Laga Chunari me Daag - 31 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(३१)

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(३१)

रात का वक्त,डाक्टर सतीश राय की माँ शीलवती जी रात का भोजन परोसते हुए उनसे बोलीं....
"वैसे प्रत्यन्चा है बड़ी सुन्दर"
"हाँ! ठीक है",सतीश राय बोले....
"और व्यवहार कुशल भी जान पड़ती है,भागीरथ जी ने बातों बातों में बताया था कि वो खाना भी बहुत अच्छा बनाती है",शीलवती जी बोलीं...
"हाँ! तो होगी,लेकिन तुम्हें क्या लेना देना इन बातों से",डाक्टर सतीश राय ने अपनी माँ शीलवती जी से पूछा...
"मेरे कहने का मतलब है कि बहू ऐसी ही सर्वगुण सम्पन्न होनी चाहिए",शीलवती जी बोलीं....
"माँ! जब देखो तब तुम्हारी घड़ी की सुई बहू पर ही आकर क्यों अटक जाती है",डाक्टर सतीश राय बोले...
"वो इसलिए कि अब तेरी उम्र ब्याह करने लायक हो चुकी है",शीलवती जी बोलीं....
"जब देखो तब बहू...बहू की रट लगाएँ रहती हो,आजकल की बहूएँ देखीं हैं तुमने कैंसी आती हैं,सबसे पहले तो वो माँओ को बेटे से अलग करतीं हैं फिर पूरे घर पर कब्जा जमा करके बैठ जातीं हैं",डाक्टर सतीश राय बोले...
"कोई बात नहीं ,कम से कम पोता तो देगी ना मुझे,वो मुझे नहीं रखेगी अपने साथ में तो मैं अपनी सहेली अनुसुइया के अनाथालय चली जाऊँगी",शीलवती जी बोली...
"मतलब कैंसी भी बहू आएँ लेकिन आनी जरूर चाहिए",डाक्टर सतीश राय बोले...
"तू हरदम बहू के नाम से इतना क्यों चिढ़ जाता है",शीलवती जी ने डाक्टर सतीश से पूछा....
"वो इसलिए कि ऐसी बातें मुझे पसंद नहीं हैं",डाक्टर सतीश राय बोले...
"मुझे पता है कि तू शादी के नाम से क्यों चिढ़ जाता है,शायद तू अमोली को अब तक नहीं भूला", शीलवती जी डाक्टर सतीश से बोलीं....
"माँ! उस बेवफा की बातें मत किया करो मेरे सामने,अगर उसे मुझसे मौहब्बत होती तो वो मुझसे रिश्ता तोड़कर यूँ विलायत ना चली जाती",डाक्टर सतीश राय अपनी माँ शीलवती जी से बोले...
"बेटा! मैं तेरे लिए अमोली से भी अच्छी लड़की ढूढ़कर ला दूँगी,बस तू एक बार ब्याह के लिए हाँ तो कर दे", शीलवती जी डाक्टर सतीश राय से बोलीं....
"माँ! मैंने तुमसे कई बार कहा है कि शादी की बात को लेकर करके ज्यादा झिकझिक मत किया करो,मुझे अच्छा नहीं लगता",डाक्टर सतीश राय बोले...
"लेकिन बेटा! पहाड़ सा जीवन वगैर जीवनसाथी के नहीं कटता,मुझसे पूछ कि जीवनसाथी साथ ना होने की तड़प क्या होती है,अभी तो मैं हूँ तेरा ख्याल रखने के लिए,लेकिन जब कल को मैं ना रहूँगी तो फिर तू अकेला क्या करेगा,किससे कहेगा अपने मन की बात,इसलिए चाहती हूँ कि मेरे रहते तेरा ब्याह हो जाएँ तो फिर मैं आराम से अपनी अन्तिम साँसें ले सकूँगी,नहीं तो मेरे प्राण आसानी से नहीं निकलेगें",शीलवती जी अपने बेटे सतीश राय से बोलीं....
"माँ! अभी तुम सौ सालों तक जीने वाली हो,इसलिए चुपचाप जाकर सो जाओ और मैं भी दिनभर का थका हूँ तो मैं भी अपने कमरे में आराम करने जा रहा हूँ"
और ऐसा कहकर डाक्टर सतीश राय डाइनिंग टेबल से खाना खाकर उठे और वॉश बेसिन में अपने हाथ धुलकर वो सीधे अपने कमरे की ओर चले गए,इसके बाद उनकी माँ शीलवती ने भी खाना खाया और खाना खाकर वो भी अपने कमरे में आ गईं और अपने बिस्तर पर लेटकर सोचने लगी कि जाने क्या होगा मेरे बेटे का,वो अमोली को कितना चाहता था लेकिन अमोली ने उसके प्यार की जरा भी परवाह नहीं की और उसे छोड़कर विलायत चली गई,इधर डाक्टर सतीश भी अपने अतीत में चले गए,ये उन दिनों की बात है,जब वो मेडिकल काँलेज में पढ़ते थे और अमोली वकालत की पढ़ाई कर रही थी, तब उन दोनों की पहली मुलाकात हुई थी,उनकी पहली मुलाकात बड़ी ही मज़ेदार रही....
वो इस तरह से कि अमोली की एक सहेली थी सुषमा और उसे कोई लड़का किसी रेस्तरांँ में देखने आने वाला था,लेकिन सुषमा किसी और लड़के को चाहती थी और वो उस लड़के से नहीं मिलना चाहती थी, सुषमा के घरवालों ने उस पर जोर डाला कि उसे उस लड़के से मिलने जाना ही पड़ेगा,तब सुषमा ने अपनी जगह अमोली को उस लड़के से मिलने के लिए भेज दिया और वो लड़का जिसका नाम रमेश था वो भी सुषमा से नहीं मिलना चाहता था और वो मेरा दोस्त था,इसलिए उसने मुझे अपनी जगह सुषमा से मिलने के लिए भेज दिया.....
सुषमा की जगह अमोली और रमेश की जगह सतीश यानि कि मैं रेस्तराँ में पहुँचे,जहाँ अमोली से सुषमा बनकर ऐसी ऐसी हरकतें करने को कहा गया था कि लड़का खुद ही इस रिश्ते के लिए इनकार कर दे और मुझे भी रमेश ने ये हिदायतें देकर भेजा था कि ऐसी ऐसी हरकतें करना कि लड़की खुद ही इस रिश्ते के लिए इनकार कर दे....
लेकिन मैं अमोली को देखकर कोई भी गलत हरकत नहीं कर पाया और वो भी मुझे देखकर कुछ भी उल्टा सीधा ना कर सकी और फिर हमने एकदूसरे के सामने अपनी अपनी सच्चाई बता दी,इसके बाद हम दोनों खूब हँसे और इसके बाद हमारे बीच परिचय हुआ फिर दोस्ती हुई,इस तरह से हमारे बीच मुलाकातों का सिलसिला जारी हो गया और फिर मुलाकातें प्यार में कब तब्दील हो गईं, ये हम दोनों को पता ही नहीं चला और फिर एक दिन मैंने उससे कहा कि माँ ने उसे बुलाया है,वो चाहतीं हैं कि अब हम दोनों की सगाई हो जानी चाहिए,लेकिन अमोली ने सगाई करने से साफ इनकार कर दिया और मुझे उसकी वजह बताएँ बिना ही वो मुझे छोड़कर चली गई,काश! उसने कुछ तो कहा होता तो तब मुझे इतना अफसोस ना होता, लेकिन उसने कुछ भी नहीं कहा और यूँ ही मुझे तड़पता हुआ छोड़कर चली गई मेरी जिन्दगी से....
और यही सब सोचते सोचते डाक्टर सतीश की आँख लग गई उन्हें पता ही नहीं चला....
उधर जब प्रत्यन्चा घर पहुँची तो भागीरथ जी उस दिन मन्दिर में खुद दिया जलाने पहुँचे और जब धनुष उनके सामने पड़ा तो वे उससे गुस्से से मुँह मोड़कर आगे बढ़ गए और ये सब अब धनुष की बरदाश्त से बाहर था,वो सोचने लगा कि उसके दादाजी जो उससे बहुत प्यार करते थे आज एक पराई लड़की के कारण उससे मुँह मोड़कर चले गए,इस लड़की ने ना जाने कौन सा जादू कर दिया है पापा और दादा जी पर कि वे दोनों उस लड़की के आगे मुझे कुछ समझते ही नहीं हैं,अब इस लड़की को इस बात खामियाजा भरना ही पड़ेगा,मै इसे सबक सिखाकर ही रहूँगा और जब तक मैं इसे सबक नहीं सिखा देता तब तक मुझे चैन नहीं पड़ेगा....
लेकिन अभी तो दादाजी और पापा मुझसे नाराज़ हैं और पहले मुझे इन दोनों को मनाने के लिए कुछ करना पड़ेगा,नहीं तो मैं घर के भीतर नहीं घुस पाऊँगा और प्रत्यन्चा को सबक सिखाने लिए पहले मुझे घर के भीतर घुसना पड़ेगा,यही सब सोचकर धनुष घर के भीतर गया और भागीरथ जी के पैरों पर जाकर गिर पड़ा,इसके बाद वो उनसे बोला....
"मुझे माँफ कर दीजिए दादाजी!,बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे"
"तू आज कितना भी गिड़गिड़ा ले,लेकिन हम तुझे माँफ करने वाले नहीं",भागीरथ जी गुस्से से बोले....
"आप मुझे माँफ नहीं करेगें तो फिर मैं कहाँ जाऊँगा,आपके और पापा के सिवाय मेरा है ही कौन",धनुष बोला...
"ये सब तो तुझे तब सोचना चाहिए था ना! जब तू उस बच्ची के खिलाफ वो घटिया चाल चल रहा था", भागीरथ जी गुस्से से बोले....
"कहा ना कि गलती हो गई मुझसे,आप कहें तो मैं प्रत्यन्चा से भी माँफी माँगने को तैयार हूँ",धनुष बोला...
"नहीं! अब हम तुझे उसके पास फटकने ही नहीं देगें और अभी इसी वक्त चला जा तू यहाँ से,हम तुझसे कुछ भी कहना सुनना नहीं चाहते",भागीरथ जी बोले....
फिर अपने दादाजी का गुस्सा देखकर उस वक्त धनुष ने वहाँ से चले जाने में ही अपनी भलाई समझी और वो वहाँ से चला गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....