कर रही हूँ और आप ये बात खुद पर ले गए", प्रत्यन्चा बोली...
"अब तुम्हारी नजरों में तो मैं बुरा इन्सान साबित हो चुका हूँ तो ऐसी ही बातें आऐगी ना मेरे मन में",धनुष बोला....
"मैंने ऐसा तो कभी नहीं कहा कि आप बुरे इन्सान हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"तब तुमने कहा नहीं था कि डाक्टर बाबू अच्छे इन्सान हैं और मैं बुरा",धनुष गुस्से से बोला....
"मेरे कहने का मतलब ये कतई नहीं था कि आप बुरे इन्सान हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"लेकिन तुमने डाक्टर सतीश को तो अच्छा कहा था ना!",धनुष बोला....
"जो अच्छा है उसे अच्छा ही कहा जाऐगा ना! वो शराब नहीं पीते,अपनी माँ का ख्याल रखते हैं, सबके साथ अच्छे से पेश आते हैं,आप बताइए कि आप दादाजी और चाचाजी का कितना ख्याल रखते हैं,आप भी अच्छा बनकर दिखाइए तो मैं आपको भी अच्छा कहूँगीं",प्रत्यन्चा बोली....
"इसका मतलब है कि मुझे अच्छा बनने के लिए शराब छोड़नी पड़ेगी",धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"जो कि आप कभी नहीं छोड़ सकते",प्रत्यन्चा बोली....
"ऐसा मत कहो...मैं अगर चाहूँ तो अभी इसी वक्त से शराब छोड़ सकता हूँ",धनुष बोला....
"वो तो वक्त ही बताऐगा कि आप शराब छोड़ पाते हैं या नहीं",प्रत्यन्चा बोली...
"तो तुम देख लेना,एक दिन मैं जरूर शराब छोड़कर दिखाऊँगा",धनुष बोला...
"मुझे उस दिन का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा,अगर आपकी शराब छूट गई तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे ही होगी",प्रत्यन्चा बोली...
"मेरे शराब छोड़ने से भला तुम्हें क्यों इतना फर्क पड़ेगा",धनुष ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"आपके शराब छोड़ने से चाचाजी और दादाजी को बहुत खुशी मिलेगी और दोनों को खुश देखकर मुझे जो खुशी मिलेगी उस खुशी का आप अन्दाजा भी नहीं लगा सकते",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम्हें मेरे परिवार की इतनी परवाह है प्रत्यन्चा!",धनुष ने पूछा....
"ये अब मेरा भी तो परिवार है और अपने परिवार की भला किसे चिन्ता नहीं होती",प्रत्यन्चा मुस्कुराते हुए बोली...
"तुम सच में बहुत नेकदिल हो",धनुष बोला....
"रहने दीजिए धनुष बाबू! अभी आप भावनाओं में बहकर ऐसा कह रहे हैं,अभी मुझसे कोई गलती हो जाऐगी तो हजार बातें सुना देगें,फिर आप ये भी नहीं सोचते कि मुझे बुरा लगेगा या नहीं",प्रत्यन्चा बोली....
"हाँ! मैं कभी कभी गुस्से में बहुत कुछ बोल जाता हूँ",धनुष बोला....
"मतलब आप ये बात स्वीकार करते हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! अब देखना जब मैं ठीक हो जाऊँगा तो एक अच्छा इन्सान बनकर दिखाऊँगा",धनुष बोला....
"मैं आपसे ऐसी ही उम्मीद रखती हूँ धनुष बाबू! लेकिन अपनी बात पर कायम रहिएगा",प्रत्यन्चा बोली....
"अब की बार तुम्हें मेरी तरफ से निराशा नहीं मिलेगी",धनुष बोला....
और फिर प्रत्यन्चा अपना उपन्यास छोड़कर यूँ ही धनुष से बातें करती रही,जो कि धनुष यही चाहता था, ऐसे ही अस्पताल में एक दो दिन का वक्त और गुजार लेने के बाद धनुष को अस्पताल से छुट्टी मिल गई, चूँकि धनुष के पैर की चोट अब ठीक हो चुकी थी और वो चल फिर सकता था,लेकिन सिर में पट्टी और दाएँ हाथ की हथेली में अभी भी प्लास्टर लगा हुआ था,घर आने के बाद धनुष को नीचे ही रसोई के बगल वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया गया और भागीरथ जी ने भी अपना बिस्तर धनुष के ही कमरे में लगवा लिया,ताकि धनुष को कभी किसी चीज की जरुरत हो तो वो उसकी मदद कर पाएँ.....
और घर पहुँचते ही दूसरे दिन सुबह सुबह ही प्रत्यन्चा ने पहले धनुष की बढ़ी हुई दाढ़ी बनवाने के लिए पुरातन को भेजकर एक अच्छे से हज्जाम को घर बुलवा लिया,उस हज्जाम ने धनुष की दाढ़ी बनाई और फिर प्रत्यन्चा ने हज्जाम से धनुष के सिर के बाल भी काटने को कहा,जिसके लिए धनुष ने मना कर दिया और वो प्रत्यन्चा से बोला....
"मैं अपने बाल नहीं कटवाऊँगा,मेरा इतना बढ़िया हेयरस्टाइल खराब हो जाऐगा,ये हेयरकट मैंने एक मँहगे सैलून से करवाया था"
"और जो आपके बाल माथे पर आ रहे हैं,इससे आपके माथे की चोट जल्दी ठीक नहीं हो पाऐगी",प्रत्यन्चा ने धनुष से कहा....
"देखो! प्रत्यन्चा! ज्यादा जिद मत करो,मैंने कह दिया ना कि मैं अपने सिर के बाल नहीं कटवाऊँगा तो मैं अपने सिर के बाल नहीं कटवाऊँगा और मैं इस सस्ते रोडछाप हज्जाम से अपने बाल कतई नहीं कटवाना चाहता",धनुष बोला....
धनुष की बात सुनकर वो हज्जाम गुस्सा होकर बोला....
"मियाँ! हमें सस्ता हज्जाम कहकर आपने गुस्ताखी कर दी,हमारे यहाँ तो बड़े बड़े लोग अपना हेयरकट करवाने आते हैं,खुदा कसम! अगर आपने हमसे एक बार हेयरकट करवा लिया ना तो फिर आप हमारे मुरीद हो जाऐगें, फिर जिन्दगी में हमारे अलावा और किसी के यहाँ हेयरकट करवाने नहीं जाऐगें"
"जब हज्जाम साहब इतनी मिन्नतें कर रहे हैं तो फिर करवा लीजिए ना हेयरकट",प्रत्यन्चा धनुष से बोली...
फिर धनुष ने मजबूर होकर अपना हेयरकट करवाया ,इसके बाद सनातन ने उसे स्नान करवाया और फिर जब धनुष सबके सामने तैयार होकर आया तो सब उसे देखकर दंग रह गए,छोटे बाल और साफ चेहरे में वो बहुत अच्छा दिख रहा था,तेजपाल जी की भी नजर धनुष के ऊपर ठहर गई और वो उससे बोले....
"आज तुम इन्सान लग रहे हो"
"इसका पूरा श्रेय प्रत्यन्चा को जाता है",भागीरथ जी मुस्कुराते हुए बोले....
"हाँ! ये बात तो है",धनुष अपना सिर खुजाते हुए बोला....
और फिर धनुष की ऐसी प्रतिक्रिया पर सब हँस पड़े,अब धनुष के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी प्रत्यन्चा पर आ गई थी,सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक धनुष को क्या क्या देना है वो इस बात का पूरा ख्याल रखती थी,दवाएँ भी कब कौन सी किस वक्त देनी है ये भी उसे पता था,वो ही धनुष को नाश्ता कराती ,दोपहर का खाना खिलाती और रात को उसे खाना खिलाने के बाद थोड़ी देर उसके पास बैठकर बातें जरूर करती थी,धनुष को भी अब उसकी बातें भाने लगीं थीं.....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...