Angad - 4 in Hindi Adventure Stories by Utpal Tomar books and stories PDF | अंगद - एक योद्धा। - 4

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अंगद - एक योद्धा। - 4

अगले दिन प्रातः काल मनपाल सिंह को अंगद मंदिर की ओर से आता हुआ दिखाई दिया। साफ स्वच्छ वस्त्र धारण किए हुए, केश सुलझे व चेहरे पर लालिमा, उसे देख लगता ही न था कि कल ही उसने कोई युद्ध लड़ा है। वह ऐसे चला आता था मानो कोई मदमस्त जवान शेर कई दिनों के आराम के बाद अपनी मांद से बाहर आया हो और जंगल की सैर करने निकला हो।अंगद के मन में एक अलग स्तर का आनंद था, जिसके पास से वह निकलता सबका हाल जान कर निकलता।जो सामने आता उसको वह मुस्कान भरी नजरों से देखता, मानो उसका हृदय किसी कोमल फूल की पंखुरी हो गया हो। मनपाल को अंगद का यह आचरण विचलित कर रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे कि यह आखिर हो क्या रहा है वह अचंभित थे कि अंगद के मुख पर कोई थकान की लकीर न दिखती थी।उसके बदन पर कहीं कोई चोट का चिन्ह न था। तभी अंगद ने आकर मनपाल को सादर प्रणाम किया और हाल खबर पूछी मगर मैनपाल को जैसे सुना ही नहीं, उस समय मानो उनके कानों की शक्ति भी नेत्रों में ही समा गई थी वह अंगद को बस देखते ही जा रहे थे।अंगद ने दोबारा कहा-"प्रणाम काका, कहां खोए हो?", तब मैनपाल की ध्यान मुद्रा टूटी और उन्होंने अंगद की पीठ थपथपाते हुए कहा- "आओ अंगद, मैं नदी तट पर जा रहा हूं, कुछ देर मेरे संग रहो इसी बहाने थोड़ी बातचीत करके युद्ध की थकान को कम किया जाए। अंगद बिना कुछ कहे उनके साथ चल दिया। कुछ दूर तक दोनों चुपचाप चलते रहे फिर मैनपाल ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा- "अच्छा अंगद, यह बताओ कि कल युद्ध में मैंने देखा, कि...", इससे आगे वह कुछ बोलते अंगद ने बीच में ही उन्हें रोक दिया और बोल पड़ा,"कहां अब आप युद्ध को याद करते हो काका, रात गई सो बात गई।"और ठहाका मार कर हंस दिया।अंगद की इस बात ने मनपाल के मन में संदेह का कुआं और गहरा कर दिया।
इधर-उधर की बातें करते दोनों नदी तट के समीप पहुंच गए। अचानक किसी स्त्री की चिल्लाने की आवाज आई,"हाय मेरा लल्ला...कोई है...मदद करो, बचाओ.."। नदी पर से पानी ले जाने आई किसी स्त्री का बच्चा घाट से दूर गहरे पान गहरे पानी में चला गया और नदी का वेग उसे अपने संग लेकर आगे ही चला जा रहा था। स्त्री की आवाज सुनते ही मनपाल ने अंगद की ओर देखा परंतु अंगद तो ओझल था। अगले ही क्षण पानी में जोर से 'छापाक' किसी के कूदने की आवाज हुई, वह अंगद था। सब स्त्रियां, बच्चे और स्वयं मनपाल तट पर खड़े देख रहे थे। थोड़ी ही देर में अंगद बच्चों को लेकर बाहर आ गया, बच्चे को मां की गोद में सौंप कर वह मनपाल के पास आया।
मनपाल ने फिर पूछने की कोशिश करी- "अंगद तुम इतनी जल्दी यहां से...", परंतु अंगद फिर बीच में ही बोल उठा-"अरे मैं तो भूल ही गया, मां ने कहा था आपसे पूछना है कि महाराज और पिताजी को आने में अभी कितना समय लगेगा?"
मनपाल ने इस प्रश्न का कोई उत्तर न दिया।