Laga Chunari me Daag - 18 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | लागा चुनरी में दाग़-भाग(१८)

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लागा चुनरी में दाग़-भाग(१८)

प्रत्यन्चा अपने कमरे में आकर फूट फूटकर रोने लगी और ये सोचने लगी कि उसकी जान बचाने के लिए आखिरकार शौकत ने खुद को कुर्बान कर दिया,ऐसा तो उसका सगा भाई भी ना करता,उसने जो रिश्ता कायम किया था,उसे उसने अपनी जान देकर आखिरी तक निभाया,आज अगर मैं जिन्दा हूँ,सलामत हूँ तो ये उसी की देन है, लेकिन अब मुझे सारी पुरानी बातें भूलकर जिन्दगी में आगें बढ़ना होगा,अगर मैं अब भी अपने अतीत में अटकी रही तो सुकून से नहीं जी पाऊँगी, दिवान साहब ने मुझे बड़े विश्वास के साथ अपने घर में पनाह दी है, इसलिए मुझे भी उनका विश्वास बनाए रखना चाहिए, शायद अब ये घर और यहाँ के लोग ही मेरी किस्मत हैं...
कुछ देर तक प्रत्यन्चा अपने कमरे में रोती रही लेकिन वो भला और कितना रोती,इसलिए खुद से खुद के आँसू पोंछकर वो फिर से नीचे चली आई...
वो नींचे आकर विलसिया काकी को ढूढ़ ही रही थी कि तभी कोठी के दरवाजे पर एक मोटरकार आकर रुकी और उसमें से एक शख्स उतरकर भीतर आएंँ और जैसी ही उनकी नज़र प्रत्यन्चा पर पड़ी तो वे उससे बोले...
"कौन हो तुम? नई नौकरानी लगती हो, क्या ना है तुम्हारा"?
"जी! मेरा...नाम प्रत्यन्चा है",प्रत्यन्चा बोली...
"परसों तक तो तुम इस घर में नहीं थी,मैं व्यापार के सिलसिले में बैंग्लौर क्या चला गया,बाबूजी ने नई नौकरानी रख ली", वे शख्स बोले...
"जी! मैं कल रात ही यहाँ आई हूँ",प्रत्यन्चा डरते हुए बोली...
"बाबूजी भी ना ना जाने कहाँ कहाँ से तरस खाकर नौकर उठा लाते हैं,अभी पिछली बार एक बुढ़िया को काम पे रख लिया था उन्होंने ,तो वो उनकी सोने की पाँकेट वाँच और बटुआ चुराकर भाग गई,पुलिस भी उसे आज तक नहीं ढूढ़ पाई,अब ये आ गई है तो ये ना जाने क्या चुराकर भागेगी"वे शख्स बोले...
तभी सीढ़ियांँ उतरते हुए वहाँ भागीरथ दीवान जी आ पहुँचे और उन्होंने उस शख्स से कहा...
"तू आ गया तेजपाल! और आते ही क्या अनाप शनाप बड़ाबड़ा रहा है"
"आप फिर से नई नौकरानी उठा लाएँ,अब इसे किस सड़क से उठाकर लाएँ हैं", तेजपाल दीवान ने भागीरथ जी से पूछा...
"इसे हम सड़क से तो उठाकर लाए हैं,लेकिन ये नौकरानी नहीं है",भागीरथ दीवान बोले...
"तो कौन है ये"?,तेजपाल दीवान ने पूछा...
"अनाथ,बेसहारा है बेचारी,इसका कोई अपना नहीं है इसलिए हमने इसे अपने घर में आसरा दे दिया", भागीरथ जी बोले...
"ये भी खूब कही आपने!,जान ना पहचान,बड़े मियाँ सलाम,ऐसे कैंसे आप किसी अजनबी लड़की को घर में आसरा दे सकते हैं,ये चोर उचक्की निकली तो फिर क्या करेगे़ आप?", तेजपाल दीवान बोले....
"तेजपाल! ये मत भूलो कि ये हमारा घर है और हम जिसे चाहें इस घर में पनाह दे सकते हैं", भागीरथ दीवान बोले....
"बाबूजी! ये भलाई का जमाना नहीं है,आप समझते क्यों नहीं कि यहाँ भावनाओं में बहकर काम नहीं किया जा सकता,कल को ये लड़की हम सभी के गले रेंतकर कहीं चली जाऐगी तो तब क्या होगा?",तेजपाल दीवान बोले...
"हमें पूरा भरोसा है,ये लड़की ऐसा कुछ भी नहीं करेगी",भागीरथ जी बोले....
"मतलब आपको एक अन्जान पर अपने बेटे से भी ज्यादा भरोसा है",तेजपाल दीवान बोले...
"हाँ! है भरोसा",भागीरथ दीवान बोले...
"आपसे तो बहस करने का कोई फायदा ही नहीं है,आपको तो कुछ समझना ही नहीं होता",तेजपाल दीवान बोले....
"तो फिर क्यों करते हो हमसे बहसबाजी,हमें मत समझाया करो",भागीरथ दीवान बोले....
"मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ,अगर विलसिया दिखाई दे तो उससे मेरे कमरे में एक प्याली चाय भिजवा दीजिएगा",तेजपाल दीवान अपने कमरे में जाते हुए बोले....
"दोपहर के खाने का वक्त हो चला है,आज तू घर में है तो कम से कम अपने बाप के साथ बैठकर खाना तो खा ले,नहीं तो इस घर में ना तो तेरे आने का ठिकाना रहता है और ना ही तेरे बेटे के आने का",भागीरथ जी बोले...
"ठीक है! जब खाना डाइनिंग टेबल पर लग जाएँ तो मुझे बुलवा लीजिएगा",
तेजपाल दीवान ऐसा कहकर अपने कमरे की ओर चले गए,तेजपाल के जाने के बाद प्रत्यन्चा ने भागीरथ जी से पूछा...
"दादाजी! क्या ये आपके बेटे हैं?",
"हाँ! मैं अभागा ही इसका बाप हूँ,जबसे इसकी पत्नी स्वर्ग सिधारी है तो ये तब से ऐसा ही हो गया है", भागीरथ जी बोले...
"ओह...तभी ये इतने चिड़चिड़े हैं",प्रत्यन्चा बोली....
"हाँ! यही बात है,अच्छा! तू ऐसा कर गरमागरम एक प्याली चाय लेकर उसके कमरे में दे आ,देखना फिर वो खुश हो जाएगा", भागीरथ जी बोले...
"ना....बाबा...ना! वो तो मुझ पर बहुत गुस्सा कर रहे थे,मैं उनके लिए चाय लेकर नहीं जाऊँगी",प्रत्यन्चा बोली...
"अरे! वो दिल का बुरा नहीं है,पहले बहुत हँसमुँख हुआ करता था,बहू के जाने के बाद ही ऐसा हो गया है,तुम प्यार से चाय देने जाओगी तो अपनी बेटी समझकर बहुत प्यार से बात करेगा",भागीरथ जी बोले...
"आप कहते हैं तो मैं उन्हें चाय देने चली जाती हूँ",प्रत्यन्चा बोली...
उस समय विलसिया अपने सर्वेन्ट क्वार्टर में आराम कर रही थी,वो सुबह से जागती है और जागते ही काम पर लग जाती है,बूढ़ा शरीर है इसलिए जल्दी थक जाती है,विलसिया के वहाँ पर ना होने पर प्रत्यन्चा को ही चाय बनानी पड़ी और चाय लेकर तेजपाल दीवान के कमरे के पास पहुँचकर उसने दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा....
"मैं चाय लेकर आई हूँ"
"भीतर आ जाओ",तेजपाल दीवान बोले...
फिर प्रत्यन्चा चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और जब वो टेबल पर चाय रखकर वापस आने लगी तो तेजपाल जी उससे बोले...
"ठहरो"
फिर प्रत्यन्चा किसी मुजरिम की तरह गर्दन झुकाकर वहीं खड़ी हो गई,तब तेजपाल जी उससे बोले....
"तुम शक्ल से तो चोर नहीं दिखती,लेकिन याद रहे कि मैं बाबूजी जैसा भोलाभाला बिलकुल भी नहीं हूँ,कुछ भी हेराफेरी करने की कोशिश की तो मैं तुम्हें जेल भिजवाकर ही दम लूँगा,अब जाओ और दोपहर का खाना मैं आज बाबूजी के साथ ही खाऊँगा तो विलसिया से कहना कि कुछ अच्छा सा बना ले"
"जी!"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा वहाँ से चली आई,फिर उसने सारी बात भागीरथ जी से बताई तो भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"तुम्हें खाना बनाना आता है ना!"
"जी! बहुत अच्छी तरह",प्रत्यन्चा बोली...
"तो फिर यही मौका है,आज तुम तेजपाल के पसंद का खाना बनाकर उसे खुश कर दो,वो खाने का बहुत शौकीन है,माँ और पत्नी के जाने बाद उसकी खाने में भी दिलचस्पी कम हो गई है,जो जो हम कहें वही बना लेना खाने में",भागीरथ जी बोले....
"जी! दादाजी!",प्रत्यन्चा बोली...
"तुम कर तो लोगी ना इतना सब",भागीरथ जी ने पूछा....
"जी! मैं सब कर लूँगी,देखिएगा आज चाचाजी अपनी ऊँगलियाँ चाटते ना रह जाएँ तो कहिएगा",प्रत्यन्चा बोली....
"शाबास! तो फिर देर किस बात की,लग जाओ काम पर",भागीरथ जी बोले...
फिर क्या था,प्रत्यन्चा रसोईघर में जाकर फौरन काम पर लग गई और उसने वो सब बना डाला जो जो भागीरथ जी ने उसे हिदायतें दी थीं,सारा खाना बन चुका था केवल चपातियाँ बनाने को बचीं थीं , तब विलासिया नींद से जागकर रसोईघर में आई और प्रत्यन्चा को रसोईघर में खाना बनाते देख उसने उससे पूछा...
"ई का बिटिया! तुम तो सब बना चुकी"
"हाँ! बैठे बैठे परेशान हो रही थी,इसलिए रसोई में खाना बनाने चली आई",प्रत्यन्चा बोली...
"चलो! इत्ते साल बाद तनिक हमें भी आराम मिल गया,आज हमें भी किसी और का बनाया खाना नसीब होगा",विलसिया बोली...
और फिर प्रत्यन्चा ने चपातियाँ बनाई और विलसिया ने फौरन ही डाइनिंग टेबल पर खाना सजाकर रख दिया,फिर वो तेजपाल जी को बुलाने उनके कमरे की ओर चली गई,तेजपाल जी फौरन ही नीचे उतरकर आएँ और अपने पिता भागीरथ जी के साथ खाना खाने बैठ गए,विलसिया ने उन दोनों की प्लेट में खाना परोसा,खाना देखकर तेजपाल जी बोले....
"क्या बात है विलसिया! आज सब मेरी पसंद का खाना पकाया है तुमने,ये अरहर की लसहुन तड़के वाली दाल,भरवाँ भिण्डी,कटहल की सब्जी,परवल की भुन्जिया,टमाटर की चटनी,रोटी,चावल और सलाद"
"इ सब हम नाहीं,बिटिया बनाई है",विलसिया बोली....
"अरे! खाकर तो देख,कैंसा बना है",भागीरथ जी तेजपाल जी से बोले....
और फिर तेजपाल जी ने जैसे ही एक एक सब्जी अपने मुँह डाली तो उनके मुँह से प्रत्यन्चा के लिए तारीफ के बोल निकलने शुरु हो गए और प्रत्यन्चा ये सुनकर खुश हो उठी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....