Toronto (Canada) yatra sansmaran - 4 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 4

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टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 4

कनाडा की धरती पर

गेट के बाहर हमारा बेटा गौरव हमारी प्रतीक्षा करते दिखा। जितना हमारे मन में बेटे से मिलने की उत्सुकता और उत्साह की हिलोरें उठ रही थीं। उतना ही सामने खड़े गौरव के चेहरे के भाव को देख कर अहसास हो रहा था। उसके मन का भी वही हाल था। आज छोटे बेटे गौरव ने हमारी इस यात्रा के गौरव पूर्ण क्षणों को हमारे अंतस मन में संजोने का इस अकल्पनीय सपने को साकार कर दिखाया था। वह भी हमारे विदेश में पाँच माह के लम्बे प्रवास की योजना के साथ। मैं उसके साथ टैक्सी में घर जाने के लिए निकल पड़ा था, अपनी बहू रोशी और नवजात अंश से मिलने।


रास्ते में मेरे सामने लम्बी चैड़ी सड़कों के साथ ही बड़ी ऊँची-ऊँची चमचमाती दमकती गगन चुम्बकीय बहुमंजिला इमारतें नजर आ रहीं थीं। जिन्हें गौरव किसी को चालीस मंजिला बता रहा था, तो किसी को सत्तर मंजिला। मैं तो उन्हें किसी चित्रकार के बनाए चित्र की भांति देखने में ही खोया सा था। उनकी ऊँचाई को देख कल्पना ही करता रह गया कि क्या इतनी भी ऊँचाई में भी लोग रहते होंगे ? कैसा लगता होगा ऊपर से नीचे का दृष्य। सड़क के दोनों किनारों पर लगे पेड़ पौधे और फूलों की क्यारियों का तो कहना ही क्या था। ऐसा लगता था कि मेरे आने की खुशी में शहर को जैसे किसी दुल्हन की तरह से सजाया गया हो।

गौरव ने बतलाया अभी गर्मियों में नगर निगम और यहाँ के निवासी मिलकर बड़े चाव से सारा शहर सजाते सवाँरते हैं। जब नवम्बर-दिसम्बर में बर्फ पड़ती है, तो चारों ओर बर्फ ही बर्फ छा जाती है। झीलों का पानी जम जाता है। छोटे फूलों वाले पौधे बर्फ के नीचे दब कर नष्ट हो जाते हैं किन्तु लोग फिर इस मौसम के आते ही घर शहर सजाने संवारने में जुट जाते हैं। प्रकृति और सौन्दर्य के उपासक यहाँ के लोगों ने हार मानना सीखा ही नहीं।


सड़कें फुटपाथ सभी साफ सुथरे दिख रहे थे। धरा की कोई ऐसी जगह नहीं दिख रही थी, जो वस्त्र विहीन हो, जहाँ हरियाली न हो। यहाँ ऊँची-ऊँची इमारतों की तरह चारों ओर लम्बे ऊँचे हरे-भरे विशाल वृक्ष लहलहाते नजर आ रहे थे। मेपिल वृक्ष यहाँ के लिए वरदान है। विशाल मोटे ठोस तने वाले इस वृक्ष का कहना ही क्या है। जो हर सीजन में हरा भरा सदा मुस्कराता ही नजर आता रहता है। इससे कुछ औषधि भी बनाते हैं। इसीलिए लगता है, कनाडा की सरकार ने अपने राष्ट्रीय झंडे में उसकी पत्ती को उकेर रखा है।

काफी लम्बी दूरी तय करने के बाद शहर में हमारी टैक्सी आकर एक बत्तीस मंजिला इमारत के सामने रुक गयी। शायद हम लोग अपनी मंजिल पर पहुँच गये थे। सामान टैक्सी से उतार कर लिफ्ट से अपने फ्लैट पर जा पहँुचे। थोड़े ही समय में अपने फ्लैट के हाल में बैठ कर हम सभी आपस में मिलकर एक दूसरे से खुशियाँ बाँटने में लग गये थे। हमारे और श्रीमती के बीच अपने-अपने यात्रा संस्मरणों को याद कर के सुनाने की मानो होड़ सी मच गयी थी।


श्रीमती को सुनाने में बेहद खुशी हो रही थी, उसकी खुशी को मैं कम नहीं करना चाहता था। पलंग पर सामने नवजात अंश सो रहा था, हम लोगों का शोरगुल सुनकर उसने आँखें खोल दीं। जिसे दंखकर हम सभी खुश हो गये। अब अंश को गोदी में लेने की होड़ सी मच गयी थी। उसे गोदी में उठाकर हम सभी झूम रहे थे। वह भी हम लोगों को देखकर खुशी से उत्साहित नजर आ रहा था। उसको गोद में उठाने और खिलाने उसके दादा-दादी जो आ चुके थे।...

यहाँ जब रात्रि होती तो भारत में सुबह होती। यहाँ जून माह में रात्रि साढ़े नौ बजे भी इस मौसम में उजियारा रहता और सुबह चार बजे फिर प्रकाश झांकने लगता है। एक सप्ताह तक तो हमारा शरीर और मनः स्थिति असमान्य सा महसूस करता रहा फिर धीरे धीरे अपने आप को एडजेस्ट कर लिया। तब जाकर यहाँ के अनुकूल वातावरण में अपने आप को ढाल पाया। गौरव ने बताया ऐसा सभी के साथ होता है।

मैं जबलपुर से जो फोन नम्बर लाया था, उन सभी को फोन करके मैंने अपने आगमन की सूचना दे दी, हमसे मिलने वालों में प्रथम श्री गोपाल बघेल ‘मधु’ पधारे। पहले कभी जबलपुर में वर्तिका संस्था के एक साहत्यिक कार्यक्रम में इनसे मुलाकात हुई थी। आप कनाडा में ‘‘अखिल विश्व हिन्दी समिति’’ के अध्यक्ष हैं। बहुत खुशी हुई कि परदेश में हिन्दी की ध्वज पताका फहराने वाले एक यहाँ के हिन्दी साहित्यकार से मुलाकात हुई, आप मथुरा के रहने वाले हैं, अब यहीं पर अपना मकान लेकर बस गये हैं। बीच बीच में अपनी मातृभूमि जाते आते रहते हैं। घर पर उनसे लगभग तीन घंटे साहित्यिक परिचर्चा हुई।विदेश के इस शहर में मुझे आये लगभग दो सप्ताह हो गए थे। मैं इस शहर को कुछ जानने समझने की कोशिश कर रहा था।

कनाडा के टेरेन्टो शहर में टाउन डाउन एरिया के बत्तीस मंजिला बिल्डिंग में दूसरी मंजिल में ही हमारा फ्लैट था। हमारी इमारत में हर मंजिल में अठारह फ्लैट थे। इस तरह पूरी इमारत में 576 फ्लैट थे। इन फ्लैटों में सभी अपने परिवार सहित निवास कर रहे थे। इस इमारत में जमीन के अंदर भी तीन चार तल थे जिसमें कार पार्किंग की व्यवस्था के साथ ही एक मंजिल में कपड़े धोने एवं सुखाने की मशीनें ढेर सारी लगीं हुईं थीं। जिसमें कोई आपरेटर नहीं होता था। अपने कपड़ों को धोने के लिए सोप पावडर लेकर खुद जाना होता। वहाँ जाकर गंदे कपड़े मशीन में डाल दीजिए और आधा घंटे बाद जाइए कपड़े धुले मिल जाएँगे। बाद में उन्हें निकाल कर कपड़े सुखाने वाली मशीन में डालना होता है इस तरह से कपड़ों की सुखाई भी हो जाती है। एक मशीन में धुलने वाले कपड़ों की एक सीमा होती है। पैमेन्ट कार्ड मशीन में स्वीप कर पेमेंट करना होता है। ऐसी सुविधा हर बहुमंजिला इमारतों में रहती है। इस डाउन-टाउन एरिया में सैकड़ों बहुमंजिला इमारतें इसी तरह से खड़ी थीं।

यहाँ गर्मी को छोड़कर अन्य सभी मौसम में बर्फ गिरती है। गर्मी का मौसम तो इनके लिए उत्सव जैसा होता है। लोग स्वीमिंग पुल का व धूप सेंकने के लिए घंटों खुले स्थानों में लेटकर आनंद उठाते रहते हैं। यहाँ की गर्मी में भी ठंडक रहती है। घूमने फिरने वालों के लिए यह मौसम अनुकूल रहता है। सैलानियों की संख्या बढ़ जाती है।