Laga Chunari me Daag - 21 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़--भाग(२१)

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

लागा चुनरी में दाग़--भाग(२१)

प्रत्यन्चा जब नींचे पहुँची तो विलसिया ने उससे कहा...
"ई लो बिटिया! तुम्हार सामान,ठीक से देख लेव सब है ना!
"मैं सामान बाद में देख लूँगी,पहले ये बताओ कि खाने में क्या बनाऊँ",प्रत्यन्चा विलसिया से बोली...
"खाने का हम देख लेगें,तुम परेशान ना हो बिटिया!",विलसिया बोली....
"नहीं! काकी! तुम थककर आई हो,तुम आराम करो,खाने का मैं देख लूँगीं",प्रत्यन्चा बोली...
"चलो! इस घर में कोई हमारी फिकर करने वाला तो आ गया,नहीं तो चाहे जितने थके होते हम ही को खटना पड़ता चूल्हे में",विलसिया बोली...
"तो अब बता दो कि क्या बनाऊँ खाने में",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"बिटिया! तुम बड़े मालिक से पूछ लो कि वो क्या खाऐगें,वही बना लो",विलसिया बोली...
तब प्रत्यन्चा ने भागीरथ जी से खाने का पूछा तो उन्होंने कहा कि वो मूँग दाल की पालक वाली खिचड़ी खाऐगें,तो वही बना लो अगर किसी को और कुछ खाना है तो वो भी बना लेना,इसके बाद प्रत्यन्चा ने विलसिया से पूछा तो वो बोली कि वो भी खिचड़ी ही खा लेगी,इसके बाद प्रत्यन्चा रसोईघर में खिचड़ी बनाने चली गई,कुछ देर के बाद खिचड़ी तैयार हो गई तो उसने भागीरथ जी से कहा कि खिचड़ी तैयार है खाने आ जाइए,तभी उसी वक्त उन्हें याद कि आज तो धनुष ने भी यहीं खाना खाने के लिए कहा था, लेकिन आज तो खिचड़ी बनी है,पता नहीं वो खाएगा या नहीं.....
वे ये सब सोच ही रहे थे कि तभी प्रत्यन्चा ने भागीरथ जी से पूछा...
"क्या हुआ दादाजी! आप क्या सोच रहे हैं?",
"कुछ नहीं बेटी! आज धनुष ने भी यहाँ आकर खाना खाने को कहा था,लेकिन हम तुमसे कहना ही भूल गए, नहीं तो तुम कुछ और बना लेती,खिचड़ी बनी है पता नहीं वो नालायक खाएगा कि नहीं",भागीरथ जी बोले...
"अब ये धनुष कौन है"?"प्रत्यन्चा ने पूछा...
"धनुष...वो हमारा पोता है,मंदिर से लगे हुए आउटहाउस में रहता है",भागीरथ जी बोले...
"वो अकड़ू आपका पोता है",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम उससे मिल चुकी हो शायद",भागीरथ जी बोले...
"हाँ! वो कुछ देर पहले यहाँ आऐ थे"प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ...हमसे भी मुलाकात हुई थी उसकी,ना जाने आज यहाँ का रास्ता कैंसे भटक गया",भागीरथ जी बोले...
"भूख लगी थी उन्हें,कह रहे थे कि खानसामा भाग गया है,मुझसे कुछ खाने के लिए लाने को कहा था उन्होंने, तो मैंने उन्हें चीले बनाकर खिला दिए",प्रत्यन्चा बोली...
"ओह...लगता है तुम दोनों की जान पहचान नहीं हुई,तभी ना वो तुम्हारा नाम जानता है और ना तुम उसका" भागीरथ जी बोले...
"हाँ! जान पहचान का मौका ही नहीं मिला,मैं चीले बनाती रही ओर वे चीले खाते रहे,पाँच चीले खा गए वो तो",प्रत्यन्चा बोली...
"क्या कहा...पाँच चीले खा गया,तब तो वो खिचड़ी खा लेगा,उसे अब उतनी भूख नहीं होगी,हम सनातन से कहे देते हैं कि वो उसे आउटहाउस से बुला लाएँ",भागीरथ जी बोले...
"क्या वो यहाँ फिर से खाना खाने खाऐगें",प्रत्यन्चा ने आँखें बड़ी करते हुए पूछा...
"क्यों? तुम्हें कोई दिक्कत है क्या?",भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"नहीं! दिक्कत तो कोई नहीं है,मैं तो बस यूँ ही पूछ रही थी",प्रत्यन्चा बोली...
"तो फिर हम उसे बुलवाएंँ लेते हैं",
और ऐसा कहकर भागीरथ जी ने सनातन को आवाज़ देकर बुलाया,सनातन ने भागीरथ जी के पास आकर पूछा...
"जी! मालिक ! आपने मुझे पुकारा"
"हाँ! जाकर धनुष को आउटहाउस से बुला लाओ,आज उसने यहाँ आकर खाना खाने के लिए कहा था"
"जी! मालिक! जैसा आप कहें"
और ऐसा कहकर सनातन धनुष को आउटहाउस से बुलाने चला गया,तब तक प्रत्यन्चा ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया,साथ में चटनी,पापड़ और अचार भी रख दिया फिर भागीरथ जी डाइनिंग टेबल पर बैठकर धनुष का इन्तजार करने लगे,कुछ देर में धनुष वहाँ आ पहुँचा और भागीरथ जी से बोला....
"आपने मुझे बुलवाया था दादाजी!"
"हाँ! बर्खुरदार! तुमने ही तो कहा था कि रात का खाना,तुम हमारे साथ खाओगे" भागीरथ जी बोले....
"हाँ! इसलिए तो आया हूँ मैं यहाँ",धनुष बोला...
तब भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा को आवाज़ देकर कहा...
"प्रत्यन्चा! बेटा! धनुष आ गया है,खाना परोस दो",
"जी! अभी आई",
और ऐसा कहकर जब प्रत्यन्चा रसोई से खाना परोसने के लिए डाइनिंग टेबल पर आई तो धनुष उसे देखकर बोला...
"तुम.....तो तुम हो प्रत्यन्चा!",
"हाँ! बेटा ये है प्रत्यन्चा,तुम इससे शाम को मिल चुके हो,लेकिन शायद तुम दोनों का आपस में परिचय नहीं हुआ",भागीरथ जी बोले....
"उसकी जरूरत नहीं है,मैं इसे अच्छी तरह से जान गया हूँ"धनुष बोला...
"हाँ! दादाजी! कुछ लोगों की फितरत शक्ल देखकर ही पता चल जाती है"प्रत्यन्चा खाना परोसते हुए बोली...
"ये तुम क्या कह रही हो बेटी! हम कुछ समझे नहीं" भागीरथ जी बोले...
"कुछ नहीं! आप खाना खाइए"प्रत्यन्चा बोली...
"ये क्या? खिचड़ी बनी है,मैं यहाँ इतने वक्त के बाद खाना खाने आया हूँ और यहाँ खिचड़ी बनाई गई है, ऐसा लगता है कि जैसे कोई मुझसे किसी बात की दुश्मनी निकाल रहा है",धनुष बोला...
"ये क्या बकता है तू! भला! तुझसे यहाँ कौन दुश्मनी निकालेगा ,शाम को पाँच चीले ठूँसकर गया था,इतनी भूख नहीं लगी होगी तुझे,चुपचाप खिचड़ी खा ले",भागीरथ जी बोले...
"लगता है किसी ने आपसे मेरी चुगली कर दी कि मैं यहाँ से पाँच चीले खाकर गया था",धनुष बोला...
" फिर से वही बात,तू पागल है क्या? यहाँ तेरी चुगली करने वाला कौन है?",भागीरथ जी बोले...
"तो फिर आपको कैंसे मालूम कि मैंने शाम को पाँच चीले खाएँ थे",धनुष ने पूछा...
"वो तो मुझे प्रत्यन्चा बिटिया ने बताया था"भागीरथ जी बोले...
"यही तो चुगली करना हुआ",धनुष बोला....
"पता नहीं यहाँ लोगों को कैंसी कैंसी गलतफहमियांँ हो जातीं हैं,लेकिन दादाजी! मैं आपको आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं कभी किसी की चुगली नहीं करती,ना ही किसी की बेमतलब बेइज्जती करती हूँ",प्रत्यन्चा बोली....
"हमें मालूम है बिटिया कि तुम बहुत ही संस्कारी लड़की हो",भागीरथ जी बोले...
"गैरों पर इतना भरोसा",धनुष खिचड़ी खाते हुए बोला...
"अपनों ने तो हमेशा हमारा भरोसा तोड़ा है तो क्या करें,अब गैरों पर ही भरोसा करना पड़ रहा है"भागीरथ जी बोले...
"दादा जी! आप मुझसे बिना ताना मारे बात नहीं कर सकते क्या?",धनुष ने पूछा...
"तो बता ऐसा तूने कौन सा तीर मार लिया,जिसके लिए हम तुम्हारी तारीफ़ करें",भागीरथ जी ने पूछा...
"तो आप चाहते क्या हैं?",धनुष ने पूछा...
"यही कि तू घर बसा ले तो घर में नन्हें मुन्ने की किलकारियाँ गूँजने लगे,फिर हम अपने परपोते के साथ खेलें, उसे घुमाएँ,उसे कहानियांँ सुनाएँ",भागीरथ जी बोले...
"अब आप भी पापा की तरह बातें करने लगे,वे चाहते हैं कि मैं उनका बिजनेस सम्भालने लगूँ और आप चाहते हैं कि मैं शादी कर लूँ,मेरी अपनी भी कोई जिन्दगी है,मैं दूसरों के हिसाब से नहीं जी सकता",धनुष बोला...
"इसे तू जिन्दगी कहता है,शराब के नशे में सुबह घर लौटना,जुआँ खेलना,अय्याशी करना,यही है ना तेरी जिन्दगी",भागीरथ जी बोले...
"अब आप पराए लोगों के सामने भी मेरी बेइज्जती करने लगे",धनुष बोला...
"वो पराई नहीं है",भागीरथ जी बोले...
"नहीं! खाना मुझे खाना,मैं यहाँ से जा रहा हूँ"
और ऐसा कहकर धनुष डाइनिंग टेबल पर से उठकर चला गया और भागीरथ जी उसे जाते हुए देखते रहे...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...