Toronto (Canada) Travelogue - 1 in Hindi Travel stories by Manoj kumar shukla books and stories PDF | टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 1

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टोरंटो (कनाडा) यात्रा संस्मरण - 1

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टोरेन्टो (कनाडा) यात्रा संस्मरण

मनोज कुमार शुक्ल ‘‘मनोज ’’

यात्रा की तैयारी

हमने अपने जीवन काल में भारत के अनेक शहरों एवं पर्यटन स्थलों का भ्रमण ट्रेन व बस माध्यम से किया। पर विदेश यात्रा जाने का यह पहला अवसर था वह भी हवाई जहाज से। हमारी यह उड़ान हवाई जहाज द्वारा दिल्ली से कनाडा के शहर टोरेन्टो के लिए थी, वह भी पूरे पाँच माह के लिए। यात्रा सप्ताह दो सप्ताह की होती तो कोई परेशानी न थी। किन्तु पूरे पाँच माह के लिए, वह भी विदेश यात्रा, मेरे लिए रोमांच से भरपूर साथ ही साथ हर्ष और चिन्ता का विषय तो था ही। एक तो विदेश यात्रा तो दूसरी ओर एक अनजान देश के लिए रवानगी वह भी हवाई जहाज से।

हमारे छोटे चिरंजीव गौरव कुमार ने पूर्व में ही इन्टरनेट से तत्काल पासपोर्ट बनवाने के लिये मेरा आवेदन पत्र सम्मिट कर दिया था। जब मैं बैंक में जाब करता था तो पासपोर्ट के बारे में आने वाली ढेर सारी समस्याओं परेशानी के बारे में सुन रखा था बड़ा हौवा था। एक एजेंट पासपोर्ट का काम करता था जो कि समय और पैसा लेकर बनवाया करता था। जिसमें नाना प्रकार की परेशानी आती थी। वही छवि आज भी मेरे दिमाग में थी, किंतु हम लोगों का कुछ ही दिनों बाद जल्द ही पासपोर्ट भोपाल कार्यालय से पेपर वेरीफिकेशन के लिए बुलावा आ गया फिर भी मन में काफी टेंशन था।


नियत समय में श्रीमती को साथ लेकर पासपोर्ट भोपाल कार्यालय जा पहुँचा। अंदर जाकर इतना सुखद अनुभव हुआ कि मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। हमारी समस्त फार्मेल्टी लगभग एक घंटे में कम्पलीट हो गयी। और कार्यालय से बाहर निकलते ही हमारे मोबाईल में पुलिस वेरीफिकेशन का मैसेज भी आ गया। जीवन में पहली बार मुझे यहाँ रामराज्य का अनुभव हुआ। मात्र कारण यह था कि पासपोर्ट कार्यालय को निजि कम्पनी के युवा कर्मचारियों के हाथों से कार्य का निष्पादन किया जाना। अर्थात कार्यालय से दलालों एवं भ्रष्टाचारियों का पलायन होना। पास पोर्ट एवं वीजा बन जाने के बाद यात्रा का प्रथम चरण पूरा हुआ। लगभग एक माह तक सामान ले जाने की लम्बी चैड़ी फेहरिस्त की बहस चलती रही।

2015 जनवरी माह में मैं अपने छोटे बेटे गौरव के नवजात शिशु का दादा जो बन गया था। टोरेन्टो सपत्नीक जाने का कार्यक्रम बना। अपने बहू-बेटे और नवजात पोते से मिलने की तीव्र उत्कंठा और एक उमंग के साथ अंततः हमारी टिकिट बुक हो गयी। श्रीमती तो अपने किसी ज्योत्षी की विदेश यात्रा की भविष्यवाणी को याद कर बड़ी खुशी जाहिर कर रहीं थीं। अपने भाग्य को सराह रहीं थीं।

पत्नी अगर साथ में हो तो स्वाभाविक है कि यात्रा में सामान की फेहरिस्त भी बड़ी ही होगी और बहस भी। वो तो अच्छा हुआ मेरी बेटी सपना नागपूर से आ गई थी, वह आई तो थी अपनी गर्मी की छुट्यिों को मनाने, पर वह उलझ गयी, हम लोगों की यात्रा की तैयारी में। पति- पत्नी के विरोधाभाषी समानों की लिस्ट में काँट-छाँट कर के उसने उचित सामान ले जाने की राह दिखाई। इस मामले में बेटियाँ राम बाण औषधि की तरह होती हैं। इससे माँ-बाप का सारा सिर दर्द दूर हो जाता है।

हमारी टिकिट बुक होने के बाद से ही यात्रा की क्लास लगना चालू हो गयी थी। अपने जीवन के चैंसठ वर्ष के पड़ाव पार करने के बाद आज मैं अपने छोटे बेटे गौरव से विदेश यात्रा की पहली क्लास में पढ़ रहा था। किसी स्कूल के मास्टर की तरह बताए गये होम वर्क को अच्छी तरह से कराने का काम काफी दिनों तक चलता रहा। उसकी नजर में तो अभी भी मैं अबोध कमजोर विद्यार्थी साबित हो रहा था। उसे कम ही विश्वास था, अपने पिता पर कि ये परीक्षा पर खरे उतरेगें । जीवन की इस संध्या बेला में मुझे अपना बचपना याद आ रहा था, जब मास्टर के हाथ में बेंत और उनकी घूरती निगाहें सपनों में भी पीछा करती नजर आ रहीं होती थीं। स्कूल में न पढ़ने वाले बच्चों को भी सही राह पर ले जातीं थीं। उसी तरह से उसके हर इंस्ट्रक्शन बस मेरे लिए ही थे,अपनी माँ के लिए नहीं।शायद उसकी नजरों में वो मुझसे ज्यादा बुद्धिवान थी।

इसी बीच हवाई यात्रा के लिए सावधानियाँ, जानकारियाँ के साथ ही मित्रों, रिश्तेदारों से अनेक सलाह मशविरे फ्री में मिलते रहे। लगभग बीस से चैबीस घंटे हवाई यात्रा के लम्बे सफर के लिये लोगों के बताये अनुदेशों को बड़े ध्यान से ग्रहण करना। मेरे लिए हर एक का अनुदेश किसी पूजा के मंत्र को कंठस्थ करने के समान था।


कभी लोग दूसरों से सुनी सुनाई बातों को सुनाने की उत्कंठा में मुझे झंझवातों में उलझा कर चले जाते, तो कभी- कभी अपने अधूरे ज्ञान को बाँट कर वे ऐसे संतुष्ट हो जाते कि भाई साहब हमारा फर्ज है, आपको बताना, मानना न मानना आप पर है। आप अब ऐसे मित्रों, स्नेहियों की सलाह को कैसे अनसुना कर सकते हैं। इनका काम तो बस किसी तरह अपना ज्ञान बघार देना होता है और आपको भ्रम के चैराहों में खड़े करके धीरे से चले जाना। उनका मकसद ही यही होता है। तब कहीं जाकर मैं इस तरह के समुद्र मंथन के बाद कुछ निश्चय के कगार पर पहुँच पाया।