Laga Chunari me Daag - 37 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(३७)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३७)

फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर भागीरथ जी तेजपाल जी से बोले....
"अब से हर वक्त हम रहेगें धनुष के साथ अस्पताल में,भला! हम भी देखते हैं कि वो सिगरेट को कैंसे हाथ लगाता है"
"हाँ! मेरे ख्याल से यही सही रहेगा",प्रत्यन्चा बोली...
"तो चलो खाना खाकर हम दोनों अस्पताल चलते हैं", भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"दादाजी! मैं तो धनुष बाबू के सामने बिलकुल ना जाऊँगी,मैं तो उनकी दुश्मन पहले से ही हूँ और आज जो अस्पताल में हुआ तो उस बात के लिए मैंने उनकी अच्छे से खबर ले ली,जिससे वो मुझसे और भी ज्यादा चिढ़ गए होगें,अगर मैं उनके सामने फिर से गई ना ! तो अब उनके गुस्से का ज्वालामुखी फूट पड़ेगा", प्रत्यन्चा भागीरथ जी से बोली...
"बेटी! तुझे उस भूत से डरने की कोई जरूरत नहीं है,हमारे रहते हुए वो तुझे कुछ भी नहीं कह सकता", भागीरथ जी बोले...
"जैसा आप ठीक समझें दादाजी!,तो फिर जल्दी से खाना खा लीजिए,इसके बाद चलते हैं आपके भूतनाथ के पास", प्रत्यन्चा मुस्कुराते हुए बोली....
"हाँ! चल जल्दी से परोस दे मेरे लिए खाना और तेजा को भी बुला ले,अपने सामने खाना खिला दे उसे,नहीं तो बाद में नहीं खाएगा वो ,सच में! धनुष ने उसकी नाक में दम कर रखा है,कुछ नहीं सोचता वो अपने बाप के बारें में",भागीरथ जी बोले....
"ठीक है चलिए! आप जब तक डाइनिंग टेबल पर बैठिए,मैं तब तक चाचाजी को बुलाकर लाती हूँ",
और फिर ऐसा कहकर प्रत्यन्चा तेजपाल जी को बुलाने चली गई,इसके बाद सबने खाना खाया और फिर खाना खाकर प्रत्यन्चा और भागीरथ जी अस्पताल की ओर रवाना हो गए,वे दोनों वहाँ पहुँचे तो धनुष प्रत्यन्चा के बनाएँ हुए मूँग दाल के चीले खा रहा था,जब उसने भागीरथ जी और प्रत्यन्चा को देखा तो बोला...
"दादाजी! आप भी क्या मुझे डाँटने के लिए आएँ हैं यहाँ,ये लड़की मुझे जिन्दा नहीं रहने देगी,जब देखो तब लगाई बुझाई लगाती रहती है"
"आपने देखा दादाजी! ये क्या कह रहे हैं, इसलिए मैं यहाँ नहीं आ रही थी",प्रत्यन्चा बोली...
"धनुष! गलती तू खुद करता है और इल्जाम दूसरों पर लगाता है,बेटा! ये अच्छी बात नहीं है,तेरी इस हरकत से देख तेरे बाप का मन कितना खराब हो गया है,क्यों करता है तू ऐसा",भागीरथ जी बोले...
इसके पहले कि धनुष कुछ कह पाता उससे पहले ही डाक्टर सतीश राय कमरे में आ पहुँचे और उन्होंने धनुष से कहा....
"और कैंसे हैं धनुष जी! लाइए आपका रुटीन चेकअप कर लूँ,फिर मैं घर के लिए निकलूँगा"
इसके बाद डाक्टर सतीश ने धनुष का चेकअप किया और जैसे ही वे जाने लगे तो भागीरथ जी ने उनसे पूछा...
"सब ठीक तो है ना डाक्टर साहब!"
"हाँ! दीवान साहब ! सब ठीक है"
"चलो तसल्ली हुई कि सब ठीक है,क्योंकि साहबजादे शाम को सिगरेट पीते हुए पकड़े गए हैं",भागीरथ जी बोले....
"चलिए कोई बात नहीं,एक सिगरेट पीने में कोई हर्ज नहीं", डाक्टर साहब बोले....
"हर्ज कैंसे नहीं होगा डाक्टर बाबू! इससे सेहद पर बुरा असर पड़ता है",प्रत्यन्चा बोली...
"प्रत्यन्चा जी! घबराइएँ नहीं! एक सिगरेट पीने से कुछ नहीं होगा,लेकिन आइन्दा से अब ये सिगरेट को हाथ भी ना लगा पाएँ और इसकी जिम्मेदारी आपकी होगी,आप इन पर कड़ी नज़र रखेगीं अब से", डाक्टर सतीश राय प्रत्यन्चा से बोले....
"डाक्टर साहब! आप भी किस चुड़ैल को मेरे ऊपर नजर रखने को कह रहे हैं,इसका वश चले तो ये मुझे जिन्दा ही ना रहने दे,वैसे भी कोई कसर कहाँ छोड़ रखी है इसने",धनुष गुस्से से बोला....
"बस डाक्टर बाबू! इन्हें गलत बात के लिए मना करो तो मैं इन्हें इनकी दुश्मन नज़र आती हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
"ये आपके भले के लिए ही तो कह रहीं हैं धनुष जी!,डाक्टर सतीश मुस्कुराते हुए बोला...
"ये और मेरा भला....ये मेरा भला कभी नहीं चाहती डाक्टर साहब!",धनुष बोला....
"हाँ! अगर मैं आपका भला ना चाहती होती तो जो ये चीले आप ठूँस रहे हैं ना,वो मैं कभी भी बनाकर ना लाती आपके लिए", प्रत्यन्चा गुस्से से बोली...
"कोई एहसान नहीं कर दिया है तुमने मुझ पर ये चीले बनाकर,वो तो विलसिया काकी भी बना देती मेरे लिए",धनुष गुस्से से बोला....
"आप लोग क्या हमेशा ऐसे ही झगड़ते रहते हैं",डाक्टर सतीश ने पूछा....
"डाक्टर साहब! इन दोनों का तो ऐसे ही चलता रहता है,आप दिनभर काम करते करते थक गए होगें,जाइए अब घर जाकर आराम कीजिए",भागीरथ जी ने डाक्टर सतीश से कहा....
"जी! ठीक है ! तो मैं अब चलता हूँ,शुभरात्रि!"
और ऐसा कहकर डाक्टर सतीश अपने घर की ओर रवाना हो गए और इधर भागीरथ जी ने नर्स से कहकर प्रत्यन्चा के लिए भी एक बिस्तर लगवा दिया और फिर सभी आराम करने लगे,थोड़ी देर में सब सो गए,लेकिन धनुष को नींद नहीं आ रही थी,क्योंकि उसे तो शराब की लत थी और शराब पिए बिना उसे नींद ना आती थी,इसलिए उसे भीतर से अजीब सा लगने लगा और वो पसीने पसीने हो गया,फिर उसे प्यास का एहसास हुआ और जैसे ही उसने पानी पीने के लिए गिलास की ओर हाथ बढ़ाया तो गिलास हाथ में लेते ही वो हाथ से छूट गया,गिलास गिरते ही प्रत्यन्चा की आँख खुल गई और उसने धनुष से पूछा....
"क्या हुआ धनुष बाबू!"?
"प्यास लगी थी,पानी पीने की कोशिश कर रहा था तो गिलास हाथ से छूटकर गिर गया"धनुष बोला....
तब तक भागीरथ जी भी जाग चुके थे और उन्होंने भी पूछा कि क्या हुआ तो प्रत्यन्चा ने उन्हें सारी बात बता दी,तब प्रत्यन्चा ने वो टूटा हुआ गिलास एक ओर समेट कर रखा और धनुष को दूसरे गिलास में पानी दिया, पानी पीकर धनुष को थोड़ी राहत मिली तब प्रत्यन्चा ने उससे पूछा....
"अब आप ठीक तो हैं ना!"
"कुछ बैचेनी सी हो रही है,क्या तुम मुझे खुली हवा में बाहर ले जा सकती हो",धनुष बोला...
तब भागीरथ जी धनुष से बोले...
"हम चलते हैं तुम्हारे साथ",
"नहीं! दादाजी! आप आराम कीजिए,मैं इन्हें बाहर लेकर जाती हूँ", प्रत्यन्चा बोली...
और फिर प्रत्यन्चा धनुष को सहारा देकर अस्पताल के लाँन में ले आई और उसे एक बेंच में बिठाते हुए उससे पूछा...
"अब ठीक लग रहा है आपको"
"हाँ! ताजी हवा में कुछ राहत मिल रही है,मुझे शराब पीने की आदत है ना! इसलिए शायद इतनी बैचेनी हो रही है",धनुष बोला....
फिर प्रत्यन्चा उसके बगल में बैठते हुए बोली....
"मुझे मालूम है कि शायद आपको शराब की तलब लग रही होगी,इसलिए आपको इतनी घबराहट महसूस हो रही है",प्रत्यन्चा बोली....
"तुम्हें बुरा तो नहीं लग रहा ",धनुष ने पूछा....
"बुरा क्यों लगेगा भला!",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"वो इसलिए कि मुझ जैसे शराबी के साथ तुम यूँ इस तरह से बाहर बैठी हो",धनुष बोला....
"अभी मेरी नजर में आप शराबी नहीं बीमार हैं,इसलिए मुझे आपके साथ यहाँ बैठने में कोई हर्ज नहीं है", प्रत्यन्चा बोली....
"वैसे चीले बहुत ही लजीज़ बनाएँ थे तुमने",धनुष मुस्कुराते हुए बोला...
"चलिए !आपको मेरी कोई चींज तो पसन्द आई",प्रत्यन्चा मुस्कुराते हुए बोली...
"वैसे तुम इतनी बुरी भी नहीं हो,दादाजी और पापा का इतना ख्याल रखती हो,बस मेरे लिए थोड़ी बेरहम हो",धनुष बोला....
"बेहरम नहीं हूँ धनुष बाबू! बस हालातों की मारी हूँ,इसलिए ऐसी हो गई हूँ", ये कहते कहते प्रत्यन्चा की आँखें भर आईं...
"अरे! तुम तो उदास हो उठीं,मुझसे नहीं बाँटोगी अपने दर्द",धनुष बोला....
"जी! मेरे जख्मों को मत कुरेदिए धनुष बाबू! बड़ी मुश्किलों से खुद को सम्भाल पाई हूँ,टूट टूटकर बिखर चुकी हूँ,जैसे तैसे खुद को समेटे रखा है मैंने",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! मत साँझा करो मुझसे अपने दुख,लेकिन तुम्हें देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि तुम्हारे भीतर इतना ग़म भरा पड़ा है",धनुष बोला....
"कभी कभी ज्वालामुखी ऊपर से जितना शान्त दिखता है,भीतर से वो वैसा नहीं होता",प्रत्यन्चा बोली....
"आज मुझे तुम्हारा एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है",,धनुष मुस्कुराते हुए बोला...
"और मुझे भी आप वैसे नहीं दिख रहे जैसे कि आप हमेशा दिखते हैं"प्रत्यन्चा बोली....
"हाँ! शायद अकेलेपन ने मुझे ऐसा बना दिया है",धनुष बोला...
"अकेलापन क्या होता है ये मैं बखूबी समझ सकती हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
फिर दोनों यूँ ही बातें करते रहे और इसके बाद कमरे में आकर अपने अपने बिस्तर पर लेटकर सो गए.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....